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रिटायर होने के बाद भी मुद्दा हैं प्रणब और येचुरी अप्रासंगिक

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 08 जून, 2018 08:34 PM
  • 08 जून, 2018 08:34 PM
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नागपुर में दिए भाषण पर प्रणब मुखर्जी की आलोचना करने वाले सीताराम येचुरी को समझना चाहिए कि प्रणब जैसी सियासत करने में उन्हें अभी एक लम्बा वक्त लगेगा.

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी चौतरफा आलोचना का शिकार हो रहे हैं. वजह है उनका संघ शिक्षा वर्ग-तृतीय वर्ष समापन समारोह' के लिए बतौर चीफ गेस्ट नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुख्यालय जाना और वहां भाषण देना. ध्यान रहे कि 30 मिनट तक दिए गए इस भाषण में प्रणब मुखर्जी ने कई ऐसी बातें कहीं. जो ये बताने के लिए काफी थीं कि यूं ही प्रणब मुखर्जी को राजनीति का मजबूत खिलाड़ी नहीं कहा जाता.

कहना गलत नहीं है कि इस भाषण के बाद प्रणब ने अपने आलोचकों का मुंह बंद किया है

यदि प्रणब के भाषण को ध्यान से सुनें और उन्हें देखें तो ये कहना कहीं से भी गलत न होगा कि चूंकि अपने जीवनकाल में प्रणब ने कई प्रधानमंत्रियों को आते-जाते हुए देखा साथ ही वो कांग्रेस की कई पीढ़ियों को दशकों से देख चुके हैं अतः ये राहुल गांधी या किसी अन्य कांग्रेसी से ज्यादा 'कांग्रेस' हैं.

जिस तरह की राजनीति का परिचय प्रणब ने दिया है वैसी राजनीति करने में माकपा और येचुरी दोनों को अभी लंबा वक़्त लगेगा

अब अगर ऐसे व्यक्ति की कोई आलोचना करे और ये कहे की उन्हें संघ के मंच पर ऐसा करना था, वैसा करना था तो ये बात सुनने में अजीब है. माकपा नेता सीताराम येचुरी ने प्रणब मुखर्जी की नागपुर यात्रा के सम्बन्ध में ट्वीट कर कहा है कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी यदि संघ को उसका इतिहास याद दिलाते तो अच्छा होता. हालांकि माकपा ने बहुलतावादी और समग्र समाज को असल भारत के रूप में उल्लेखित करने के लिए उनके भाषण की जमकर तारीफ की और किसी भी तरह की कंट्रोवर्सी से बचने का प्रयास किया.

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी चौतरफा आलोचना का शिकार हो रहे हैं. वजह है उनका संघ शिक्षा वर्ग-तृतीय वर्ष समापन समारोह' के लिए बतौर चीफ गेस्ट नागपुर स्थित राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुख्यालय जाना और वहां भाषण देना. ध्यान रहे कि 30 मिनट तक दिए गए इस भाषण में प्रणब मुखर्जी ने कई ऐसी बातें कहीं. जो ये बताने के लिए काफी थीं कि यूं ही प्रणब मुखर्जी को राजनीति का मजबूत खिलाड़ी नहीं कहा जाता.

कहना गलत नहीं है कि इस भाषण के बाद प्रणब ने अपने आलोचकों का मुंह बंद किया है

यदि प्रणब के भाषण को ध्यान से सुनें और उन्हें देखें तो ये कहना कहीं से भी गलत न होगा कि चूंकि अपने जीवनकाल में प्रणब ने कई प्रधानमंत्रियों को आते-जाते हुए देखा साथ ही वो कांग्रेस की कई पीढ़ियों को दशकों से देख चुके हैं अतः ये राहुल गांधी या किसी अन्य कांग्रेसी से ज्यादा 'कांग्रेस' हैं.

जिस तरह की राजनीति का परिचय प्रणब ने दिया है वैसी राजनीति करने में माकपा और येचुरी दोनों को अभी लंबा वक़्त लगेगा

अब अगर ऐसे व्यक्ति की कोई आलोचना करे और ये कहे की उन्हें संघ के मंच पर ऐसा करना था, वैसा करना था तो ये बात सुनने में अजीब है. माकपा नेता सीताराम येचुरी ने प्रणब मुखर्जी की नागपुर यात्रा के सम्बन्ध में ट्वीट कर कहा है कि पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी यदि संघ को उसका इतिहास याद दिलाते तो अच्छा होता. हालांकि माकपा ने बहुलतावादी और समग्र समाज को असल भारत के रूप में उल्लेखित करने के लिए उनके भाषण की जमकर तारीफ की और किसी भी तरह की कंट्रोवर्सी से बचने का प्रयास किया.

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के भाषण पर प्रतिक्रिया देते हुए माकपा के राष्ट्रीय महासचिव सीताराम येचुरी ने प्रणब से सवाल किया कि उन्होंने संघ के मंच पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या का कहीं भी जिक्र नहीं किया. वहीं इस यात्रा पर प्रतिक्रिया देते हुए भाकपा नेता डी राजा का कहना है कि प्रणब को आरएसएस के कार्यक्रम में नहीं जाना चाहिए था लेकिन प्रणब दा ने अपने भाषण में जो कुछ कहा, उनसे उसी की उम्मीद थीं.

माकपा की तरफ से आ रही इन प्रतिक्रियाओं और आलोचनाओं के बाद एक बात तो साफ है कि या तो इन्होंने प्रणब का भाषण सही से नहीं सुना या फिर इनकी राजनीतिक सूझबूझ इस योग्य नहीं हुई है कि वो प्रणब और नागपुर यात्रा के दौरान दिए गए उनके भाषण को समझें. जल्दबाजी में चूक होती हैं, शायद प्रणब की आलोचना के लिए माकपा के लोग जल्दबाजी में थे. चलिए हम एक बार फिर प्रणब मुखर्जी के भाषण के कुछ अहम बिंदु पेश कर दें जिसे यदि माकपा के लोग ठंडे दिमाग से सोचें तो बात काफी हद तक साफ और उनकी चिंता दूर हो जाएगी.

प्रणब के 30 मिनट के इस भाषण में यदि माकपा इन्हीं 3 ट्वीट्स का गहनता से अवलोकन कर लें तो उसकी शंका दूर हो जाएगी और उसे इस बात का एहसास हो जाएगा कि प्रणब ने जो दाब खेला उसे खलेने में अभी माकपा या इस तरह की किसी दूसरी पार्टी को अभी लम्बा वक़्त लगेगा. साथ ही यदि वो संघ को किनारे कर राजनीति करने की कल्पना कर रहे हैं तो उन्हें जान लेना चाहिए कि वर्त्तमान राजनीतिक परिदृश्य में ऐसा बिल्कुल भी संभव नहीं है. यदि उन्हें राजनीति करनी है तो हर कीमत पर संघ को साथ लेकर ही राजनीति करना पड़ेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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