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Coronavirus के हमलावर बहुत बीमार हैं - मेडिकल ही नहीं कानूनी इलाज भी जरूरी

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 02 अप्रिल, 2020 08:47 PM
  • 02 अप्रिल, 2020 08:47 PM
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जो स्वास्थ्यकर्मी और पुलिसवाले (Attack on Coronavirus warriors) अपनी जिंदगी खतरे में डाल कर ऐसे लोगों की मदद करने पहुंच रहे हैं जिनके कोरोना से संक्रमित होने का संदेह है और उन पर ही हमला हो रहा है.

संदिग्ध. कोरोना वायरस के संक्रमण के शिकार लोगों (Coronavirus cases in India) के लिए इस शब्द का इस्तेमाल पहली बार सुनने शब्द थोड़ा अजीब लगा था. अंग्रेजी में सस्पेक्ट बोले जाने के बाद हिंदी संदिग्ध बोला जाने लगा. थोड़ा अजीब इसलिए क्योंकि वे पीड़ित हैं, बीमार हैं, जानलेवा बीमारी के शिकार हैं - और संदिग्ध शब्द आतंकवादी या संभावित अपराधियों के लिए इस्तेमाल होता रहा है. लेकिन देश में जगह जगह स्वास्थ्यकर्मियों, पुलिस वालों पर लोगों के हमले के बाद लगता है जो होता वास्तव में ठीक ही होता है. मध्य प्रदेश के इंदौर से. उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और बिहार के मधुबनी, मुंगेर जैसे इलाकों से भी तकरीबन एक जैसी घटनाओं की रिपोर्ट आयी है.

सबसे ज्यादा ताज्जुब करने वाला तो तब्लीगी जमात (Tablighi Jamaat Suspects) के कोरोना संदिग्धों की हरकत है - वे तो बेहयायी की सारी हदें पार करते हुए उन कोरोना वॉरियर्स पर थूक रहे हैं जो अपनी जान पर खेल कर उनकी जिंदगी बचाने की कोशिश कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के खिलाफ काम कर रहे ऐसे लोगों को कोरोना वॉरियर का सम्मान दिया है और उनकी एक अपील पर पूरा देख जनता कर्फ्यू के दौरान ताली और थाली बजाकर अपना सम्मान प्रकट कर चुका है.

कोरोना वॉरियर्स (Attack on Corona warriors) पर हमले की हिमाकत करने वाले ये वायरस ही नहीं आतंक और अपराध के संदिग्धों जैसे लगते हैं. बेशक ये बीमार हैं. बल्कि बहुत बीमार हैं, लेकिन ये बीमारी महज मेडिकल सेवाओं के दायरे में ठीक हो पाएगी, संदेह है - ऐसे बीमारों के लिए कड़े कानूनी इलाज (Strict Legal Action) की सख्त जरूरत आ पड़ी है.

संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से एक लक्ष्मण रेखा की याद दिलायी थी, लेकिन ये तो सारी लक्ष्मण रेखाएं ही पार कर चुके हैं. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव का बयान भी अजीब लगा था और फिलीपींस के राष्ट्रपति का भी - लेकिन लगता है ऐसे लोगों के बारे में उनका आकलन गलत नहीं है. सही कह रही है बेंगलुरू ट्रैफिक पुलिस -...

संदिग्ध. कोरोना वायरस के संक्रमण के शिकार लोगों (Coronavirus cases in India) के लिए इस शब्द का इस्तेमाल पहली बार सुनने शब्द थोड़ा अजीब लगा था. अंग्रेजी में सस्पेक्ट बोले जाने के बाद हिंदी संदिग्ध बोला जाने लगा. थोड़ा अजीब इसलिए क्योंकि वे पीड़ित हैं, बीमार हैं, जानलेवा बीमारी के शिकार हैं - और संदिग्ध शब्द आतंकवादी या संभावित अपराधियों के लिए इस्तेमाल होता रहा है. लेकिन देश में जगह जगह स्वास्थ्यकर्मियों, पुलिस वालों पर लोगों के हमले के बाद लगता है जो होता वास्तव में ठीक ही होता है. मध्य प्रदेश के इंदौर से. उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर और बिहार के मधुबनी, मुंगेर जैसे इलाकों से भी तकरीबन एक जैसी घटनाओं की रिपोर्ट आयी है.

सबसे ज्यादा ताज्जुब करने वाला तो तब्लीगी जमात (Tablighi Jamaat Suspects) के कोरोना संदिग्धों की हरकत है - वे तो बेहयायी की सारी हदें पार करते हुए उन कोरोना वॉरियर्स पर थूक रहे हैं जो अपनी जान पर खेल कर उनकी जिंदगी बचाने की कोशिश कर रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के खिलाफ काम कर रहे ऐसे लोगों को कोरोना वॉरियर का सम्मान दिया है और उनकी एक अपील पर पूरा देख जनता कर्फ्यू के दौरान ताली और थाली बजाकर अपना सम्मान प्रकट कर चुका है.

कोरोना वॉरियर्स (Attack on Corona warriors) पर हमले की हिमाकत करने वाले ये वायरस ही नहीं आतंक और अपराध के संदिग्धों जैसे लगते हैं. बेशक ये बीमार हैं. बल्कि बहुत बीमार हैं, लेकिन ये बीमारी महज मेडिकल सेवाओं के दायरे में ठीक हो पाएगी, संदेह है - ऐसे बीमारों के लिए कड़े कानूनी इलाज (Strict Legal Action) की सख्त जरूरत आ पड़ी है.

संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा के साथ ही प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों से एक लक्ष्मण रेखा की याद दिलायी थी, लेकिन ये तो सारी लक्ष्मण रेखाएं ही पार कर चुके हैं. तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव का बयान भी अजीब लगा था और फिलीपींस के राष्ट्रपति का भी - लेकिन लगता है ऐसे लोगों के बारे में उनका आकलन गलत नहीं है. सही कह रही है बेंगलुरू ट्रैफिक पुलिस - अगर तुम घर से निकले तो हम घर में घुस आएंगे.

मेडिकल इलाज से ज्यादा की जरूरत है

लॉकडाउन लागू होने की शुरुआत में ही अमेरिका की मिसाल देते हुए तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने कहा था, 'अगर लोग कोरोना वायरस को लेकर लागू की गई बंदी का पालन नहीं करते तो ऐसी स्थिति बन सकती है कि हमें 24 घंटे कर्फ्यू - और गोली मारने के आदेश देने पड़ सकते हैं. मैं लोगों से अपील करता हूं कि ऐसी स्थिति न आने दें.'

फिलिपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटर्टे ने तो पुलिस और फौज को क्वारंटीन के दौरान हिंसक प्रदर्शनकारियों से निबटने में गोली चलाने तक का आदेश दे दिया है. राष्ट्र के नाम संबोधन में डुटर्टे ने कहा कि अगर कोई संघर्ष होता है और लड़ते हुए आपकी जान खतरे में डालता है तो उन्हें गोली मार दें.

जहां डॉक्टर ईश्वर का अवतार समझे जाते हों, वहां कोरोना वॉरियर पर हमले करने वाले कौन हैं?

तेलंगाना से ही डॉक्टरों से दुर्व्यहार की भी खबर आयी थी. कुछ डॉक्टरों ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग में वारंगल के जूनियर डॉक्टरों का मामला उठाया था कि किस तरह मकान मालिकों ने कई डॉक्टरों को घर से बेदखल कर दिया था और वे सड़क पर आ गये थे. दिल्ली में भी डॉक्टरों के साथ मकान मालिकों के दुर्व्यवहार की घटनाओं का पता चला था. फिर गृह मंत्री अमित शाह ने डॉक्टरों से बात की और दिल्ली के पुलिस कमिश्नर को ऐसे लोगों के खिलाफ एक्शन लेने के निर्देश दिये.

ये चार घटनाएं बता रही हैं कि कोरोना वायरस के साथ साथ कड़े कानूनी इलाज की भी जरूरत पैदा होने लगी है -

1. मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश : जिस यूपी पुलिस के एनकाउंटर के डर से अपराधी थर्रा उठते हैं, भोपा थाने के पुलिसकर्मियों को मुजफ्फरनगर के मोरना गांव में भीड़ ने पीट पीट कर जख्मी कर दिया. मोरना पुलिस चौकी इंचार्ज लेखराज सिंह और दो सिपाही इस हमले में बुरी तरह जख्मी हो गये हैं.

ये पुलिस कर्मी लोगों को लॉकडाउन और सोशल डिस्टैंसिंग पर अमल कराने के लिए मोरना गांव पहुंचे थे. इस सिलसिले में मोरना के पूर्व ग्राम प्रधान और परिवार की दो महिलाओं को गिरफ्तार किया गया है.

2. इंदौर, मध्य प्रदेश : इंदौर के ताटपट्टी भक्खल में तो स्वास्थ्यकर्मी एक व्यक्ति की मेडिकल जांच के लिए गये हुए थे. तभी आस पास के लोगों ने पथराव कर दिया. लोगों का दावा है कि वहां किसी को भी कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं हुआ है.

भला ये कैसे दावा किया जा सकता है कि किसी को कोरोना वायरस का संक्रमण नहीं हुआ है. अब तो ये भी रिपोर्ट आ चुकी है कि ऊपर से कोरोना वायरस के लक्षण नहीं पाये जाने पर भी चीन में करीब डेढ़ हजार लोग कोरोना पॉजिटिव पाये गये हैं.

जिस बीमारी ने दुनिया भर के मेडिकल विशेषज्ञों के सामने चुनौती खड़ी कर रखी है. जब दो-दो बार निगेटिव आने के बाद तीसरी बार के टेस्ट में कोरोना पॉजिटिव की रिपोर्ट आ रही हो, भला कोई ये कैसे दावा कर सकता है कि किसी को कोरोना नहीं हुआ है.

3. मधुबनी और मुंगेर, बिहार : मुंगेर में एक बच्ची की मौत के बाद मेडिकल टीम आस पास रहे लोगों की जांच के लिए पहुंची थी. मेडिकल टीम मालूम करना चाह रही थी कि जांच में कुछ पता चलता है तो भी नहीं तो एहतियातन लोगों को क्वारंटीन में रहने की सलाह दी जाये. मेडिकल टीम के पहुंचते ही स्थानीय लोगों ने हंगामा कर दिया.

लोगों के हंगामे के चलते पुलिस को बुलाया गया, लेकिन लोग पुलिस की गाड़ी पर ही पथराव करने लगे. कोरोना वायरस की जांच के सिलसिले में स्वास्थ्यकर्मियों पर पत्थरबाजी की घटनाएं हाल में कई बार हुई हैं.

दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में तब्लीगी जमात के लोगों के कोरोना संक्रमण को लेकर देश भर की पुलिस परेशान है. बिहार पुलिस को मधुबनी में भी ऐसी सूचना मिली थी और जब जांच करने पहुंची तो मस्जिद में मौजूद लोग पथराव के साथ साथ फायरिंग भी करने लगे. जांच टीम में गये बीडीओ और थानेदार किसी तरह जान बचाकर वहां से भाग निकले थे. जिस सरकारी गाड़ी से अधिकारी गये थे उसमें आग लगाकर तालाब में गिरा दिया गया. पुलिस ने 15 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है जिनमें से 4 गिरफ्तार भी किये जा चुके हैं.

ऐसी घटनाएं तो पुलिस मुठभेड़ को लेकर ही सुनने में आती हैं. या फिर पाकिस्तान जैसे मुल्कों में जहां पोलियो डॉप पिलाने को लेकर लोग दो बूंद जिंदगी की देने वालों पर ही धावा बोल देते पाये जाते हैं.

ऐसे गंभीर संकट में जब सिर्फ देश की ही कौन कहे, पूरी दुनिया जिंदगी के लिए जूझ रही है, लोग उन पर हमले कर रहे हैं जिनकी पूजा की जानी चाहिये. क्या हमला करने वालों को ये नहीं पता कि जो उनके पास जा रहे हैं वे भी सिर पर कफन बांध के निकले हैं. जगह जगह से डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की खबरें आ रही हैं. भूखे प्यासे लगातार कई दिनों तक बगैर आराम या छुट्टी के मेडिकल सेवा से जुड़े लोग काम कर रहे हैं और किसी के चेहरे पर शिकन तक देखने को नहीं मिलती. वे जानते हैं कि ड्यूटी ड्यूटी होती है - और सेवा वाली ड्यूटी, लोगों को बचाने वाली ड्यूटी, समाज को बचाने वाली ड्यूटी, देश को बचाने वाली ड्यूटी में जान तक की परवाह नहीं की जाती - क्या मेडिकल टीम पर हमला करने वाले लोग इतने बड़े मूर्ख हैं जो उनको नहीं पता कि चीन में डॉक्टर ली वेनलियांग को लोग किस कदर मिस कर रहे थे. चीन के लोग डॉक्टर ली वेनलियांग की मौत से कितने दुखी थे, कहने की जरूरत नहीं है. लेकिन ऐसे लोगों के गिला क्या और शिकवा क्या? जैसी बातें अब तक मानसिक रूप में बीमार लोगों या बुजुर्गों को लेकर सुनने को मिलती रहीं, वैसे ही एक वाकये का पता छत्तीसगढ़ से चला है. रायपुर एम्स में कोरोना वायरस से संक्रमित होने पर एक ऐसे शख्स को भर्ती कराया गया है जो न तो बोल सकता है न सुन सकता है. इस व्यक्ति के परिवार वाले अस्पताल में छोड़ कर गायब हो गये. घर का जो पता दिया था वो फर्जी निकला है. जो फोन नंबर दिया था वो चालू नहीं है.

अस्पताल का मेडिकल स्टाफ ही अब उस व्यक्ति के सब कुछ हैं. करीबी भी, घरवाले भी और रिश्तेदार भी. जिन लोगों ने उस व्यक्ति तो छोड़ा है क्या उनको भी मालूम है कि वे भी कोरोना संक्रमण के शिकार हुए हो सकते हैं.

देश और दुनिया में इन दिनों कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। ऐसे में एक बोलने और सुन पाने में असमर्थ शख्स को उसके परिवार ने अकेला छोड़ दिया है। शख्स को कोरोना वायरस का संदिग्ध होने पर एम्स रायपुर में भर्ती कराया गया था। परिवारवालों की ओर से घर का जो पता दिया गया था, वह भी फर्जी मिला है। इतना ही नहीं, जो फोन नंबर उपलब्ध कराया गया था, वह भी सेवा में नहीं है। महामारी से लड़ाई के बीच एम्स स्टाफ को उस शख्स की देखभाल करनी पड़ रही है। अधिकारी पुलिस की मदद से शख्स के परिवार का पता लगाने में जुटे हुए हैं।

अंधेरगर्दी के इसी दौर में ऐसे लोगों की कहानियां भी सुनने को मिल रही हैं जो दूसरों के लिए मिसाल बन रहे हैं. 90 साल की एक महिला को सुजान होयलर्ट्स को सांस लेने में तकलीफ होने पर बेल्जियम के अस्पताल में भर्ती कराया गया था. बुजुर्ग महिला को जब डॉक्टरों ने वेंटिलेटर पर रखने की सलाह दी तो बोलीं, मैंने अच्छी जिंदगी जी ली है, वेंटिलेटर नौजवानों के लिए रखिये.' बुजुर्ग को मालूम था कि कोरोना मरीजों की बढ़ती तादाद के चलते वेंटिलेटर की जरूरत कितनी बढ़ गयी है. दुख की बात ये रही कि दो दिन बाद ही महिला चल बसीं. ऐसे भी लोग हैं जिनको बरसों तक भूला न जा सकेगा.

तब्लीगी जमात ने तो तबाही मचा रखी है.

अब तक जो पता चला है, तब्लीगी जमात के निजामुद्दीन मरकज में हुए कार्यक्रम ने देश के 20 राज्यों को खतरे में डाल दिया है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक जमात के कार्यक्रम में करीब 4 हजार लोग मरकज पहुंचे थे. 2 हजार से ज्यादा लोगों को तो आखिरी दिन जबरन निकाला ही गया है. वे तो दिल्ली पुलिस की भी नहीं सुन रहे थे. थक हार कर गृह मंत्रालय को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की मदद लेनी पड़ी थी.

जैसे जैसे जांच आगे बढ़ रही है तब्लीगी जमात को लेकर नयी नयी जानकारी सामने आ रही है. अब इससे बड़ी चौंकाने वाली बात क्या होगी कि तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में हिस्सा लेने 9 लोग चीन से आये थे. मरकज में हुए आयोजन के मामले की जांच दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच कर रही है और ये खबर भी मीडिया में पुलिस के जांच के जरिये ही आयी है.

अंदाजा भर लगाया जा सकता है कि जिस चीन में दिसंबर से ही कोरोना संक्रमण ने तबाही मचा रखी है वहां से निजामुद्दीन मरकज तक पहुंचे लोग कितनों को खतरे में डाल चुके हैं. जब किसी भी देश से आये लोगों में कोरोना के वायरस पाये जाने का संदेह है तो मरकज में चीन से आये लोगों को क्यों रखा गया? ये तभी की बात है जब विदेशी दौरे से आये लोगों के लिए कम से कम 14 दिन तक आइसोलेशन में रहने का प्रोटोकॉल है - और मरकज में ये लोग सोशल डिस्टैंसिंग का खुलेआम माखौल उड़ाते रहे.

निजामुद्दीन के मरकज से निकले तब्लीगी जमात के लोगों ने देश भर की पुलिस के लिए कितनी चुनौतियां पैदा कर दी है, वे लगातार जूझ रहे हैं और उनका पता लगाने के लिए दर दर भटक रहे हैं - और जैसे तैसे करीब पहुंचते हैं तो हमले के शिकार तक हो जा रहे हैं.

पुलिस को तब्लीगी जमात के लोगों का पता लगाने के लिए एंटी टेरसिस्ट स्क्वॉड, सर्विलांस, फोन ट्रैकिंग, सिम कार्ड लोकेशन की तो मदद लेनी ही पड़ रही है - घर घर जाकर भी पता लगाना पड़ रहा है क्योंकि कई लोगों के तो फोन नंबर तक नहीं मिले हैं. ऐसे लोगों का पता लगाने के लिए उनके यात्रा विवरण के जरिये उन तक पहुंचने की कोशिश करनी पड़ रही है.

तेलंगाना से हुई शुरुआत के बाद सबसे ज्यादा समस्या तमिलनाडु में देखी जा रही है. एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, तमिलनाडु के 1500 लोग निजामुद्दीन के आयोजन में शिरकत किये थे. उनमें 1131 तमिलनाडु लौटे हैं और अब तक सिर्फ 891 का ही पता लगाया जा सका है - जिनमें 57 कोरोना पॉजिटिव पाये गये हैं.

पुलिस को आयोजन में शामिल लोगों का पता तो लगाना ही है, वे लोग जो उनके संपर्क में कहीं न कहीं आये उनकी जानकारी हासिल करना एक अलग चैलेंज है. राहत की बात बस ये है कि पुलिस और प्रशासन की अपील के बाद कर्नाटक और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में ऐसे लोग भी मिले हैं जो जांच के लिए खुद आगे आये हैं.

निजामुद्दीन मरकज से तब्लीगी जमात के 167 लोगों को तुगलकाबाद क्वारंटीन सेंटर लेकर जाकर रखा गया है. वहां से खबर आयी है कि ये लोग सेंटर पर जगह जगह थूक रहे हैं. ध्यान रहे, थूक के जरिये कोरोना के फैलने का खतरा रहता है.

दिल्ली सरकार के अधिकारी के मुताबिक, ये लोग देखरेख में जुटे मेडिकल स्टाफ पर भी थूक रहे हैं और उनको गालियां दे रहे हैं. क्वारंटीन सेंटर की पूरी इमारत में ये लोग मनमाने तरीके से घूम रहे हैं - और इलाज में सहयोग की कौन कहे, कदम कदम पर किसी न किसी तरीके से अड़ंगे डालने की कोशिश कर रहे हैं.

सोचिये भला, सिर्फ मेडिकल साइंस के जरिये ऐसे लोगों का इलाज मुमकिन है क्या - सही बात तो ये है कि जिन अत्याधुनिक तौर तरीकों से देश भर की पुलिस ऐसे भगोड़ों को ढूंढ रही, असल बात तो ये है कि वही तरीके इनके खिलाफ इस्तेमाल किये जाने की जरूरत है. शठे शाठ्यम् समाचरेत.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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