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नेताओं की फिसलती जुबान भारतीय राजनीति की गिरावट का शर्मनाक कीर्तिमान रचने जा रही है!

    • आईचौक
    • Updated: 14 फरवरी, 2021 08:15 PM
  • 14 फरवरी, 2021 08:15 PM
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लोकतंत्र के मंदिर 'संसद' में आज की राजनीति नैतिकता और शुचिता को त्याग कर अराजकता का नंगा नाच कर रही है. राष्ट्रीय महत्व के मामलों से लेकर गरीबों से जुड़ी योजनाओं पर भी संकीर्ण मानसिकता की राजनीति की जा रही है. यह संक्रामक रोग अब केवल पार्टी कार्यकर्ताओं, नेताओं, विधायकों, सांसदों तक ही सीमित नहीं रह गया है. सर्वोच्च नेतृत्व भी अब इससे अछूता नहीं रहा है.

दुनिया के सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्र का दंभ भरने वाले भारत में 'राजनीति' अपने गिरते हुए स्तर के लिए मशहूर है. कई शताब्दियों की परतंत्रता के बाद मिली आजादी के बाद राजनीति ने कुछ दशकों तक खुद को मलिन होने से बचाए रखा. लेकिन, अब राजनीति ने अपने मर्यादित आचरण को बहुत पीछे छोड़ दिया है. राजनीति का स्तर केवल भाषा को लेकर ही नहीं गिरा है, बल्कि व्यवहार में निर्लज्जता भी निचले स्तर की पराकाष्ठा पर आ चुकी है. स्वस्थ आलोचनाओं का स्वास्थ्य खराब हो चुका है और उसे नेताओं ने अस्पताल के IC बेड पर पहुंचा दिया है. जहां वो अंतिम सांसें ले रही है. लोकतंत्र के मंदिर 'संसद' में आज की राजनीति नैतिकता और शुचिता को त्याग कर अराजकता का नंगा नाच कर रही है. राष्ट्रीय महत्व के मामलों से लेकर गरीबों से जुड़ी योजनाओं पर भी संकीर्ण मानसिकता की राजनीति की जा रही है. यह संक्रामक रोग अब केवल पार्टी कार्यकर्ताओं, नेताओं, विधायकों, सांसदों तक ही सीमित नहीं रह गया है. सर्वोच्च नेतृत्व भी अब इससे अछूता नहीं रहा है.

के. चंद्रशेखर राव ने सरकारी कार्यक्रम के दौरान प्रदर्शनकारियों के एक समूह की तुलना 'कुत्तों' से कर दी.

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने सरकारी कार्यक्रम के दौरान प्रदर्शनकारियों के एक समूह की तुलना 'कुत्तों' से कर दी. अब अगर नेता जी की इस भाषा को सड़कछाप न कहा जाए, तो और क्या कहा जाए. जो लोग नेताओं को अपने सबसे बड़े अधिकार मतदान के जरिये चुन कर राज्य के बड़े पद तक पहुंचाते हैं. चुनाव के बाद वही जनता उनकी नजर में कुत्ता हो जाती है. जब कोई व्यक्ति संवैधानिक पद पर होता है, तो उसके साथ वह कई तरह की मर्यादाओं में बंध जाता है. वह केवल उनकी पार्टी को वोट देने वालों का मुख्यमंत्री नहीं रह जाता है. वह राज्य के हर उस व्यक्ति का सीएम होता है, जो...

दुनिया के सबसे बड़े और सबसे पुराने लोकतंत्र का दंभ भरने वाले भारत में 'राजनीति' अपने गिरते हुए स्तर के लिए मशहूर है. कई शताब्दियों की परतंत्रता के बाद मिली आजादी के बाद राजनीति ने कुछ दशकों तक खुद को मलिन होने से बचाए रखा. लेकिन, अब राजनीति ने अपने मर्यादित आचरण को बहुत पीछे छोड़ दिया है. राजनीति का स्तर केवल भाषा को लेकर ही नहीं गिरा है, बल्कि व्यवहार में निर्लज्जता भी निचले स्तर की पराकाष्ठा पर आ चुकी है. स्वस्थ आलोचनाओं का स्वास्थ्य खराब हो चुका है और उसे नेताओं ने अस्पताल के IC बेड पर पहुंचा दिया है. जहां वो अंतिम सांसें ले रही है. लोकतंत्र के मंदिर 'संसद' में आज की राजनीति नैतिकता और शुचिता को त्याग कर अराजकता का नंगा नाच कर रही है. राष्ट्रीय महत्व के मामलों से लेकर गरीबों से जुड़ी योजनाओं पर भी संकीर्ण मानसिकता की राजनीति की जा रही है. यह संक्रामक रोग अब केवल पार्टी कार्यकर्ताओं, नेताओं, विधायकों, सांसदों तक ही सीमित नहीं रह गया है. सर्वोच्च नेतृत्व भी अब इससे अछूता नहीं रहा है.

के. चंद्रशेखर राव ने सरकारी कार्यक्रम के दौरान प्रदर्शनकारियों के एक समूह की तुलना 'कुत्तों' से कर दी.

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने सरकारी कार्यक्रम के दौरान प्रदर्शनकारियों के एक समूह की तुलना 'कुत्तों' से कर दी. अब अगर नेता जी की इस भाषा को सड़कछाप न कहा जाए, तो और क्या कहा जाए. जो लोग नेताओं को अपने सबसे बड़े अधिकार मतदान के जरिये चुन कर राज्य के बड़े पद तक पहुंचाते हैं. चुनाव के बाद वही जनता उनकी नजर में कुत्ता हो जाती है. जब कोई व्यक्ति संवैधानिक पद पर होता है, तो उसके साथ वह कई तरह की मर्यादाओं में बंध जाता है. वह केवल उनकी पार्टी को वोट देने वालों का मुख्यमंत्री नहीं रह जाता है. वह राज्य के हर उस व्यक्ति का सीएम होता है, जो वहां का निवासी है. भारत की जनता कई दशकों से राजनीतिक उपेक्षाओं का शिकार होती चली आ रही है. वर्तमान माहौल के अनुसार इसके आगे भी निरंतर जारी रहने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान आंदोलन का जिक्र करते हुए आंदोलनजीवियों से बचने की सलाह दे डाली.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यसभा में किसान आंदोलन का जिक्र करते हुए आंदोलनजीवी लोगों से बचने की सलाह दे डाली. इस पर बवाल मचने पर उन्हें लोकसभा में सफाई देनी पड़ी. मोदी ने आंदोलनकारियों और आंदोलन को पवित्र बताया. लेकिन, आंदोलनजीवियों द्वारा आंदोलन को अपहृत करने की बात कर अपना एजेंडा साधने वालों को निशाने पर लिया. देश के प्रधानमंत्री होने के नाते मोदी को समझना चाहिए कि वह सामान्य तौर पर बात करते हुए किसी पर ऐसे गंभीर आरोप नहीं लगा सकते हैं. संसद में इस तरह के बयान राजनीति की शुचिता को कलंकित करते हैं. अगर आपको किसी पर संदेह है, तो उसके खिलाफ कानूनी प्रक्रिया अपनाएं. वरना आरोप-प्रत्यारोप का दौर राजनीति को रसातल की ओर तो ले ही जा रहा है.

 राजनीति में नैतिकता का ये पतन बहुत ही भयावह है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी 'जय श्री राम' बोलने वालों को गाड़ी से उतरकर उन्हें धमकाती हैं और उन्हें गिरफ्तार करवा देती हैं. राज्य की मुख्यमंत्री से ऐसे निर्लज्ज व्यवहार की अपेक्षा नहीं की जाती है. मुख्यमंत्री के रूप में आपके लिए सभी धर्म एक समान होते हैं. इस देश के हर नागरिक को 'जय श्री राम' या 'जय मां दुर्गा' कहने का हक संविधान ने ही दिया हुआ है. इसी संविधान की शपथ लेकर आप पद ग्रहण करते हैं और अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए इसे ही हाशिये पर डाल देते हैं. राजनीति में नैतिकता का ये पतन बहुत ही भयावह है.

 चीन को लेकर राहुल गांधी ने आक्रामकता दिखाने के लिए पीएम मोदी के खिलाफ भाषा की मर्यादा नहीं रखी.

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी राष्ट्रीय महत्व के मामलों पर राजनीतिक प्रहसनों का प्रदर्शन करते नजर आते हैं. राफेल हो या चीन कम से कम इन राष्ट्रीय महत्व के मामलों पर सियासी खेल नहीं खेलने चाहिए. चीन को लेकर राहुल गांधी ने अति उत्साह में आक्रामकता दिखाने के लिए पीएम मोदी के खिलाफ जो शब्द इस्तेमाल किए हैं, वह इस मामले पर नहीं ही किए जाने चाहिए थे. राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव में 'चौकीदार चोर है' का नारा दिया था. मुझे ये नारा चीन के मामले पर किए गए शब्दों के प्रयोग से कहीं बेहतर लग रहा है. जब देश की बात हो, तो विपक्ष को भी जिम्मेदारी दिखानी होगी. राष्ट्रीय महत्व के मामलों पर ही जब हम बंटे नजर आएंगे, तो सत्ता के स्वार्थ की यह राजनीति कुछ ही समय में दम तोड़ देगी.

 महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने इसके पीछे भाजपा के दबाव को खोजने के लिए जांच के आदेश दे दिए.

किसान आंदोलन के समर्थन विदेशी हस्तियों के ट्वीट पर खेल और बॉलीवुड जगत के कई लोगों ने एकजुटता दिखाई. इस एकजुटता दिखाने के परिणाम में महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने इसके पीछे भाजपा के दबाव को खोजने के लिए जांच के आदेश दे दिए. इस सूची में सचिन तेंडुलकर और लता मंगेशकर जैसे दो नाम भी शामिल है, जिन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया जा चुका है. राजनीति के इस गिरते हुए स्तर ने ही महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार का कद इन भारत रत्नों से कहीं अधिक बड़ा कर दिया है. पल-प्रतिपल बदल रही राजनीति ने देश की एकता की बात करने को अब जांच के दायरे में लाकर खड़ा कर दिया है. खैर, महाराष्ट्र सरकार कई अन्य मामलों में भी ऐसे ही हमलावर दिखी है. यह हमलावर राजनीति देश को अंदर ही अंदर कई टुकड़ों में बांटती जा रही है.

भारतीय राजनीति के गिरते स्तर के ये कुछ उदाहरण हैं. ऐसे सैकड़ों उदाहरण आपको बिना खोजे ही मिल जाएगा. राजनीति का अपराधीकरण इसमें चार चांद लगाता है. दुनियाभर में सराही जा रही कोरोना वैक्सीन को लेकर अकारण निंदा का सुख कुछ ही राजनीतिक पार्टियों को मिला है. ऐसे सुख पाने के लिए देश के सभी राजनीतिक दल लगातार प्रयासरत हैं. अगर कोशिश इसी तरह चलती रही, तो वो दिन दूर नहीं जब हम राजनीति के गिरते हुए स्तर को एक नए कीर्तिमान तक ले जाएंगे. नेता और राजनीतिक दल खुश होकर इस पर तालियां बजाएंगे और दुनिया हमें हेय दृष्टि से देखेगी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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