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इशरत पर घिरी कांग्रेस क्‍या माफी मांगेगी?

    • अरविंद जयतिलक
    • Updated: 04 मार्च, 2016 05:21 PM
  • 04 मार्च, 2016 05:21 PM
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पी चिदंबरम ने अफजल की फांसी पर सवाल दागकर उच्चतम न्यायालय के फैसले पर उसी तरह से संदेह व्यक्त किया है जिस तरह अफजल के समर्थक व्यक्त कर रहे हैं. देश जानना चाहता है कि यह किस तरह की देशभक्ति और समाजभक्ति है?

पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई का यह खुलासा कि संप्रग सरकार के दौरान उन पर लश्कर-ए-तैयबा आतंकी इशरत जहां का नाम हटाने और सीबीआई जांच को प्रभावित करने का दबाव पड़ा था, न केवल कांग्रेस की आतंकवाद से लड़ने की कमजोर इच्छाशक्ति को रेखांकित करता है बल्कि यह भी प्रतीत कराता है कि उसके नेतृत्ववाली यूपीए सरकार ने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए सारी सीमाएं लांघकर राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया. चूंकि जीके पिल्लई भारत के एक ईमानदार और जिम्मेदार अधिकारी रहे हैं ऐसे में उनके खुलासे की प्रमाणिकता की उपेक्षा कर कांग्रेस उनके बयान के समय पर सवाल दागकर अपनी कारस्तानी पर पर्दादारी नहीं कर सकती. उसे जवाब देना ही होगा कि उसके नेतृत्ववाली सरकार ने आतंकी इशरत जहां को बचाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को ताक पर क्यों रखा? आतंकी इशरत जहां के प्रति उसकी हमदर्दी का कारण क्या है?

बेहतर होगा कि कांग्रेस कुतर्कों का पहाड़ खड़ा करने के बजाए एक आतंकी को निर्दोष साबित करने के लिए देश से माफी मांगे. कांग्रेस पश्चाताप कर देश से माफी मांगेगी इसकी संभावना शुन्य है. कारण अभी भी वह आतंकियों के प्रति नर्मी के केंचुल में जकड़ी हुई है. अगर ऐसा न होता उसके पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम अफजल गुरु के प्रति भाव-भक्ति जाहिर करते हुए उसकी फांसी पर वितंडा खड़ा नहीं करते और न ही कांग्रेस देश विरोधियों की गिरफ्तारी पर छाती धुनती. पी चिदंबरम को लग रहा है कि अफजल को फांसी के मामले में ठीक से फैसला नहीं हुआ और उन्हें इस बात का भी शक है कि संसद पर हमले की साजिश में अफजल शामिल था भी या नहीं.

जरा गौर कीजिए कि अफजल को लेकर पी चिदंबरम की धारणा और जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में अफजल को हीरो बनाने और भारत की बर्बादी का नारा लगाने वाले देशद्रोहियों के समर्थन में उठ खड़े होने वाले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की धारणा में कुछ फर्क है? गौर कीजिए तो पी चिदंबरम ने अफजल की फांसी पर सवाल दागकर उच्चतम न्यायालय के फैसले पर उसी तरह से संदेह व्यक्त किया है जिस तरह अफजल के समर्थक...

पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई का यह खुलासा कि संप्रग सरकार के दौरान उन पर लश्कर-ए-तैयबा आतंकी इशरत जहां का नाम हटाने और सीबीआई जांच को प्रभावित करने का दबाव पड़ा था, न केवल कांग्रेस की आतंकवाद से लड़ने की कमजोर इच्छाशक्ति को रेखांकित करता है बल्कि यह भी प्रतीत कराता है कि उसके नेतृत्ववाली यूपीए सरकार ने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए सारी सीमाएं लांघकर राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया. चूंकि जीके पिल्लई भारत के एक ईमानदार और जिम्मेदार अधिकारी रहे हैं ऐसे में उनके खुलासे की प्रमाणिकता की उपेक्षा कर कांग्रेस उनके बयान के समय पर सवाल दागकर अपनी कारस्तानी पर पर्दादारी नहीं कर सकती. उसे जवाब देना ही होगा कि उसके नेतृत्ववाली सरकार ने आतंकी इशरत जहां को बचाने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा को ताक पर क्यों रखा? आतंकी इशरत जहां के प्रति उसकी हमदर्दी का कारण क्या है?

बेहतर होगा कि कांग्रेस कुतर्कों का पहाड़ खड़ा करने के बजाए एक आतंकी को निर्दोष साबित करने के लिए देश से माफी मांगे. कांग्रेस पश्चाताप कर देश से माफी मांगेगी इसकी संभावना शुन्य है. कारण अभी भी वह आतंकियों के प्रति नर्मी के केंचुल में जकड़ी हुई है. अगर ऐसा न होता उसके पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम अफजल गुरु के प्रति भाव-भक्ति जाहिर करते हुए उसकी फांसी पर वितंडा खड़ा नहीं करते और न ही कांग्रेस देश विरोधियों की गिरफ्तारी पर छाती धुनती. पी चिदंबरम को लग रहा है कि अफजल को फांसी के मामले में ठीक से फैसला नहीं हुआ और उन्हें इस बात का भी शक है कि संसद पर हमले की साजिश में अफजल शामिल था भी या नहीं.

जरा गौर कीजिए कि अफजल को लेकर पी चिदंबरम की धारणा और जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय में अफजल को हीरो बनाने और भारत की बर्बादी का नारा लगाने वाले देशद्रोहियों के समर्थन में उठ खड़े होने वाले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की धारणा में कुछ फर्क है? गौर कीजिए तो पी चिदंबरम ने अफजल की फांसी पर सवाल दागकर उच्चतम न्यायालय के फैसले पर उसी तरह से संदेह व्यक्त किया है जिस तरह अफजल के समर्थक व्यक्त कर रहे हैं. देश जानना चाहता है कि यह किस तरह की देशभक्ति और समाजभक्ति है? देश समझ नहीं पा रहा है कि पी चिदंबरम और राहुल गांधी कहना क्या चाहते हैं? देश कांगेस के इस दलील से भी हैरान है कि अगर इशरत जहां आतंकी थी तब भी उसका एनकाउंटर नहीं किया जा सकता. लेकिन कांग्रेस यह बताने को तैयार नहीं है कि एक मुठभेड़ को एनकाउंटर बताने के पीछे उसका मकसद क्या है? सच तो यह है कि कांग्रेस इशरत जहां मामले में तब भी राजनीति कर रही थी और अब भी. किंतु पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई और डेविड कोलमैन हेडली के खुलासे के बाद उसकी पोल खुल गयी है. साबित हो गया है कि इशरत आतंकी थी और कांग्रेस उसे बचाना चाहती थी.

याद होगा कुछ दिन पहले लश्कर आतंकी डेविड कोलमैन हेडली ने भी वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए मुंबई की अदालत को बताया कि इशरत जहां को लश्कर का फिदायीन थी. अब कांग्रेस को बताना चाहिए कि अगर इशरत निर्दोष थी तो एनकाउंटर की जांच के लिए गुजरात उच्च न्यायालय में दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान तत्कालीन गृहमंत्री शिवराज पाटिल के समय दाखिल हलफनामें में इशरत जहां और उसके साथियों को लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी क्यों बताया गया? शिवराज पाटिल के पद से हटते और पी चिदंबरम के गृहमंत्री बनते ही इस हलफनामे को वापस क्यों ले लिया गया? 30 सितंबर 2009 को दूसरे हलफनामे में गृहमंत्रालय ने क्यों कहा कि इशरत जहां और उसके साथियों के आतंकी होने के पुख्ता सबूत नहीं हैं? देश यह भी जानना चाहता है कि गृहमंत्रालय के इस निष्कर्ष का आधार क्या था? क्या कांग्रेस इन सवालों का जवाब नहीं देना चाहिए?

अब जब पूर्व गृहसचिव जीके पिल्लई के खुलासे से साफ हो गया है कि कांग्रेस ने इशरत जहां को बचाने और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को फंसाने की कोशिश की तो क्यों नहीं तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम के विरुद्ध कार्रवाई हो? जहां तक इशरत जहां के फर्जी एनकाउंटर में मारे जाने का सवाल है तो अभी कोई अंतिम फैसला नहीं आया है. लेकिन डेविड हेडली की गवाही से स्पष्ट है कि इशरत जहां एक आत्मघाती हमलावर थी. हेडली का स्पष्ट कहना है कि लश्कर कमांडर जकी उर रहमान लखवी ने उससे लश्कर के एक अन्य आतंकी मुजम्मिल बट्ट के भारत में हमले की असफल साजिश के बारे में बताया था और इस अभियान में लश्कर-ए-तैयबा की एक महिला फिदायीन मारी गयी जिसका नाम इशरत जहां था.

गौर करना होगा कि मुठभेड़ के बाद ही पाकिस्तान के लाहौर से प्रकाशित होने वाले लश्कर के समाचार पत्र ‘गजवा टाइम्स’ने स्वीकार किया कि इशरत जहां और उसके साथी लश्कर के सदस्य थे. इशरत जहां और उसके आतंकी मंडली के आतंकी होने के और भी प्रमाण हैं. तब गृह मंत्रालय ने भी गुजरात उच्च न्यायालय में दिए हलफनामें में आइबी की रिपोर्ट के आधार पर इशरत जहां और उसके अन्य साथियों को लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी बताकर उनके एनकाउंटर की सीबीआइ जांच का विरोध किया था. क्या ये सभी प्रमाण इशरत जहां के आतंकी होने के सबूत नहीं हैं? गौर करें तो तुष्टीकरण कांग्रेस की रवायत रही है और उसमें ही उसे सत्ता का रास्ता नजर आता है. अगर ऐसा न होता तो उसे इशरत जहां, अफजल गुरु, याकूब मेनन जैसे आतंकियों की पैरोकारी की जरुरत नहीं आन पड़ती और न ही कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को बटला हाउस मुठभेड़ को फर्जी बताने के लिए चिल्ल-पों मचानी पड़ती. सलमान खुर्शीद को भी यह कहने की जरुरत नहीं पड़ती कि सोनिया गांधी की आंख में आंसू आ गए थे.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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