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यूपी चुनाव में प्रियंका के 7 वादों से परे कांग्रेस को और क्या चाहिए?

    • प्रभाष कुमार दत्ता
    • Updated: 26 अक्टूबर, 2021 07:23 PM
  • 26 अक्टूबर, 2021 07:23 PM
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2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस की तरफ से प्रियंका गांधी ने यूपी की जनता के लिए वादों का पिटारा खोल दिया है. दिलचस्प ये कि ये वही यूपी की जनता है जिसने 1989 के बाद से ही कांग्रेस को पूरी तरह से ख़ारिज कर दिया है. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि क्या प्रियंका और कांग्रेस के लिए सिर्फ वादे काफी होंगे.

उत्तर प्रदेश प्रभारी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा वादे करने की होड़ में हैं. सोमवार तक, प्रियंका गांधी ने सात और बाद में पहिए एक वादा किया है क्योंकि वह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में कांग्रेस को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए प्रमुख चुनौती के रूप में पेश करने की कोशिश करती नजर आ रही हैं. हालांकि, कांग्रेस को उत्तर प्रदेश के मतदाताओं से किए गए वादों की तुलना में कुछ और अधिक चीजों की आवश्यकता हो सकती है, जिन्होंने 1989 से लगातार पार्टी को खारिज कर दिया है. 1989 में जनता दल से सत्ता खोने के बाद उत्तर प्रदेश में लगातार सात विधानसभा चुनाव में यह कांग्रेस के लिए एक कठिन यात्रा रही है.

कांग्रेस का संगठन तब से कमजोर हुआ है जबसे उसका वोट प्रतिशत लगातार गिरा है, 2012 को अगर छोड़ दिया जाए तो 1993 से अब तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का वोटिंग पर्सेंटेज दोहरे अंकों को नहीं छू पाया है.

भाजपा को मात देने के लिए प्रियंका गांधी ने यूपी चुनाव से पहले वादों की झड़ी लगा दी है

1996 तक, कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में मायावती के नेतृत्व में उभरती बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के कनिष्ठ सहयोगी की भूमिका निभाते हुए अपने भाग्य से इस्तीफा दे दिया था. कांग्रेस ने मायावती की बसपा के साथ गठबंधन में प्रवेश किया और केवल 126 सीटों पर चुनाव लड़ा. उत्तर प्रदेश विधानसभा में तब 425 सीटें थीं.

कांग्रेस ने 33 सीटें जीतीं और केवल 8.3 प्रतिशत वोट हासिल किए, जो 1989 में 28 प्रतिशत, 1991 में 18 प्रतिशत और 1993 में 15 प्रतिशत था. बाद के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस का वोट शेयर 2002 में नौ प्रतिशत, 2007 में 8.6 प्रतिशत, 2012 में 11.6 प्रतिशत और 2017 में 6.3 प्रतिशत था.

सीटों के...

उत्तर प्रदेश प्रभारी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा वादे करने की होड़ में हैं. सोमवार तक, प्रियंका गांधी ने सात और बाद में पहिए एक वादा किया है क्योंकि वह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में कांग्रेस को सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए प्रमुख चुनौती के रूप में पेश करने की कोशिश करती नजर आ रही हैं. हालांकि, कांग्रेस को उत्तर प्रदेश के मतदाताओं से किए गए वादों की तुलना में कुछ और अधिक चीजों की आवश्यकता हो सकती है, जिन्होंने 1989 से लगातार पार्टी को खारिज कर दिया है. 1989 में जनता दल से सत्ता खोने के बाद उत्तर प्रदेश में लगातार सात विधानसभा चुनाव में यह कांग्रेस के लिए एक कठिन यात्रा रही है.

कांग्रेस का संगठन तब से कमजोर हुआ है जबसे उसका वोट प्रतिशत लगातार गिरा है, 2012 को अगर छोड़ दिया जाए तो 1993 से अब तक उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का वोटिंग पर्सेंटेज दोहरे अंकों को नहीं छू पाया है.

भाजपा को मात देने के लिए प्रियंका गांधी ने यूपी चुनाव से पहले वादों की झड़ी लगा दी है

1996 तक, कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में मायावती के नेतृत्व में उभरती बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के कनिष्ठ सहयोगी की भूमिका निभाते हुए अपने भाग्य से इस्तीफा दे दिया था. कांग्रेस ने मायावती की बसपा के साथ गठबंधन में प्रवेश किया और केवल 126 सीटों पर चुनाव लड़ा. उत्तर प्रदेश विधानसभा में तब 425 सीटें थीं.

कांग्रेस ने 33 सीटें जीतीं और केवल 8.3 प्रतिशत वोट हासिल किए, जो 1989 में 28 प्रतिशत, 1991 में 18 प्रतिशत और 1993 में 15 प्रतिशत था. बाद के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस का वोट शेयर 2002 में नौ प्रतिशत, 2007 में 8.6 प्रतिशत, 2012 में 11.6 प्रतिशत और 2017 में 6.3 प्रतिशत था.

सीटों के मामले में, कांग्रेस की गिरावट 2002 में 25 सीटें, 2007 में 22 और 2012 में 28 सीटों और 2017 में सिर्फ सात तक रही है जिसपर गौर करना बहुत जरूरी है. इन उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस की ऐसी परफॉरमेंस क्यों रही वजह ये है कि इनमें कांग्रेस को न तो पर्याप्त उम्मीदवार ही मिले और कार्यकर्ताओं की भी अनुपस्थिति दर्ज की गयी.

अपने को मजबूत दिखाने के लिए पार्टी ने 2002 में, 410 उम्मीदवारों (अब उत्तराखंड विधानसभा सहित) को मैदान में उतारा, उसके बाद 2007 में 403 सीटों वाले यूपी विधानसभा चुनावों में 393, 2012 में संख्या घटकर 355 हुई और 2017 में पार्टी ने सिर्फ 114 उम्मीदवार उतारे, 2017 में पार्टी समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में थी.

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की गिरती पॉलिटिकल कैपिटल ने इसे हाशिये पर धकेल दिया है, जहां न तो सपा और न ही बसपा, राज्य के दो प्रमुख विपक्षी दल भारतीय राजनीति की सबसे पुरानी पार्टी के साथ गठजोड़ करना चाहते हैं. व्यावहारिक रूप से कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में अपना बचाव करने और अस्तित्व की लड़ाई छेड़ने के लिए अकेला छोड़ दिया गया है.

2012, 2014, 2017 और 2019 के राज्य और संसदीय चुनावों में राहुल गांधी के प्रयासों के बाद उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने में विफलता ही हाथ लगी है, प्रियंका गांधी का लक्ष्य अपने वादों के साथ पार्टी को मजबूत जगह पहुंचाना है. प्रियंका गांधी ने भाजपा के खिलाफ विपक्ष का नेतृत्व किया है, खासकर लखीमपुर खीरी हिंसा के बाद से, जिसमें आठ लोगों की जान चली गई.

2022 के चुनावों में कांग्रेस के सत्ता में आने पर प्रियंका गांधी ने उत्तर प्रदेश में लागू करने के लिए सात वादे किए हैं. जो इस प्रकार हैं.

यूपी चुनाव में महिलाओं को कांग्रेस का 40 फीसदी टिकट (चुनाव पूर्व ही इसके क्रियान्वयन का वादा है). 

लड़कियों को मुफ्त स्मार्टफोन और ई-स्कूटर देना.

पूर्ण कृषि ऋण माफी.

युवाओं के लिए 20 लाख सरकारी नौकरी (उत्तर प्रदेश के लिए सभी वादों में सबसे बड़ी घोषणा)

किसानों का बिजली बिल आधा किया जाए और महामारी के दौरान कोई बिजली बिल न लगाया जाए.

कोविड प्रभावित परिवारों को 25,000 रुपये की सहायता.

चावल के लिए 2,500 रुपये प्रति क्विंटल और गन्ने के लिए 400 रुपये प्रति क्विंटल का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी).

इसके अतिरिक्त, प्रियंका गांधी ने सोमवार को आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सत्ता में आने पर उत्तर प्रदेश में 10 रुपये तक के मुफ्त इलाज और स्वास्थ्य सुविधाओं की घोषणा की. उत्तर प्रदेश ने कोविड -19 महामारी की दूसरी लहर के दौरान बड़े पैमाने पर स्वास्थ्य संकट देखा. प्रियंका गांधी का लक्ष्य स्वास्थ्य सेवा संकट को भुनाना है जो सार्वजनिक स्मृति में अभी भी ताजा ही है.

प्रियंका गांधी ने एक ट्विटर पोस्ट में कहा है कि,' “सभी ने यूपी में कोविड -19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य प्रणाली की जर्जर स्थिति को देखा, जो वर्तमान सरकार की उदासीनता और उपेक्षा का परिणाम है. मेनिफेस्टो कमेटी की सहमति से यूपी कांग्रेस ने तय किया है कि जब यूपी में सरकार बनेगी तो किसी भी बीमारी का इलाज मुफ्त किया जाएगा. सरकार 10 लाख रुपये तक का खर्च वहन करेगी.

कांग्रेस को 2018 में तीन हिंदी भाषी राज्यों राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में कृषि ऋण माफी के वादों से फायदा हुआ है. उसने राज्य के चुनावों में भाजपा से तीन राज्यों को छीन लिया है. हालाँकि, 2020 में 25 विधायकों के इधर उधर होने से मध्य प्रदेश का किला उसके हाथ से निकल गया है.

बिहार में, कांग्रेस के सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने 2020 के विधानसभा चुनावों में 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा करने के बाद ट्रैक्शन प्राप्त किया. आरजेडी के चुनावी वादे ने भाजपा को 19 लाख नौकरियों की पेशकश करने के लिए मजबूर कर दिया था. बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने जहां चुनाव जीता, वहीं राजद बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.

कांग्रेस की नजर उत्तर प्रदेश में भी इसी तरह की उपलब्धि हासिल करने की है. लेकिन बिहार में अपने अब अलग हो चुके सहयोगी राजद के विपरीत, कांग्रेस के पास पर्याप्त उम्मीदवारों और उत्तर प्रदेश में कार्यकर्ताओं की संगठनात्मक ताकत का अभाव है. और यही वो चीज है जिसकी उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपने चेहरे के बल पर लोकप्रियता हासिल कर रहीं प्रियंका गांधी को सबसे ज्यादा जरूरत है. 

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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