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आम आदमी पार्टी का नया वर्जन है कांग्रेस !

    • डेविड फ्राउले
    • Updated: 22 जनवरी, 2018 04:15 PM
  • 22 जनवरी, 2018 04:15 PM
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राहुल गांधी अपने हिंदू अवतार में तभी नजर आते हैं जब जरूरत होती है. वैसे वो वामपंथी विचारधारा का ही समर्थन करते हैं और जेएनयू के लोगों की विचारधारा को ही बढ़ावा देते हैं. कांग्रेस पार्टी के लिए उनका हिंदू का चोला पहनना सिर्फ एक छलावा है.

2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा की भारी जीत सबसे बड़ी राजनीतिक घटना रही. लोग अभी राज्य में भाजपा के इस प्रचंड बहुमत को पचा ही नहीं पाए थे कि एक भगवाधारी को मुख्यमंत्री के पद पर बिठाकर आग में घी और डाल दिया. हालत ये थी कि कांग्रेस अपने गढ़ अमेठी में भी अपनी सीट बचा नहीं पाई थी. बिहार में नीतिश कुमार द्वारा भ्रष्टाचार और क्राइम के नाम पर लालू यादव का हाथ छोड़ने के बाद भाजपा-जदयू की सरकार बनी थी. उसके बाद यूपी की इस जीत ने जश्न को बढ़ा दिया था.

इसका नतीजा ये हुआ कि यूपी और बिहार में हिंदुत्व का परचम लहरा है. साथ ही हिंदू वोट अब उन जगहों पर भी पहुंच रहा है जहां आज के पहले जाति के नाम पर राजनीति का ही बोलबाला होता था. ये कोई धार्मिक कट्टरता या धार्मिक लहर नहीं है. बल्कि ऐसा भारतीय संस्कृति और विरासत के प्रति लोगों में आई एकजुटता का परिणाम है.

राहुल गांधी का हिंदुत्व छलावा है

इस तरह का हिंदू राष्ट्रवाद किसी भी तरह की प्रतिगामी प्रवृत्ति को नहीं दिखाता है बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक नए भारत की तैयारी है. एक ऐसा भारत जो इस क्षेत्र की महान धार्मिक सभ्यता का सम्मान करता है और जिसका लक्ष्य धर्म की इस निरंतरता को बनाए रखना है. यह नेहरूवादी भारत से बहुत अलग है. नेहरु का भारत पश्चिमी समाजवादी राज्यों के नकल की एक असफल नकल थी.

हाल ही में संपन्न हुए गुजरात चुनावों को कांग्रेस की वापसी के तौर पर देखा गया. क्यों? इसलिए नहीं कि कांग्रेस जीती बल्कि इसलिए क्योंकि राज्य में भाजपा यूपी वाला करिश्मा दोहरा नहीं पाई और प्रचंड बहुमत से दूर रह गई. एक चुनाव को कम बुरी तरीके से हारने को लोगों ने कांग्रेस की वापसी का संकेत मान लिया! ये तुलना बताती है कि पार्टी किस नौबत में पहुंच गई है.

गुजरात चुनाव, यूपी...

2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा की भारी जीत सबसे बड़ी राजनीतिक घटना रही. लोग अभी राज्य में भाजपा के इस प्रचंड बहुमत को पचा ही नहीं पाए थे कि एक भगवाधारी को मुख्यमंत्री के पद पर बिठाकर आग में घी और डाल दिया. हालत ये थी कि कांग्रेस अपने गढ़ अमेठी में भी अपनी सीट बचा नहीं पाई थी. बिहार में नीतिश कुमार द्वारा भ्रष्टाचार और क्राइम के नाम पर लालू यादव का हाथ छोड़ने के बाद भाजपा-जदयू की सरकार बनी थी. उसके बाद यूपी की इस जीत ने जश्न को बढ़ा दिया था.

इसका नतीजा ये हुआ कि यूपी और बिहार में हिंदुत्व का परचम लहरा है. साथ ही हिंदू वोट अब उन जगहों पर भी पहुंच रहा है जहां आज के पहले जाति के नाम पर राजनीति का ही बोलबाला होता था. ये कोई धार्मिक कट्टरता या धार्मिक लहर नहीं है. बल्कि ऐसा भारतीय संस्कृति और विरासत के प्रति लोगों में आई एकजुटता का परिणाम है.

राहुल गांधी का हिंदुत्व छलावा है

इस तरह का हिंदू राष्ट्रवाद किसी भी तरह की प्रतिगामी प्रवृत्ति को नहीं दिखाता है बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक नए भारत की तैयारी है. एक ऐसा भारत जो इस क्षेत्र की महान धार्मिक सभ्यता का सम्मान करता है और जिसका लक्ष्य धर्म की इस निरंतरता को बनाए रखना है. यह नेहरूवादी भारत से बहुत अलग है. नेहरु का भारत पश्चिमी समाजवादी राज्यों के नकल की एक असफल नकल थी.

हाल ही में संपन्न हुए गुजरात चुनावों को कांग्रेस की वापसी के तौर पर देखा गया. क्यों? इसलिए नहीं कि कांग्रेस जीती बल्कि इसलिए क्योंकि राज्य में भाजपा यूपी वाला करिश्मा दोहरा नहीं पाई और प्रचंड बहुमत से दूर रह गई. एक चुनाव को कम बुरी तरीके से हारने को लोगों ने कांग्रेस की वापसी का संकेत मान लिया! ये तुलना बताती है कि पार्टी किस नौबत में पहुंच गई है.

गुजरात चुनाव, यूपी चुनावों के साए में लड़े गए थे. कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने के बाद राहुल गांधी का ये पहला चुनाव था. हालांकि इसके पहले राहुल गांधी ने मंदिरों के चक्कर काटने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी. लेकिन गुजरात चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने मंदिरों में दर्शन की बाढ़ लगा दी और 20 से ज्यादा मंदिरों में अपना माथा टेका. यही नहीं खुद को जनेऊधारी ब्राह्मण तक कह डाला. नेहरु/गांधी परिवार में आज तक किसी ने भी अपनी हिंदु पहचान को लेकर इतनी साफगोई से बात नहीं की थी. यहां तक की इंदिरा गांधी भी लगातार मंदिरों के चक्कर लगाए थे. लेकिन वो धार्मिक पहचान से ज्यादा राजनीतिक हथकंडा ज्यादा था.

हालांकि राहुल गांधी अपने हिंदू अवतार तभी नजर आते हैं जब जरुरत होती है. वैसे वो वामपंथी विचारधारा का ही समर्थन करते हैं और जेएनयू के लोगों की विचारधारा को ही बढ़ावा देते हैं. कांग्रेस पार्टी के लिए उनका हिंदू का चोला पहनना सिर्फ एक छलावा है. जाति के नाम पर बंटवारे और अल्पसंख्यकों को खुश करने के अपने पुराने ढर्रे पर ही कांग्रेस आज भी कायम है. बंगाल में ममता बनर्जी ने अब इसी तरीके को लपक लिया है.

राहुल को राम मंदिर पर अपना बयान देकर पार्टी का पक्ष स्पष्ट करना चाहिए

राम मंदिर के मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी ने अभी तक कोई स्टैंड नहीं लिया है. न ही राहुल गांधी ने कोई बयान जारी कर ये साफ किया है कि पार्टी ने राम मंदिर के विरोध के अपने विचार को बदला है या नहीं. कांग्रेस के साथ दिक्कत ये है कि सालों से इनके नेताओं ने राम मंदिर के विरोध में ही लोगों को कानूनी सहायता प्रदान की है. साथ ही इन्होंने राम मंदिर समर्थकों को फासिस्ट कहने से तो बचे पर उन्हें सांप्रदायिक, एंटी सेक्यूलर का तमगा जरुर दे दिया.

कांग्रेस पार्टी मोदी के खिलाफ नफरत का प्रचार कर रही है और समाज में अशांति और समाज में अफरातफरी, हिंसा और व्याकुलता फैलाने की कोशिश कर रही है. अपने हिंदुवादी चेहरे के साथ ही कांग्रेस अब आम आदमी पार्टी के नए वर्जन जैसी नजर आने लगी है. राहुल गांधी, केजरीवाल की तरह ही नजर आ रहे हैं. लेकिन इस तरह के बचकाने राजनैतिक विरोध के बावजूद नरेंद्र मोदी का कद देश में बढ़ ही रहा है. और बहुत आसार हैं कि भविष्य में भी इनका जलवा कायम ही रहेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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