• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

राफेल पर सिर्फ कागजी जहाज ही उड़ा रही है कांग्रेस

    • आशीष वशिष्ठ
    • Updated: 04 जनवरी, 2019 07:03 PM
  • 04 जनवरी, 2019 07:03 PM
offline
कांग्रेस के कागजी जहाजों ने खुद उनका ही चेहरा भी देश के सामने बेनकाब कर दिया. राफेल की चर्चा में व्यवधान डालकर कांग्रेस ने यह साबित कर दिया कि इस मामले में वो सिर्फ कोरी बयानबाजी और ‘कागजी जहाज’ ही उड़ा रही है.

लोकसभा का नजारा उस वक्त बड़ा दिलचस्प था जब राफेल मुद्दे पर बहस के दौरान कांग्रेसी सांसद ‘कागज के जहाज’ उड़ाकर अपनी क्राफ्ट कला का प्रदर्शन कर रहे थे. यह भी कहा जा सकता है कि कुल जमा 45 कांग्रेसी सांसदों में से अधिकतर अपने स्कूल के दिनों में लौट गये थे. जब वो खाली पीरियड में कागज के हवाई जहाज उड़ाया करते थे. वैसे भी देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के मुखिया का बचपना अभी कायम ही है. ऐसे में उनके सांसदों का व्यवहार कतई असंसदीय, अशोभनीय और संसद की गरिमा के खिलाफ की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है. संसद में बहस के दौरान भले ही कांग्रेस के सांसदों ने सरकार के दावों, तर्कों या तथ्यों का माखौल उड़ाने के लिये कागजी जहाज उड़ाये हों, लेकिन कांग्रेस के कागजी जहाजों ने खुद उनका ही चेहरा भी देश के सामने बेनकाब कर दिया. राफेल की चर्चा में व्यवधान डालकर कांग्रेस ने यह साबित कर दिया कि इस मामले में वो सिर्फ कोरी बयानबाजी और ‘कागजी जहाज’ ही उड़ा रही है. राफेल पर बहस कांग्रेस की मांग पर रखी गयी थी, लेकिन अपनी बात कहने के बाद सरकार का जवाब सुनने का साहस वो बटोर नहीं पायी.

कांग्रेस के कागजी जहाजों ने खुद उनका ही चेहरा भी देश के सामने बेनकाब कर दिया

लोकसभा में राफेल विमान सौदे पर हुई ताजा बहस के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और वित्त मंत्री अरुण जेटली के बीच जबरदस्त जुबानी जंग हुई. राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुली बहस की चुनौती दी, उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मेरे से सिर्फ 20 मिनट के लिए राफेल सौदे पर बहस कर लें. राहुल गांधी ने ट्वीट कर चार सवाल भी किए. राहुल के चार सवाल हैं कि- 126 की जगह 36 विमानों की जरूरत क्यों ? 560 करोड़ रुपये प्रति विमान की जगह 1600 करोड़ रुपये क्यों ? मोदी जी, कृपया हमें बताइए कि पर्रिकर...

लोकसभा का नजारा उस वक्त बड़ा दिलचस्प था जब राफेल मुद्दे पर बहस के दौरान कांग्रेसी सांसद ‘कागज के जहाज’ उड़ाकर अपनी क्राफ्ट कला का प्रदर्शन कर रहे थे. यह भी कहा जा सकता है कि कुल जमा 45 कांग्रेसी सांसदों में से अधिकतर अपने स्कूल के दिनों में लौट गये थे. जब वो खाली पीरियड में कागज के हवाई जहाज उड़ाया करते थे. वैसे भी देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के मुखिया का बचपना अभी कायम ही है. ऐसे में उनके सांसदों का व्यवहार कतई असंसदीय, अशोभनीय और संसद की गरिमा के खिलाफ की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है. संसद में बहस के दौरान भले ही कांग्रेस के सांसदों ने सरकार के दावों, तर्कों या तथ्यों का माखौल उड़ाने के लिये कागजी जहाज उड़ाये हों, लेकिन कांग्रेस के कागजी जहाजों ने खुद उनका ही चेहरा भी देश के सामने बेनकाब कर दिया. राफेल की चर्चा में व्यवधान डालकर कांग्रेस ने यह साबित कर दिया कि इस मामले में वो सिर्फ कोरी बयानबाजी और ‘कागजी जहाज’ ही उड़ा रही है. राफेल पर बहस कांग्रेस की मांग पर रखी गयी थी, लेकिन अपनी बात कहने के बाद सरकार का जवाब सुनने का साहस वो बटोर नहीं पायी.

कांग्रेस के कागजी जहाजों ने खुद उनका ही चेहरा भी देश के सामने बेनकाब कर दिया

लोकसभा में राफेल विमान सौदे पर हुई ताजा बहस के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और वित्त मंत्री अरुण जेटली के बीच जबरदस्त जुबानी जंग हुई. राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुली बहस की चुनौती दी, उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मेरे से सिर्फ 20 मिनट के लिए राफेल सौदे पर बहस कर लें. राहुल गांधी ने ट्वीट कर चार सवाल भी किए. राहुल के चार सवाल हैं कि- 126 की जगह 36 विमानों की जरूरत क्यों ? 560 करोड़ रुपये प्रति विमान की जगह 1600 करोड़ रुपये क्यों ? मोदी जी, कृपया हमें बताइए कि पर्रिकर जी राफेल फाइल अपने बेडरूम में क्यों रखते हैं और इसमें क्या है ? ‘एचएएल’ की जगह ‘एए’ क्यों ? क्या वह (मोदी) आएंगे या प्रतिनिधि भेजेंगे?’’

पिछले लगभग छह महीने से राहुल सरकार से बार-बार यही सवाल पूछ रहे हैं. राहुल गांधी के सवाल नये नहीं हैं. और वो लगातार कई महीनों से बिना किसी दस्तावेज और सुबूतों के मोदी सरकार पर कीचड़ उछाल रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष की बयानबाजी और बार-बार पुरानी रील बजाने के चलते अपने ताजा इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने राफेल विमान सौदे पर कांग्रेस अध्यक्ष पर व्यंग्य कसा- ‘उन्हें बहुत ज्यादा बोलने की बीमारी है, तो मैं क्या कर सकता हूं.’ प्रधानमंत्री ने कहा कि राफेल में व्यक्तिगत तौर पर आरोप उनके खिलाफ नहीं हैं. वह संसद में सब कुछ खुलासा कर चुके हैं. फ्रांस के राष्ट्रपति बयान दे चुके हैं. सर्वोच्च न्यायालय के फैसले ने रही-सही कसर पूरी कर दी है. अब उन्हें कितनी भी गालियां दी जाएं, कितने भी आरोप मढ़े जाएं, उन्होंने सब कुछ स्पष्ट कर दिया है.

वास्तव में जब-जब राहुल व कांग्रेस के नेता राफेल मुद्दे पर अपनी जुबान खोलते हैं तो उनके शब्दों, भाव-भंगिमा से सत्ता में वापसी की छिपी बैचेनी छिप नहीं पाती है. पिछले साढ़े चाद साल में एकमात्र राफेल का मुद्दा कांग्रेस के हाथ लगा है जिस पर वो मोदी सरकार को थोड़ा-बहुत घेर पायी है. ऐसे में पूरी तरह मुद्दाविहीन कांग्रेस को राफेल से ही थोड़ी बहुत उम्मीद दिखाई देती है. देश का सर्वोच्च न्यायायल इस मसले पर सरकार को क्लीन चिट दे चुका है. वैसे मोदी को कदम-कदम पर चैलेंज देने वाले और चौकीदार चोर का नारे देने वाली कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट में राफेल मामले में पार्टी बनने का साहस नहीं दिखा पायी. मतलब साफ है कि कांग्रेस केवल हल्ला मचा रही है, इस मामले में उसके हाथ पूरी तरह खाली हैं.

पांच साल पहले सत्ता से पूरी तरह बेदखल हुई कांग्रेस शायद अभी तक उस सदमे से उभर नहीं पायी है. तभी तो मोदी सरकार के साढे चार साल के कार्यकाल में वो सरकार को घेरने के लिये एक अदद साॅलिड मुद्दा तक खोज नहीं पायी. नोटबंदी, जीएसटी के अलावा कई दूसरे फैसलों पर वो सरकार के खिलाफ जनमत खड़ा करने में नाकामयाब रही. हां इस कार्यकाल में कांग्रेस बीच-बीच में तमाम मुद्दे उछालकर पीछे भागती जरूर दिखाई दी. अपनी स्मरणशक्ति पर जोर डालिये तो आपको एक भी ऐसा मुद्दा आपको याद नहीं आएगा जिसे लेकर कांग्रेस मजबूती, साहस और आत्मविश्वास के साथ सरकार से लोहा ले पायी हो.

सबूतों के अभाव से कांग्रेस की छवि ही खराब हो रही है

राहुल की संसदीय यात्रा डेढ दशक पुरानी है. वो देश के सबसे प्रमुख राजनीति घराने के वंशज हैं. यह धारणा लंबे अरसे तक कायम रही कि राहुल अपनी राजनीति को लेकर गंभीर नहीं हैं या अब तक वे कुछ ऐसा करने में नाकाम रहे हैं, जिसकी वजह से उन्हे गंभीरता से लिया जाये. राजनीतिक परिपक्वता के अलावा कंसिस्टेंसी यानी निरंतरता उनकी एक बड़ी समस्या रही है. किसी एक मुद्दे पर वे बहुत प्रभावशाली नजर आते हैं लेकिन उसके बाद कुछ ऐसा होता है कि उनकी तमाम मेहनत पर पानी फिर जाती है. कांग्रेस की कमान संभालने के बाद राहुल ने अपनी छवि सुधारने के लिये वर्कआउट किया है. लेकिन बीच-बीच में राहुल गांधी सीधे चलते-चलते बेपटरी हो जाते हैं. राफेल के मामले में वो हवा में गांठें बांधने की कोशिश में लगे हैं. तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस राफेल को बोफोर्स के मुकाबिल खड़ा नहीं कर पायी है. बीजेपी भी अगस्ता हेलीकाप्टर से लेकर बोफोर्स तक की याद कांग्रेस को दिला रही है. अगस्ता मामले में बिचैलिये की गिरफ्तारी ने गांधी परिवार की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं.

कांग्रेस देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है. आजादी की लड़ाई से देश निर्माण में उसका अहम योगदान रहा है. ऐसे में सत्ता हासिल करने के लिये जिस तरीके की राजनीति वो कर रही है उससे उसका गौरवपूर्ण इतिहास व परंपरा धूमिल हो रही है. कांग्रेस की देश और देशवासियों के प्रति जिम्मेदारी और जवाबदेही दोनों है. प्रमुख विपक्षी दल होने के नाते सरकार के काम-काज पर नजर रखने के अलावा देश व जनविरोधी नीतियों का विरोध करना उसका कर्तव्य व धर्म दोनों है. लेकिन जिस तरह कांग्रेस मोदी सरकार को राफेल मुद्दे पर ‘बच्चों के तरह’ घेरने की ‘कच्ची कोशिशें’ कर रहे हैं, वो कांग्रेस की मौजूदा कार्यप्रणाली पर गहरे सवाल खड़ा करता है. राफेल पर राहुल गांधी की राजनीति से उनकी छवि और कार्यप्रणाली पर भी गंभीर सवाल पर खड़े हो रहे हैं. गोआ के मंत्री का टेप जारी कर कांग्रेस ने अपनी अपरिपक्वता का नमूना देश के सामने पेश किया है. बीती जुलाई में मोदी सरकार के खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा करते हुए राहुल गांधी ने कहा था कि फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने उन्हें बताया कि राफेल डील में कोई गोपनीयता नियम नहीं है. फ्रांस सरकार ने उनके इस बयान को खारिज किया था. पिछले छह महीने में राफेल पर बोलते हुये राहुल ने बार-बार यह दर्शाया है कि वह तथ्यों से पूरी तरह अवगत नहीं है और वो इस मुद्दे पर देश को बरगला रहे हैं.

यदि राहुल गांधी व कांग्रेस के पास राफेल डील में गड़बड़ी और घोटाले से जुड़े दस्तावेज हैं तो वो उन्हें संसद, अदालत और देश के सामने बिना देरी किए लायें. राफेल का मामला देश की सुरक्षा और सेना से जुड़ा है. वहीं अगर राहुल गांधी केवल अपने सियासी सियासी मुनाफे के लिये राफेल का गाना गा रहे हैं तो उन्हें जितनी जल्दी हो ‘अरविंद केजरीवाल स्टाइल वाली राजनीति’ से बाहर आ जाना चाहिए. राहुल गांधी व कांग्रेस पार्टी की काफी मशक्कत और प्रपंचों के बाद देश की जनता राहुल को गंभीर नेता मानने की प्रक्रिया में है. हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में मिली सफलता के बाद कांग्रेस पर जनता के विश्वास पर खरा उतरने की जिम्मेदारी है.

राहुल गांधी की राजनीति का इस समय सबसे स्पष्ट, सकारात्मक और निर्विवाद पहलू यही है कि वह मोदी के खिलाफ सबसे मुखर विपक्ष बनकर उभरे हैं. वहीं राहुल को यह भी समझना चाहिए कि केवल मोदी सरकार की नीतियों की आलोचना से ही उनका या कांग्रेस का उद्धार नहीं होना है बल्कि उन्हें  वैकल्पिक नीतियों का एक स्पष्ट और निर्भीक एजेंडा सामने रखना होगा जो आम जनता को मुखातिब हो. यानी सबसे बड़ी चुनौती है जनता से वापस जुड़ने की. फिलहाल जनता चुपचाप कागज के उड़ते जहाज देख रही है. जब जनता फैसला लेने के मूड में आएगी तो वो कांग्रेस को भी ‘कागजी जहाज’ की तरह हवा में उड़ा देगी. राहुल गांधी देश और जनहित से जुड़े तमाम दूसरे मुद्दों को उठाना चाहिए. भ्रष्टाचार के मुद्दों पर बोलना उनका अधिकार और कर्तव्य है. लेकिन तथ्यहीन, दस्तावेज व सुबूतों के अभाव में दूसरों पर हमला करना खुद उनकी ही छवि को नुकसान पहुंचाएगा. अरविन्द केजरीवाल का उदाहरण उनके सामने है.   

ये भी पढ़ें-

प्रधानमंत्री मोदी ने पंजाब में एक तीर से साधे तीन निशाने

राफेल डील पर राहुल गांधी का मकसद अब साफ हो गया है


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲