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कांग्रेस की 10 दिन में कर्जमाफी बनाम बीजेपी का '10 दिन में राम मंदिर'!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 21 दिसम्बर, 2018 03:32 PM
  • 21 दिसम्बर, 2018 03:32 PM
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लगता है 2019 तक अब जो भी होगा 10 दिन में ही होगा. राहुल गांधी 10 दिन में कर्जमाफी की बात कर रहे हैं तो अमित शाह राम मंदिर की. अपना अपना एजेंडा है, अपना अपना मैनिफेस्टो है - मकसद तो एक ही है, जैसे भी हो वोट बटोरे जा सकें.

जवाब देने का वक्त आ गया है. इसी साल सितंबर में दिल्ली आये आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम में राम मंदिर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कुछ ऐसा ही संदेश देने की कोशिश की थी. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्ता गंवाने और मिजोरम-तेलंगाना चुनाव में बीजेपी की हार के बाद अमित शाह भी अपने एजेंडे पर गंभीरता से विचार करने लगे हैं. खासतौर पर कर्ज माफी के मुद्दे को लेकर.

चुनावों में 10 दिन में किसानों के लिए कर्जमाफी का वादा और सरकार बनने के दो दिन के भीतर उसे पूरा कर राहुल गांधी ने बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया है. जाहिर है बीजेपी को भी ऐसे ही किसी श्योर-शॉट और 10 दिन में हिट हो जाने वाले फॉर्मूले की तलाश होगी. अमित शाह इसे लेकर माहौल तो बनाने ही लगे हैं.

सबसे बड़ा सवाल तो फिलहाल यही है कि मौजूदा संसद सत्र में मोदी सरकार राम मंदिर निर्माण पर कोई बिल या अध्यादेश ला रही है या नहीं. बड़ी बात ये हुई कि बीजेपी के संसदीय बोर्ड की मीटिंग में एक सांसद ने ये सवाल उठा ही दिया. जब सवाल उठा तो किसी न किसी को तो जवाब देना ही था. जवाब दिया भी - राजनाथ सिंह ने. बिलकुल उसी अंदाज में जैसे शानदार जवाब वो दिया करते हैं.

10 दिन में राम मंदिर!

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अयोध्या मामले में पार्टी की इच्छा साझा की है, 'मंदिर ठीक उसी स्थान पर बनना चाहिये.' एक रिपब्लिक टीवी के कार्यक्रम में अमित शाह के बयान को लेकर इंडियन एक्सप्रेस ने ये रिपोर्ट छापी है.

बीजेपी नेताओं का तो शुरू से ही ये नारा रहा है - 'मंदिर वहीं बनाएंगे'.

तो इसमें नया क्या है?

नया एक टाइम फ्रेम है - '10 दिन में.'

'10 दिन में मंदिर'! सुनने में तो ये वैसा ही लगता है जैसा मध्य प्रदेश में राहुल गांधी ने किसानों से वादा किया था - '10 दिन में कर्जमाफी'. और सत्ता में आने के दो दिन के भीतर ही कांग्रेस की तीनों सरकारों ने वादा पूरा कर दिया. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में किसानों के कर्जमाफी का फैसला लिया जा चुका...

जवाब देने का वक्त आ गया है. इसी साल सितंबर में दिल्ली आये आरएसएस चीफ मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम में राम मंदिर को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कुछ ऐसा ही संदेश देने की कोशिश की थी. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सत्ता गंवाने और मिजोरम-तेलंगाना चुनाव में बीजेपी की हार के बाद अमित शाह भी अपने एजेंडे पर गंभीरता से विचार करने लगे हैं. खासतौर पर कर्ज माफी के मुद्दे को लेकर.

चुनावों में 10 दिन में किसानों के लिए कर्जमाफी का वादा और सरकार बनने के दो दिन के भीतर उसे पूरा कर राहुल गांधी ने बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया है. जाहिर है बीजेपी को भी ऐसे ही किसी श्योर-शॉट और 10 दिन में हिट हो जाने वाले फॉर्मूले की तलाश होगी. अमित शाह इसे लेकर माहौल तो बनाने ही लगे हैं.

सबसे बड़ा सवाल तो फिलहाल यही है कि मौजूदा संसद सत्र में मोदी सरकार राम मंदिर निर्माण पर कोई बिल या अध्यादेश ला रही है या नहीं. बड़ी बात ये हुई कि बीजेपी के संसदीय बोर्ड की मीटिंग में एक सांसद ने ये सवाल उठा ही दिया. जब सवाल उठा तो किसी न किसी को तो जवाब देना ही था. जवाब दिया भी - राजनाथ सिंह ने. बिलकुल उसी अंदाज में जैसे शानदार जवाब वो दिया करते हैं.

10 दिन में राम मंदिर!

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने अयोध्या मामले में पार्टी की इच्छा साझा की है, 'मंदिर ठीक उसी स्थान पर बनना चाहिये.' एक रिपब्लिक टीवी के कार्यक्रम में अमित शाह के बयान को लेकर इंडियन एक्सप्रेस ने ये रिपोर्ट छापी है.

बीजेपी नेताओं का तो शुरू से ही ये नारा रहा है - 'मंदिर वहीं बनाएंगे'.

तो इसमें नया क्या है?

नया एक टाइम फ्रेम है - '10 दिन में.'

'10 दिन में मंदिर'! सुनने में तो ये वैसा ही लगता है जैसा मध्य प्रदेश में राहुल गांधी ने किसानों से वादा किया था - '10 दिन में कर्जमाफी'. और सत्ता में आने के दो दिन के भीतर ही कांग्रेस की तीनों सरकारों ने वादा पूरा कर दिया. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में किसानों के कर्जमाफी का फैसला लिया जा चुका है.

10 दिन तो काफी हैं. है कि नहीं?

मंदिर को लेकर अमित शाह के '10 दिन में' भले ही वही भाव गूंज रहा हो, लेकिन इसमें शर्तें भी लागू हैं. ये शर्त अमित शाह ने सुप्रीम कोर्ट की वजह से लगा रखी है.

अमित शाह का कहना है, 'अगर सुप्रीम कोर्ट में रोज़ाना इस मामले की सुनवाई हो, तो राम मंदिर का मसला 10 दिन में खत्म हो जाएगा.'

सवाल है कि सुप्रीम कोर्ट क्यों ऐसा चाहेगा? और अगर सुप्रीम कोर्ट किसी मामले में कुछ चाहता है तो फैसले पर सवाल खड़े हो जाते हैं. सबरीमाला पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर अमित शाह ने ही तो कहा था - '...कोर्ट को फैसला ऐसा देना चाहिये जिसका पालन हो सके.'

29 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या केस की सुनवाई जनवरी तक के लिए टाल दी थी. यूपी सरकार ने इस मामले में जल्दी सुनवाई की मांग की थी, लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि जनवरी में उपयुक्त पीठ सुनवाई करेगी - और सुनवाई भी कब से शुरू हो ये वही बेंच तय करेगी.

अमित शाह ने इस दौरान कोर्ट में कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल की सुनवाई टालने की मांग का भी जिक्र किया - और कहा कि देश के करोड़ों लोगों की भावना है कि मंदिर वहीं पर बने - और जल्द से जल्द ऐसा होना चाहिये.

एक तरफ तो बीजेपी चाहती है कि सुप्रीम कोर्ट जल्दी सुनवाई और फिर फैसला करे और दूसरी तरफ केंद्र की मोदी सरकार से कानून बनाने की भी मांग होती है - लेकिन बीजेपी वास्तव में चाहती क्या है ये किसी को नहीं पता.

क्या मंदिर पर मोदी सरकार संसद में बिल लाएगी?

एक सवाल बहुतों के मन में है - क्या मंदिर पर मोदी सरकार संसद में बिल लाएगी?

ये सवाल तब से है जब 18 सितंबर को दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने मंदिर पर कानून बनाने की मांग रखी. मोहन भागवत का कहना रहा कि जवाब देते नहीं बन रहा अगर कोई पूछता है कि आखिर कब? अब नहीं तो कब? मोहन भागवत समझाना चाहते थे कि जब केंद्र में भी हिंदुत्व में आस्था रखने वाली नरेंद्र मोदी की सरकार है, उत्तर प्रदेश में कट्टर हिंदू नेता योगी आदित्यनाथ सीएम की कुर्सी पर बैठे हुए हैं - फिर भी कब तक इंतजार हो?

जो सवाल मोहन भागवत का था वही नवंबर में अयोध्या पहुंचे शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने भी उठाया - और लगे हाथ चेताया भी. उद्धव ठाकरे ने बीजेपी को ये भी बता दिया कि मंदिर नहीं बनवाया तो फिर सरकार बनाने का मौका मिले भी ये जरूरी नहीं है.

आखिर कब? मंदिर पर संत समाज का यही सवाल बीजेपी के संसदीय बोर्ड की बैठक में भी उठा. सवाल उठाया घोसी से बीजेपी सांसद हरि नारायण राजभर ने.

आखिर कब तक?

बीजेपी सांसद हरिनारायण राजभर जानना चाहते थे कि क्या सरकार अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए संसद में कोई बिल लाने वाली है?

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में हरिनारायण राजभर ने कहा, 'हां, मैंने मीटिंग में ये मुद्दा उठाया और पूछा कि बिल कब लाया जाएगा?'

बीजेपी सांसद ने इस सिलसिले में गृह मंत्री राजनाथ सिंह के जवाब का हवाला दिया है. हरिनारायण राजभर के मुताबिक, उनके सवाल पर राजनाथ सिंह का जवाब था - 'इंतजार कीजिए.'

फिर तो धर्म संसद में होगा फैसला

31 जनवरी और 1 फरवरी, 2019 को प्रयागराज में धर्म संसद आयोजित होनी है. विश्व हिंदू परिषद की ओर से आयोजित होने वाली इस धर्म संसद में देश भर के साधु संतों का बड़ा जमावड़ा होगा.

खास बात ये है कि इस धर्म संसद में संघ प्रमुख मोहन भागवत और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी पहुंचने वाले हैं. खबर है कि वीएचपी की ओर से बुलावा भेजा जा चुका है - और जल्द ही दोनों नेताओं के कार्यक्रम फाइनल हो सकते हैं.

राम मंदिर निर्माण को लेकर वीएचपी की उच्चाधिकार समिति ने पहले ही अपनी ओर से सरकार को चेतावनी दे दी है. वीएचपी का कहना है कि केंद्र सरकार अगर मौजूदा सत्र में राम मंदिर निर्माण को लेकर कोई विधेयक या अध्यादेश नहीं लाती तो संत समाज के साथ मिल कर वो धर्म संसद में बड़ा फैसला लेगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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