• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

यूपी में भी ‘बिहार फॉर्मूला’ कांग्रेस की मजबूरी

    • कुमार विक्रांत
    • Updated: 27 अक्टूबर, 2016 04:15 PM
  • 27 अक्टूबर, 2016 04:15 PM
offline
कांग्रेस और सपा के नेता कहते हैं कि, अखिलेश-राहुल और प्रियंका- डिंपल की जोड़ी जब मैदान में उतरेगी तो तहलका तो मचेगा ही....

यूपी चुनाव में शुरूआती ताक़त झोंकने के बाद असली राजनीति अब शुरु हो रही है. दीवाली बाद यूपी में बड़े सियासी  धमाकों की तैयारी है. दरअसल, कांग्रेस को लग रहा है कि, यूपी में शीला दीक्षित को सीएम चेहरा बनाने का दांव कुछ ठीक नहीं बैठ रहा. बीएसपी, कांग्रेस से सम्मानजनक सीटों के साथ तालमेल करने को तैयार हो नहीं रही, इसलिए कांग्रेस के नेताओं का बड़ा तबका आलाकमान से अब जदयू, आरएलडी समेत छोटी पार्टियों के साथ समाजवादी पार्टी से गठजोड़ करके बीजेपी को यूपी में रोकने की वकालत कर रहा है. सियासी शतरंज में गोटियां बिछाना भी शुरू किया जा चुका है. अखिलेश यूपी सरकार में मनमुताबिक फैसले ले रहे हैं और जदयू के शरद यादव सोनिया से मुलाकात कर रहे हैं.

सीट और नीतीश फॉर्मूले पर नवंबर में फैसला

कांग्रेस और सपा के नेता कहते हैं कि, अखिलेश-राहुल और प्रियंका- डिंपल की जोड़ी जब मैदान में उतरेगी तो तहलका तो मचेगा ही. साथ ही पूर्वांचल में नितीश कुमार की छवि का फायदा होगा, कुर्मी वोटबैंक का फायदा होगा. वहीँ अजीत सिंह और जयंत पश्चिमी यूपी में फायदा देंगे. कुल मिलाकर गठजोड़ बीजेपी के सामने चुनौती बनकर उभरेगा और बीजेपी विरोधी वोट को एक जगह मुहैया करायेगा, साथ ही मुस्लिम वोट भी एकजुट रहेगा.

इसे भी पढ़ें: सपा के घमासान से यूपी में किस पार्टी को होगा फायदा

 रणनीति खोई हुई जमीन वापस लेने की?

राहुल को मनाने का फार्मूला

राहुल गांधी...

यूपी चुनाव में शुरूआती ताक़त झोंकने के बाद असली राजनीति अब शुरु हो रही है. दीवाली बाद यूपी में बड़े सियासी  धमाकों की तैयारी है. दरअसल, कांग्रेस को लग रहा है कि, यूपी में शीला दीक्षित को सीएम चेहरा बनाने का दांव कुछ ठीक नहीं बैठ रहा. बीएसपी, कांग्रेस से सम्मानजनक सीटों के साथ तालमेल करने को तैयार हो नहीं रही, इसलिए कांग्रेस के नेताओं का बड़ा तबका आलाकमान से अब जदयू, आरएलडी समेत छोटी पार्टियों के साथ समाजवादी पार्टी से गठजोड़ करके बीजेपी को यूपी में रोकने की वकालत कर रहा है. सियासी शतरंज में गोटियां बिछाना भी शुरू किया जा चुका है. अखिलेश यूपी सरकार में मनमुताबिक फैसले ले रहे हैं और जदयू के शरद यादव सोनिया से मुलाकात कर रहे हैं.

सीट और नीतीश फॉर्मूले पर नवंबर में फैसला

कांग्रेस और सपा के नेता कहते हैं कि, अखिलेश-राहुल और प्रियंका- डिंपल की जोड़ी जब मैदान में उतरेगी तो तहलका तो मचेगा ही. साथ ही पूर्वांचल में नितीश कुमार की छवि का फायदा होगा, कुर्मी वोटबैंक का फायदा होगा. वहीँ अजीत सिंह और जयंत पश्चिमी यूपी में फायदा देंगे. कुल मिलाकर गठजोड़ बीजेपी के सामने चुनौती बनकर उभरेगा और बीजेपी विरोधी वोट को एक जगह मुहैया करायेगा, साथ ही मुस्लिम वोट भी एकजुट रहेगा.

इसे भी पढ़ें: सपा के घमासान से यूपी में किस पार्टी को होगा फायदा

 रणनीति खोई हुई जमीन वापस लेने की?

राहुल को मनाने का फार्मूला

राहुल गांधी खुद मुलायम सिंह यादव और अजीत सिंह के साथ उसी तर्ज पर नहीं दिखना चाहते, जिस तरह बिहार में लालू यादव से उनको परहेज था. ऐसे में राहुल को फार्मूला सुझाया गया है कि, बिहार में नितीश की तरह यूपी में सीएम चेहरा तो अखिलेश होंगे, बाकी तो समर्थन में होंगे, उससे आपको क्या ऐतराज? आप बिहार की तर्ज पर अखिलेश के चेहरे पर बीजेपी विरोध की धुरी बनिए और 2019 में बीजेपी विरोध का राष्ट्रीय चेहरा बनिए. उधर, अखिलेश ने भी अपनी हालिया कार्यशैली से सन्देश देने की कोशिश की है कि, अब वो अपने हिसाब से सरकार चलाएंगे, किसी के दबाव में नहीं. शिवपाल और बाकी मंत्रियों को वापस  ना लेकर अखिलेश ने कड़ा सन्देश तो दे ही दिया है.

इसे भी पढ़ें: गांधी सिर्फ ड्रामा है तो यूपी में हो जाए गांधी बनाम गांधी

गठजोड़ के लिए मजबूर है कांग्रेस

शुरूआती प्रचार के बाद कांग्रेस नेताओं को लग रहा है कि कांग्रेस का वोट प्रतिशत तो बढ़ सकता है, लेकिन सीटें बहुत ज़्यादा नहीं बढ़ पाएंगी. ऐसे में जब बीजेपी अपना दल और छोटी पार्टियों से तालमेल कर रही है, तो यूपी में उसको रोकने के लिए कांग्रेस को भी गठबंधन बना कर मुक़ाबला करना होगा. कांग्रेस मान रही है कि यूपी में उसकी जीत से ज़्यादा जरुरी बीजेपी की हार है. वैसे भी कांग्रेस की निगाह सिर्फ 2019 में मोदी को रोकने पर है. ऐसे में तालमेल के लिए उसकी पहली पसंद तो बसपा है, लेकिन वो गठजोड़ के लिए तैयार नहीं है. इसलिए बिहार के नितीश फॉर्मूले पर नए सिरे से बातचीत शुरू हो चुकी है.

यानी यूपी में नयी इबारत लिखे जाने की शुरुआत तो हो चुकी है, लेकिन सीटों की संख्या, नेताओं की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा और सम्मान की लड़ाई जैसे तमाम मुद्दे हैं जो सुलझे रहेंगे तभी बात आगे बढ़ेगी. लिहाजा, नवम्बर का महीना सियासी गुणा-भाग के लिहाज से यूपी में काफी अहम है. पर ख्याल रहे, सब तय हो जाये, घोषणा हो जाये, तभी मानिए कि बिहार का नितीश फॉर्मूला यूपी में भी चलेगा. क्योंकि, अभी राह में बहुत रोड़े हैं और भानुमति का कुनबा है, जिसको जोड़ना अभी बाकी है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲