• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

ऐसे भी होते हैं धर्म और आस्था से जुड़े फैसले

    • आईचौक
    • Updated: 03 दिसम्बर, 2015 07:12 PM
  • 03 दिसम्बर, 2015 07:12 PM
offline
चीन की कम्युनिस्ट सरकार का वैसे तो धर्म से कोई लेना-देना नहीं है और वहां की कम्युनिस्ट पार्टी घोषित तौर पर नास्तिक है, लेकिन जब सवाल तिब्बत के धर्म का आता है तो फिर दलाई लामा के पुनर्जन्म का फैसला चीन के सिवाए कौन करेगा.

चीन सरकार ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि दलाई लामा के पुनर्जन्म पर फैसला करने पर उसका एकाधिकार है. दलाई लामा तिब्बत के धर्मगुरू और राष्ट्राध्यक्ष हैं और तिब्बत में दलाई लामा की पदवी को साक्षात भगवान बुद्ध का पुनर्जन्म माना जाता है. वैसे चीन की वामपंथी नास्तिक सरकार किसी धर्म में विश्वास नहीं रखती और कई दशकों से चीन की वामपंथी सरकारें सामाजिक पहलू से धर्म को अलग करने की कोशिश करती रही हैं. लेकिन जब सवाल तिब्बत का आता है तो चीन की सरकार को धार्मिक फैसला करने से भी कोई गुरेज नहीं है.

तिब्बत में बौद्ध धर्म पहुंचने से पहले वहां का बॉन समाज पुनर्जन्म में अटूट विश्वास रखता था. बौद्ध के आगमन के बाद भी यह मान्यता जारी रही और अभी तक चली आ रही है. मौजूदा चौदहवें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो की भी पहचान 2 वर्ष की उम्र में 13 दलाई लामा ने की थी. तिब्बत में प्रचलित मान्यता के मुताबिक पुनर्जन्म दो तरह से हो सकते हैं. पहला, किसी के कर्मों के नतीजे से और दूसरा दया और भक्ति भाव जो दूसरों की भलाई के लिए की गई हो. लिहाजा दलाई लामा का पुनर्जन्म इस दूसरे प्रकार में माना जाता है. तिब्बत के लोगों में आम धारणा यह है कि मौजूदा दलाई लामा में भक्ति भाव से इतनी शक्ति आ जाती है कि वह खुद अपने अगले जन्म का स्थान, समय और यहां तक की भावी माता-पिता का भी चयन कर लेता है.

चीन में 1949 के कम्युनिस्ट विद्रोह के बाद सत्ता में आई कम्युनिस्ट सरकार ने न सिर्फ पूरे चीन को धर्म मुक्त बनाने का फैसला किया बल्कि तिब्बत पर कब्जा करने के लिए वहां से बौद्ध धर्म पर पाबंदियां लगाना शुरू कर दिया था. जिसके चलते मौजूदा दलाई लामा को तिब्बत से निकलकर पड़ोसी देश में शरण लेनी पड़ी. लिहाजा, तिब्बत मान्यता के मुताबिक 15वें दलाई लामा का चयन चौदहवें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो को करना है. इसके उलट चीन सरकार का दावा है कि नए दलाई लामा पर अंतिम निर्णय चीन सरकार का रहेगा. चीन का मानना है कि दलाई लामा तिब्बत के घोषित राष्ट्राध्यक्ष भी है लिहाजा नए दलाई लामा को उसके सिवाए कोई नहीं तय कर सकता....

चीन सरकार ने एक बार फिर साफ कर दिया है कि दलाई लामा के पुनर्जन्म पर फैसला करने पर उसका एकाधिकार है. दलाई लामा तिब्बत के धर्मगुरू और राष्ट्राध्यक्ष हैं और तिब्बत में दलाई लामा की पदवी को साक्षात भगवान बुद्ध का पुनर्जन्म माना जाता है. वैसे चीन की वामपंथी नास्तिक सरकार किसी धर्म में विश्वास नहीं रखती और कई दशकों से चीन की वामपंथी सरकारें सामाजिक पहलू से धर्म को अलग करने की कोशिश करती रही हैं. लेकिन जब सवाल तिब्बत का आता है तो चीन की सरकार को धार्मिक फैसला करने से भी कोई गुरेज नहीं है.

तिब्बत में बौद्ध धर्म पहुंचने से पहले वहां का बॉन समाज पुनर्जन्म में अटूट विश्वास रखता था. बौद्ध के आगमन के बाद भी यह मान्यता जारी रही और अभी तक चली आ रही है. मौजूदा चौदहवें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो की भी पहचान 2 वर्ष की उम्र में 13 दलाई लामा ने की थी. तिब्बत में प्रचलित मान्यता के मुताबिक पुनर्जन्म दो तरह से हो सकते हैं. पहला, किसी के कर्मों के नतीजे से और दूसरा दया और भक्ति भाव जो दूसरों की भलाई के लिए की गई हो. लिहाजा दलाई लामा का पुनर्जन्म इस दूसरे प्रकार में माना जाता है. तिब्बत के लोगों में आम धारणा यह है कि मौजूदा दलाई लामा में भक्ति भाव से इतनी शक्ति आ जाती है कि वह खुद अपने अगले जन्म का स्थान, समय और यहां तक की भावी माता-पिता का भी चयन कर लेता है.

चीन में 1949 के कम्युनिस्ट विद्रोह के बाद सत्ता में आई कम्युनिस्ट सरकार ने न सिर्फ पूरे चीन को धर्म मुक्त बनाने का फैसला किया बल्कि तिब्बत पर कब्जा करने के लिए वहां से बौद्ध धर्म पर पाबंदियां लगाना शुरू कर दिया था. जिसके चलते मौजूदा दलाई लामा को तिब्बत से निकलकर पड़ोसी देश में शरण लेनी पड़ी. लिहाजा, तिब्बत मान्यता के मुताबिक 15वें दलाई लामा का चयन चौदहवें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो को करना है. इसके उलट चीन सरकार का दावा है कि नए दलाई लामा पर अंतिम निर्णय चीन सरकार का रहेगा. चीन का मानना है कि दलाई लामा तिब्बत के घोषित राष्ट्राध्यक्ष भी है लिहाजा नए दलाई लामा को उसके सिवाए कोई नहीं तय कर सकता. वहीं तिब्बत के लोगों का आरोप है कि यह चीन सरकार की साजिश है. जिसके चलते वह नए दलाई लामा का चयन कर तिब्बत में बौद्ध संप्रदाय को दो भाग में तोड़ना चाहता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲