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2019 में मोदी से मुकाबला विपक्ष के लिए मुश्किल क्या नामुमकिन लगने लगा है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 17 मई, 2018 04:07 PM
  • 17 मई, 2018 04:06 PM
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क्या होगा अगर 2019 में भी नतीजे कर्नाटक की तरह आ गये? फिर तो कांग्रेस को ऐसे ही कोई कुमारस्वामी तलाशना पड़ेगा? बेहतर तो ये होता कांग्रेस पहले ही कोई रास्ता निकाल लेती - वरना, मोदी को पकड़ पाना मुश्किल नहीं नाममुकिन हो जाएगा.

कर्नाटक में चुनाव प्रचार पूरे शबाब पर था जब फोर्ब्स की सूची जारी हुई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दुनिया की सबसे ताकतवर 10 हस्तियों में शुमार किया गया था. मशहूर पत्रिका फोर्ब्स की इस लिस्ट में दुनिया के सबसे शक्तिशाली 75 लोगों के नाम हैं और मोदी को 9वें पायदान पर जगह मिली है. सूची तो पहले ही तैयारी हो चुकी होगी, लेकिन जब सामने आयी तो मोदी कर्नाटक में चुनावी माहौल बीजेपी के पक्ष में बदल रहे थे. मोदी के कैंपेन में कूदने से पहले तक हालत ये रही कि युवाओं का झुकाव सिद्धारमैया की ओर नजर आ रहा था.

येदियुरप्पा संभवतः अधिक आकर्षित नहीं कर पा रहे थे इसलिए वे कुछ हद तक कन्फ्यूज भी हो रहे थे. मोदी ने हवा का रुख ऐसा मोड़ा कि 'मोदी-मोदी' उद्घोष वोट में भी तब्दील हो गया. खबरें बता रही हैं कि बीजेपी में भी अंदरूनी तौर पर माना जा रहा है कि मोदी के चलते 20-25 सीटों का फायदा हुआ. अगर ऐसा वास्तव में हुआ फिर तो मोदी नहीं जुटते तो बीजेपी के लिए गुजरात की तरह कर्नाटक में भी 100 का आंकड़ा पार करना मुश्किल होता.

गुजरात में 99, कर्नाटक में 100 पार

2019 का तो अभी मालूम नहीं, पर 2014 में मोदी ने रैलियों में लोगों को समझाया कि 'अच्छे दिन' तो आएंगे, लेकिन उसके लिए कांग्रेस मुक्त भारत का निर्माण जरूरी है. मोदी के PPP मॉडल में कर्नाटक कांग्रेस मुक्त भारत के आखिरी पड़ावों में से एक रहा. PPP यानी 'पंजाब पुड्डुचेरी परिवार'.

कोई क्यों नहीं है टक्कर में?

कर्नाटक क्या, अगर मोदी नहीं होते तो गुजरात में इस बार सरकार बनाना बीजेपी के बूते की बात तो नहीं लग रही थी. वैसे मोदी के जी जान से जुटने पर भी सीटें 99 तक ही पहुंच पायीं.

गुजरात और हिमाचल से पहले यूपी चुनाव भी तो हुए थे. जहां बीजेपी बरसों से वनवास झेल रही थी, मोदी ने...

कर्नाटक में चुनाव प्रचार पूरे शबाब पर था जब फोर्ब्स की सूची जारी हुई. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दुनिया की सबसे ताकतवर 10 हस्तियों में शुमार किया गया था. मशहूर पत्रिका फोर्ब्स की इस लिस्ट में दुनिया के सबसे शक्तिशाली 75 लोगों के नाम हैं और मोदी को 9वें पायदान पर जगह मिली है. सूची तो पहले ही तैयारी हो चुकी होगी, लेकिन जब सामने आयी तो मोदी कर्नाटक में चुनावी माहौल बीजेपी के पक्ष में बदल रहे थे. मोदी के कैंपेन में कूदने से पहले तक हालत ये रही कि युवाओं का झुकाव सिद्धारमैया की ओर नजर आ रहा था.

येदियुरप्पा संभवतः अधिक आकर्षित नहीं कर पा रहे थे इसलिए वे कुछ हद तक कन्फ्यूज भी हो रहे थे. मोदी ने हवा का रुख ऐसा मोड़ा कि 'मोदी-मोदी' उद्घोष वोट में भी तब्दील हो गया. खबरें बता रही हैं कि बीजेपी में भी अंदरूनी तौर पर माना जा रहा है कि मोदी के चलते 20-25 सीटों का फायदा हुआ. अगर ऐसा वास्तव में हुआ फिर तो मोदी नहीं जुटते तो बीजेपी के लिए गुजरात की तरह कर्नाटक में भी 100 का आंकड़ा पार करना मुश्किल होता.

गुजरात में 99, कर्नाटक में 100 पार

2019 का तो अभी मालूम नहीं, पर 2014 में मोदी ने रैलियों में लोगों को समझाया कि 'अच्छे दिन' तो आएंगे, लेकिन उसके लिए कांग्रेस मुक्त भारत का निर्माण जरूरी है. मोदी के PPP मॉडल में कर्नाटक कांग्रेस मुक्त भारत के आखिरी पड़ावों में से एक रहा. PPP यानी 'पंजाब पुड्डुचेरी परिवार'.

कोई क्यों नहीं है टक्कर में?

कर्नाटक क्या, अगर मोदी नहीं होते तो गुजरात में इस बार सरकार बनाना बीजेपी के बूते की बात तो नहीं लग रही थी. वैसे मोदी के जी जान से जुटने पर भी सीटें 99 तक ही पहुंच पायीं.

गुजरात और हिमाचल से पहले यूपी चुनाव भी तो हुए थे. जहां बीजेपी बरसों से वनवास झेल रही थी, मोदी ने यूपी में भारी बहुमत की सरकार बनवा दी. 2014 के आम चुनाव के तत्काल बाद हुए महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के अलावा जम्मू कश्मीर में भी तकरीबन आधी जीत भी तो मोदी की बदौलत ही रही. दिल्ली, बिहार और असम के मॉडल अलग रहे.

'अच्छे दिन...' की ही तरह हाल ही में त्रिपुरा में मोदी ने लोगों को बताया कि वे गलत रत्न धारण किये हुए हैं - त्रिपुरा के लोगों को माणिक नहीं सूट कर रहा इसलिए 'हीरा' पहनना चाहिये. जब कर्नाटक पहुंचे तो मोदी ने कॉल दी - 'जो पार्टी लोगों का वेलफेयर नहीं करती उसे फेयरवेल दे दो.'

और अच्छे दिन!

चित्रदुर्ग जहां मोदी ने फेयरवेल की सलाह दी, लोगों ने ताबड़तोड़ छह में से पांच सीटें बीजेपी की झोली में डाल दी. इसी तरह बेलगाम की एक रैली में मोदी ने सोनिया गांधी को दलित विरोधी बताया, ये कहते हुए कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने तक नहीं गयीं. असर ये हुआ कि कांग्रेस के हिस्से जाने वाली चार सीटें मोदी के चलते लोगों ने बीजेपी को थमा दी. उड्डुपी में मोदी ने मोदी ने कांग्रेस सरकार की उपलब्धियों पर राहुल गांधी को हिंदी, अंग्रेजी या उनकी मां सोनिया गांधी की मातृभाषा में 15 मिनट बोलने की चुनौती दी. मालूम हुआ उड्डुपी की सारी पांच की पांचों सीटें बीजेपी के खाते में आ पड़ीं.

'48 साल बनाम 48 महीने’

16 मई को लोक सभा चुनाव के नतीजे आये चार साल पूरे हो गये - 10 दिन बाद 26 मई को मोदी सरकार के चार साल पूरे हो रहे हैं. मोदी सरकार की चौथी सालगिरह के जश्न का स्लोगन दिया गया है - '48 साल बनाम 48 महीने’.

देखा जाय तो टीम मोदी ने 2019 के लिए अपना वॉर्म अप सेशन चालू कर दिया है. '48 साल बनाम 48 महीने' के नारे के साथ सड़क पर उतर रही बीजेपी मोदी सरकार के 48 महीनों के शासन की तुलना में कांग्रेस सरकारों के 48 साल का फर्क समझाएगी. बीजेपी नेता और मोदी सरकार के मंत्री लोगों को घूम घूम कर बताएंगे कि किस तरह खुद प्रधानमंत्री मोदी और उनकी टीम दिन रात देश की तरक्की के लिए जुटी हुई है.

विपक्ष की मुश्किल ये है कि सरकारी दावों को उसी मजबूती के साथ काउंटर करने के लिए मैदान में कोई है ही नहीं. मनमाफिक नतीजे नहीं आने के बाद राहुल गांधी देश के राजनीतिक पटल से पूरी तरह गायब नजर आ रहे हैं. बाकी विपक्ष मोदी को चैलेंज करने के लिए तैयारी तो कर रहा है मगर उसमें भी सबसे बड़ी बाधा राहुल गांधी की प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी है. कर्नाटक में महसूस किया जा रहा है कि जो सपोर्ट जेडीएस को कांग्रेस अब जाकर दे रही है, अगर चुनाव से पहले ही समझौता हुआ होता तो ये दिन न देखने पड़ते.

2019 के लिए विपक्षी एकता में भी यही सबसे बड़ी बाधा है. फर्ज कीजिए, 2019 में भी कर्नाटक की तरह नतीजे आ गये. फिर तो कांग्रेस को कुमारस्वामी की ही तरह किसी के भी नाम पर राजी होना पड़ेगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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