• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

चुनावी ओपिनियन पोल कितना सटीक?

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 01 फरवरी, 2017 05:42 PM
  • 01 फरवरी, 2017 05:42 PM
offline
हमारे देश में चुनावों के आंकलन में कई कारक महत्वपूर्ण होते हैं, ऐसे में चुनाव से पहले का कोई भी सर्वेक्षण सटीक नहीं हो सकता. सर्वे तो सिर्फ लोगों के मूड की ओर इशारा करते हैं.

देश में पांच महत्वपूर्ण राज्यों की विधानसभा में चुनावों के लिए प्रक्रिया जारी है. और दूसरी प्रक्रिया जारी है चुनावी ओपिनियन पोल की. विभिन्न न्यूज़ एजेंसियां इस समय काफी व्यस्त हैं, और व्यस्तता का मुख्य कारण है ओपिनियन पोल दिखाना. अलग अलग न्यूज़ एजेंसियां अलग अलग पार्टियों को अलग-अलग सीटें दे रही हैं. लेकिन सवाल यह है कि आखिर ये ओपिनियन पोल कितने सटीक होते हैं.

इस समय एक ओपिनियन पोल किसी को जिताने में लगा है तो और दूसरा किसी और को, और हां, तीसरा कुछ और ही बता रहा है. यह फिर भी आश्चर्यजनक नहीं है. हैरत तब होती है जब इन ओपिनियन पोलों में पहले और दूसरे नंबर पर आने वाली पार्टियों की अनुमानित सीटों की संख्या में ज़मीन-आसमान का अंतर होता है. हालांकि न्यूज़ एजेंसियों का दावा होता है कि ओपिनियन पोल सांख्यिकीय विधि से मतदाताओं के रुख को भांपने का वैज्ञानिक तरीका होता है लेकिन  सवाल यह है कि एक ही वैज्ञानिक तरीके से किए जाने वाले सर्वेक्षणों में इतना अंतर कैसे हो सकता है?

हमारे देश में चुनावों के आंकलन में कई कारक महत्वपूर्ण होते हैं, ऐसे में चुनाव से पहले (ओपिनियन पोल) का कोई भी सर्वेक्षण सटीक नहीं हो सकता. सर्वे तो सिर्फ लोगों के मूड की ओर इशारा करते हैं. भारतीय मतदाता अगर किसी पार्टी का कार्यकर्ता या सक्रिय सदस्य नहीं है तो वह यह कभी नहीं बताता कि उसने अपना वोट किसे दिया है या किसे देगा. इसलिए अगर कोई सर्वे एजेंसी यह दावा करती है कि उसके पास सटीक आंकड़े हैं तो यह दावा सही नहीं भी हो सकता है.

आइये एक नजर डालते हैं कुछ ऐसे ओपिनियन पोलों पर, जो गलत साबित हुए हैं.

# वर्ष 2004 में सर्वे एजेंसियों ने अनुमान जताया था कि 'इंडिया शाइनिंग' के नारे के साथ चुनाव में उतरा भाजपा गठबंधन केंद्र में आसानी से अपनी सत्ता बनाए रखने में कामयाब रहेगा....

देश में पांच महत्वपूर्ण राज्यों की विधानसभा में चुनावों के लिए प्रक्रिया जारी है. और दूसरी प्रक्रिया जारी है चुनावी ओपिनियन पोल की. विभिन्न न्यूज़ एजेंसियां इस समय काफी व्यस्त हैं, और व्यस्तता का मुख्य कारण है ओपिनियन पोल दिखाना. अलग अलग न्यूज़ एजेंसियां अलग अलग पार्टियों को अलग-अलग सीटें दे रही हैं. लेकिन सवाल यह है कि आखिर ये ओपिनियन पोल कितने सटीक होते हैं.

इस समय एक ओपिनियन पोल किसी को जिताने में लगा है तो और दूसरा किसी और को, और हां, तीसरा कुछ और ही बता रहा है. यह फिर भी आश्चर्यजनक नहीं है. हैरत तब होती है जब इन ओपिनियन पोलों में पहले और दूसरे नंबर पर आने वाली पार्टियों की अनुमानित सीटों की संख्या में ज़मीन-आसमान का अंतर होता है. हालांकि न्यूज़ एजेंसियों का दावा होता है कि ओपिनियन पोल सांख्यिकीय विधि से मतदाताओं के रुख को भांपने का वैज्ञानिक तरीका होता है लेकिन  सवाल यह है कि एक ही वैज्ञानिक तरीके से किए जाने वाले सर्वेक्षणों में इतना अंतर कैसे हो सकता है?

हमारे देश में चुनावों के आंकलन में कई कारक महत्वपूर्ण होते हैं, ऐसे में चुनाव से पहले (ओपिनियन पोल) का कोई भी सर्वेक्षण सटीक नहीं हो सकता. सर्वे तो सिर्फ लोगों के मूड की ओर इशारा करते हैं. भारतीय मतदाता अगर किसी पार्टी का कार्यकर्ता या सक्रिय सदस्य नहीं है तो वह यह कभी नहीं बताता कि उसने अपना वोट किसे दिया है या किसे देगा. इसलिए अगर कोई सर्वे एजेंसी यह दावा करती है कि उसके पास सटीक आंकड़े हैं तो यह दावा सही नहीं भी हो सकता है.

आइये एक नजर डालते हैं कुछ ऐसे ओपिनियन पोलों पर, जो गलत साबित हुए हैं.

# वर्ष 2004 में सर्वे एजेंसियों ने अनुमान जताया था कि 'इंडिया शाइनिंग' के नारे के साथ चुनाव में उतरा भाजपा गठबंधन केंद्र में आसानी से अपनी सत्ता बनाए रखने में कामयाब रहेगा. लेकिन नतीजे इसके उलट ही रहे.

# वर्ष 2007 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में ओपिनियन और एक्जिट पोल में भाजपा को 92-100 सीटें, जबकि कांग्रेस को 77-85 सीटें बता रहे थे लेकिन भाजपा यह चुनाव भारी बहुमत से जीती और उसे 120 सीटें मिली थीं.

# इसी तरह वर्ष  2012 में हुए उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में सर्वे एजेंसियों ने समाजवादी पार्टी को 127 से 135 सीटें बताई थी, जबकि उन्हें 224 सीटें मिलीं जो कि सर्वे से कहीं ज्यादा थीं.

# अगर हम 2013 में हुए मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव  की बात करें तो ज्यादातर एजेंसियों ने भाजपा को 128 से 146 सीटें जीतने का अनुमान लगाया था, लेकिन भाजपा को 165 सीटें मिली थीं.

# ठीक इसी तरह 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में भी भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिलने में संदेह जताया गया और त्रिशंकु लोकसभा की बात कही गई लेकिन बावजूद इसके मोदी ने रिकॉर्ड बहुमत से जीत दर्ज की.

इस बार भी सभी न्यूज़ एजेंसियां अपने तरह से हरेक राज्यों केलिए ओपिनियन पोल के द्वारा सीटों का बंटवारा कर रहें हैं, लेकिन इसका असली फैसला तो 18  मार्च को जनता के द्वारा ही किया जायेगा. तब तक हमलोग इंतजार करते हैं.

ये भी पढ़ें-

यूपी में सियासी पेंडुलम एसपी-कांग्रेस गठबंधन की ओर बढ़ा

4 कारण, जिससे यूपी में बीजेपी का सपना टूट सकता है

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲