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सदफ जफर के साथ जो हुआ, फिलहाल तो 'बदला' ही है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 08 जनवरी, 2020 04:43 PM
  • 08 जनवरी, 2020 04:43 PM
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CAA protest के दौरान गिरफ्तार हुई सामाजिक कार्यकर्ता सदफ जफर (Sadaf Jafar) को 19 दिनों बाद जमानत मिली है. जेल से रिहा हुई सदफ़ ने जो बातें बताई हैं और जिस तरह के आरोप UP Police पर लगाए हैं, यदि वे सच हैं तो उनसे 'बदला' ही लिया गया है.

19 दिसंबर 2019. वो तारीख जब CAA विरोध की आग उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ (Violence during CAA Protest in Lucknow) पहुंची और जिसने जमकर उत्पात मचाया. पुलिस पर पथराव हुआ. मीडिया, पुलिस और आम लोगों की गाड़ियों को आग के हवाले किया गया. सरकारी संपत्ति को नुकसान हुआ. शहर का माहौल बिगाड़ने वाले अपने मंसूबों में कामयाब न हों इसलिए पूरे लखनऊ (CAA protest in lucknow) को किले में तब्दील कर दिया गया था. चप्पे-चप्पे पर पुलिस थी और शहर भर में धारा 144 लगी हुई थी. बलवाइयों ने इन सब की परवाह न करते हुए जमकर उपद्रव किया. 19 दिसंबर को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के हालत कुछ इस हद तक बेकाबू हुए कि पुलिस को बल का सहारा लेना पड़ा और तमाम लोग गिरफ्तार हुए. बाद में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath over violence CAA protest) और सूबे के डीजीपी ओपी सिंह (P DGP OP Singh) का बयान आया कि बलवाइयों को किसी भी सूरत में नजरंदाज नहीं किया जाएगा. प्रियंका गांधी ने एक प्रेस कान्‍फ्रेंस कर मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर आरोप लगाया कि वे यूपी की जनता से 'बदला' लेने की बात कर रहे हैं. उनके आरोप कितने सही हैं, ये तो अलग बात है लेकिन लखनऊ से गिरफ्तार हुई सामाजिक कार्यकर्ता सदफ़ जफर के मामले ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल खड़े कर दिए हैं. 19 दिन जेल में रखने के बाद उन्‍हें जमानत पर रिहा कर दिया गया है (Activist Sadaf Jafar Granted Bail). जमानत तो उन्‍हें 4 जनवरी 2020 को ही मिल गई थी, लेकिन कागजी कार्रवाई पूरी न होने के कारण उनकी जेल से रिहाई नहीं हो सकी थी. सदफ पर जानलेवा हमला करने, दंगा करने, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसे संगीन आरोप लगाए गए थे. लेकिन उनकी जमानत पर हुई सुनवाई ने मामले की तस्‍वीर उलट कर रख दी है. सदफ के बारे में सरकार का जो पक्ष रहा है, उससे तो यह गुस्‍से में की गई 'बदले' की कार्रवाई ही नजर आती है.

19 दिसंबर 2019. वो तारीख जब CAA विरोध की आग उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ (Violence during CAA Protest in Lucknow) पहुंची और जिसने जमकर उत्पात मचाया. पुलिस पर पथराव हुआ. मीडिया, पुलिस और आम लोगों की गाड़ियों को आग के हवाले किया गया. सरकारी संपत्ति को नुकसान हुआ. शहर का माहौल बिगाड़ने वाले अपने मंसूबों में कामयाब न हों इसलिए पूरे लखनऊ (CAA protest in lucknow) को किले में तब्दील कर दिया गया था. चप्पे-चप्पे पर पुलिस थी और शहर भर में धारा 144 लगी हुई थी. बलवाइयों ने इन सब की परवाह न करते हुए जमकर उपद्रव किया. 19 दिसंबर को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के हालत कुछ इस हद तक बेकाबू हुए कि पुलिस को बल का सहारा लेना पड़ा और तमाम लोग गिरफ्तार हुए. बाद में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi Adityanath over violence CAA protest) और सूबे के डीजीपी ओपी सिंह (P DGP OP Singh) का बयान आया कि बलवाइयों को किसी भी सूरत में नजरंदाज नहीं किया जाएगा. प्रियंका गांधी ने एक प्रेस कान्‍फ्रेंस कर मुख्‍यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर आरोप लगाया कि वे यूपी की जनता से 'बदला' लेने की बात कर रहे हैं. उनके आरोप कितने सही हैं, ये तो अलग बात है लेकिन लखनऊ से गिरफ्तार हुई सामाजिक कार्यकर्ता सदफ़ जफर के मामले ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल खड़े कर दिए हैं. 19 दिन जेल में रखने के बाद उन्‍हें जमानत पर रिहा कर दिया गया है (Activist Sadaf Jafar Granted Bail). जमानत तो उन्‍हें 4 जनवरी 2020 को ही मिल गई थी, लेकिन कागजी कार्रवाई पूरी न होने के कारण उनकी जेल से रिहाई नहीं हो सकी थी. सदफ पर जानलेवा हमला करने, दंगा करने, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने जैसे संगीन आरोप लगाए गए थे. लेकिन उनकी जमानत पर हुई सुनवाई ने मामले की तस्‍वीर उलट कर रख दी है. सदफ के बारे में सरकार का जो पक्ष रहा है, उससे तो यह गुस्‍से में की गई 'बदले' की कार्रवाई ही नजर आती है.

सदफ़ जाफर ने जो आरोप पुलिस पर लगाए हैं साफ़ हो गया है कि उन्हें गिरफ्तार ही बदले की नीयत से किया गया था

आइये देखते हैं कि 19 दिसंबर और उसके बाद लगातार हुई घटनाओं को देखते हैं, और सदफ जफर पर हुई कार्रवाई का उनसे मिलान करते हैं:

सदफ जफर के फेसबुक लाइव

19 दिसंबर को जिस समय लखनऊ में CAA के खिलाफ प्रदर्शन ने उग्र रूप लिया वो फेसबुक लाइव कर रही थीं. तब जो लाइव सदफ ने फेसबुक के लिए किया अगर उसपर नजर डाली जाए तो मिलता है कि वो लखनऊ पुलिस के साथ साथ चल रही थीं. लाइव के दौरान ऐसे तमाम मौके आए थे जब उन्होंने खुद पुलिस से अनुरोध किया था कि बजाए मूकदर्शक बनने के वो दंगाइयों को हिरासत में लें और स्थिति को नियंत्रित करें.

सदफ़ का ये लाइव वीडियो सारी हकीकत खुद बी खुद बयां कर देता है. वीडियो में भी सदफ़ यही कह रही हैं कि अगर पुलिस दंगाइयों को पकड़ने में नाकाम है तो फिर उसका वहां खड़े रहने का फायदा क्या है? इसके बाद सदफ़ ने फिर एक लाइव किया है जो उस समय का है जब लखनऊ के परिवर्तन चौक पर दंगाइयों द्वारा आगजनी और पत्थरबाजी की घटना को अंजाम दिया जा रहा है.

यदि इस वीडियो को देखें तो मिलता है कि सदफ़ इसमें भी लखनऊ पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगा रही थी. साथ ही इस वीडियो में वो दृश्य भी मौजूद हैं जब पुलिस अपने पास खड़ी सदफ़ को गिरफ्तार कर रही है, और बाद में उस पर बलवा फैलाने का आरोप लगा देती है. सदफ़ द्वारा उनकी फेसबुक टाइम लाइन पर पोस्ट किये गए वीडियो देखने से तमाम बातें खुद-ब-खुद स्पष्ट हो जाती है और पता चल जाता है कि लखनऊ पुलिस ने उनके साथ ज्‍यादती की है.

दो बच्‍चों की मां 19 दिन बिना सबूत हिरासत में!

सिंगल मदर सदफ़ के दो बच्चे हैं जिसमें इनकी बड़ी बेटी 15 साल की है और बेटा 9 साल का है.19 दिसंबर 2019 को गिरफ्तार हुई और 7 जनवरी 2020 को रिहा हुईं सदफ़ की 19 दिन की इस गिरफ़्तारी पर अगर गौर किया जाए तो मिलता है कि साफ़ तौर पर इनके साथ योगी आदित्यनाथ की पुलिस ने बदला लिया है.

बात समझने के लिए हम उस याचिका की सुनवाई पर गौर कर्ट सकते हैं जो सदफ़ की जमानत के लिए कोर्ट में दाखिल की गई थी. अभियोजन पक्ष ने अपनी  दलीलों  में इस बात को स्वीकार किया कि लखनऊ में जो कुछ भी हुआ उसमें अब तक की जांच में सदफ की विशिष्ट भूमिका के कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिले थे और अधिक साक्ष्य एकत्र करने के लिए अभी भी जांच चल रही है.

अतिरिक्त जिला न्यायाधीश एसएस पांडे ने सदफ़ को जमानत देते हुए अभियोजन पक्ष की बातों को माना और कहा कि लखनऊ में हुए बलवे में सदफ़ की भूमिका में सबूतों की कमी थी साथ ही सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उन पुलिस कर्मियों की चिकित्सा रिपोर्ट का भी संगें किया जो इस प्रोटेस्ट में घायल हुए थे. कोर्ट ने माना कि पुलिस वालों को ऐसी कोई भी चोट नहीं आई है जिसमें वो गंभीर लगे.

आपको बताते चलें कि कोर्ट ने सदफ़ को 50]000 रुपए के मुचलके और निजी बांड पर जमानत दी है. साथ ही कोर्ट ने सदफ़ से ये भी कहा है कि वो आगे की जांच में पुलिस की मदद करेंगी और जब भी जरूरत होगी केस के जांच अधिकारी के सामने उपस्थित होंगी. साथ ही कोर्ट ने सदफ़ से ये भी कहा है कि वो किसी भी आपराधिक गतिविधि में शामिल नहीं होंगी न ही वो इस मामले के किसी भी गवाह को प्रभावित करेंगी.

सदफ के आरोप सही हैं, तो इससे घिनौना कुछ नहीं

जेल से वापस आने के बाद सदफ़ ने लखनऊ पुलिस पर तमाम तरह के गंभीर आरोप लगाए हैं. सदफ़ के अनुसार पुलिसवालों ने न सिर्फ उनके पेट में लात मारी और पाकिस्तान जाने के लिए कहा बल्कि ऐसे भी तमाम मौके आए जब उनके बाल नोचे गए और मुसलमान होने के कारण भद्दी भद्दी गालियां दी गयीं.

अखिल भारतीय महिला कांग्रेस ने सदफ़ का वीडियो अपनी ट्विटर टाइम लाइन पर शेयर किया है और यदि इस वीडियो को ध्यान से सुना जाए तो साफ़ पता चलता है कि ऐसी तमाम यातनाएं थीं जो सदफ़ को जेल में पुलिस वालों ने दी. चूंकि सदफ़ ने बहुत ही स्पष्ट लहजे में पुलिस पर आरोप लगाए हैं तो हम बस इतना ही कहेंगे कि यदि ये आरोप सही हैं तो इससे ज्यादा घिनौना कुछ नहीं है.

सदफ पर लगे संगीन आरोप शुरुआत में ही निराधार हैं!

सदफ़ की गिरफ़्तारी में सबसे दिलचस्प उन पर लगे आरोप हैं जो कोर्ट में सुनवाई के दौरान ही निराधार साबित हो गए. आपको बताते चलें कि सदफ़ की जमानत याचिका का विरोध करते हुए सरकारी वकील ने तर्क दिया था कि न सिर्फ सदफ़ ने सदफ ने निरोधात्मक आदेशों का उल्लंघन किया था.

आपको बता दें कि सदफ पर दंगा, हत्या का प्रयास, हमला, आपराधिक धमकी, एक लोक सेवक की अवज्ञा, आगजनी और आपराधिक साजिश के आरोप लगाए गए थे. अब सवाल ये उठता है कि जो इंसान स्वयं पुलिस के साथ साथ चल रहा हो. और उसे दंगाइयों को पकड़ने में मदद कर रहा हो. उसका किसी की हत्या का प्रयास करना, आपराधिक धमकी देना, दंगा करना किसी भी समझदार इंसान की त्योरियां चढ़ा सकता है.

और उसे ये सोचने पर मजबूर कर सकता है कि अपनी नाकामी छुपाने वाली योगी आदित्यनाथ की पुलिस एक महिला को बेवजह फंसा रही है. बाकी बात अगर कोर्ट की हो तो कोर्ट स्वयं इस बात को साफ़ कर चुका था कि सदफ़ ने 'कुछ' किया इसके पर्याप्त सबूत उसके पास नहीं हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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