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जल्लीकट्टू के बाद अब बारी बुलबुल, मुर्गा, बैल और भैंसे की

    • मोहित चतुर्वेदी
    • Updated: 27 जनवरी, 2017 07:10 PM
  • 27 जनवरी, 2017 07:10 PM
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सिर्फ जल्लीकट्टू ही नहीं कई ऐसे और खतरनाक खेल भी हैं जिनके प्रतिबंधित होने के बावजूद देश के कई हिस्सों में उनका आयोजन किया जाता है. लेकिन अब इन पर से पाबंदी हटाने की मांग हो रही है.

तमिलनाडु विधानसभा के विशेष सत्र में जल्लीकट्टू बिल पास कर दिया है. यानी अब जल्लीकट्टू पर बैन हट चुका है. बिल पास होते ही कई ऐसे खेल बाहर निकलकर आए जिन्हें सरकार ने बहुत पहले की बैन लगा दिया था. आपको बता दें कि सिर्फ जल्लीकट्टू ही नहीं कई ऐसे और खतरनाक खेल भी हैं जिनके प्रतिबंधित होने के बावजूद देश के कई हिस्सों में उनका आयोजन किया जाता है, लेकिन जल्लीकट्टू पर बैन हटने के बाद कुछ लोग इन खेलों पर बैन हटाने की मांग तेज कर रहे हैं.

असम में कुछ लोग मकर सक्रांति में बुलबुल को लड़ाते हैं. असम का हयागरीब माधव मंदिर इस खेल का अड्डा है. इससे भगवान विष्णु को सम्मान दिया जाता है. बता दें कि पिछले साल हाईकोर्ट ने इस पर बैन लगा दिया है लेकिन फिर भी इसे छुप-छुप कर खेला जाता है. अब आइए आपको बताते हैं कैसे खेला जाता है ये खूनी खेल... हफ्तों पहले प्रोफेशनल बहेलिए बुलबुलों को पकड़ना शुरू कर देते हैं. इन्हें पिंजरों में कैद रखा जाता है और गांव वालों को बेच दिया जाता है. गांव वाले इनकी लड़ाई कराते हैं.

अब आपको बताते हैं ऐसा ही एक और खूनी खेल... जो आंध्र प्रदेश में मुर्गों के साथ खेला जाता है. यहां विशेष किस्म की नस्ल के मुर्गों को खास कर लड़ाई के लिए पाला जाता है. मुर्गों को बंद अंधेरे कमरे में पिंजरे में रखा जाता है और जब तक ये गुस्से में न आ जाएं तब तक लकड़ी की डंडियों को इनके शरीर पर चुभोया जाता है. हिंसक होने के बाद मुर्गों के पंजों में ब्लेड बांध दी जाती है. फिर इन्हें एक दूसरे से फाइट करने के लिए छोड़ जाता है. ये लड़ाई तब तक चलती है जब तक किसी एक मुर्गे की मौत न हो जाए. कोई तो शराब के नशे में इन मुर्गों को खा जाते हैं. आपको बता दें कि हैदराबाद हाईकोर्ट ने मुर्गों की लड़ाई पर रोक लगा रखी है.

तमिलनाडु विधानसभा के विशेष सत्र में जल्लीकट्टू बिल पास कर दिया है. यानी अब जल्लीकट्टू पर बैन हट चुका है. बिल पास होते ही कई ऐसे खेल बाहर निकलकर आए जिन्हें सरकार ने बहुत पहले की बैन लगा दिया था. आपको बता दें कि सिर्फ जल्लीकट्टू ही नहीं कई ऐसे और खतरनाक खेल भी हैं जिनके प्रतिबंधित होने के बावजूद देश के कई हिस्सों में उनका आयोजन किया जाता है, लेकिन जल्लीकट्टू पर बैन हटने के बाद कुछ लोग इन खेलों पर बैन हटाने की मांग तेज कर रहे हैं.

असम में कुछ लोग मकर सक्रांति में बुलबुल को लड़ाते हैं. असम का हयागरीब माधव मंदिर इस खेल का अड्डा है. इससे भगवान विष्णु को सम्मान दिया जाता है. बता दें कि पिछले साल हाईकोर्ट ने इस पर बैन लगा दिया है लेकिन फिर भी इसे छुप-छुप कर खेला जाता है. अब आइए आपको बताते हैं कैसे खेला जाता है ये खूनी खेल... हफ्तों पहले प्रोफेशनल बहेलिए बुलबुलों को पकड़ना शुरू कर देते हैं. इन्हें पिंजरों में कैद रखा जाता है और गांव वालों को बेच दिया जाता है. गांव वाले इनकी लड़ाई कराते हैं.

अब आपको बताते हैं ऐसा ही एक और खूनी खेल... जो आंध्र प्रदेश में मुर्गों के साथ खेला जाता है. यहां विशेष किस्म की नस्ल के मुर्गों को खास कर लड़ाई के लिए पाला जाता है. मुर्गों को बंद अंधेरे कमरे में पिंजरे में रखा जाता है और जब तक ये गुस्से में न आ जाएं तब तक लकड़ी की डंडियों को इनके शरीर पर चुभोया जाता है. हिंसक होने के बाद मुर्गों के पंजों में ब्लेड बांध दी जाती है. फिर इन्हें एक दूसरे से फाइट करने के लिए छोड़ जाता है. ये लड़ाई तब तक चलती है जब तक किसी एक मुर्गे की मौत न हो जाए. कोई तो शराब के नशे में इन मुर्गों को खा जाते हैं. आपको बता दें कि हैदराबाद हाईकोर्ट ने मुर्गों की लड़ाई पर रोक लगा रखी है.

पड़ोसी राज्य तमिलाडू में जल्लीकट्टू को पास करने के बाद कर्नाटक में 'कंबाला' (भैंसा दौड़) कराने की मांग बढ़ गई है. इस खेल की शुरुआत होती है भैंसों को पानी से भरे खेतों में उतारकर. जिसके बाद उन्हें पीटा जाता है. दलदली जमीन पर भगने से वे बार-बार गिरती हैं जिससे उनके पैर टूटते हैं और कुछ की तो मौत तक हो जाती है.

महाराष्ट्र में भैसों के साथ खतरनाक खेला जाता है. यहां भैंसो को एक दूसरे से बांधकर दौड़ाया जाता है. शराब पिलाई जाती है. खेल को और खतरनाक करने के लिए इनकी पूंछ पकड़कर दौड़ाया जाता है. कईयों की तो वहीं मौत हो जाती है. 

उत्तराखंड के गढ़वाल में मंजू भोग कराया जाता है. जहां भैंसों को पहले निलहाया जाता है फिर इनको खेतों में भगाया जाता है. ऊपड़-खाबड़ रास्ते से होते हुए इनके भगाया जाता है. कईयों की तो मंदिर से पहुंचने से पहले ही मौत हो जाती है और जो बच जाते हैं उनकी बली दी जाती है.

...तो जल्‍लीकट्टू ने जानवरों से बाकी खेलों पर से पाबंदी हटाने का रास्‍ता साफ कर दिया है ? और परंपरा के नाम पर ऐसा करने देना क्‍या जायज है ?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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