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नीतीश के लिए कांग्रेस, केजरीवाल और ममता को एक मंच पर लाना बहुत मुश्किल है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 09 सितम्बर, 2022 01:42 PM
  • 09 सितम्बर, 2022 01:42 PM
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नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की विपक्षी राजनीति में अछूत भले कोई न हो, लेकिन अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) और ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) को कांग्रेस के साथ एक मंच पर लाना बहुत टेढ़ी खीर है - और ये न हो सका तो बाकियों के एकजुट होने का फायदा नहीं मिलेगा.

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का प्रधानमंत्री पद का दावेदार न होने का पहले ही ऐलान कर देना देश की विपक्षी राजनीति में रंग दिखाने लगा है - और ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की तरफ से मिला सपोर्ट सबसे बड़ा सबूत है.

नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद अगर अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) और कांग्रेस की तरफ से भी ममता बनर्जी जैसा ही पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिला होता तो 2024 में एकजुट विपक्ष का पूरा खाका नजर आने लगता - और केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के रणनीतिकारों की नींद अब तक हराम हो चुकी होती. तब 144 सीटों पर जीत सुनिश्चित करने के बजाय, मोदी-शाह और साथी अपने आदमियों को विपक्षी दलों की राज्य सरकारों को छोड़ कर विपक्षी एकजुटता के खिलाफ ऑपरेशन लोटस की तैयारी में झोंक चुके होते.

तीन दिन के तूफानी दौरे में विपक्ष के 10 दिग्गज नेताओं से ताबड़तोड़ मुलाकात के बाद पटना लौट चुके नीतीश कुमार जल्दी ही फिर दिल्ली आने की घोषणा भी कर चुके हैं - और तभी वो सोनिया गांधी से भी मुलाकात करेंगे.

दिल्ली दौरे में नीतीश कुमार न तो सोनिया गांधी से मिल पाये, न ही ममता बनर्जी से. सोनिया गांधी मेडिकल चेक अप के लिए विदेश गयी हुई हैं, जबकि ममता बनर्जी कोलकाता से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सियासी मिसाइल छोड़ रही हैं. एक कार्यक्रम में एक नौकरशाह के पत्र का हवाला देते हुए समझा भी रही थीं, 'मैं उनकी नौकर नहीं हूं.'

दिल्ली में नीतीश कुमार को शरद पवार से लेकर शरद यादव तक, सभी नेताओं ने हाथोंहाथ लिया. जब तक कोई और मौका नहीं आता तब तक तो ऐसा ही मान कर चलना होगा. शरद पवार तो फिलहाल विपक्षी खेमे की सबसे मजबूत कड़ी बने हुए हैं ही, शरद यादव तो नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के अध्यक्ष भी हुआ करते थे. मतभेद होने के बाद नीतीश कुमार ने शरद पवार को किनारे लगा दिया, जिसके बाद वो लालू यादव की पार्टी आरजेडी के टिकट पर चुनाव भी लड़े लेकिन हार गये. बाद में 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी बेटी भी कांग्रेस के टिकट पर नहीं जीत सकीं.

विपक्षी खेमे के तीन नेताओं...

नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का प्रधानमंत्री पद का दावेदार न होने का पहले ही ऐलान कर देना देश की विपक्षी राजनीति में रंग दिखाने लगा है - और ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की तरफ से मिला सपोर्ट सबसे बड़ा सबूत है.

नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद अगर अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) और कांग्रेस की तरफ से भी ममता बनर्जी जैसा ही पॉजिटिव रिस्पॉन्स मिला होता तो 2024 में एकजुट विपक्ष का पूरा खाका नजर आने लगता - और केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के रणनीतिकारों की नींद अब तक हराम हो चुकी होती. तब 144 सीटों पर जीत सुनिश्चित करने के बजाय, मोदी-शाह और साथी अपने आदमियों को विपक्षी दलों की राज्य सरकारों को छोड़ कर विपक्षी एकजुटता के खिलाफ ऑपरेशन लोटस की तैयारी में झोंक चुके होते.

तीन दिन के तूफानी दौरे में विपक्ष के 10 दिग्गज नेताओं से ताबड़तोड़ मुलाकात के बाद पटना लौट चुके नीतीश कुमार जल्दी ही फिर दिल्ली आने की घोषणा भी कर चुके हैं - और तभी वो सोनिया गांधी से भी मुलाकात करेंगे.

दिल्ली दौरे में नीतीश कुमार न तो सोनिया गांधी से मिल पाये, न ही ममता बनर्जी से. सोनिया गांधी मेडिकल चेक अप के लिए विदेश गयी हुई हैं, जबकि ममता बनर्जी कोलकाता से ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सियासी मिसाइल छोड़ रही हैं. एक कार्यक्रम में एक नौकरशाह के पत्र का हवाला देते हुए समझा भी रही थीं, 'मैं उनकी नौकर नहीं हूं.'

दिल्ली में नीतीश कुमार को शरद पवार से लेकर शरद यादव तक, सभी नेताओं ने हाथोंहाथ लिया. जब तक कोई और मौका नहीं आता तब तक तो ऐसा ही मान कर चलना होगा. शरद पवार तो फिलहाल विपक्षी खेमे की सबसे मजबूत कड़ी बने हुए हैं ही, शरद यादव तो नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू के अध्यक्ष भी हुआ करते थे. मतभेद होने के बाद नीतीश कुमार ने शरद पवार को किनारे लगा दिया, जिसके बाद वो लालू यादव की पार्टी आरजेडी के टिकट पर चुनाव भी लड़े लेकिन हार गये. बाद में 2020 के विधानसभा चुनाव में उनकी बेटी भी कांग्रेस के टिकट पर नहीं जीत सकीं.

विपक्षी खेमे के तीन नेताओं राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल और शरद पवार से नीतीश कुमार के मिल लेने के बाद भी सोनिया गांधी से मिलना काफी महत्वपूर्ण है - क्योंकि यूपी को लेकर नीतीश कुमार ने राष्ट्रीय महागठबंधन का जो मॉडल पेश किया है, बगैर सोनिया गांधी की मंजूरी के अमल में नहीं आने वाला है. अस्पताल में मुलायम सिंह यादव से मिलने के बाद नीतीश कुमार ने मीडिया को बताया कि यूपी में अखिलेश यादव ही महागठबंधन के नेता होंगे. ये मॉडल ही विपक्षी एकता की राह का सबसे बड़ा रोड़ा रहा है, सोनिया गांधी के हामी भर देने के बाद साफ हो जाएगा कि कांग्रेस हर ड्राइविंग सीट पर जमे रहने की जिद छोड़ चुकी है.

बाकी बातें अपनी जगह हैं, लेकिन नीतीश कुमार का पहले टेस्ट 25 सितंबर को हरियाणा में ओम प्रकाश चौटाला की रैली में ही देखने को मिलेगा - देखना ये होगा कि ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल दोनों मंच पर नजर आते हैं या नहीं?

चौटाला की हरियाणा रैली

चौधरी देवीलाल की जयंती पर ओम प्रकाश चौटाला ने पिछले साल भी 25 सितंबर को रैली की जोर शोर से तैयारी की थी. विपक्ष के तमाम दिग्गजों के साथ साथ नीतीश कुमार को भी बुलाया था. उससे पहले नीतीश कुमार, ओम प्रकाश चौटाला के यहां जाकर लंच कर चुके थे. तब ये भी चर्चा रही कि ओमप्रकाश चौटाला, नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही पूरे विपक्ष को बीजेपी के खिलाफ एकजुट करने की कोशिश कर रहे हैं - और रैली में ही नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी घोषित कर सकते हैं.

नीतीश कुमार को ममता बनर्जी का साथ तो मिल गया, कहीं अरविंद केजरीवाल दिल्ली चुनाव का बदला तो नहीं लेंगे?

लेकिन तभी बिहार में बीजेपी नेताओं ने कुछ ऐसा खेल कर दिया कि नीतीश कुमार के लिए बिहार छोड़ना ही नहीं, बल्कि बीजेपी में बने रहने के लिए सीना तान कर खड़े होना मुश्किल लगने लगा - और जेडीयू नेता ने रैली से दूरी बना ली. ठीक साल भर बाद ओम प्रकाश चौटाला वैसी ही रैली कर रहे हैं. फर्क ये है कि अब नीतीश कुमार बीजेपी को छोड़ कर विपक्षी खेमे में शामिल हो चुके हैं.

ये रैली हरियाणा के फतेहाबाद में हो रही है - और अभी 7 सितंबर को ही अरविंद केजरीवाल ने पास में ही हिसार से 'मेक इंडिया नंबर 1' कैंपेन शुरू किया है. अब अगर अरविंद केजरीवाल फतेहाबाद में भी विपक्षी नेताओं के साथ मंच पर नजर आते हैं तो ये बड़ी बात होगी. अगर ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल दोनों ही साथ नजर आते हैं तो बहुत बड़ी बात समझी जा सकती है.

रैली में बुलाने के लिए ममता बनर्जी और नीतीश कुमार के अलावा शिरोमणि अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल, नेशनल कांफ्रेंस नेता फारूक अब्दुल्ला, मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, शरद पवार, के. चंद्रेशेखर राव जैसे नेताओं को भी न्योता भेजे जाने की जानकारी दी गयी है. जेडीयू नेता केसी त्यागी भी रैली की तैयारियों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते नजर आ रहे हैं.

सबसे ज्यादा हैरान करने वाला है मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक को रैली का न्योता भेजा जाना. जेडीयू नेता केसी त्यागी ने ये जानकारी तो दी है, लेकिन निमंत्रण स्वीकार कर लेने की कोई जानकारी नहीं है. सत्यपाल मलिक को एक अरसे से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ काफी सख्त बयान देते देखा जाता रहा है. किसान आंदोलन के दौरान भी वो काफी एक्टिव दिखे और जम्मू-कश्मीर को लेकर भी कुछ गंभीर आरोप लगा चुके हैं, जिसकी जांच भी करायी जा रही है. सत्यपाल मलिक के राज्यपाल रहते ही जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देने वाली धारा 370 को हटाया गया था और पूर्ण राज्य का दर्जा हटाकर केंद्र शासित क्षेत्र घोषित कर दिया गया था. फिलहाल जम्मू-कश्मीर के उप राज्यपाल मनोज सिन्हा हैं.

नीतीश कुमार को रैली ही दिखाएगी आगे की राह

ये नीतीश कुमार की राजनैतिक मजबूरी ही है कि वो बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी भी वो दांव पर लगा चुके हैं - और आगे बढ़ कर देश की मौजूदा राजनीति की सबसे ताकतवर जोड़ी मोदी-शाह से ललकारते हुए दो-दो हाथ करने लगे हैं.

ये सब भी नीतीश कुमार ऐसे वक्त कर रहे हैं जब बिहार के मुख्यमंत्री पद पर दो दो निगाहें लगी हुई हैं - एक तो बीजेपी ही है, दूसरी अब महागठबंधन में जेडीयू की सहयोगी पार्टी आरजेडी. माना जा रहा है कि बीजेपी से अपनी कुर्सी बचाने के लिए ही नीतीश कुमार ने आरजेडी से हाथ मिलाने का जोखिम उठाया है. नीतीश कुमार की मजबूरी ये है कि दोनों में से किसी एक के साथ रहना ही है.

समझा जाता है कि नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच एक म्युचुअल समझौता हुआ है जिसके तहत तेजस्वी यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने के लिए रास्ता तैयार किया जा रहा है. समझौते का दूसरा पहलू ये है कि लालू यादव राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के साथ मिल कर नीतीश कुमार को राष्ट्रीय राजनीति में फिर से खड़ा करने की कोशिश करेंगे.

अब तो नीतीश कुमार के हाल के बयानों से ये भी लगता है कि उनका मकसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बदला भर लेना रह गया है - क्योंकि प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से वो बार बार इनकार कर रहे हैं. असल में विपक्षी एकता का प्रयास करने वाले किसी भी नेता के लिए ऐसी घोषणा एक राजनीतिक मजबूरी भी है.

नीतीश कुमार कह भी रहे हैं कि वो कोई तीसरा या दूसरा मोर्चा नहीं बनाने जा रहे हैं, बल्कि वो पहला मोर्चा ही बनाने की कोशिश कर रहे हैं. राहुल गांधी से तो वो इस सिलसिले में मिल भी चुके हैं, लेकिन सोनिया गांधी से एक मीटिंग इसे लेकर बहुत जरूरी है.

दिल्ली में ही नीतीश कुमार का कहना रहा, 'जब सोनिया गांधी वापस आएंगी तो मैं उनसे मिलूंगा... हम पहला फ्रंट बनना चाहते हैं, थर्ड फ्रंट नहीं... मैं विपक्ष की एकता के लिए काम करता रहूंगा.' और जब भी नीतीश कुमार ऐसी बातें करते हैं, ये याद दिलाना नहीं भूलते कि वो खुद प्रधानमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं? लेकिन नीतीश कुमार जैसा नेता कितने आगे की सोच कर चल रहा है, अभी कहना मुश्किल होगा.

दिल्ली में विपक्षी नेताओं से हुई मुलाकात और बातचीत से नीतीश कुमार के चेहरे पर संतोष का भाव देखने के मिला, बोले भी... जरूरत पड़ी तो हम फिर मिलेंगे... सबका नजरिया सकारात्मक था.

नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने किन मुद्दों पर बात हुई ये तो शेयर किया लेकिन ये नहीं बताया कि आगे उनका क्या रुख रहेगा - वैसे अरविंद केजरीवाल ने बातचीत में जिन मुद्दों का जिक्र किया है, ऐसा लगता है ये वे सब ही हैं जिन्हें आगे कर वो हाल फिलहाल मोदी-शाह से जंग लड़ रहे हैं.

अरविंद केजरीवाल और नीतीश कुमार की मुलाकात के बाद आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज का बयान तो यही कहता है कि बातचीत सार्थक हुई है और आगे भी ये रिश्ता बना रह सकता है. सौरभ भारद्वाज ने कहा, 'हम चाहते हैं इंडिया अगेंस्ट बीजेपी होना चाहिए... पूरे भारत को बीजेपी के खिलाफ खड़ा होना चाहिये.' आपको याद होगा अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों ने राजनीति में आने से पहले जो मुहिम चलायी थी उसे नाम दिया था - इंडिया अगेंस्ट करप्शन.

इस बीच, न्यूज एजेंसी पीटीआई के हवाले से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का एक बयान आया है, "नीतीश कुमार, हेमंत सोरेन, मैं और अन्य नेता 2024 का लोक सभा चुनाव मिल कर लड़ेंगे."

ममता बनर्जी के मुंह से नीतीश कुमार के अलावा सिर्फ हेमंत सोरेन का नाम सुनना थोड़ा शक भी पैदा करता है. मान लेते हैं कि राहुल गांधी का नाम नहीं लेना चाह रही होंगी, लेकिन अरविंद केजरीवाल का नाम लेने में तो कोई बुराई नहीं लगती.

पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद जब पहली बार ममता बनर्जी दिल्ली आयी थीं तो अरविंद केजरीवाल खुद मिलने पहुंचे थे. ये ममता बनर्जी ही हैं जो विपक्षी खेमे में अरविंद केजरीवाल को लाने के लिए सोनिया गांधी के सामने लगातार पैरवी करती रही हैं - हालांकि, हेमंत सोरेन का नाम लेने की खास वजह वो खुद ही बता भी देती हैं.

झारखंड की राजनीतिक हलचल का जिक्र करते हुए बीजेपी को लेकर ममता बनर्जी कहती हैं, 'वे झारखंड को बेच रहे हैं. विधायकों को गिरफ्तार कर हमने झारखंड को बचाने का काम किया है.'

नीतीश कुमार और हेमंत सोरेन के साथ ममता बनर्जी एक और नाम जोड़ती हैं और कहती हैं, 'हम एकजुट होंगे. नीतीश, अखिलेश, हेमंत... हम सभी साथ हैं... राजनीति भी जंग का मैदान ही है... 34 साल से हम लड़ते ही आये हैं.'

दिल्ली में नीतीश कुमार और शरद पवार की भेंट भी इन मुलाकातों की अहम कड़ी रही. मुलाकात के बाद नीतीश कुमार का कहना रहा, 'पवार और मैं दोनों उन विपक्षी ताकतों को एकजुट करना चाहते हैं, जो भाजपा के साथ नहीं हैं... गठबंधन के नेता का फैसला बाद में किया जा सकता है... पहले एक साथ आना जरूरी है.'

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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