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ओवैसी के एमआईएम पर एक्‍शन जैसी मुहिम सिर्फ महाराष्‍ट्र तक सीमित क्‍यों?

    • पीयूष द्विवेदी
    • Updated: 14 जुलाई, 2016 04:40 PM
  • 14 जुलाई, 2016 04:40 PM
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ओवैसी तथा 191 अन्य दलों की मान्यता को रद्द करके चुनाव आयोग ने सन्देश दिया है कि बिना ठोस दस्तावेजों के कुकुरमुत्तों की तरह अनायास उग रहे छोटे दलों पर नकेल कसने की जरूरत है.

अक्सर अपने बडबोले बयानों के कारण विवादों और मुश्किलों में रहने वाले आल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएम्आईएम्) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी एकबार फिर परेशानी में पड़ गए हैं. हालांकि इस बार उनकी परेशानी का कारण उनका कोई बेतुका बयान नहीं, उनकी पार्टी एआईएमआईएम है. दरअसल महाराष्ट्र चुनाव आयोग ने ओवैसी साहब की पार्टी की मान्यता रद्द कर दी है. चुनाव आयोग का कहना है कि कई नोटिस दिए जाने के बावजूद ओवैसी की पार्टी ने जरूरी कागजात जमा नहीं करवाए, इस कारण इसकी मान्यता रद्द की गई है. जरूरी कागजातों में टैक्स रिटर्न्स या ऑडिट रिपोर्ट की एक प्रति जमा करवानी थी, जिससे उनकी पार्टी के आय-व्यय का हिसाब साफ़ हो सके. मगर, ओवैसी साहब ने चुनाव आयोग के नोटिसों को भी शायद वैसे ही हल्के में ले लिया जैसे अपने विवादित बयानों पर आने वाली विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रियाओं को लेते आए हैं. परिणाम तो भुगतना ही था, सो पार्टी की मान्यता रद्द हुई. यहाँ एक गंभीर सवाल ये उठता है कि आखिर क्यों ओवैसी टैक्स रिटर्न्स आदि जरूरी दस्तावेज जमा नहीं करवाए?

इस सवाल का असली जवाब तो ओवैसी ही देंगे, लेकिन अनुमानित तौर पर यह कहा जा सकता है कि या तो ओवैसी ने टैक्स रिटर्न वगैरह भरे ही नहीं होंगे अथवा उनके पास आने वाले धन का श्रोत वैध नहीं होगा, संभवतः इन्हीं कारणों से वे यह विवरण चुनाव आयोग के समक्ष देने से बच रहे हों. गौरतलब है कि महाराष्ट्र में ओवैसी की पार्टी के दो विधायक हैं साथ ही वो विगत वर्ष के निकाय चुनावों में भी हिस्सा ले चुकी है. लेकिन, अब महाराष्ट्र चुनाव आयोग द्वारा उनकी पार्टी की मान्यता रद्द किए जाने के बाद उनकी पार्टी इसबार के महाराष्ट्र निकाय चुनावों में हिस्सा नहीं ले सकेगी. हालांकि उनकी पार्टी के नेता अगर चाहें तो निर्दलीय चुनाव में जरूर उतर सकते हैं, लेकिन एआईएमआईएम के झंडे तले चुनाव लड़ना अब उनके लिए मुमकिन नहीं होगा.

अक्सर अपने बडबोले बयानों के कारण विवादों और मुश्किलों में रहने वाले आल इण्डिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएम्आईएम्) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी एकबार फिर परेशानी में पड़ गए हैं. हालांकि इस बार उनकी परेशानी का कारण उनका कोई बेतुका बयान नहीं, उनकी पार्टी एआईएमआईएम है. दरअसल महाराष्ट्र चुनाव आयोग ने ओवैसी साहब की पार्टी की मान्यता रद्द कर दी है. चुनाव आयोग का कहना है कि कई नोटिस दिए जाने के बावजूद ओवैसी की पार्टी ने जरूरी कागजात जमा नहीं करवाए, इस कारण इसकी मान्यता रद्द की गई है. जरूरी कागजातों में टैक्स रिटर्न्स या ऑडिट रिपोर्ट की एक प्रति जमा करवानी थी, जिससे उनकी पार्टी के आय-व्यय का हिसाब साफ़ हो सके. मगर, ओवैसी साहब ने चुनाव आयोग के नोटिसों को भी शायद वैसे ही हल्के में ले लिया जैसे अपने विवादित बयानों पर आने वाली विपक्षी नेताओं की प्रतिक्रियाओं को लेते आए हैं. परिणाम तो भुगतना ही था, सो पार्टी की मान्यता रद्द हुई. यहाँ एक गंभीर सवाल ये उठता है कि आखिर क्यों ओवैसी टैक्स रिटर्न्स आदि जरूरी दस्तावेज जमा नहीं करवाए?

इस सवाल का असली जवाब तो ओवैसी ही देंगे, लेकिन अनुमानित तौर पर यह कहा जा सकता है कि या तो ओवैसी ने टैक्स रिटर्न वगैरह भरे ही नहीं होंगे अथवा उनके पास आने वाले धन का श्रोत वैध नहीं होगा, संभवतः इन्हीं कारणों से वे यह विवरण चुनाव आयोग के समक्ष देने से बच रहे हों. गौरतलब है कि महाराष्ट्र में ओवैसी की पार्टी के दो विधायक हैं साथ ही वो विगत वर्ष के निकाय चुनावों में भी हिस्सा ले चुकी है. लेकिन, अब महाराष्ट्र चुनाव आयोग द्वारा उनकी पार्टी की मान्यता रद्द किए जाने के बाद उनकी पार्टी इसबार के महाराष्ट्र निकाय चुनावों में हिस्सा नहीं ले सकेगी. हालांकि उनकी पार्टी के नेता अगर चाहें तो निर्दलीय चुनाव में जरूर उतर सकते हैं, लेकिन एआईएमआईएम के झंडे तले चुनाव लड़ना अब उनके लिए मुमकिन नहीं होगा.

असदुद्दीन ओवैसी

वैसे, चुनाव आयोग ने सिर्फ ओवैसी की पार्टी की ही मान्यता रद्द नहीं की है, बल्कि उन्हीं की तरह तमाम अनियमितताओं के कारण 191 और पार्टियों की मान्यता भी रद्द कर दी है. लेकिन विद्रूप यह है कि मीडिया जगत में चर्चा सिर्फ यही है कि ओवैसी की पार्टी की मान्यता रद्द की गई है, बाकी 191 पार्टियों के विषय में तो कोई बात ही नहीं हो रही. इस बात का कारण यह है कि ओवैसी हर तरह से मीडिया, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए ‘टीआरपी बूस्टर’ की तरह रहे हैं. उनके विवादस्पद बयानों को मसालेदार बनाकर न्यूज चैनलों द्वारा अक्सर टीआरपी बटोरी जाती रहती है. अतः इस मामले में भी मीडिया टीआरपी की आस में ओवैसी पर केन्द्रित रह रही है. कहीं न कहीं उसे उम्मीद होगी कि ओवैसी इसमें भी कुछ विवादस्पद बोल दें ताकि उनकी टीआरपी का जुगाड़ हो जाय. इस चक्कर में इस मामले में निहित मूल सन्देश जो महाराष्ट्र चुनाव आयोग द्वारा इस कार्रवाई के जरिये दिया गया है, चर्चा पटल पर दूर-दूर तक कहीं नज़र नहीं आता. दरअसल अनियमितताओं के कारण ओवैसी तथा 191 अन्य दलों की मान्यता को रद्द करके महाराष्ट्र चुनाव आयोग ने कहीं न कहीं यह सन्देश देने की भी कोशिश की है कि बिना ठोस दस्तावेजों और प्रमाणों के कुकुरमुत्तों की तरह अनायास उग जा रहे इन छोटे-छोटे दलों पर नकेल कसने की जरूरत है. दरअसल जबसे इस देश की राजनीति में गठबंधन संस्कृति का सूत्रपात हुआ, तभी से ऐसे छोटे-छोटे राजनीतिक दलों की बाढ़ सी आने लगी. जहाँ देखो वहां एक नया राजनीतिक दल अपना झंडा लिए मिल जाएगा. आम राजनीतिक भाषा में ऐसी छोटी-छोटी और जनाधार विहीन अथवा बेहद सीमित जनाधार वाली पार्टियों को ‘वोट कटुआ’ कहा जाता है, जो कि इनकी वास्तविकता भी है. ये अक्सर बड़े दलों के राजनीतिक शतरंज की मोहरों की तरह होती हैं, जिन्हें सुविधा और आवश्यकतानुसार उन दलों द्वारा जहां-तहां चुनाव में उतार दिया जाता है और ये जाति-धर्म आदि के नाम पर कुछ वोट इधर-उधर कर देती हैं. ओवैसी की पार्टी खुद यही करती आई है. अबकी बिहार चुनाव में मुस्लिम बहुल इलाकों में उनका लड़ना इसी का एक उदाहरण है. इस तरह की राजनीतिक पार्टियां और कुछ नहीं सिर्फ लोकतांत्रिक निर्वाचन प्रणाली में अप्रत्यक्ष रूप से अवरोध पैदा करती हैं, इससे अधिक इनका और कोई कार्य नहीं है. न तो इनके दस्तावेज दुरुस्त होते हैं और न ही अन्य किसी प्रकार से ही ये एक राजनीतिक पार्टी कहलाने की अहर्ता रखती हैं, लेकिन बावजूद इसके अपने बड़े राजनीतिक आकाओं के प्रभावस्वरूप इनकी गाडी चलती रहती है.

बहरहाल, अभी महाराष्ट्र चुनाव आयोग ने ऐसी कुकुरमुत्ता पार्टियों की मान्यता रद्द करके एक बहुत अच्छा निर्णय लिया है. उचित होगा कि महाराष्ट्र चुनाव आयोग के इस निर्णय को केंद्रीय स्तर पर भी चुनाव आयोग द्वारा अपनाया जाय तथा ऐसी सभी पार्टियों के दस्तावेजों की छानबीन की जाय. इसमें जो भी अयोग्य मिलें, तुरंत उनकी मान्यता रद्द की जाय. अगर ऐसा किया जाता है तो न केवल भारतीय राजनीति में शुचिता की दृष्टि से ये अच्छा कदम होगा, बल्कि लोकतांत्रिक निर्वाचन प्रणाली के लिए भी इसका प्रभाव अत्यंत लाभकारी हो सकता है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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