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एक हिन्दू को पाक में मारते कठमुल्ला !

    • आर.के.सिन्हा
    • Updated: 17 मई, 2017 02:31 PM
  • 17 मई, 2017 02:31 PM
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एक पाकिस्तानी हिन्दू पर ईशनिंदा का आरोप है. उसकी जान के प्यासे पुलिस से मांग कर रहे हैं कि उस हिन्दू को उन्हें सौंप दिया जाए ताकि वे उसे अपनी तरह की सजा दे सकें. सजा यानी उसको सड़कों पर दौड़ा-दौड़ा कर बर्बरतापूर्वक मार डालें.

पाकिस्तान के बलूचिस्तान सूबे में एक हिन्दू को मारने के लिए पाकिस्तान में नापाक जोर-आजमाइश हो रही है. थाने जलाए जा रहे हैं, पुलिस से मारपीट की जा रही है. उस बेचारे हिन्दू, जिसका नाम पुलिस ने अभी तक जाहिर नहीं किया है, उसपर ईशनिंदा का आरोप है. उसकी जान के प्यासे वे ही हैं जो उसके आसपास रहते हैं. वे पुलिस से मांग कर रहे हैं कि उस हिन्दू को उन्हें सौंप दिया जाए ताकि वे उसे अपनी तरह की सजा दे सकें. सजा यानी उसको सड़कों पर दौड़ा-दौड़ा कर बर्बरतापूर्वक मार डालें. अब जरा देख लीजिए कि उसे मारने के लिए लोग पागल हो रहे हैं और समूचे पाकिस्तान में इस वहशी मानसिकता के खिलाफ सरकार से लेकर मानवाधिकार संगठन सब खामोश बैठे हैं. हथियारों से लैस लोग उस अभागे शख्स को मारना चाहते हैं और क्षेत्र के बाकी हिन्दुओं के व्यवसाय को बंद करवा रहे हैं. बलूचिस्तान में हिंदू बड़ी संख्या में रहते हैं. यहां हिंदुओं का पवित्र स्थान हंगलाज भी है.

मारे जाते हिन्दू-सिख

कायदे से देखा जाए तो पाकिस्तान के हिन्दुओं और सिखों की तो दुर्दशा पर चर्चा करने का भी कोई मतलब ही नहीं है. पाकिस्तान में हिन्दुओं और सिखों की आबादी एक करोड़ के आसपास थी 1947 में. इसमें पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) शामिल नहीं था. लेकिन, अब पाकिस्तान में मात्र 12 लाख हिन्दू और 10 हजार सिख रह गए हैं. हिन्दुओं और सिखों की इतनी बड़ी संख्या जो लगभग 88 लाख के करीब बनती है, आखिरकार, गई कहां? क्या हुआ इनका? इसका कोई जबाब किसी के पास नहीं हैं. पाकिस्तान में हिन्दू और सिख समुदाय के लोगों की स्थिति बेहद दयनीय है. वे हमेशा डर और आतंक के साये में जीते हैं.

पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रान्त में हिन्दू लड़कियों के साथ जबरन शादी के मामले बार-बार सामने आते रहे हैं. और तो और पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने भी माना कि देश में...

पाकिस्तान के बलूचिस्तान सूबे में एक हिन्दू को मारने के लिए पाकिस्तान में नापाक जोर-आजमाइश हो रही है. थाने जलाए जा रहे हैं, पुलिस से मारपीट की जा रही है. उस बेचारे हिन्दू, जिसका नाम पुलिस ने अभी तक जाहिर नहीं किया है, उसपर ईशनिंदा का आरोप है. उसकी जान के प्यासे वे ही हैं जो उसके आसपास रहते हैं. वे पुलिस से मांग कर रहे हैं कि उस हिन्दू को उन्हें सौंप दिया जाए ताकि वे उसे अपनी तरह की सजा दे सकें. सजा यानी उसको सड़कों पर दौड़ा-दौड़ा कर बर्बरतापूर्वक मार डालें. अब जरा देख लीजिए कि उसे मारने के लिए लोग पागल हो रहे हैं और समूचे पाकिस्तान में इस वहशी मानसिकता के खिलाफ सरकार से लेकर मानवाधिकार संगठन सब खामोश बैठे हैं. हथियारों से लैस लोग उस अभागे शख्स को मारना चाहते हैं और क्षेत्र के बाकी हिन्दुओं के व्यवसाय को बंद करवा रहे हैं. बलूचिस्तान में हिंदू बड़ी संख्या में रहते हैं. यहां हिंदुओं का पवित्र स्थान हंगलाज भी है.

मारे जाते हिन्दू-सिख

कायदे से देखा जाए तो पाकिस्तान के हिन्दुओं और सिखों की तो दुर्दशा पर चर्चा करने का भी कोई मतलब ही नहीं है. पाकिस्तान में हिन्दुओं और सिखों की आबादी एक करोड़ के आसपास थी 1947 में. इसमें पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) शामिल नहीं था. लेकिन, अब पाकिस्तान में मात्र 12 लाख हिन्दू और 10 हजार सिख रह गए हैं. हिन्दुओं और सिखों की इतनी बड़ी संख्या जो लगभग 88 लाख के करीब बनती है, आखिरकार, गई कहां? क्या हुआ इनका? इसका कोई जबाब किसी के पास नहीं हैं. पाकिस्तान में हिन्दू और सिख समुदाय के लोगों की स्थिति बेहद दयनीय है. वे हमेशा डर और आतंक के साये में जीते हैं.

पाकिस्तान के सिंध और पंजाब प्रान्त में हिन्दू लड़कियों के साथ जबरन शादी के मामले बार-बार सामने आते रहे हैं. और तो और पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग ने भी माना कि देश में नाबालिग हिन्दू लड़कियों का जबर्दस्ती धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा है जिससे अल्पसंख्यक समुदाय बहुत चिंतित है. बहुत से मामलों में हिन्दू लड़कियों का अपहरण कर पहले उनके साथ रेप किया जाता है और बाद में उन्हें धर्म गर्भवती बनाकर परिवर्तन पर मजबूर किया जाता है. सिंध प्रान्त विशेषकर देश की व्यापारिक राजधानी कराची में जबर्दस्ती परिवर्तन की घटनाएं लगातार हो रही हैं. बलूचिस्तान में जिस तरह से लोग ईशनिंदा का आरोप लगाकार एक हिन्दू के खून के प्यासे हो रहे हैं लोग, उससे साफ है कि पाकिस्तान में जंगल राज कायम है.

पाकिस्तान के सिख भी आजकल अपने को ठगा महसूस कर रहे हैं. उन्हें लग रहा कि पाकिस्तान ने उन्हें दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया है. उनकी नाराजगी की वजह यह है कि देश में चालू जनगणना के रजिस्टर में सिखों के लिए अलग से कॉलम नहीं बनाया गया. पेशावर में सिखों ने इस मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन भी किया है. उनकी नाराजगी की एक वजह यह भी है कि उन्हें कोई सुन नहीं रहा. पाकिस्तान के अलग-अलग हिस्सों में अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लोग भी नजरअंदाज किए जाने की शिकायत कर रहे हैं. सिखों का कहना है कि सरकार उन्हें एक तरह से देश का नागरिक नहीं मानती. यह न सिर्फ दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि सिखों के लिए चिंता का विषय है. पाकिस्तान में काफी सिख रह रहे हैं, लेकिन इस समुदाय को जनगणना फॉर्म की रिलीजियस कैटेगरी में शामिल न करके सिखों की गिनती ‘अदर रिलीजन कैटेगरी’ में की जाएगी, जो कि सिख जनसंख्या की वास्तविक तस्वीर प्रस्तुत नहीं करेगी.

दुर्दशा ईसाईयों की भी

अब तो पाकिस्तान में ईसाइयों को भी गाजर-मूली की तरह से काटा जा रहा है. पहले वे काफी हद तक बचे हुए थे. पिछले साल मार्च में लाहौर के एक पार्क में  दर्जनों ईसाई मारे गए थे. इस तरह के हमले पाकिस्तान के कुछ और शहरों में भी हुए. सुन्नी मुस्लिम बहुसंख्यक देश पाकिस्तान में, हिंदुओं के बाद ईसाई दूसरा सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समूह है. पाकिस्तान में लगभग 18 करोड़ की आबादी में 1.6 प्रतिशत ईसाई हैं.

इधर बीते कुछेक सालों में पाकिस्तान के अन्दर ईसाइयों को निशाना बनाकर कई बड़े हमले किए गए हैं. मार्च 2015 में लाहौर के चर्चों में दो बम धमाके हुए थे, जिनमें 14 लोग मारे गए थे. 2013 में पेशावर के चर्च में हुए धमाकों में 80 लोग मारे गए थे. 2009 में पंजाब में एक उग्र भीड़ ने 40 घरों को आग लगा दी थी. इसमें आठ ईसाई मारे गए थे. 2005 में क़ुरान जलाने की अफवाह के बाद पाकिस्तान के फैसलाबाद से ईसाइयों को अपने घर छोड़कर भागना पड़ा था. हिंसक भीड़ ने चर्चों और ईसाई स्कूलों को आग लगा दी थी. 1990 के बाद से कई ईसाइयों को क़ुरान का अपमान करने और पैगंबर की निंदा करने के आरोपों में दोषी ठहराया जा चुका है. अब वे भी निशाने पर हैं. इस तरह  पाकिस्तान में मानवाधिकारवादियों और शिया मुसलमानों से लेकर बाकी धार्मिक समूहों के लिए जीना मुहाल हो चुका है. जाहिर है भारत के लिए ये कोई सुखद हालात नहीं हैं. हमारा पड़ोसी आग में जल रहा है.

कुछ समय पहले बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के विद्यार्थियों के बीच व्याख्यान के दौरान एक छात्र ने प्रसिद्ध पाकिस्तान में जन्मे  (अब  कनाडा के नागरिक) तारिक फतह से सवाल किया, कि ‘पाकिस्तान और दक्षिण एशिया में शांति का माहौल कैसे कायम होगा?’ तारिक फ़तेह साहब का दो-टूक जबाब था, ‘शांति स्थापित करने का एकमात्र उपाय है कि वर्तमान पाकिस्तान के सिंध, पंजाब और बलूचिस्तान  तीन स्वतंत्र राष्टों में बांट दिया जाये और उर्दू की जगह सिन्धी, पंजाबी और बलूची  को इन स्वतंत्र राष्ट्रों का राष्ट्रभाषा घोषित कर दी जाय. तभी इस क्षेत्र में शांति स्थापित हो पायेगी और कश्मीर समस्या का भी स्थायी निदान हो जायेगा.

शिया-अहमदी भी शिकार

पाकिस्तान में शिया मुसलमान भी लगातार बेरहमी से मारे जा रहे हैं. इसी तरह से वहां पर अहमदिया मुसलमानों को मुसलमान ही नहीं माना जाता है. शिया वहां की आबादी का 10 से 15 फीसदी है. विभाजन के समय लगभग 25 फीसद थे. समूचे पाकिस्तान में शिया मुसलमानों और इनकी मस्जिदों पर हमले होते हैं. उनके भी मानवाधिकारों को कोई देखने-सुनने वाला नहीं है. ये हालत मुसलमानों के ही एक वर्ग के हैं, वह भी एक कथित इस्लामिक देश में. वहां पर सुन्नी मुसलमानों के अलावा बाकी किसी का रहना अब मुश्किल होता जा रहा है. अब अहमदिया लोगों का हाल सुन लीजिए. द अकेडमी अवॉर्ड्स 2017 में महेरशेला अली ऑस्कर पाने वाले पहले मुस्लिम अभिनेता बन गए. महेरशेला को फ़िल्म 'मूनलाइट' के लिए सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता का अवॉर्ड मिला. महेरशेला को पूरी दुनिया से बधाई दी गई. संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की राजदूत मलीहा लोधी भी महेरशेला को बधाई देने वालों में शामिल रहीं. लेकिन मलीहा ने अपना बधाई वाला ट्वीट जल्द ही डिलीट कर दिया. दरअसल, महेरशेला अहमदिया मुसलमान हैं. पाकिस्तान में अहमदिया को आधिकारिक तौर पर मुस्लिम नहीं माना जाता है. ऐसे में मलीहा के ट्वीट डिलीट करने की सोशल मीडिया पर भी चर्चा हुई.

दरअसल पाकिस्तान का मतलब है वहां की घोर कठमुल्ला पंजाबी सेना. ये सिर्फ सुन्नियों को ही पाकिस्तानी मानती है. स्वीटजरलैंड में बस गए पाकिस्तान मूल के इतिहासकार डा. इशितहाक अहमद कहते हैं कि पाकिस्तान सेना पर पंजाबियों का कब्जा है. जब तक यह खत्म नहीं होगा तब  पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के हालात सुधरने वाले नहीं है. वहां पर इस्लामिक कट्टरपन पूरी तरह से हावी हो चुका है. वहां पर पिछले महीने ही ईशनिंदा के आरोप में अब्दुल वली खान विश्वविद्यालय के छात्र की हत्या का मामला सामने आया. छात्र पर हमला करने वाली भीड़ में शामिल छात्र भी विश्वविद्यालय के ही थे. जान गंवाने वाला छात्र सिर्फ 23 साल का था और उसका नाम मशाल खान है. पत्रकारिता के छात्र मशाल खान (23) को ईशनिंदा से संबंधित सामग्री सोशल मीडिया में पोस्ट करने के आरोप में मार डाला. मशाल को सेकंड फ्लोर पर स्थित हॉस्टल के उसके कमरे से खींचकर निकाला गया. इसके बाद उसे निर्वस्त्र कर पिटाई करने के बाद गोली मारी गई फिर नीचे फेंक दिया. इसके बावजूद जब तक उसकी मौत नहीं हुई भीड़ उसे पीटती रही.

कहने की जरूरत नहीं कि अगर बलूचिस्तान में ईशनिंदा के आरोप झेल रहे हिन्दू को लोगों को प्रदर्शनकारियों को सौंप दिया गया तो उसे भी मशाल खान की तरह से मार डाला जाएगा.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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