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क्या परेशान बीजेपी अम्बेडकर की विरासत पर दावा करने को मजबूर है?

    • प्रवीण शेखर
    • Updated: 22 जनवरी, 2019 12:33 PM
  • 22 जनवरी, 2019 12:33 PM
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बीजेपी का दावा है कि उसने अंबेडकर जैसी शख्सियत को राजनीतिक प्रवचन में वापस ला दिया है जिसे कांग्रेस ने अनदेखा कर दिया था. आरएसएस ने भी पिछले कुछ वर्षों से इस दलित शख्सियत पर विशेष ध्यान दिया है और इन्हें बड़े हिंदू नेताओं की कतार में शामिल कर लिया है.

बीजेपी चुनावी मोड में है, शायद विपक्षी दलों से भी ज्यादा. यह अहसास होते हुए कि दलित मतदाता उनके हाथ से फिसलते नजर आ रहे हैं, बीजेपी ने नागपुर में दो दिवसीय अनुसूचित जाति मोर्चा शुरू किया है. इस बैठक में लगभग 5,000 भाजपा और आरएसएस कार्यकर्ताओं ने भाग लिया. जिसका मुख्य उद्देश्य था मोदी सरकार द्वारा समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी देना और लोगों के बीच सन्देश पहुंचाना. लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बीआर अंबेडकर की विरासत की लड़ाई है. जिसके लिए भाजपा अपने लम्बे कार्यकाल के दौरान जोर शोर से लगी हुई है. बीजेपी का दावा है कि उसने अंबेडकर जैसी शख्सियत को राजनीतिक प्रवचन में वापस ला दिया है, जिसपर भगवा पार्टी आरोप लगाती है कि पहले इसे कांग्रेस ने अनदेखा कर दिया था. आरएसएस ने भी पिछले कुछ वर्षों से इस दलित शख्सियत पर विशेष ध्यान दिया है और इन्हें बड़े हिंदू नेताओं की कतार में शामिल कर लिया है.

बीजेपी के लिए यह बहुत बड़ी चिंता का विषय है. हाल ही में बहराइच की दलित सांसद सावित्री बाई फुले ने पार्टी के दलित विरोधी नीतियों को लेकर पिछले साल दिसंबर में पार्टी छोड़ दी थी. उसी दिन बिहार में पिछड़ी जाति के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने लोकसभा में अधिक सीटों की मांग को ठुकरा देने के कारण एनडीए गठबंधन छोड़ दिया. इस मुद्दे पर पार्टी में असंतोष को लेकर बीजेपी पूरी तरह से अवगत है.

नागपुर में दो दिवसीय 'भीम विजय संकल्प सभा' का आयोजन हुआ जिसमें करीब 5000 भाजपा और आरएसएस कार्यकर्ताओं ने भाग लिया

2014 में बीजेपी के 282 लोकसभा सांसदों में से कुल 44 सांसद आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से थे. इनमें से कुछ दलित सांसद, उच्च जातियों के लिए आरक्षण सहित विभिन्न मुद्दों पर पार्टी के रुख के बारे में मुखर रहे हैं. पार्टी के आंतरिक...

बीजेपी चुनावी मोड में है, शायद विपक्षी दलों से भी ज्यादा. यह अहसास होते हुए कि दलित मतदाता उनके हाथ से फिसलते नजर आ रहे हैं, बीजेपी ने नागपुर में दो दिवसीय अनुसूचित जाति मोर्चा शुरू किया है. इस बैठक में लगभग 5,000 भाजपा और आरएसएस कार्यकर्ताओं ने भाग लिया. जिसका मुख्य उद्देश्य था मोदी सरकार द्वारा समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान के लिए उठाए गए कदमों के बारे में जानकारी देना और लोगों के बीच सन्देश पहुंचाना. लेकिन इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बीआर अंबेडकर की विरासत की लड़ाई है. जिसके लिए भाजपा अपने लम्बे कार्यकाल के दौरान जोर शोर से लगी हुई है. बीजेपी का दावा है कि उसने अंबेडकर जैसी शख्सियत को राजनीतिक प्रवचन में वापस ला दिया है, जिसपर भगवा पार्टी आरोप लगाती है कि पहले इसे कांग्रेस ने अनदेखा कर दिया था. आरएसएस ने भी पिछले कुछ वर्षों से इस दलित शख्सियत पर विशेष ध्यान दिया है और इन्हें बड़े हिंदू नेताओं की कतार में शामिल कर लिया है.

बीजेपी के लिए यह बहुत बड़ी चिंता का विषय है. हाल ही में बहराइच की दलित सांसद सावित्री बाई फुले ने पार्टी के दलित विरोधी नीतियों को लेकर पिछले साल दिसंबर में पार्टी छोड़ दी थी. उसी दिन बिहार में पिछड़ी जाति के नेता उपेंद्र कुशवाहा ने लोकसभा में अधिक सीटों की मांग को ठुकरा देने के कारण एनडीए गठबंधन छोड़ दिया. इस मुद्दे पर पार्टी में असंतोष को लेकर बीजेपी पूरी तरह से अवगत है.

नागपुर में दो दिवसीय 'भीम विजय संकल्प सभा' का आयोजन हुआ जिसमें करीब 5000 भाजपा और आरएसएस कार्यकर्ताओं ने भाग लिया

2014 में बीजेपी के 282 लोकसभा सांसदों में से कुल 44 सांसद आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र से थे. इनमें से कुछ दलित सांसद, उच्च जातियों के लिए आरक्षण सहित विभिन्न मुद्दों पर पार्टी के रुख के बारे में मुखर रहे हैं. पार्टी के आंतरिक मंचों पर, उन्होंने एससी/एसटी अत्याचार अधिनियम के कथित कमजोर पड़ने और दलितों के खिलाफ बढ़ते पुलिस हिंसा का विरोध किया है. उनका दवा है कि पार्टी ने इन मुद्दों को अच्छी तरह से नहीं संभाला है. उम्मीद है, इस दो दिवसीय बैठक से दलितों की आहत भावनाओं पर पार्टी महरम लगा पायेगी.

बीजेपी की दलितों से नज़दीकियां बनाने की कोशिशें

अप्रैल 24, 2018: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रतापगढ़ जिले के कंधईपुर मधुपुर गांव की यात्रा के दौरान एक दलित परिवार के घर रात का खाना खाते हैं.

अप्रैल 14, 2018: केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पटना के एक पांच सितारा होटल में दलित समुदाय के कुछ सदस्यों के साथ दोपहर का भोजन किया.

अप्रैल 12, 2018: समाज सुधारक ज्योतिबा फुले की जयंती के अवसर पर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोर देकर कहा कि प्रत्येक सांसद को दलित गांवों में कम से कम दो रातें बितानी चाहिए.

अप्रैल 5, 2018: भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने ओडिशा में दलित के घर भोजन किया और गौरतलब है कि भाजपा ने इस भोजन के लिए विस्तृत व्यवस्था की थी.

जून 11, 2017: वरिष्ठ भाजपा नेता बी.एस. येदियुरप्पा ने मैसूरु में पार्टी के एक दलित नेता के घर नाश्ता किया.

मोदी सरकार के कार्यकाल में कुछ दलित विरोध

जनवरी 2018: भीमा-कोरेगांव दलित विरोध

मई, 2017: सहारनपुर दलित विरोध

जुलाई 2016: गुजरात (ऊना) दलित विरोध

जनवरी 2016: रोहित वेमुला आत्महत्या पर दलित विरोध

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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