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महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना का हाफ-गठबंधन फिलहाल बाकी है!

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 13 नवम्बर, 2019 08:00 PM
  • 13 नवम्बर, 2019 08:00 PM
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शिवसेना (Shiv Sena) ने मोदी कैबिनेट से अपने मंत्री का इस्तीफा दिला कर सिर्फ ताना मारा है. मियां-बीवी की तरह बीजेपी से झगड़ रही शिवसेना का दिल अब भी गठबंधन पार्टनर के लिए पहले वाली स्पीड से ही धड़कता है - वो तो बस चाहती है कि बीजेपी भी सुन ले.

महाराष्‍ट्र सरकार के गठन (Maharashtra govt formation) को लेकर शिवसेना (Shiv Sena) और एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन (NCP-Congress alliance) के बीच माथापच्ची जारी है. खासतौर से कॉमन मिनिमम प्रोग्राम (common minimum program) को लेकर. शिवसेना-बीजेपी गठबंधन (Shiv Sena-BJP alliance) भले टूट गया है, लेकिन क्‍या उसकी गहराई भी खत्‍म हो गई है? शिवसेना नेता अरविंद गणपत सावंत का मोदी कैबिनेट में मंत्री पद से इस्तीफा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूर कर लिया है. शिवसेना सांसद अरविंद सावंत सहयोगी दलों के कोटे से अकेले मंत्री के तौर पर शामिल हुए थे. सावंत ने इस्तीफे की वजह भी बतायी - बीजेपी की तरफ से 50-50 को लेकर किया गया वादा तोड़ना. सावंत ने उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) वाली लाइन दोहराते हुए कहा - शिवसेना हमेशा सच्चाई के पक्ष में रही है. ऐसे में इतने झूठे माहौल में दिल्ली सरकार में क्यों रहें?

क्या शिवसेना ने रिश्ता पूरी तरह नहीं तोड़ा है?

शिवसेना के सच्चाई के साथ टिके रहने के इसी अंदाज दुहाई उद्धव ठाकरे भी देते हैं - और प्रेस कांफ्रेंस में पार्टी के रूख को सही साबित करते हुए कहा भी, 'बीजेपी ने शिवसेना से रिश्ता तोड़ा है, शिवसेना ने नहीं.'

सब कुछ साफ साफ नजर आ रहा है, फिर भी उद्धव ठाकरे ऐसा दावा क्यों कर रहे हैं?

उद्धव ठाकरे धीरे धीरे स्थिति की गंभीरता समझने लगे हैं. जिस तरीके से वो बीजेपी से अब तक सौदेबाजी कर रहे थे, NCP और कांग्रेस उससे भी बुरे तरीके से पेश आ रहे हैं. एनसीपी नेता शरद पवार ने शिवसेना को बुरी तरह फंसा लिया है. मोदी कैबिनेट से शिवसेना के मंत्री का इस्तीफा भी शरद पवार की शर्तों के मुताबिक ही है. शरद पवार ने शिवसेना को बीजेपी से पूरी तरह तलाक लेने के बाद ही सरकार और समर्थन के मामले में बातचीत को आगे बढ़ाने की शर्त रखी थी. मजबूरन, शिवसेना को वैसा ही करना भी पड़ा.

शरद पवार की अगुवाई में शिवसेना से कांग्रेस भी ऐसे सौदेबाजी कर रही है कि उद्धव ठाकरे को बीच बीच में लग रहा होगा कि इनसे अच्छी तो...

महाराष्‍ट्र सरकार के गठन (Maharashtra govt formation) को लेकर शिवसेना (Shiv Sena) और एनसीपी-कांग्रेस गठबंधन (NCP-Congress alliance) के बीच माथापच्ची जारी है. खासतौर से कॉमन मिनिमम प्रोग्राम (common minimum program) को लेकर. शिवसेना-बीजेपी गठबंधन (Shiv Sena-BJP alliance) भले टूट गया है, लेकिन क्‍या उसकी गहराई भी खत्‍म हो गई है? शिवसेना नेता अरविंद गणपत सावंत का मोदी कैबिनेट में मंत्री पद से इस्तीफा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूर कर लिया है. शिवसेना सांसद अरविंद सावंत सहयोगी दलों के कोटे से अकेले मंत्री के तौर पर शामिल हुए थे. सावंत ने इस्तीफे की वजह भी बतायी - बीजेपी की तरफ से 50-50 को लेकर किया गया वादा तोड़ना. सावंत ने उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) वाली लाइन दोहराते हुए कहा - शिवसेना हमेशा सच्चाई के पक्ष में रही है. ऐसे में इतने झूठे माहौल में दिल्ली सरकार में क्यों रहें?

क्या शिवसेना ने रिश्ता पूरी तरह नहीं तोड़ा है?

शिवसेना के सच्चाई के साथ टिके रहने के इसी अंदाज दुहाई उद्धव ठाकरे भी देते हैं - और प्रेस कांफ्रेंस में पार्टी के रूख को सही साबित करते हुए कहा भी, 'बीजेपी ने शिवसेना से रिश्ता तोड़ा है, शिवसेना ने नहीं.'

सब कुछ साफ साफ नजर आ रहा है, फिर भी उद्धव ठाकरे ऐसा दावा क्यों कर रहे हैं?

उद्धव ठाकरे धीरे धीरे स्थिति की गंभीरता समझने लगे हैं. जिस तरीके से वो बीजेपी से अब तक सौदेबाजी कर रहे थे, NCP और कांग्रेस उससे भी बुरे तरीके से पेश आ रहे हैं. एनसीपी नेता शरद पवार ने शिवसेना को बुरी तरह फंसा लिया है. मोदी कैबिनेट से शिवसेना के मंत्री का इस्तीफा भी शरद पवार की शर्तों के मुताबिक ही है. शरद पवार ने शिवसेना को बीजेपी से पूरी तरह तलाक लेने के बाद ही सरकार और समर्थन के मामले में बातचीत को आगे बढ़ाने की शर्त रखी थी. मजबूरन, शिवसेना को वैसा ही करना भी पड़ा.

शरद पवार की अगुवाई में शिवसेना से कांग्रेस भी ऐसे सौदेबाजी कर रही है कि उद्धव ठाकरे को बीच बीच में लग रहा होगा कि इनसे अच्छी तो अपनी बीजेपी ही रही. बीजेपी से रिश्ते को लेकर उद्धव ठाकरे के बयान को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा भी जा रहा है.

शिवसेना के लिए बीजेपी का साथ छोड़ना इतना मुश्किल क्यों है?

देखा जाये तो उद्धव ठाकरे एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन में नैसर्गिक रूप से मिसफिट हैं. दोनों ही दो ध्रुवों की राजनीति करते हैं. उद्धव ठाकरे के पास अपनी बात समझाने के लिए उदाहरण भी कम पड़ रहे हैं. ले दे कर वो बीजेपी और पीडीपी की सरकार की बात कर रहे हैं. बीजेपी-पीडीपी की गठबंधन सरकार को एक अच्छा एक्सपेरिमेंट तो कहा जा सकता है, लेकिन एक सफल गठबंधन तो नहीं कहा जा सकता है. अगर उद्धव ठाकरे एनसीपी और कांग्रेस के साथ गठबंधन में वैसा ही प्रयोग देख रहे हैं तो कहने की जरूरत नहीं महाराष्ट्र में ये प्रयोग कितना टिकाऊ होने वाला है.

बीजेपी और पीडीपी गठबंधन में भी फायदे में बीजेपी ही रही. जब तक बीजेपी ने चाहा गठबंधन चला, जब जी भर गया सपोर्ट वापस ले लिया. केंद्र में दोबारा सत्ता में लौटने के बाद तो बीजेपी ने पीडीपी को कहीं का नहीं छोड़ा है. जम्मू-कश्मीर में होने को तो सब कुछ संवैधानिक दायरे में ही हुआ, लेकिन पीडीपी का राजनीतिक भविष्य फिलहाल तो खत्म सा ही नजर आ रहा है.

निश्चित रूप से उद्धव ठाकरे हकीकत को महसूस कर रहे होंगे और बीजेपी के साथ रिश्तों को लेकर इसी कारण नपा तुला बयान दिये हों. मोदी कैबिनेट से हटने के बाद कहने को तो ये भी कह सकते थे कि बीजेपी के साथ शिवसेना का 30 साल पुराना रिश्ता खत्म हो गया - लेकिन ऐसा उद्धव ठाकरे ने नहीं कहना शायद उचित नहीं समझा होगा.

मान कर चलना चाहिये बीजेपी और शिवसेना 'ये रिश्ता क्या कहलाता है' वाले दौर से गुजर रहा हो - और दोनों को अगले पड़ाव का इंतजार हो. असल बात तो ये है कि तमाम कवायद के बीच शिवसेना को भी कदम कदम पर महसूस होने लगा है कि जितना तूफान वो बीजेपी के साथ रह कर खड़े कर सकती है - अकेले या दूसरों की मदद से नामुमकिन है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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