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Maharashtra में अब भी BJP ही रिंग मास्टर के रोल में है!

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    • Updated: 13 नवम्बर, 2019 05:21 PM
  • 13 नवम्बर, 2019 05:21 PM
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महाराष्ट्र में सरकार बनाने की कोशिशों में (Maharashtra government formation efforts) भले ही BJP दूसरी छोर पर बहुत दूर नजर आ रही हो, लेकिन वो मैदान में बनी हुई है. किसी माहिर खिलाड़ी की तरह बीजेपी ऐसे डटी हुई है जैसे जो कुछ भी हो रहा है उसके पीछे उसी की मर्जी है.

महाराष्ट्र में शुरू से ही BJP स्टैंड एक ही है और वो उस पर कायम है. बीजेपी कहती रही कि वो सरकार शिवसेना के साथ ही बनाएगी. विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो जाने के बाद भी जब राज्यपाल (Governor) भगत सिंह कोश्यारी का बुलावा मिला, तब भी बीजेपी ने साफ साफ कह दिया कि वो सरकार नहीं बनाएगी क्योंकि अकेले उसके पास बहुमत नहीं है. जो है वो शिवसेना के साथ (BJP Shiv Sena Alliance) है. बीजेपी के पल्ला झाड़ते ही बाकी राजनीतिक दल पूरी तरह एक्टिव हो गये. शिवसेना के साथ साथ NCP और महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता तो पहले से ही सक्रिय थे - बाद में सामने भी आ गये.

शिवसेना के साथ तकरार में भले ही बीजेपी नेतृत्व के अड़ियल रूख को जिम्मेदार बताया जाये, लेकिन तस्वीर तो यही नजर आ रही है कि बीजेपी को नजरअंदाज करके कोई भी महाराष्ट्र में सरकार बनाने में सक्षम नहीं दिख रहा है. शिवसेना नेता किशोर तिवारी के कहने का मतलब तो यही था कि बीजेपी नेतृत्व प्यार से बात करे तो शिवसेना मान जाएगी. कहते हैं उद्धव ठाकरे चाहते थे कि अमित शाह खुद मातोश्री चल कर पहुंचें और बात आगे बढ़े. आम चुनाव से पहले 'संपर्क फॉर समर्थन' तहत ऐसा हुआ भी था, लेकिन अब वो बात नहीं रही. अमित शाह ने एक लाइन की हिदायत के साथ महाराष्ट्र के नेताओं को ही शिवसेना से निबटने की जिम्मेदारी दे दी थी.

बीजेपी को पीछे छोड़ शिवसेना NCP और कांग्रेस के साथ चलने की कोशिश कर तो रही है, लेकिन आगे नहीं बढ़ पा रही है. सारी बातों के बावजूद बीजेपी को लेकर उद्धव ठाकरे जो इशारा कर रहे हैं, लगता तो ऐसा ही ही कि बीजेपी महाराष्ट्र में रिंग मास्टर के रोल में पहले भी थी - और आगे भी रहेगी.

सभी को सरकार चाहिये, फिर BJP क्यों पीछे हटे?

बीजेपी से रिश्ता तोड़ने को लेकर उद्धव ठाकरे से अपनी बात मनवाने के बाद भी एनसीपी दोनों तरफ तोल मोल कर रही है. खबर है कि एनसीपी और बीजेपी के बीच भी संपर्क बना हुआ है. 2014 के बुरे अनुभव के चलते शरद पवार जहां शिवसेना के साथ फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहे हैं, बीजेपी के साथ भी एनसीपी ने परदे...

महाराष्ट्र में शुरू से ही BJP स्टैंड एक ही है और वो उस पर कायम है. बीजेपी कहती रही कि वो सरकार शिवसेना के साथ ही बनाएगी. विधानसभा का कार्यकाल खत्म हो जाने के बाद भी जब राज्यपाल (Governor) भगत सिंह कोश्यारी का बुलावा मिला, तब भी बीजेपी ने साफ साफ कह दिया कि वो सरकार नहीं बनाएगी क्योंकि अकेले उसके पास बहुमत नहीं है. जो है वो शिवसेना के साथ (BJP Shiv Sena Alliance) है. बीजेपी के पल्ला झाड़ते ही बाकी राजनीतिक दल पूरी तरह एक्टिव हो गये. शिवसेना के साथ साथ NCP और महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता तो पहले से ही सक्रिय थे - बाद में सामने भी आ गये.

शिवसेना के साथ तकरार में भले ही बीजेपी नेतृत्व के अड़ियल रूख को जिम्मेदार बताया जाये, लेकिन तस्वीर तो यही नजर आ रही है कि बीजेपी को नजरअंदाज करके कोई भी महाराष्ट्र में सरकार बनाने में सक्षम नहीं दिख रहा है. शिवसेना नेता किशोर तिवारी के कहने का मतलब तो यही था कि बीजेपी नेतृत्व प्यार से बात करे तो शिवसेना मान जाएगी. कहते हैं उद्धव ठाकरे चाहते थे कि अमित शाह खुद मातोश्री चल कर पहुंचें और बात आगे बढ़े. आम चुनाव से पहले 'संपर्क फॉर समर्थन' तहत ऐसा हुआ भी था, लेकिन अब वो बात नहीं रही. अमित शाह ने एक लाइन की हिदायत के साथ महाराष्ट्र के नेताओं को ही शिवसेना से निबटने की जिम्मेदारी दे दी थी.

बीजेपी को पीछे छोड़ शिवसेना NCP और कांग्रेस के साथ चलने की कोशिश कर तो रही है, लेकिन आगे नहीं बढ़ पा रही है. सारी बातों के बावजूद बीजेपी को लेकर उद्धव ठाकरे जो इशारा कर रहे हैं, लगता तो ऐसा ही ही कि बीजेपी महाराष्ट्र में रिंग मास्टर के रोल में पहले भी थी - और आगे भी रहेगी.

सभी को सरकार चाहिये, फिर BJP क्यों पीछे हटे?

बीजेपी से रिश्ता तोड़ने को लेकर उद्धव ठाकरे से अपनी बात मनवाने के बाद भी एनसीपी दोनों तरफ तोल मोल कर रही है. खबर है कि एनसीपी और बीजेपी के बीच भी संपर्क बना हुआ है. 2014 के बुरे अनुभव के चलते शरद पवार जहां शिवसेना के साथ फूंक-फूंक कर कदम बढ़ा रहे हैं, बीजेपी के साथ भी एनसीपी ने परदे के पीछे बातचीत का रास्ता बंद नहीं किया है.

उद्धव ठाकरे की कांग्रेस नेताओं के साथ मुंबई के एक होटल में मुलाकात की खबर आयी है. ये भी संकेत देने की कोशिश है कि इस मीटिंग में कॉमन मिनिमम प्रोग्राम पर बात फाइनल हो सकती है. कई बार ऐसा लग रहा है कि शिवसेना और एनसीपी-कांग्रेस मिलकर सरकार बना सकते हैं, लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जहां सब जाकर अटक जा रहा है.

गैर-बीजेपी सरकार की कोशिश से कुछ फॉर्मूले मीडिया रिपोर्ट के जरिये सामने आ रहे हैं - हालांकि, सभी की अपनी अपनी शर्तें हैं और वही सबसे बड़ा पेंच भी है.

1. NCP का फॉर्मूला: कांग्रेस के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक एनसीपी ने भी 50-50 वाला फॉर्मूला रखा है. इसके मुताबिक शिवसेना और एनसीपी के बीच तय हो कि ढाई-ढाई साल के लिए मुख्यमंत्री पद का बंटवारा होगा और पूरे पांच साल तक डिप्टी सीएम का पद कांग्रेस के पास रहेगा.

2. कांग्रेस का फॉर्मूला: कांग्रेस सरकार में तीनों दलों में बराबर भागीदारी के पक्ष में है. कांग्रेस के इस फॉर्मूले के हिसाब से 42 कैबिनेट मंत्री बनाये जायें और सभी दलों के 14-14 मंत्री हों.

3. एक और फॉर्मूला: मंत्रियों के बंटवारे के साथ ही अगर मुख्यमंत्री शिवसेना का होता है तो दो-दो डिप्टी सीएम का सुझाव आया है.

बीजेपी के बगैर सरकार बनने के मामले में भी बाकी फैसलों की तरह सबसे पीछे कांग्रेस ही देखी गयी है. कांग्रेस नेतृत्व के किसी नतीजे तक न पहुंचने के कारण वरिष्ठ कांग्रेस नेताओं की अलग अलग राय भी है. दिल्ली में मल्लिकार्जुन खड्गे सरकार बनाने या उसमें शामिल होने के खिलाफ हैं, जबकि महाराष्ट्र कांग्रेस के ज्यादातर नेता अलग राय रखते हैं. पूर्व मुख्यमंत्रियों अशोक चव्हाण और पृथ्वीराज चव्हाण के साथ साथ सुशील कुमार शिंदे भी सोनिया गांधी को सरकार बनाने के लिए राजी करने में जुटे हुए थे. कांग्रेस विधायक ऊपर से ये कह जरूर रहे हैं कि आलाकमान का फैसला उन्हें मंजूर होगा, लेकिन सोनिया गांधी को कई विधायकों की तरफ सा साफ कर दिया गया है कि वो सरकार में शामिल होना चाहते हैं.

विधायकों के सरकार में शामिल होने की इच्छा को देखते हुए ही कांग्रेस को उनके टूटने का डर रहा. बहरहाल अब जयपुर से कांग्रेस विधायकों को मुंबई बुला लिया गया है.

मोदी की तर्ज पर फडणवीस ने बताया खुद को 'महाराष्ट्र का सेवक'

महाराष्ट्र में सरकार बनाने को लेकर देवेंद्र फडणवीस ने फिर से उम्मीद जतायी है. महाराष्ट्र भाजपा की ओर से ट्विटर पर जारी एक बयान में फडणवीस कहते हैं कि उम्मीद है कि राज्य के हालात पर सभी दल विचार करते हुए स्थिर देने की दिशा में आगे बढ़ेंगे. फडणवीस ने दबी जबान तो नारायण राणे ने खुल कर सरकार बनने का दावा किया है. हालांकि, बीजेपी के एक अन्य नेता सुधीर मुंगतीवार ने नारायण राणे की बातों को निजी विचार करार दिया है.

कहने को तो देवेंद्र फडणवीस भी ट्विटर पर खुद को पूर्व मुख्यमंत्री की जगह 'महाराष्ट्र का सेवक' बताने लगे हैं - ठीक वैसे ही जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने को प्रधानसेवक बताते हैं. फडणवीस के शब्दों के हेर फेर में भी कुछ इशारा तो है ही - तो क्या बाकी सब इन्हीं इशारों पर नाच रहे हैं.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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