• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

नीतीश कुमार को मिली बराबर की सीटों के मायने क्या हैं

    • अभिनव राजवंश
    • Updated: 29 अक्टूबर, 2018 06:53 PM
  • 29 अक्टूबर, 2018 06:53 PM
offline
बिहार में जेडीयू और बीजेपी का एक समान सीट पर चुनाव लड़ने का फैसला देखने में भाजपा के लिहाज से कुछ कमजोर सौदा लग सकता है लेकिन अगर वर्तमान परिस्थितियों पर गौर करें तो यह कहीं से भी भाजपा के लिए घाटे का सौदा नहीं है.

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में बीजेपी और जेडीयू के बीच सीटों को लेकर चल रही खींचतान शुक्रवार को खत्म हो गई जब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच दिल्ली में हुई बैठक के बाद यह फैसला हो गया कि जेडीयू और बीजेपी एक समान सीट पर चुनाव लड़ेंगे, और अन्य साथियों को भी सम्मानजनक सीटें मिलेंगी. भारतीय जनता पार्टी का यह फैसला कई मायनों में अप्रत्याशित रहा क्योंकि पार्टी के इस फैसले के बाद अब भाजपा को 2014 के चुनावों में जीती गई 22 सीटों में से कम से कम पांच से छह सीटों का नुकसान झेलना पड़ेगा. कुल मिलाकर इस सीट बंटवारे के बाद लगता यही है कि इस मोर्चे पर नितीश कुमार, अमित शाह पर बीस पड़ें हैं.

बिहार में जेडीयू और बीजेपी एक समान सीट पर चुनाव लड़ेंगे

हालांकि हाल फिलहाल तक फ्रंट फुट पर खड़ी भाजपा के अचानक से बैकफुट पर आने के भी अपने मायने हैं, भले ही प्रथम दृष्टया यह भाजपा के लिहाज से कुछ कमजोर सौदा लगे लेकिन अगर वर्तमान परिस्थितियों पर गौर करें तो यह कहीं से भी भाजपा के लिए घाटे का सौदा नहीं लगता. यह सही है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में बिहार के 40 में से 22 सीटों पर जबकि एनडीए 31 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही थी, वहीं नितीश कुमार की पार्टी मात्र 2 सीटें ही जीत सकी थी. मगर 2014 और वर्तमान हालात एक दूसरे से बिलकुल अलग हैं, जहां 2014 में मोदी लहर अपने उत्कर्ष पर थी तो वर्तमान में मोदी लहर बहुत हद तक अपनी धार खो चुकी है. भाजपा के लिए वर्तमान हालात इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि केंद्र सरकार कई मुद्दों पर परेशानियां झेल रही है चाहे वो हालिया सीबीआई विवाद हो, राफेल डील हो, SC/ST एक्ट हो या फिर पेट्रोल डीजल के बढ़ते दामों का मुद्दा.

भाजपा को शायद इस बात की भी चिंता रही होगी कि हाल में जैसे उपचुनावों में विपक्षी...

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बिहार में बीजेपी और जेडीयू के बीच सीटों को लेकर चल रही खींचतान शुक्रवार को खत्म हो गई जब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बीच दिल्ली में हुई बैठक के बाद यह फैसला हो गया कि जेडीयू और बीजेपी एक समान सीट पर चुनाव लड़ेंगे, और अन्य साथियों को भी सम्मानजनक सीटें मिलेंगी. भारतीय जनता पार्टी का यह फैसला कई मायनों में अप्रत्याशित रहा क्योंकि पार्टी के इस फैसले के बाद अब भाजपा को 2014 के चुनावों में जीती गई 22 सीटों में से कम से कम पांच से छह सीटों का नुकसान झेलना पड़ेगा. कुल मिलाकर इस सीट बंटवारे के बाद लगता यही है कि इस मोर्चे पर नितीश कुमार, अमित शाह पर बीस पड़ें हैं.

बिहार में जेडीयू और बीजेपी एक समान सीट पर चुनाव लड़ेंगे

हालांकि हाल फिलहाल तक फ्रंट फुट पर खड़ी भाजपा के अचानक से बैकफुट पर आने के भी अपने मायने हैं, भले ही प्रथम दृष्टया यह भाजपा के लिहाज से कुछ कमजोर सौदा लगे लेकिन अगर वर्तमान परिस्थितियों पर गौर करें तो यह कहीं से भी भाजपा के लिए घाटे का सौदा नहीं लगता. यह सही है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में बिहार के 40 में से 22 सीटों पर जबकि एनडीए 31 सीटों पर जीत दर्ज करने में सफल रही थी, वहीं नितीश कुमार की पार्टी मात्र 2 सीटें ही जीत सकी थी. मगर 2014 और वर्तमान हालात एक दूसरे से बिलकुल अलग हैं, जहां 2014 में मोदी लहर अपने उत्कर्ष पर थी तो वर्तमान में मोदी लहर बहुत हद तक अपनी धार खो चुकी है. भाजपा के लिए वर्तमान हालात इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि केंद्र सरकार कई मुद्दों पर परेशानियां झेल रही है चाहे वो हालिया सीबीआई विवाद हो, राफेल डील हो, SC/ST एक्ट हो या फिर पेट्रोल डीजल के बढ़ते दामों का मुद्दा.

भाजपा को शायद इस बात की भी चिंता रही होगी कि हाल में जैसे उपचुनावों में विपक्षी पार्टियां एकता दिखाकर भाजपा को हराने में सफल रही है, वैसे ही अगर चुनावी एकता फिर से बिहार में बनती है और उसमें नितीश शामिल हो जाते हैं तो यह भाजपा के लिए काफी मुश्किल हालात खड़े कर सकता था. और भाजपा किसी भी सूरत में उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों में ही इस तरह के हालात में पड़ना नहीं चाहती. नितीश का भाजपा के साथ आना बिहार के साथ ही पूर्वी उत्तरप्रदेश के कुछ इलाकों में भी कुछ हद तक भाजपा को फायदा पहुंचा सकता है. नितीश कुमार की छवि पूरे हिंदी पट्टी में एक अच्छे राजनेता की रही है और यह भाजपा को कुछ बेहतर नतीजे दे सकता है. नितीश के साथ आने से भाजपा को चुनावी रणनीतिकार से राजनेता बने प्रशांत किशोर का भी साथ मिल सकता है. प्रशांत किशोर 2014 में भाजपा के चुनावी प्रचार का प्रमुख हिस्सा रहे थे और हाल ही में प्रशांत किशोर ने नितीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड का दामन थामा है.

प्रशांत किशोर अब नीतीश के साथ

भाजपा नितीश को अपने पाले में रख कर अपने सहयोगियों को यह सन्देश देने की कोशिश में होगी कि भाजपा अपने सहयोगियों को महत्व देना जानती है क्योंकि 2014 में भाजपा के सत्ता में आने के बाद से ही भाजपा सहयोगियों का उपेक्षित रखने का आरोप झेलती रही है और इस दौरान उसके पुराने सहयोगी शिव सेना भाजपा पर काफी हमलावर रही है तो वहीं चंद्र बाबू नायुडु की तेलगू देशम पार्टी एनडीए से अलग हो चुकी है. ऐसी सूरत में भाजपा नितीश जैसे मजबूत साथी को नाराज करने का जोखिम नहीं ले सकती थी. भाजपा ने शायद नितीश के साथ बराबरी के समझौते में उन चुनावी पूर्वानुमानों को भी ध्यान में रखा है जिसमें अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा को अकेले दम पर सत्ता में वापसी करना लगभग असंभव बताया जा रहा है.

कह सकते हैं कि भाजपा का नितीश के साथ बराबरी का सौदा निश्चित रूप से नुकसान दायक नहीं है क्योंकि भाजपा ने कुछ सीटें खोकर नितीश कुमार जैसा मजबूत साथी पा लिया है.

ये भी पढ़ें-

बिहार में शाह-नीतीश का सीटों को लेकर एलान विपक्ष के लिए एक सीख है

तो बिहार में नीतीश कुमार ही बड़े भाई की भूमिका निभाएंगे

मोदी की तरह नीतीश कुमार को भी एक 'अमित शाह' मिल गया!


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲