सभा के लिए जनता जरूरी है. सभा को तभी बड़ा माना जाता है जब वहां जनता के रूप में सिरों का तांता लगा हो. कई बार होता है कि सभा में मौजूद सिरों की संख्या एक नेता को इस हद तक दीवाना कर देती है कि वो अपना आपा खो देता है और एक ऐसी बात कर देता है जिससे न सिर्फ राजनीति बल्कि पूरा तंत्र शर्मिंदा हो जाता है. ऐसा ही कुछ देखने को मिला है बिहार के दरभंगा में. जहां आरएलएसपी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाते लगाते सारी गरिमा, सारी मर्यादा को ताख पर रख दिया और एक ऐसा बयान दे दिया जिसने उन्हें भारी मुसीबत में डाल दिया है.
एनडीए सरकार में मंत्री रह चुके आरएलएसपी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि रामलीला में जब पर्दा उठता है एक व्यक्ति सीता माता की ड्रेस में आता है और जो लोग रामलीला देख रहे होते हैं उनका सिर श्रद्धा से झुक जाता है लेकिन यदि आप पर्दे के पीछे जायेंगे तो आपको वही सीताजी सिगरेट पीते हुए दिख जायें, कुछ ऐसा ही चेहरा बीजेपी का है.'
सभा को संबोधित करते हुए कुशवाहा ने कहा है कि 'हम तो बहुत नजदीक से देखकर आए हैं न, एनडीए में रहकर आए हैं। इतने सालों में बाहर से देखते रहे लेकिन अब तो अंदर जाकर देखकर आए हैं, क्या है इनके अंदर, क्या है इनके बाहर.'
ज्ञात हो कि महागठबंधन में शामिल रालोसपा बिहार की पांच सीटों पर चुनाव लड़ रही है. पार्टी जमुई लोकसभा सीट से पहले ही भूदेव चौधरी को मैदान में उतार चुकी है. वहीं बात अगर खुद उपेंद्र कुशवाहा की हो तो काराकाट के मौजूदा सांसद उपेंद्र कुशवाहा उजियारपुर और काराकाट से चुनाव लड़ रहे हैं. उजियारपुर में उपेंद्र का मुख्य मुकाबला बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और मौजूदा सांसद नित्यानंद राय से और काराकाट में जेडीयू प्रत्याशी महाबली सिंह से होगा. जब इस विषय पर कुशवाहा से सवाल हुआ तो उन्होंने कहा कि कार्यकर्ताओं के दबाव और लोगों की...
सभा के लिए जनता जरूरी है. सभा को तभी बड़ा माना जाता है जब वहां जनता के रूप में सिरों का तांता लगा हो. कई बार होता है कि सभा में मौजूद सिरों की संख्या एक नेता को इस हद तक दीवाना कर देती है कि वो अपना आपा खो देता है और एक ऐसी बात कर देता है जिससे न सिर्फ राजनीति बल्कि पूरा तंत्र शर्मिंदा हो जाता है. ऐसा ही कुछ देखने को मिला है बिहार के दरभंगा में. जहां आरएलएसपी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाते लगाते सारी गरिमा, सारी मर्यादा को ताख पर रख दिया और एक ऐसा बयान दे दिया जिसने उन्हें भारी मुसीबत में डाल दिया है.
एनडीए सरकार में मंत्री रह चुके आरएलएसपी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि रामलीला में जब पर्दा उठता है एक व्यक्ति सीता माता की ड्रेस में आता है और जो लोग रामलीला देख रहे होते हैं उनका सिर श्रद्धा से झुक जाता है लेकिन यदि आप पर्दे के पीछे जायेंगे तो आपको वही सीताजी सिगरेट पीते हुए दिख जायें, कुछ ऐसा ही चेहरा बीजेपी का है.'
सभा को संबोधित करते हुए कुशवाहा ने कहा है कि 'हम तो बहुत नजदीक से देखकर आए हैं न, एनडीए में रहकर आए हैं। इतने सालों में बाहर से देखते रहे लेकिन अब तो अंदर जाकर देखकर आए हैं, क्या है इनके अंदर, क्या है इनके बाहर.'
ज्ञात हो कि महागठबंधन में शामिल रालोसपा बिहार की पांच सीटों पर चुनाव लड़ रही है. पार्टी जमुई लोकसभा सीट से पहले ही भूदेव चौधरी को मैदान में उतार चुकी है. वहीं बात अगर खुद उपेंद्र कुशवाहा की हो तो काराकाट के मौजूदा सांसद उपेंद्र कुशवाहा उजियारपुर और काराकाट से चुनाव लड़ रहे हैं. उजियारपुर में उपेंद्र का मुख्य मुकाबला बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और मौजूदा सांसद नित्यानंद राय से और काराकाट में जेडीयू प्रत्याशी महाबली सिंह से होगा. जब इस विषय पर कुशवाहा से सवाल हुआ तो उन्होंने कहा कि कार्यकर्ताओं के दबाव और लोगों की भावना को देखते हुए उन्हें दो लोकसभा सीटों से चुनाव लड़ने का फैसला करना पड़ा है.
गौरतलब है कि पिछले दिसंबर में कुशवाहा ने बीजेपी की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) को छोड़ दिया. इसके साथ ही उन्होंने मोदी सरकार में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. मंत्री पद से इस्तीफे के साथ उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर जोरदार हमला बोला था. कुशवाहा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा से किस हद तक नाराज थे इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर 'बिहार को धोखा देने व कामकाज में आपरदर्शी शैली और गैर लोकतांत्रिक तरीका' अपनाने का आरोप लगाया था.
कुशवाहा ने कहा था कि बिहार जहां खड़ा था आज भी वहीं खड़ा है और बिहार कोई स्पेशल पैकेज नहीं मिला. नौकरियों में पिछड़ी जातियों का हक मारा गया. बिहार को लगा था कि उसके अच्छे दिन आएंगे लेकिन स्थिति जस की तस रही.केंद्र सरकार ने आरएसएस को एजेंडा लागू करने की कोशिश की. बिहार के उपचुनाव में हमें सीटें लड़ने को नहीं दी गईं, हमारी पार्टी को कमजोर करने की कोशिश हुई.'
आज जिस बीजेपी को कुशवाहा नकली और पर्दे के पीछे जाकर सिगरेट पीने वाला बता रहे हैं सवाल ये है कि जब वो खुद उसके साथ थे तो उन्होंने उस धुंए को कैसे बर्दाश्त किया? आखिर क्यों नहीं तब पहले ही दिन कुशवाहा ने वो फैसला लिया जो उन्हें बाद में लेना पड़ा? जैसे यूटर्न पार्टी में रहते हुए कुशवाहा ने मारे हैं वो खुद ब खुद इस बात को साफ कर देता है कि कुशवाहा एक ऐसी राजनीति को अंजाम दे रहे हैं जो पूरी तरह से मौका परस्ती से घिरी हुई है.
बात अगर कुशवाहा के आलोचकों की हो तो उनका भी यही मानना है कि इनकी राजनीति के मूल में 'फायदा' है. ये तब तक ही किसी के साथ हैं जब तक वो इन्हें फायदा देता है. जैसे ही उद्देश्य पूरे हो जाते हैं ये किनाराकशी कर लेते हैं. बिहार के आम लोगों के बीच कुशवाहा की कैसी छवि है इसे इसी बात से समझा जा सकता है कि कुशवाहा अपनी तुलना मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से करते तो हैं मगर जब दोनों का आमना सामना होता है तो प्रायः ये मौके से कन्नी काटते हुए या फिर उनसे बचते हुए नजर आते हैं.
बहरहाल, कुशवाहा अपने को परिपक्व कहते हैं. उन्हें समझना चाहिए कि जब चुनाव नजदीक हो तो ऐसी टिप्पणियों से बचना चाहिए जो विवाद की वजह बनें. अब जबकि अपने आरोप और प्रत्यारोप के खेल में कुशवाहा धर्म को ले आए हैं और माता सीता पर अपनी राय देकर इन्होंने करोड़ों भारतीयों का अपमान कर दिया हो. हमारे लिए भी देखना दिलचस्प रहेगा कि बिहार की जनता के अलावा चुनाव आयोग इसपर क्या कार्रवाई करता है.
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