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शराबबंदी: बिहार पुलिस के आंकड़ों ने खोली नीतीश के दावे की पोल

    • सरोज कुमार
    • Updated: 14 जनवरी, 2017 11:06 AM
  • 14 जनवरी, 2017 11:06 AM
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नीतीश कुमार ने दावा किया था के शराबबंदी की वजह से बिहार में अपराधों में कमी आई है लेकिन बिहार पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि अपराध घटने की बजाए बढ़ रहा है.

अप्रैल 2016 में बिहार में शराबबंदी लागू हुई थी. उसके बाद नीतीश कुमार ने दावा किया था कि प्रदेश में अपराध की घटनाओं में कमी आई है. नीतीश और राज्य के अफसरों का दावा अप्रैल, 2015 की तुलना अप्रैल, 2016 में दर्ज अपराध के आंकड़ों पर आधारित था. बिहार पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक इस महीने 2015 में संज्ञेय अपराधों की संख्या 16483 थी तो 2016 में 14279 ही रही. इस तरह तो देखने में लगता है कि अपराध कम हुए. लेकिन क्या सच में ऐसा है?

 झूठे साबित हुए नीतीश कुमार के दावे

इसे जानने के लिए हमें बिहार पुलिस के विभिन्न महीनों के आंकड़ों पर नजर दौड़ानी पड़ेगी. और हकीकत यह है कि सिर्फ अप्रैल, 2016 में अपराध थोड़े कम हुए हैं. उसके अगले महीने मई में ही अपराध करीब 13 प्रतिशत बढ़कर 16208 हो गए. इसी तरह अगले महीनों यानी जून,  जुलाई,  अगस्त और अक्टूबर में भी अपराध बढ़े हैं. फिलहाल बिहार पुलिस की वेबसाइट पर अक्टूबर, 2016 तक के आंकड़े उपलब्ध हैं.

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इसी तरह शराबबंदी से पहले के आंकड़ों पर नजर डालें तो जनवरी, फरवरी और मार्च में अपराध शराबबंदी लागू होने के बाद के महीनों (अप्रैल को छोड़कर) की संख्या से कम हैं. ऐसे में यह दावा बिल्कुल झूठा साबित हो रहा है कि शराबबंदी से अपराध घट गए हैं. यहां तक कि हत्या और अपहरण जैसे अपराधों में भी कमी नहीं आई है. वहीं और ज्यादा कठोर प्रावधानों के साथ...

अप्रैल 2016 में बिहार में शराबबंदी लागू हुई थी. उसके बाद नीतीश कुमार ने दावा किया था कि प्रदेश में अपराध की घटनाओं में कमी आई है. नीतीश और राज्य के अफसरों का दावा अप्रैल, 2015 की तुलना अप्रैल, 2016 में दर्ज अपराध के आंकड़ों पर आधारित था. बिहार पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक इस महीने 2015 में संज्ञेय अपराधों की संख्या 16483 थी तो 2016 में 14279 ही रही. इस तरह तो देखने में लगता है कि अपराध कम हुए. लेकिन क्या सच में ऐसा है?

 झूठे साबित हुए नीतीश कुमार के दावे

इसे जानने के लिए हमें बिहार पुलिस के विभिन्न महीनों के आंकड़ों पर नजर दौड़ानी पड़ेगी. और हकीकत यह है कि सिर्फ अप्रैल, 2016 में अपराध थोड़े कम हुए हैं. उसके अगले महीने मई में ही अपराध करीब 13 प्रतिशत बढ़कर 16208 हो गए. इसी तरह अगले महीनों यानी जून,  जुलाई,  अगस्त और अक्टूबर में भी अपराध बढ़े हैं. फिलहाल बिहार पुलिस की वेबसाइट पर अक्टूबर, 2016 तक के आंकड़े उपलब्ध हैं.

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इसी तरह शराबबंदी से पहले के आंकड़ों पर नजर डालें तो जनवरी, फरवरी और मार्च में अपराध शराबबंदी लागू होने के बाद के महीनों (अप्रैल को छोड़कर) की संख्या से कम हैं. ऐसे में यह दावा बिल्कुल झूठा साबित हो रहा है कि शराबबंदी से अपराध घट गए हैं. यहां तक कि हत्या और अपहरण जैसे अपराधों में भी कमी नहीं आई है. वहीं और ज्यादा कठोर प्रावधानों के साथ शराबबंदी के दोबारा लागू होने वाले महीने यानी अक्टूबर में अपराध सितंबर की तुलना में 5 प्रतिशत, अप्रैल की तुलना में 13 प्रतिशत और फिर 2015 के अक्टूबर की तुलना में 17 प्रतिशत ज्यादा ही रहे. ऐसे में यह कहना कतई सही नहीं कि शराबबंदी के बाद अपराध घट गए हैं.

अगर 2015 की बात करें उस साल फरवरी में जब जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री पद से मजबूरन इस्तीफा देना पड़ा था,  तब उस दौरान जनवरी-फरवरी में कुल अपराध क्रमशः 13808 और 13533 यानी कम थे. लेकिन नीतीश के 22 फरवरी, 2015 को मुख्यमंत्री बनने के बाद अगले महीने मार्च में अपराध की संख्या 19 प्रतिशत बढ़कर 16062 हो गई थी. यह बढ़ोत्तरी विधानसभा चुनाव के पहले तक जारी रही. चुनावी माह यानी अक्टूबर-नवंबर में अपराध करीब 22 प्रतिशत कम हो गए. इसके बाद चुनाव जीतकर नीतीश फिर मुख्यमंत्री बने और अपराध थोड़ा बढ़कर दिसंबर, 2015 से 2016 में जनवरी, फरवरी और मार्च तक 15,000 के आसपास रहे. उसके बाद सिर्फ अप्रैल में अपराध घटे पर फिर बढ़ते ही गए हैं.

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ऐसे में जाहिर है कि अपराध न तो शराबबंदी के बाद कम हुए हैं और न ही पिछली दो बार की नीतीश की ताजपोशी के बाद कम हुए हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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