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बिहार चुनाव से पहले हुई लड़ाई में डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय की एक हवलदार से हार सबसे मजेदार है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 09 अक्टूबर, 2020 02:22 PM
  • 09 अक्टूबर, 2020 02:19 PM
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Bihar Elections 2020 को लेकर तमाम तरह की माथापच्ची और इधर उधर के बाद बिहार के पूर्व DGP गुप्तेश्वर पांडे (Gupteshwar Pandey) को बीजेपी-जेडीयू गठबंधन (BJP-JDU Alliance) से बक्सर सीट (Buxar seat) का टिकट नहीं मिला. ऐसे में अब जो प्रतिक्रियाएं गुप्तेश्वर पांडे को मिल रही हैं वो अपने आप में मज़ेदार हैं.

कहीं कुछ अप्रिय या फिर कोई बड़ी घटना न हो तो प्रायः देश शांत रहता है. लेकिन एक बार फिर देश में सियासी सरगर्मियां और चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है. कारण बना है बिहार चुनाव (Bihar Elections). जैसे जैसे बिहार चुनावों के दिन करीब आ रहे हैं. वैसे वैसे ऐसा बहुत कुछ हो रहा है, जो न केवल सुर्खियां बटोर रहा है. बल्कि जिससे देश की सियासत भी प्रभावित हो रही है. बिहार चुनावों से पहले राज्य में उलटफेर किस हद तक है इसे हम राज्य के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे (Gupteshwar Pandey) के वीआरएस लेने और जनसेवा की बात कर राजनीति में आने से समझ सकते हैं. ध्यान रहे कि जिस समय गुप्तेश्वर पांडेय ने वीआरएस लिया माना जा रहा था कि वो या तो बक्सर (Buxar) या फिर आरा से चुनाव लड़ेंगे. लेकिन गुप्तेश्वर पांडेय का ये सपना बस एक हंसीं ख्वाब बनकर रह गया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के खासम खास रह चुके पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय को मुंह की खानी पड़ी है. डीजीपी पांडेय किसी जमाने में हवलदार रह चुके परशुराम चतुर्वेदी (Parshuram Chaturvedi) से टिकट की रेस हार गए हैं. चतुर्वेदी ने अपने पत्ते कुछ इस तरह सेट किये कि जेडीयू (JD) से टिकट पाने की रेस में पांडेय औंधे मुंह गिरे हैं और धराशाही हो गए हैं.

लाख बड़ी बड़ी बातें कर लें मगर टिकट न मिलने का गम गुप्तेश्वर पांडेय को अवश्य होगा

ज्ञात हो कि जैसे ही ये सूचना मिली कि एक डीजीपी के रूप में गुप्तेश्वर पांडेय ने इस्तीफ़ा दे दिया है बक्सर विधानसभा सीट को लेकर सस्पेंस बन गया था. अच्छा चूंकि जेडीयू ने भी इस सीट से अन्य किसी नाम को फाइनल नहीं किया था तो कहीं न कहीं पांडेय को भी इस बात का भरोसा था कि टिकट उनकी झोली में ही आएगा.

बात बक्सर विधानसभा सीट की हुई है तो हमारे लिए भी ये बताना बेहद ज़रूरी...

कहीं कुछ अप्रिय या फिर कोई बड़ी घटना न हो तो प्रायः देश शांत रहता है. लेकिन एक बार फिर देश में सियासी सरगर्मियां और चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है. कारण बना है बिहार चुनाव (Bihar Elections). जैसे जैसे बिहार चुनावों के दिन करीब आ रहे हैं. वैसे वैसे ऐसा बहुत कुछ हो रहा है, जो न केवल सुर्खियां बटोर रहा है. बल्कि जिससे देश की सियासत भी प्रभावित हो रही है. बिहार चुनावों से पहले राज्य में उलटफेर किस हद तक है इसे हम राज्य के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे (Gupteshwar Pandey) के वीआरएस लेने और जनसेवा की बात कर राजनीति में आने से समझ सकते हैं. ध्यान रहे कि जिस समय गुप्तेश्वर पांडेय ने वीआरएस लिया माना जा रहा था कि वो या तो बक्सर (Buxar) या फिर आरा से चुनाव लड़ेंगे. लेकिन गुप्तेश्वर पांडेय का ये सपना बस एक हंसीं ख्वाब बनकर रह गया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) के खासम खास रह चुके पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय को मुंह की खानी पड़ी है. डीजीपी पांडेय किसी जमाने में हवलदार रह चुके परशुराम चतुर्वेदी (Parshuram Chaturvedi) से टिकट की रेस हार गए हैं. चतुर्वेदी ने अपने पत्ते कुछ इस तरह सेट किये कि जेडीयू (JD) से टिकट पाने की रेस में पांडेय औंधे मुंह गिरे हैं और धराशाही हो गए हैं.

लाख बड़ी बड़ी बातें कर लें मगर टिकट न मिलने का गम गुप्तेश्वर पांडेय को अवश्य होगा

ज्ञात हो कि जैसे ही ये सूचना मिली कि एक डीजीपी के रूप में गुप्तेश्वर पांडेय ने इस्तीफ़ा दे दिया है बक्सर विधानसभा सीट को लेकर सस्पेंस बन गया था. अच्छा चूंकि जेडीयू ने भी इस सीट से अन्य किसी नाम को फाइनल नहीं किया था तो कहीं न कहीं पांडेय को भी इस बात का भरोसा था कि टिकट उनकी झोली में ही आएगा.

बात बक्सर विधानसभा सीट की हुई है तो हमारे लिए भी ये बताना बेहद ज़रूरी है कि ये सीट भाजपा की है. इस सीट को लेकर कहा यही जाता है कि भाजपा यहां से किसी अंजान आदमी को भी टिकट दे दे तो वो बड़ी ही आसानी के साथ जीत जाएगा. बात गत विधानसभा चुनावों की हो तो 2015 में हुए चुनाव में इस सीट पर कई महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिले और ये सीट भाजपा के शिकंजे से निकल कर आरजेडी के पाले में चली गयी. गुप्तेश्वर पांडेय को लेकर कहा यही जा रहा था कि वो इस सीट के प्रति खासे गंभीर थे और इस सीट पर जीत दर्ज करने के उद्देश्य से खासी मेहनत कर रहे थे.

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इस सीट को पाने की हसरत में गुप्तेश्वर पांडेय ने खासी मेहनत की थी लेकिन सीट शेयरिंग फॉर्मूले ने उनकी हसरतों की कोई कद्र नहीं की और नौबत ये आ गई कि उन्हें इस सीट से हाथ धोना पड़ा और फायदा परशुराम चतीर्वेदी को मिला. एक डीजीपी को दरकिनार कर भाजपा ने परशुराम चतुर्वेदी पर क्यों दांव खेला इसके पीछे भी माकूल वजहें हैं. इलाके में परशुराम चतुर्वेदी की छवि एक किसान नेता की है. इसलिए माना जा रहा है कि जिस तरह अभी हाल में ही आए फार्म बिल का विरोध भाजपा को झेलना पड़ा है परशुराम चतुर्वेदी को बक्सर से मौका देने पर पिक्चर बदल सकती है.

गुप्तेश्वर पांडेय को टिकट नहीं मिल रहा है ये खबर जंगल की आग की तरह फैली और फिर इसके बाद गुप्तेश्वर पांडेय को भी तमाम तरह के सवाल जवाबों से दो चार होना पड़ा. मामले पर अपनी बात कहने के लिए पांडेय ने ट्विटर के सहारा लिया है. गुप्तेश्वर पांडेय ने ट्वीट किया है कि, नहीं लड़ रहा हूं चुनाव' गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा, 'अपने अनेक शुभचिंतकों के फोन से परेशान हूं, मैं उनकी चिंता और परेशानी भी समझता हूं. मेरे सेवामुक्त होने के बाद सबको उम्मीद थी कि मैं चुनाव लड़ूंगा लेकिन मैं इस बार विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ रहा. हताश निराश होने की कोई बात नहीं है. धीरज रखें. मेरा जीवन संघर्ष में ही बीता है. मैं जीवन भर जनता की सेवा में रहूंगा. कृपया धीरज रखें और मुझे फोन नहीं करे. बिहार की जनता को मेरा जीवन समर्पित है.'

अब जबकि एक बार फिर गुप्तेश्वर पांडेय के साथ धोखा हुआ है समर्थक से लेकर विरोधियों तक लोगों की प्रतिक्रियाओं का आना स्वाभाविक था. खबर सामने आने के बाद जनता विशेषकर बिहार के लोगों ने अपने को दो धड़ों में विभाजित कर लिया है. एक धड़ा जहां गुप्तेश्वर पांडेय के साथ है तो वहीं दूसरा धड़ा उनकी खिल्ली जुटाने में जुट गया है.आइए नजर डालते हैं ट्विटर पर और देखें कि इस मामले पर क्या कह रहे हैं ट्विटर यूजर.

लोगों का कहना है कि गुप्तेश्वर पांडेय के साथ जबरदस्त प्रैंक हुआ है.

लोगों का मानना है की जेडीयू भाजपा के इस फैसले से गुप्तेश्वर पांडेय का सपना टूटा है.

समर्थक मुखर होकर इस बात को कह रहे हैं कि गुप्तेश्वर पांडेय को निर्दलीय चुनाव लड़ना चाहिए.

सोशल मीडिया पर यूजर्स ये भी कह रहे हैं कि भाजपा ने गुप्तेश्वर पांडेय का इस्तेमाल किया और उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की तरह अलग कर दिया.

इस बात में कोई शक नहीं है कि गुप्तेश्वर पांडेय के साथ एक बड़ा धोखा हुआ है. पुलिस की नौकरी छोड़कर बिहार की राजनीति में ताल ठोंकने वाले गुप्तेश्वर पांडेय का राजनीतिक भविष्य क्या होता है जवाब वक़्त की गर्त में छुपा है लेकिन जो वर्तमान है उसने इस बात की तस्दीख कर दी है कि राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं है और बात चूंकि बिहार की हुई है तो बिहार में न तो गुप्तेश्वर पांडेय के सगे वालों में जेडीयू है और न ही बीजेपी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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