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चिराग पासवान पर नीतीश कुमार के दबाव में बीजेपी की चाल लड़खड़ाने लगी है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 17 अक्टूबर, 2020 01:14 PM
  • 17 अक्टूबर, 2020 01:14 PM
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चिराग पासवान (Chirag Paswan) को लेकर बीजेपी के दांव लगता है उलटे पड़ने लगे हैं. प्रकाश जावड़ेकर (Prakash Javadekar) का चिराग को वोटकटवा बता देना नीतीश कुमार (Nitish Kumar) का दवाब नहीं तो क्या है - फिर भी बीजेपी ये क्यों नहीं बता रही कि एलजेपी एनडीए में हैं या नहीं है?

चिराग पासवान (Chirag Paswan) के मामले में बीजेपी का हाव-भाव और व्यवहार करीब करीब कांग्रेस जैसा हो चला है - कदम कदम पर कन्फ्यूजन और छोटी छोटी बातों पर फैसले लेने में जरूरत से ज्यादा देरी. और बहुत देर बाद भी जो कुछ बारी बारी टुकड़े टुकड़े में सामने आ रहा है वो भी पुरानी घिसी पिटी बातों को अलग अलग मौकों पर अलग अलग नेताओं के जरिये समझाने की कोशिश हो रही है. केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर (Prakash Javadekar) का बयान भी ऐसा ही लगता है.

ये तो साफ हो चुका है, और खुद चिराग पासवान भी महसूस करने के साथ साथ कहने भी लगे हैं कि बीजेपी नीतीश कुमार के इशारे पर ये सब कर रही है. मानना पड़ेगा कि चिराग पासवान के मामले में बीजेपी पर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के लगातार दबाव देने का असर होने लगा है. तभी तो बीजेपी को बार बार सफाई देनी पड़ रही है - और सफाई भी ऐसी कि जैसे जैसे सफाई आ रही है कन्फ्यूजन बढ़ता ही जा रहा है. ऐसा क्यों लगता है जैसे नीतीश कुमार के खिलाफ बीजेपी की चिराग चाल अब लड़खड़ाने लगी है!

बीजेपी कन्फ्यूज कर रही है या खुद है

कहने को तो बीजेपी चिराग ने पासवान की पार्टी एलजेपी को 'वोटकटवा' तक करार दिया है, लेकिन इसमें नया क्या है - ये तो पहले से ही मालूम है कि 143 सीटों में से कुछ भले ही चिराग पासवान के हाथ लगे लेकिन बाकियों पर तो एक ही रोल है - वोटकटवा का.

सवाल ये है कि एलजेपी की वोटकटवा वाली ये भूमिका किसके लिए नुकसानदेह है?

वोटकटवा भी मान लें तो बिहार चुनाव में इस भूमिका में अकेले चिराग पासवान नहीं हैं.

चिराग पासवान (Chirag Paswan) के मामले में बीजेपी का हाव-भाव और व्यवहार करीब करीब कांग्रेस जैसा हो चला है - कदम कदम पर कन्फ्यूजन और छोटी छोटी बातों पर फैसले लेने में जरूरत से ज्यादा देरी. और बहुत देर बाद भी जो कुछ बारी बारी टुकड़े टुकड़े में सामने आ रहा है वो भी पुरानी घिसी पिटी बातों को अलग अलग मौकों पर अलग अलग नेताओं के जरिये समझाने की कोशिश हो रही है. केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर (Prakash Javadekar) का बयान भी ऐसा ही लगता है.

ये तो साफ हो चुका है, और खुद चिराग पासवान भी महसूस करने के साथ साथ कहने भी लगे हैं कि बीजेपी नीतीश कुमार के इशारे पर ये सब कर रही है. मानना पड़ेगा कि चिराग पासवान के मामले में बीजेपी पर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के लगातार दबाव देने का असर होने लगा है. तभी तो बीजेपी को बार बार सफाई देनी पड़ रही है - और सफाई भी ऐसी कि जैसे जैसे सफाई आ रही है कन्फ्यूजन बढ़ता ही जा रहा है. ऐसा क्यों लगता है जैसे नीतीश कुमार के खिलाफ बीजेपी की चिराग चाल अब लड़खड़ाने लगी है!

बीजेपी कन्फ्यूज कर रही है या खुद है

कहने को तो बीजेपी चिराग ने पासवान की पार्टी एलजेपी को 'वोटकटवा' तक करार दिया है, लेकिन इसमें नया क्या है - ये तो पहले से ही मालूम है कि 143 सीटों में से कुछ भले ही चिराग पासवान के हाथ लगे लेकिन बाकियों पर तो एक ही रोल है - वोटकटवा का.

सवाल ये है कि एलजेपी की वोटकटवा वाली ये भूमिका किसके लिए नुकसानदेह है?

वोटकटवा भी मान लें तो बिहार चुनाव में इस भूमिका में अकेले चिराग पासवान नहीं हैं. बिहारी उपेंद्र कुशवाहा और पुष्पम प्रिया की ही तरह बाहरी असदुद्दीन ओवैसी, मायावती, चंद्रशेखर आजाद रावण जैसे नेताओं की भी तो वही भूमिका है. हर चुनाव में वोटकटवा होते हैं और ऐसे नेता इस बार भी हैं.

वोटकटवा नेताओं के चुनाव मैदान में होने के अलग अलग मकसद होते हैं. कुछ तो ऐसे होते ही हैं जो एकलव्य की तरह धरतीपकड़ की विरासत को आगे बढ़ाने में जी जान से जुटे रहते हैं. बाकियों में कोई मौसमी प्रचार प्रसार के लिए चुनाव लड़ रहा होता है तो कुछ लोग दोस्तों के चढ़ा देने पर मैदान में कूद पड़ते हैं. ऐसे वोटकटवा नेताओं से अलग वे होते हैं जो डमी उम्मीदवार के तौर पर मैदान में किसी के इशारे पर काम कर रहे होते हैं.

अगर बीजेपी ये मैसेज देने की कोशिश कर रही कि चिराग पासवान आम वोटकटवा नेताओं की तरह चुनाव मैदान में हैं तो ये बात किसी के गले उतरने वाली नहीं है. चिराग पासवान के स्टैंड से साफ तौर पर जाहिर है कि वो अगर वोटकटवा की भूमिका में भी हैं तो नीतीश कुमार के खिलाफ और बीजेपी के पक्ष में बने हुए हैं.

चिराग पासवान के अलावा दूसरे वोटकटवा नेताओं के बारे में एक बार माना जा सकता है कि वे चुनाव के दौरान जितना नुकसान नीतीश कुमार को पहुंचा रहे हैं, ठीक उतना ही नुकसान बीजेपी उम्मीदवारों को भी करने वाले हैं, लेकिन चिराग पासवान का केस तो अलहदा है. चिराग पासवान के उम्मीदवार एक-दो अपवादों को छोड़ दें तो पूरी तरह नीतीश कुमार को नुकसान पहुंचा रहे हैं - और अगर बीजेपी इसे भी अपना नुकसान मान रही है तो वो सही सोच रही है, लेकिन सच ये तो नहीं ही है. बीजेपी मान कर चल रही है कि चिराग पासवान से नीतीश कुमार को होने वाला नुकसान बीजेपी के लिए सीधे सीधे फायदा है - और ये दुधारी तलवार की तरह है.

चिराग पासवान को वोटकटवा बताने से ज्यादा जरूरी है ये बताना कि वो एनडीए में हैं या नहीं?

महागठबंधन की तरफ से तेजस्वी यादव ने बेरोजगारी को मुद्दा तो बना ही दिया है - और मुश्किल ये है कि नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम सुशील मोदी के साथ साथ बाकी नेता भी बेरोजगारी पर हामी भरने जैसे बयान दे रहे हैं. बयान भी ऐसे दे रहे हैं कि फौरन ये सवाल भी खड़ा हो जाता है कि अगर ये इतनी महत्वपूर्ण बात है तो देर से जागने जैसा रिएक्शन देने की जरूरत क्यों पड़ रही है.

बीजेपी को मालूम होना चाहिये कि अगर नीतीश कुमार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का असर हो गया और तेजस्वी यादव का कैबिनेट की पहली बैठक में पहली दस्तखत से 10 लाख नौकरी देने की बात लोगों के दिमाग में बस गयी तो क्या क्या हो सकता है?

मान लेते हैं कि बड़ी उलटफेर की संभावना नहीं है क्योंकि तेजस्वी यादव में लालू यादव जैसा करिश्मा अब तक नहीं देखने को मिला है, लेकिन अगर 2005 जैसा हाल हो गया तो - त्रिशंकु विधानसभा हो गयी तो. फिर तो नीतीश कुमार तरीके से बीजेपी को रगड़ देंगे. नीतीश कुमार इतना ही तो चाहते हैं कि जैसे भी हो उनके दोनों हाथों में लड्डू बना रहे. जब चाहें जिधर घूम जाने की स्थिति में रहें और जिसके साथ रहें उसे नीतीश को साथ बनाये रखने की मजबूरी समझ में आती रहे.

चिराग पासवान पर बिहार के नेताओं सुशील मोदी और संजय जायसवाल के बाद पहली बार बीजेपी के किसी राष्ट्रीय स्तर के नेता का बयान आया है. केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कहना है कि चिराग पासवान बिहार चुनाव में भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं और इसका उनको कोई फायदा नहीं मिलने वाला है - साथ ही साथ बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा की तरफ से भी स्थिति स्पष्ट करने की कोशिश हुई है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिहार रैलियों के शुरू होने से पहले मोर्चा संभाल चुके प्रकाश जावड़ेकर कहते हैं - मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि एलजेपी बिहार में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व का नाम लेकर वोटरों को गुमराह करने की कोशिश कर रही है, जबकि बिहार में भाजपा का लोजपा से कोई संबंध नहीं है. बिहार में हमारा गठबंधन जेडीयू और हम के साथ है.

प्रकाश जावड़ेकर ने ये भी कहा कि एलजेपी 'वोटकटवा' से ज्यादा कुछ नहीं है - और यह बिहार चुनाव में ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाएगी. बीजेपी के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव ने का भी कहना है कि चिराग पासवान ने एनडीए और नीतीश कुमार को लेकर जो बयान दे रहे हैं वो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण हैं. कहते हैं, गठबंधन में रहकर ही वो लोकसभा चुनाव लड़े और सांसद बने... फरवरी में ही बिहार सरकार की तारीफों के पुल बांध रहे थे और अब अचानक छह महीने में क्या हो गया? भूपेंद्र यादव के मुताबिक, चिराग पासवान अब निजी स्वार्थ में झूठ की राजनीति कर रहे हैं.

नीतीश अपना सोचें, चिराग तो मोदी के साथ हैं

पहली बार चिराग पासवान ने भी बीजेपी के बयान पर निराशा जतायी है. चिराग पासवान ने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताया है. कहते हैं, 'मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के साथ था, हूं और रहूंगा... मुझे कहीं तस्वीर नहीं लगानी है. मेरे दिल में प्रधानमंत्री बसते हैं.'

एलजेपी नेता का कहना है कि प्रधानमंत्री की तस्वीर लगाने की जरूरत मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को है और वो ज्यादा तस्वीरें लगायें. ये याद दिलाना नहीं भूलते, 'मेरा संकल्प है कि 10 तारीख को बिहार में डबल इंजन की सरकार बनें. बिहार में बीजेपी के नेतृत्व में बीजेपी-एलजेपी की सरकार बने ये मेरा संकल्प है.'

अब तो लगता है चिराग पासवान को लेकर बीजेपी ने जो सब सोचा था ठीक वैसा नहीं हो पा रहा है. बीजेपी को लगा था नीतीश कुमार खामोश बने रहेंगे, लेकिन वो ऐसा नहीं कर रहे हैं. वरना, पहले की ही तरह बीजेपी को अब भी चिराग पासवान को लेकर बयान देने की जरूरत नहीं पड़ती.

बीजेपी ये तो बताती है कि एनडीए में BJP के साथ नीतीश कुमार की पार्टी JD, जीतनराम मांझी की पार्टी HAM और मुकेश साहनी की पार्टी VIP ही हैं - लेकिन एक बार भी वो खुल कर ये क्यों नहीं बता देती कि चिराग पासवान NDA में नहीं हैं. बीजेपी लाख समझाने की कोशिश करे - लोग तो सीधे सीधे ये जानना चाहेंगे कि चिराग पासवान एनडीए में हैं या नहीं हैं?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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