• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

क्यों हमें याद रखना चाहिए बाबा साहेब अंबेडकर के उन अनाम साथियों को...

    • आर.के.सिन्हा
    • Updated: 14 अप्रिल, 2022 12:33 PM
  • 14 अप्रिल, 2022 12:33 PM
offline
बाबा साहेब अंबेडकर के 1940 के दशक के आरंभ में दिल्ली शिफ्ट करने के बाद से लेकर उनके 1956 में निधन तक उनके साथ तीन-चार अनाम लोग उनकी छाया की तरह रहे. वे उनके भाषणों को नोट करते रहते या फिर उनकी लाइब्रेयरी को देखते. बाबा साहेब के परिनिर्वाण दिवस के बाद ये सब बाबा साहेब के विचारों को फैलाते रहे.

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 27 सितंबर,1951 को पंडित जवाहरलाल नेहरु की केन्द्रीय कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. दोनों में हिन्दू कोड बिल पर गहरे मतभेद उभर आए थे. बाबा साहेब ने अपने इस्तीफे की जानकारी संसद में दिए अपने भाषण में दी. वे दिन में तीन-चार बजे अपने सरकारी आवास वापस आए. वे इस्तीफे के अगले ही दिन अपने 22 पृथ्वीराज रोड के आवास को छोड़कर 26 अलीपुर रोड में शिफ्ट कर गए. कैबिनेट से बाहर होने के बाद बाबा साहेब का सारा वक्त अध्ययन और लेखन में गुजरने लगा. उन्होंने 26, अलीपुर रोड में रहते हुए ही ‘'द बुद्धा ऐण्ड हिज़ धम्मा' नाम से अपनी अंतिम पुस्तक लिखी. इसमें डॉ. अंबेडकर ने भगवान बुद्ध के विचारों की व्याख्या की है. इसका हिन्दी, गुजराती, तेलुगु, तमिल, मराठी, मलयालम, कन्नड़, जापानी सहित और कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है. बाबा साहेब की 26 अलीपुर रोड में ही दिसम्बर 1956 में मृत्यु हुई.

दरअसल 1951 से लेकर उनके जीवन के अंतिम समय तक उनके करीबी सहयोगियों-शिष्यों में तीन-चार लोग ही रहे. उन सब की बाबा साहेब के प्रति उनके विचारों को लेकर आस्था अटूट थी. भगवान दास भी उनमें से एक थे. बाबा साहेब के विचारों को आमजन के बीच में ले जाने में भगवान दास का योगदान अतुल्नीय रहा. वे बाबा साहेब से उनके 26 अलीपुर रोड स्थित आवास में मिला करते थे.

तमाम लोग ऐसे थे जिन्हें भीमराव अंबेडकर ने प्रभावित किया और बाद में वो अंबेडकर के नजदीक आए

शिमला में 1927 में जन्में भगवान दास एक बार बाबा साहेब से मिलने दिल्ली आए तो फिर यहीं के होकर ही रह गए. उन्होंन बाबा साहेब की रचनाओं और भाषणों का सम्पादन किया और उन पर पुस्तकें लिखीं. उनका 'दस स्पोक अंबेडकर' शीर्षक से चार खण्डों में प्रकाशित ग्रन्थ देश और विदेश में अकेला दस्तावेज़ है, जिनके जरिये बाबा साहेब के विचार...

डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 27 सितंबर,1951 को पंडित जवाहरलाल नेहरु की केन्द्रीय कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया. दोनों में हिन्दू कोड बिल पर गहरे मतभेद उभर आए थे. बाबा साहेब ने अपने इस्तीफे की जानकारी संसद में दिए अपने भाषण में दी. वे दिन में तीन-चार बजे अपने सरकारी आवास वापस आए. वे इस्तीफे के अगले ही दिन अपने 22 पृथ्वीराज रोड के आवास को छोड़कर 26 अलीपुर रोड में शिफ्ट कर गए. कैबिनेट से बाहर होने के बाद बाबा साहेब का सारा वक्त अध्ययन और लेखन में गुजरने लगा. उन्होंने 26, अलीपुर रोड में रहते हुए ही ‘'द बुद्धा ऐण्ड हिज़ धम्मा' नाम से अपनी अंतिम पुस्तक लिखी. इसमें डॉ. अंबेडकर ने भगवान बुद्ध के विचारों की व्याख्या की है. इसका हिन्दी, गुजराती, तेलुगु, तमिल, मराठी, मलयालम, कन्नड़, जापानी सहित और कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है. बाबा साहेब की 26 अलीपुर रोड में ही दिसम्बर 1956 में मृत्यु हुई.

दरअसल 1951 से लेकर उनके जीवन के अंतिम समय तक उनके करीबी सहयोगियों-शिष्यों में तीन-चार लोग ही रहे. उन सब की बाबा साहेब के प्रति उनके विचारों को लेकर आस्था अटूट थी. भगवान दास भी उनमें से एक थे. बाबा साहेब के विचारों को आमजन के बीच में ले जाने में भगवान दास का योगदान अतुल्नीय रहा. वे बाबा साहेब से उनके 26 अलीपुर रोड स्थित आवास में मिला करते थे.

तमाम लोग ऐसे थे जिन्हें भीमराव अंबेडकर ने प्रभावित किया और बाद में वो अंबेडकर के नजदीक आए

शिमला में 1927 में जन्में भगवान दास एक बार बाबा साहेब से मिलने दिल्ली आए तो फिर यहीं के होकर ही रह गए. उन्होंन बाबा साहेब की रचनाओं और भाषणों का सम्पादन किया और उन पर पुस्तकें लिखीं. उनका 'दस स्पोक अंबेडकर' शीर्षक से चार खण्डों में प्रकाशित ग्रन्थ देश और विदेश में अकेला दस्तावेज़ है, जिनके जरिये बाबा साहेब के विचार सामान्य लोगों और विद्वानों तक पहुंचे.

उन्हें दलितों की एकता में रूचि थी और उन्होंने बहुत सी जातियों मसलन धानुक, खटीक, बाल्मीकि, हेला, कोली आदि को अम्बेडकरवादी आन्दोलन में लेने के प्रयास किये. ज़मीनी स्तर पर काम करते हुए भी उन्होंने दलितों के विभिन्न मुद्दों पर लेख लिखे जो पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे. भगवान दास ने सफाई कर्मचारियों पर चार पुस्तकें और धोबियों पर एक छोटी पुस्तक लिखी.

उनकी बहुचर्चित पुस्तक 'मैं भंगी हूं' अनेक भारतीय भाषायों में अनूदित हो चुकी है और वह दलित जातियों के इतिहास का दस्तावेज़ है. एक बार दलित चिंतक एसएस दारापुरी बता रहे थे कि भगवानदास जी दबे कुचले लोगों के हितों के प्रति जीवन भर समर्पित रहे. उन्होंने कुल 23 पुस्तकें लिखीं. भगवान दास ने भारत में दलितों के प्रति छुआछूत और भेदभाव के मामले को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाने का ऐतिहासिक काम किया.

भगवान दास का 83 साल की उम्र में 2010 में निधन हो गया था. बाबा साहेब की निजी लाइब्रेयरी में हजारों किताबें थीं. उन्हें अपनी लाइब्रेयरी बहुत प्रिय थी. उस लाइब्रेयरी को देखते थे देवी दयाल. वे बाबा साहेब से 1943 में जुड़े रहे. बाबा साहेब जहां कुछ भी बोलते तो देवी दयाल उसे प्रवचन मानकर नोट कर लिया करते थे. कहना कठिन है कि उन्हें यह प्रेरणा कहां से मिली थी.

वे बाबा साहेब के पत्र-पत्रिकाओं में छपने वाले लेखों और बयानों आदि की कतरनों को भी रख लेते थे. बाबा साहेब के सानिध्य का लाभ देवी दयाल को यह हुआ कि वे भी खूब पढ़ने लगे. वे बाबा साहेब के बेहद प्रिय सहयोगी बन गए. उन्होंने आगे चलकर ‘डा अंबेडकर की दिनचर्या’ नाम से एक महत्वपूर्ण किताब ही लिखी. उसमें अनेक महत्वपूर्ण जानकारियां हैं. मसलन कि 30 जनवरी,1948 को बापू की हत्या के बाद बाबा साहेब की क्या प्रतिक्रिया थी?

'बापू की हत्या का समाचार सुनकर बाबा साहेब स्तब्ध हो जाते हैं. वे पांचेक मिनट तक सामान्य नहीं हो पाते. फिर कुछ संभलते हुए बाबा साहब कहते हैं कि ‘बापू का इतना हिंसक अंत नहीं होना चाहिए था'. देवी दयाल को इस किताब को लिखने में उनकी पत्नी उर्मिला जी ने बहुत सहयोग दिया था क्योंकि पति की सेहत खराब होने के बाद वह ही पुरानी डायरी के पन्नों को सफाई से लिखती थी. देवी दयाल का 1987 में निधन हो गया था.

नानक चंद रतू भी बाबा साहेब के साथ की छाया की तरह रहा करते थे. बाबा साहेब 1942 में वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य के रूप में दिल्ली आ गए थे. उन्हें 22 प़ृथ्वीराज रोड पर सरकारी आवास मिला. बस तब ही लगभग 20 साल के रत्तू उनके साथ जुड़ गए. वे टाइपिंग भी जानते थे. रत्तू को बाबा साहेब के समाज के कमजोर वर्गों के लिए कार्यों और संघर्षों की जानकारी थी.

बाबा साहेब ने उत्साही और उर्जा से लबरेज रत्तू को अपने पास रख लिया. उस दौर में बड़े नेताओं और आम जनता के बीच दूरियां नहीं हुआ करती थी. रत्तू पंजाब के होशियारपुर से थे. उसके बाद तो वे बाबा साहेब की छाया की तरह रहे. बाबा साहेब जो भी मैटर उन्हें डिक्टेट करते वह उसकी एक कॉर्बन कॉपी अवश्य रख लेते. वे नौकरी करने के साथ पढ़ भी रहे थे.

बाबा साहेब ने 1951 में नेहरु जी की कैबिनेट को छोड़ा तब बाबा साहेब ने रत्तू जी को अपने पास बुलाकर कहा कि वे चाहते हैं कि सरकारी आवास अगले दिन तक खाली कर दिया जाए. ये अभूतपूर्व स्थिति थी. रत्तू नए घर की तलाश में जुट गए. संयोग से बाबा साहेब के एक मित्र ने उन्हें 26 अलीपुर रोड के अपने घर में शिफ्ट होने का प्रस्ताव रख दिया.

बाबा साहेब ने हामी भर दी. रतू जी ने अगले ही दिन बाबा साहेब को नए घर में शिफ्ट करवा दिया. मतलब उनमें प्रबंधन के गुण थे. बाबा साहेब की 1956 में सेहत बिगड़ने लगी. रत्तू जी उनकी दिन-रात सेवा करते. वे तब दिन-रात उनके साथ रहते. बाबा साहेब के निधन के बाद रतू जी सारे देश में जाने लगे बाबा साहेब के विचारों को पहुंचाने के लिए.

अपनी सन 2002 में मृत्यु से पहले उन्होंने बाबा साहब के जीवन के अंतिम वर्षों पर एक किताब भी लिखी. बाबा साहेब के इन सभी सहयोगियों को भी याद रखा जाना चाहिए. ये सब उनक साथ निस्वार्थ भाव से जुड़ गए थे. अब कहां मिलेंगे इस तरह के फरिश्ते.

ये भी पढ़ें -

भले ही इमरान खान ने कुर्सी गंवा दी लेकिन अपनी दूसरी पारी के लिए पिच तैयार कर ली है!

P MLC election: आखिर क्यों कहा जा रहा है कि 36 में से 36 सीटें भाजपा ही जीती है

दलित राजनीति से मायावती को दूर करने की तैयारी शुरू!  

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲