• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

मोदी और योगी से बड़ी चुनौती तो माया को भीम आर्मी से है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 24 मई, 2017 08:35 PM
  • 24 मई, 2017 08:35 PM
offline
सहारनपुर हिंसा के करीब दो हफ्ते बाद मायावती ने मौके पर जाने का फैसला किया तो उसमें भी एक खास क्लॉज था - वो सड़क के रास्ते नहीं जाना चाहती थीं. जब प्रशासन ने उन्हें हेलीकॉप्टर उतारने की अनुमति नहीं दी तो गुस्सा फूट पड़ा.

रोहित वेमुला की खुदकुशी के कई दिनों बाद तक मायावती चुप थीं. उन्हीं दिनों वो कोलकाता पहुंचीं तो पत्रकारों ने उनकी टिप्पणी चाही, मगर वो अपने तरीके से टाल गयीं. राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों को इसको लेकर बहुत ताज्जुब हुआ. उन्हें लगा चुनावों में सवर्णों की नाराजगी से बचने के लिए शायद ऐसा कर रही हों. आखिरकार मायावती ने मामला संसद में उठाया - राज्य सभा में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से उनकी तू-तू मैं-मैं भी खूब हुई.

मिलने तो वो ऊना पिटाई के पीड़ितों से मिलने अहमदाबाद भी गई थीं, लेकिन सहारनपुर भी क्या उतना ही दूर रहा? मायावती सहारनपुर तब गईं जब उन्होंने जंतर मंतर पर दलितों का प्रदर्शन अपनी आंखों से देख लिया. क्या मायावती हर मामले में खूब सोच समझ कर ही प्रतिक्रिया देती हैं? सामान्य तौर पर तो ऐसा नहीं लगता. फिर दलित मामले में ऐसा रवैया क्यों दिखता है?

मायावती ने भी हल्के में लिया

चाहे दिल्ली हो या फिर लखनऊ, सहारनपुर बहुत दूर नहीं है. सहारनपुर हिंसा के करीब दो हफ्ते बाद मायावती ने मौके पर जाने का फैसला किया तो उसमें भी एक खास क्लॉज था - वो सड़क के रास्ते नहीं जाना चाहती थीं. जब प्रशासन ने उन्हें हेलीकॉप्टर उतारने की अनुमति नहीं दी तो गुस्सा फूट पड़ा, 'अगर मुझे कुछ होता है तो बीजेपी सरकार उसके लिए जिम्मेदार होगी क्योंकि मैं हेलिकॉप्टर से जाना चाहती थी लेकिन रोड से जाने के लिए मजबूर हूं.' लगता है पुलिस की ही तरह मायावती ने भी भीम आर्मी को बड़े हल्के में लिया. ऐसा लगता है कि मायावती ने सहारनपुर का कार्यक्रम तब बनाया जब जंतर मंतर पर उन्होंने दलितों का जमावड़ा खुद देका. योगी सरकार के लिए तो सहारनपुर महज कानून व्यवस्था की चुनौती है, मायावती के लिए तो जनाधार खिसक जाने का ही डर है.

जोरदार दस्तक...

यूपी...

रोहित वेमुला की खुदकुशी के कई दिनों बाद तक मायावती चुप थीं. उन्हीं दिनों वो कोलकाता पहुंचीं तो पत्रकारों ने उनकी टिप्पणी चाही, मगर वो अपने तरीके से टाल गयीं. राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों को इसको लेकर बहुत ताज्जुब हुआ. उन्हें लगा चुनावों में सवर्णों की नाराजगी से बचने के लिए शायद ऐसा कर रही हों. आखिरकार मायावती ने मामला संसद में उठाया - राज्य सभा में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से उनकी तू-तू मैं-मैं भी खूब हुई.

मिलने तो वो ऊना पिटाई के पीड़ितों से मिलने अहमदाबाद भी गई थीं, लेकिन सहारनपुर भी क्या उतना ही दूर रहा? मायावती सहारनपुर तब गईं जब उन्होंने जंतर मंतर पर दलितों का प्रदर्शन अपनी आंखों से देख लिया. क्या मायावती हर मामले में खूब सोच समझ कर ही प्रतिक्रिया देती हैं? सामान्य तौर पर तो ऐसा नहीं लगता. फिर दलित मामले में ऐसा रवैया क्यों दिखता है?

मायावती ने भी हल्के में लिया

चाहे दिल्ली हो या फिर लखनऊ, सहारनपुर बहुत दूर नहीं है. सहारनपुर हिंसा के करीब दो हफ्ते बाद मायावती ने मौके पर जाने का फैसला किया तो उसमें भी एक खास क्लॉज था - वो सड़क के रास्ते नहीं जाना चाहती थीं. जब प्रशासन ने उन्हें हेलीकॉप्टर उतारने की अनुमति नहीं दी तो गुस्सा फूट पड़ा, 'अगर मुझे कुछ होता है तो बीजेपी सरकार उसके लिए जिम्मेदार होगी क्योंकि मैं हेलिकॉप्टर से जाना चाहती थी लेकिन रोड से जाने के लिए मजबूर हूं.' लगता है पुलिस की ही तरह मायावती ने भी भीम आर्मी को बड़े हल्के में लिया. ऐसा लगता है कि मायावती ने सहारनपुर का कार्यक्रम तब बनाया जब जंतर मंतर पर उन्होंने दलितों का जमावड़ा खुद देका. योगी सरकार के लिए तो सहारनपुर महज कानून व्यवस्था की चुनौती है, मायावती के लिए तो जनाधार खिसक जाने का ही डर है.

जोरदार दस्तक...

यूपी पुलिस सहारनपुर की घटनानाओं को दूसरी मामूली घटनाओं की तरह लिया लेकिन जब उसे पता चला कि भीम आर्मी ने 50 हजार लोगों के साथ प्रदर्शन की अनुमति मांगी है तो उसके कान खड़े हो गये. फिर दिल्ली और यूपी पुलिस में कई दौर की बातचीत हुई और आखिरकार अनुमति न देने का फैसला हुआ.

5 मई की घटना और उसके बाद 9 मई को बवाल के बाद भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद ने यूट्यूब पर एक वीडियो अपलोड किया जिसमें हजारों की संख्या में 21 मई को जंतर मंतर पहुंचने की अपील की गयी थी.

नये मिजाज का दलित आंदोलन

जिग्नेश मेवाणी और चंद्रशेखर दोनों पेशे से वकील हैं. जिग्नेश गुजरात में दलित आंदोलन के उभरते चेहरे के तौर पर स्थापित हो चुके हैं, जबकि चंद्रशेखर यूपी में उभर रहे हैं. चंद्रशेखर के खिलाफ भी यूपी पुलिस ने केस दर्ज कर रखा था जिसके चलते वो भूमिगत हो गये थे और सीधे जंतर मंतर पर दिखाई दिये.

जैसे इलाके के बाकी लोग अपनी गाड़ियों पर 'राजपूताना' या 'द ग्रेट राजपूत' लिख कर चलते हैं वैसे ही चंद्रशेखर ने अपने गांव में 'द ग्रेट चमार' का बोर्ड लगा रखा है. ये बोर्ड लगाने पर भी विवाद हुआ था, लेकिन अब ये मीडिया में छाया हुआ है. साथ ही, चंद्रशेखर खुद को 'रावण' कहलाना पसंद करते हैं और इसके पीछे उनका अपना तर्क है, "रावण अपनी बहन शूर्पनखा के अपमान के कारण सीता को उठा लाता है लेकिन उनको भी सम्मान के साथ रखता है."

चंद्रशेखर : अपनी अपनी पहचान...

मायावती पर कांशीराम का दलित आंदोलन पीछे छोड़ देने का इल्जाम लगता है और यही वजह है कि कुछ लोग पुराने आंदोलन के स्वरूप को फिर से जिंदा करना चाहते हैं. लेकिन चंद्रशेखर के मुताबिक भीम आर्मी कोई राजनीतिक संगठन नहीं बल्कि सामाजिक आंदोलन है.

चंद्रशेखर का कहना है कि वो लोगों को जागरुक करना चाहते हैं, 'भाजपा और आरएसएस इस देश में बाबा साहब के संविधान की जगह हिंदू संविधान लागू करने की कोशिश कर रहे हैं और इससे पहले कि ऐसा हो, लोगों को सतर्क हो जाना चाहिए."

जाने माने दलित चिंतक कंवल भारती भी इस बात से पूरी तरह इत्तेफाक रखते हैं लेकिन उनका भी सवाल वही है जो इन दिनों ज्यादातर दलितों के मन में होगा - क्या भीम आर्मी के पास इसका कोई विकल्प है?

बीबीसी हिंदी पर अपने एक पीस में कंवल भारती लिखते हैं, 'यदि भीम आर्मी को सचमुच क्रान्ति करनी है, तो उसे हिन्दूराष्ट्र तथा ब्राह्मणवाद के विरुद्ध पृथक निर्वाचन की मांग को अपना हथियार बनाना होगा और डा. आंबेडकर की हारी हुई लड़ाई को फिर से लड़ना होगा.'

लेकिन वो बात जो कंवल भारती अपने लेख में उठा रहे हैं वो बात किसी नये नेता के लिए चुनौती तो है ही मायावती जैसी नेता के लिए तो सबसे बड़ी चुनौती है.

कंवल भारती लिखते हैं, 'ब्राह्मणवाद के खिलाफ चिल्लाने वाला कोई भी दलित नेता, राजनीति में आने पर, अपने समुदाय के बल पर नगरपालिका का चुनाव भी नहीं जीत सकता. यही कारण है कि दलित राजनीति दलितों के प्रति उत्तरदायी नहीं बनी रह सकती.'

इस हिसाब से देखें तो मायावती की सोशल इंजीनियरिंग सत्ता की चाबी हो सकता है लेकिन दलितों उसका दलितों के हित से भी कोई लेना देना हो जरूरी नहीं है. बात सिर्फ मायावती ही नहीं सहारनपुर पर वे नेता भी खामोश हैं जो यूपी की सुरक्षित सीटों से चुनाव जीत कर लखनऊ पहुंचे हैं. फर्क बस इतना है कि मायावती को बोलने के लिए उन नेताओं की तरह बीजेपी या किसी और पार्टी के आलाकमान का मुहं नहीं देखना है.

ऐसा भी नहीं है कि चंद्रशेखर के खिलाफ मामलों पर मायावती का ध्यान नहीं है. सहारनपुर में शब्बीरपुर के बाबा रविदास मंदिर पहुंच कर वो सवर्णों से शांति बनाये रखने की अपील के साथ साथ प्रशासन से झूठे मामले वापस लेने की भी गुजारिश करती हैं.

फिर बगैर किसी का नाम लिये मायावती बीएसपी की अहमियत समझाती है, 'कई छोटी-छोटी इकाइयां हैं जो बाबा साहब अंबेडकर जयंती मनाती हैं. मैं उन्हें सलाह देना चाहती हूं कि वो इस बसपा के बैनर तले करें. अगर ऐसा करोगे तो किसी की हिम्मत नहीं होगी कि वो आप पर हमले का दुस्साहस करे.' यहां मायावती का आशय भीम आर्मी से था. वैसे भीम आर्मी के बहाने मायावती ने उन अटकलों को भी सही ठहरा दिया है जो उनके भाई आनंद कुमार को बीएसपी में शामिल किये जाने पर जतायी गयी थीं. यूपी की राजनीतिक के एक तबके में इस बात की खासी चर्चा रही कि मायावती ने अपने भाई को उनके खिलाफ छापों की कार्रवाई के बाद जानबूझ कर बीएसपी का उपाध्यक्ष बनाया है. पहली नजर में ये तो रहा ही कि सियासत में खून का रिश्ता ही हर निष्ठा और काम पर भारी पड़ता है - लेकिन आगे से अगर कोई एजेंसी आनंद कुमार के खिलाफ कुछ करती है तो उसे बीएसपी उपाध्यक्ष के खिलाफ माना जाएगा, जिसके विरोध में कार्यकर्ता जगह जगह खड़े हो सकते हैं.

कभी सहारनपुर मायावती का अपना किला हुआ करता था जहां से दो बार वो विधानसभा के लिए चुनी भी गयीं. हालिया चुनाव में भी दलित-मुस्लिम गठजोड़ समझाने के लिए मायावती ने सहारनपुर पर ही भरोसा किया था - लेकिन वहां उन्हें एक भी सीट नहीं मिली. खैर, अब तो बात सीट से आगे बढ़ चुकी है.

मोदी-योगी से भी बड़ी चुनौती

संभव है जंतर मंतर की भीड़ मायावती को रामलीला मैदान जैसी और भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर तब के अरविंद केजरीवाल जैसे लगे हों. वैसे चंद्रशेखर से पहले गुजरात में जिग्नेश मेवाणी भी ऊना मार्च निकाला था और दलितों को जुटा कर उसी स्थान पर आजादी का जश्न मनाया जहां उन्हें बुरी तरह पीटा गया था. वो बात गुजरात की थी इसलिए मायावती ने रस्मअदायगी भर निभायी लेकिन चंद्रशेखर यूपी से हैं इसलिए मायावती अभी से सतर्क हो गयी हैं.

देखा जाय तो हाल के दिनों में बीएसपी के लिए दलित आंदोलन सड़क पर तभी उतरा जब जब मायावती किसी निजी हमले का शिकार हुईं. दयाशंकर की टिप्पणी के बाद लखनऊ में जैसा बवाल हुआ बीएसपी की ओर से वैसा न तो रोहित वेमुला की खुदकुशी के बाद हुआ और न ही ऊना में दलितों की पिटाई के बाद. हां, रोहित वेमुला को लेकर मायावती संसद में स्मृति ईरानी से जरूर भिड़ी थीं - लेकिन सड़क पर सब शून्य ही रहा, अगर मीडिया में बयान की बात और है.

ये नये मिजाज की मुहिम है...

चंद्रशेखर की भीम आर्मी का अंदाज और तेवर बिलकुल केजरीवाल जैसा ही है. चंद्रशेखर वो सब कर रहे हैं जिसे मायावती महत्वपूर्ण नहीं मानतीं. यूपी चुनाव में बीएसपी की ओर से सोशल मीडिया पर मौजूदगी दर्ज कराने की कोशिश जरूर हुई लेकिन वो नाकाफी रहा. चंद्रशेखर की भीम आर्मी इसमें आगे है. यूट्यूब पर वीडियो अपील ही नहीं, चंद्रशेखर के समर्थक व्हाट्सऐप पर भी खासे एक्टिव हैं. सबसे बड़ी बात बीएसपी ज्यादातर मायावती पर निजी हमलों को 'दलित की बेटी' का मुद्दा बना कर दलितों की सहानुभूति बटोरती रही है, लेकिन चंद्रशेखर दलितों की बात कर रहे हैं और सड़क पर संघर्ष कर रहे हैं.

दिलचस्प बात तो ये है कि जो दलित चुनावों में मायावती की जगह नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ को वोट दे दे रहा है, वही चंद्रशेखर की अपील पर जंतर मंतर पहुंच जाता है. मायावती की चिंता जायज है - मगर क्या वो दलितों के मन की बात समझ पा रही हैं?

इन्हें भी पढ़ें :

दलितों में दबंग होने की तमन्ना

बसपा की सल्‍तनत संभालने के लिए मायावती ने ढूंढा उत्‍तराधिकारी !

क्या बीएसपी को किसी संभावित टूट से बचा पाएंगी मायावती

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲