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भारत के लिए महत्वपूर्ण क्यों है शंघाई सहयोग संगठन

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 08 जून, 2017 03:27 PM
  • 08 जून, 2017 03:27 PM
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भारत ने बहुत ही बड़ी कूटनीतिक सूझबूझ से चीनी प्रभुत्व वाले शंघाई सहयोग संगठन में शामिल होने का फैसला किया है. इस संगठन से भारत को काफी उम्मीदें हैं.

हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कजाकस्तान में 8 और 9 जून को होने वाली शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में हिस्सा लेंगे. कजाकस्तान के साथ पारंपरिक रूप से भारत के रिश्ते बहुत अच्छे रहे हैं और अगर भारत मध्य एशिया में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है तो इसके साथ इसे और भी अच्छे रिश्ते की दरकार है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कजाकस्तान रवानगी से पहले जारी एक बयान में कहा,‘‘मैं एससीओ के साथ भारत के सम्पर्क को और गहरा करना चाहता हूं जो आर्थिक, सम्पर्क और आतंकवाद निरोधक सहयोग सहित अन्य चीजों में हमारी मदद करेगा.’ इससे साफ जाहिर होता है कि इस संगठन से भारत को काफी उम्मीदें हैं.

कजाकस्तान के लिए रवाना होते प्रधानमंत्री मोदी

वैसे आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर चीनी प्रभुत्व वाले इस संगठन में शामिल होने से भारत को क्या फायदा होने वाला है? लेकिन भारत ने बहुत ही बड़ी कूटनीतिक सूझबूझ से इसमें शामिल होने का फैसला किया है. बकौल विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (यूरेशिया) जी. वी. श्रीनिवास- "इसमें दो तरह के सहयोग हासिल होंगे. पहला व्यापार, अर्थव्यवस्था, कनेक्टिविटी, ऊर्जा, परिवहन, बैंकिंग जैसे क्षेत्रों में तो दूसरा आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में."

आइये जानते हैं इससे भारत को और क्या क्या फायदे होने के आसार हैं

* इससे भारत को मध्य एशिया की चुनौतियों और समस्याओं में महत्वपूर्ण रोल निभाने का मौका मिलेगा और भारत अपने आप को एक क्षेत्रीय ताकत के तौर पर प्रोजेक्ट कर पाएगा.

* चीन लगातार किसी न किसी मसले पर पाकिस्तान की तरफदारी करता रहा है लेकिन अब जब भारत और पाकिस्तान इसके सदस्य हो गए हैं तब चीन के लिए सदस्य देशों की भावनाओं को नजरअंदाज कर पाकिस्तान का हिमायती बनना आसान नहीं...

हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कजाकस्तान में 8 और 9 जून को होने वाली शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में हिस्सा लेंगे. कजाकस्तान के साथ पारंपरिक रूप से भारत के रिश्ते बहुत अच्छे रहे हैं और अगर भारत मध्य एशिया में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है तो इसके साथ इसे और भी अच्छे रिश्ते की दरकार है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी कजाकस्तान रवानगी से पहले जारी एक बयान में कहा,‘‘मैं एससीओ के साथ भारत के सम्पर्क को और गहरा करना चाहता हूं जो आर्थिक, सम्पर्क और आतंकवाद निरोधक सहयोग सहित अन्य चीजों में हमारी मदद करेगा.’ इससे साफ जाहिर होता है कि इस संगठन से भारत को काफी उम्मीदें हैं.

कजाकस्तान के लिए रवाना होते प्रधानमंत्री मोदी

वैसे आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर चीनी प्रभुत्व वाले इस संगठन में शामिल होने से भारत को क्या फायदा होने वाला है? लेकिन भारत ने बहुत ही बड़ी कूटनीतिक सूझबूझ से इसमें शामिल होने का फैसला किया है. बकौल विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (यूरेशिया) जी. वी. श्रीनिवास- "इसमें दो तरह के सहयोग हासिल होंगे. पहला व्यापार, अर्थव्यवस्था, कनेक्टिविटी, ऊर्जा, परिवहन, बैंकिंग जैसे क्षेत्रों में तो दूसरा आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में."

आइये जानते हैं इससे भारत को और क्या क्या फायदे होने के आसार हैं

* इससे भारत को मध्य एशिया की चुनौतियों और समस्याओं में महत्वपूर्ण रोल निभाने का मौका मिलेगा और भारत अपने आप को एक क्षेत्रीय ताकत के तौर पर प्रोजेक्ट कर पाएगा.

* चीन लगातार किसी न किसी मसले पर पाकिस्तान की तरफदारी करता रहा है लेकिन अब जब भारत और पाकिस्तान इसके सदस्य हो गए हैं तब चीन के लिए सदस्य देशों की भावनाओं को नजरअंदाज कर पाकिस्तान का हिमायती बनना आसान नहीं रहेगा.

* चीन हमेशा से NSG और अज़हर मसूद के मामले में अपना दखल देते रहा है ऐसे में इस ग्रुप में रहकर उस पर अंकुश लगा सकता है.

* पाकिस्तान लगातार भारत के खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा दिया है लेकिन जब इस संगठन में शामिल होने के बावजूद अगर पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आता है, तो भारत के पास उसपर दबाव बनाने का बड़ा मौका हाथ लगेगा.

* भारत पाकिस्तान की करतूतों को सबूतों के आधार पर उजागर कर सकता है.  

* भारत-पाकिस्तान के शामिल होने के बाद इस संगठन की स्थिति और भी मजबूत हो गई है , ऐसे में इतनी बड़ी शक्ति को अनसुना करना पाकिस्तान पर बहुत भारी पड़ सकता है.

* इसके अलावा भारत को पाकिस्तान को घेरने का एक बहुत बड़ा मंच मिल जाएगा.

* ऐसा माना जा रहा है कि आतंकवाद के मसले पर रूस के लिए भारत का सहयोग करना और भी आसान हो जायेगा.

शंघाई सहयोग संगठन क्या है

साल 1996 में रूस, चीन, ताजिकिस्तान, कजाकस्तान और किर्गिस्तान जैसे देशों ने आपसी तालमेल और सहयोग को लेकर सहमत हुए थे और तब इस शंघाई-5 के नाम से जाना जाता था.

चीन, रूस और चार मध्य एशियाई देशों कजाकस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उजबेकिस्तान के नेताओं ने जून 2001 में इस संगठन की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य नस्लीय और धार्मिक चरमपंथ से निबटने और व्यापार और निवेश को बढ़ाने का था.

भारत इसमें कैसे शामिल हुआ

सितंबर 2014 में भारत ने शंघाई सहयोग संगठन की सदस्यता के लिए आवेदन किया. रूस के उफ़ा में भारत को शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य का दर्जा मिलने का ऐलान 2015 में हुआ. उफा में हुए सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ दोनों मौजूद थे. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन ने सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए भारत और पाकिस्तान की सदस्यता मंजूर करने की घोषणा की थी.

हालांकि इस संगठन से भारत को क्या फायदा इसका फिलहाल आकलन ही किया जा सकता है लेकिन इसी के साथ कुछ हलकों में ये सवाल भी उठने लगें हैं कि क्या इस संगठन में आने से भारत के चीन से रिश्ते सुधर पाएंगे और एनएसजी में उसकी सदस्यता पर बीजिंग के रवैये में बदलाव आएगा?

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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