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ये वो बीएचयू नहीं!

    • राठौर विचित्रमणि सिंह
    • Updated: 25 सितम्बर, 2017 05:30 PM
  • 25 सितम्बर, 2017 05:30 PM
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प्रशासन चाहे देश का हो, राज्य का हो या किसी विश्वविद्यालय का ही क्यों ना हो, वो यही सोचता है कि गुनाहों को परदे के नीचे ढंक दो. उससे गुनाह दफ्न हो जाएगा और हुकूमत की चमकती छवि और चमक कर निखर जाएगी.

उन्माद, अंधविश्वास और अंध श्रद्धा अक्सर सभ्यता, संस्कृति और परंपरा की खाल ओढ़कर आते हैं. फिर आदमी ये नहीं देख पाता कि सही क्या है, गलत क्या है? काशी हिंदू विश्वविद्यालय में एक छात्रा से सरेशाम हुई छेड़छाड़ का मामला इसी श्रेणी में है. एक लड़की से छेड़छाड़ हो, उसपर कोई कार्रवाई ना हो, कार्रवाई ना होने से हंगामा हो और हंगामा हो तो पीड़ित लड़की के पक्षधर लड़कियों पर लाठी चार्ज हो. फिर भी इस सारी घटना का विरोध करने की जगह सोच इस भाषा में सामने आती हो कि आग पहले किसने लगाई तो सोच लीजिए कि हमारा समाज अपनी सभ्यता के किस पतनकालीन दौर से गुजर रहा है.

देश में किसकी सरकार है, भूल जाइए. ये भी भूल जाइए कि राज्य में किसकी सरकार है और बीएचयू में आज किस विचारधारा की शख्सियत कुलपति हैं. किसी विचारधारा के शख्स के वीसी होने में कोई बुराई नहीं है. बुराई तब है जब वो मानवीय सवालों पर, किसी लड़की की अस्मिता और मर्यादा पर भी एक कुलपति की तरह नहीं बल्कि किसी पार्टी के छुटभैया नेता की तरह बर्ताव करने लगे.

काशी हिंदू विश्वविद्यालयबीएचयू में फाइन आर्ट्स की उस छात्रा से कैंपस में ही छेड़छाड़ 21 सितंबर की शाम हुई. लड़की का आरोप है कि प्रॉक्टोरियल बोर्ड ने उसकी शिकायत को पहले अनसुना कर दिया. फिर किसी सदस्य ने कहा कि शाम छह बजे के बाद होस्टल से बाहर रहकर क्या किसी वारदात के होने का इंतजार कर रही थी. उस लड़की के होस्टल की वार्डन ने कहा कि होस्टल में देर से क्यों लौटती हो. लड़की का ये भी आरोप है कि जहां उससे दो लड़कों ने बुरा बर्ताव किया, उसके सौ मीटर की दूरी पर ही गार्ड खड़े थे लेकिन किसी ने कोई हरकत नहीं दिखाई. उन दोनों शोहदों को पकड़ने की कोशिश तक नहीं की. और चार दिन बाद भी अब तक ये पता नहीं है कि छेड़छाड़ करने वाले वो लड़के थे कौन.

आज आंदोलन करने वालों को आप नक्सली...

उन्माद, अंधविश्वास और अंध श्रद्धा अक्सर सभ्यता, संस्कृति और परंपरा की खाल ओढ़कर आते हैं. फिर आदमी ये नहीं देख पाता कि सही क्या है, गलत क्या है? काशी हिंदू विश्वविद्यालय में एक छात्रा से सरेशाम हुई छेड़छाड़ का मामला इसी श्रेणी में है. एक लड़की से छेड़छाड़ हो, उसपर कोई कार्रवाई ना हो, कार्रवाई ना होने से हंगामा हो और हंगामा हो तो पीड़ित लड़की के पक्षधर लड़कियों पर लाठी चार्ज हो. फिर भी इस सारी घटना का विरोध करने की जगह सोच इस भाषा में सामने आती हो कि आग पहले किसने लगाई तो सोच लीजिए कि हमारा समाज अपनी सभ्यता के किस पतनकालीन दौर से गुजर रहा है.

देश में किसकी सरकार है, भूल जाइए. ये भी भूल जाइए कि राज्य में किसकी सरकार है और बीएचयू में आज किस विचारधारा की शख्सियत कुलपति हैं. किसी विचारधारा के शख्स के वीसी होने में कोई बुराई नहीं है. बुराई तब है जब वो मानवीय सवालों पर, किसी लड़की की अस्मिता और मर्यादा पर भी एक कुलपति की तरह नहीं बल्कि किसी पार्टी के छुटभैया नेता की तरह बर्ताव करने लगे.

काशी हिंदू विश्वविद्यालयबीएचयू में फाइन आर्ट्स की उस छात्रा से कैंपस में ही छेड़छाड़ 21 सितंबर की शाम हुई. लड़की का आरोप है कि प्रॉक्टोरियल बोर्ड ने उसकी शिकायत को पहले अनसुना कर दिया. फिर किसी सदस्य ने कहा कि शाम छह बजे के बाद होस्टल से बाहर रहकर क्या किसी वारदात के होने का इंतजार कर रही थी. उस लड़की के होस्टल की वार्डन ने कहा कि होस्टल में देर से क्यों लौटती हो. लड़की का ये भी आरोप है कि जहां उससे दो लड़कों ने बुरा बर्ताव किया, उसके सौ मीटर की दूरी पर ही गार्ड खड़े थे लेकिन किसी ने कोई हरकत नहीं दिखाई. उन दोनों शोहदों को पकड़ने की कोशिश तक नहीं की. और चार दिन बाद भी अब तक ये पता नहीं है कि छेड़छाड़ करने वाले वो लड़के थे कौन.

आज आंदोलन करने वालों को आप नक्सली कह सकते हैं. आप उन्हें असामाजिक तत्व कह सकते हैं. आप किसी राजनीतिक दल का पिट्ठू कह सकते हैं. जुबान खुली है, कुछ भी कह सकते हैं. लेकिन क्या जिस दिन घटना हुई, उसी दिन कोई कार्रवाई विश्वविद्यालय प्रशासन ने की होती तो क्या ये मामला इतना बढ़ता? लेकिन प्रशासन चाहे देश का हो, राज्य का हो या किसी विश्वविद्यालय का ही क्यों ना हो, वो यही सोचता है कि गुनाहों को परदे के नीचे ढंक दो. उससे गुनाह दफ्न हो जाएगा और हुकूमत की चमकती छवि और चमक कर निखर जाएगी. बीएचयू में भी यही हुआ. पहले एक पीड़ित छात्रा की शिकायत को दबाने की कोशिश हुई, नहीं दबी तो राजनीतिक रंग दिया जाने लगा.

लेकिन राजनीतिक रंग दे कौन रहा है? अगर राजनीतिक दल दे रहे हैं तो उसको नजरअंदाज कीजिए या आलोचना कीजिए, आपकी मर्जी. लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन ऐसा करने लगे तो? क्यों नहीं कुलपति ने ये न्यूनतम साहस दिखाया कि मानसिक यातना से गुजरी उस छात्रा की शिकायत को अनसुना करने वाले अपने अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की? क्यों नहीं उस वार्डन से जवाब तलब किया गया, जिसको लगता है कि छेडछाड़ का कारण लड़की का देर से लौटना है? खुद कुलपति ने ही आगे बढ़कर क्यों नहीं इस शर्मनाक घटना के लिए माफी मांग ली?

ऐसा नहीं होगा. जो राजनीति कर रहे हैं, उनको भूल जाइए लेकिन लड़कियों की उन बुनियादी मांगों को भी कौन सुन रहा है? वो चाहती हैं कि कम से कम परिसर में उनको सुरक्षा मिले. सीसीटीवी का इंतजाम हो ताकि हर गुनाह, हर अधम बर्ताव कैमरे में दर्ज हो और उनकी आजादी की इतनी मर्यादा बनी रहे कि शाम छह बजे के बाद अगर वो होस्टल से बाहर रह जाएं तो किसी को उनके साथ छेड़छाड़ करने का लाइसेंस ना मिल जाए. लड़कियों को स्वतंत्रता की कीमत अपनी सुरक्षा के बिनाह पर ना चुकानी पड़े.

बीएचयू से अपना एक भावुक और मधुर नाता है. जिंदगी का बहुत कुछ वहां से सीखा है. कुछ मीठी यादें हैं. कुछ कड़वे सच हैं. इसीलिए उसको चलाने वालों का ये पतन पीड़ा पहुंचाता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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