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Mukhtar Ansari: कभी खुद में 'सरकार' थे मुख्तार, लेकिन वक्त बदला तो देखिए कितने लाचार हो गए

    • मुकेश कुमार गजेंद्र
    • Updated: 02 अप्रिल, 2021 07:13 PM
  • 02 अप्रिल, 2021 07:13 PM
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एक वक्त था जब मुख्तार अंसारी का गुंडाराज पूर्वांचल में खून बनकर बरसता था. हथियार के बल पर आतंक फैलाने के शौकीन मुख्तार जब चलते, तो उनके गुर्गे असलहा लहराते हुए काफिले के साथ होते थे. लेकिन अब समय बदल गया है, बाहुबली डॉन व्हील चेयर पर बैठा लाचार नजर आ रहा है.

'समय बड़ा बलवान हुआ है, समय समय पर भारी; समय रहा जी सबका राजा, जिससे दुनिया हारी. पलक झपकते सुबह हुई है, पलक झपकते शाम; पलक झपकते जख्म मिले हैं, पलक झपकते वाम. समय समय की ताकत ऐसी, देखे दुनिया सारी; समय बड़ा बलवान हुआ है, समय समय पर भारी.' कई बार इंसान खुद को बलवान समझने लगता है, लेकिन वह भूल जाता है कि 'इंसान' नहीं समय 'बलवान' होता है. कभी पूर्वांचल में खौफ का पर्याय रहे बाहुबली मुख्तार अंसारी का एक वीडियो देखने के बाद मेरे जेहन में दो दृश्य कौंधने लगे. एक दृश्य जो कल देखा, जिसमें मुख्तार अंसारी एक व्हीलचेयर में बैठे हुए बेहद लाचार नजर आ रहे हैं. उनके चारों तरफ पुलिसवाले मौजूद हैं. दूसरा दृश्य आज से 16 साल पहले मऊ दंगों के दौरान का है, जब एक खुली जीप में असलहा लहराता एक माफिया डॉन रोड शो कर रहा था. उसके चारों तरफ गुर्गे हाथ में हथियार लेकर उसकी जय-जयकार कर रहे थे.

साल 1996 में आई बॉलीवुड एक्टर सनी देओल की फिल्म घातक का विलेन आपको याद होगा शायद. इसमें डैनी डेन्जोंगपा ने कातिया का किरदार निभाया था. फिल्म में जिस तरह से लोगों पर कातिया का खौफ दिखाया गया है, उसी तरह का डर उस दौर में पूर्वांचल के लोगों में हुआ करता था. मुख्तार अंसारी का गुंडाराज पूर्वांचल में खून बनकर बरसता था. हथियार के बल पर डर और आतंक फैलाने के शौकीन मुख्तार जब चलते, तो उनके गुर्गे असलहा लहराते हुए काफिले के साथ चलते नजर आ जाते थे. किसी की क्या मजाल कि इनके काफिले को रोकने की जुर्रत कर सके. उसके गैंग का आतंक इस कदर था कि कोई भी गुंडा टैक्स या हफ्ता देने से इंकार करने के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकता था. मुख्तार ने बेखौफ होकर संगीन अपराधों को अंजाम दिया. शराब से लेकर रेलवे के ठेके तक, सरकारी ठेकों को हथियाने के लिए अपहरण और हत्या जैसे जघन्य अपराध को अंजाम देने से पहले जरा भी नहीं सोचा.

'समय बड़ा बलवान हुआ है, समय समय पर भारी; समय रहा जी सबका राजा, जिससे दुनिया हारी. पलक झपकते सुबह हुई है, पलक झपकते शाम; पलक झपकते जख्म मिले हैं, पलक झपकते वाम. समय समय की ताकत ऐसी, देखे दुनिया सारी; समय बड़ा बलवान हुआ है, समय समय पर भारी.' कई बार इंसान खुद को बलवान समझने लगता है, लेकिन वह भूल जाता है कि 'इंसान' नहीं समय 'बलवान' होता है. कभी पूर्वांचल में खौफ का पर्याय रहे बाहुबली मुख्तार अंसारी का एक वीडियो देखने के बाद मेरे जेहन में दो दृश्य कौंधने लगे. एक दृश्य जो कल देखा, जिसमें मुख्तार अंसारी एक व्हीलचेयर में बैठे हुए बेहद लाचार नजर आ रहे हैं. उनके चारों तरफ पुलिसवाले मौजूद हैं. दूसरा दृश्य आज से 16 साल पहले मऊ दंगों के दौरान का है, जब एक खुली जीप में असलहा लहराता एक माफिया डॉन रोड शो कर रहा था. उसके चारों तरफ गुर्गे हाथ में हथियार लेकर उसकी जय-जयकार कर रहे थे.

साल 1996 में आई बॉलीवुड एक्टर सनी देओल की फिल्म घातक का विलेन आपको याद होगा शायद. इसमें डैनी डेन्जोंगपा ने कातिया का किरदार निभाया था. फिल्म में जिस तरह से लोगों पर कातिया का खौफ दिखाया गया है, उसी तरह का डर उस दौर में पूर्वांचल के लोगों में हुआ करता था. मुख्तार अंसारी का गुंडाराज पूर्वांचल में खून बनकर बरसता था. हथियार के बल पर डर और आतंक फैलाने के शौकीन मुख्तार जब चलते, तो उनके गुर्गे असलहा लहराते हुए काफिले के साथ चलते नजर आ जाते थे. किसी की क्या मजाल कि इनके काफिले को रोकने की जुर्रत कर सके. उसके गैंग का आतंक इस कदर था कि कोई भी गुंडा टैक्स या हफ्ता देने से इंकार करने के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकता था. मुख्तार ने बेखौफ होकर संगीन अपराधों को अंजाम दिया. शराब से लेकर रेलवे के ठेके तक, सरकारी ठेकों को हथियाने के लिए अपहरण और हत्या जैसे जघन्य अपराध को अंजाम देने से पहले जरा भी नहीं सोचा.

कभी खुली जीप में असलहा लहराते हुए घूमने वाले मुख्तार अंसारी व्हील चेयर पर लाचार नजर आ रहे थे.

30 जून 1963 को उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के मोहम्दाबाद गांव में पैदा हुए मुख़्तार अंसारी का फैमली बैकग्राउंड राजनीतिक है. मऊ विधानसभा से पांचवी बार विधायक चुने गए बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी के दादा आजादी से पहले इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. नाना महावीर चक्र विजेता तो चाचा देश के उप-राष्ट्रपति रहे हैं. खुद मुख्तार अंसारी कॉलेज टाइम में एक बेहरीन क्रिकेटर हुआ करते थे. बहुत अच्छी बॉलिंग करते थे. कहा जाता है कि यदि उनको सही ट्रेंनिंग मिली होती, तो शायद वो टीम इंडिया में शामिल होकर इंटरनेशनल प्लेयर बन सकते थे. इतनी गौरवशाली पारिवारिक पृष्ठभूमि के होने के बावजूद वह जुर्म के रास्ते पर चल पड़े. आज उनके खिलाफ 40 से ज्यादा केस दर्ज हैं. वह पिछले 13 सालों से जेल में बंद है. जितने केस हैं, उससे कहीं ज्यादा दुश्मन हैं. हालात ये है कि जेल भी उनके लिए सुरक्षित नहीं है. यही वजह है कि लगातार उनकी जेल बदली जाती रही है.

ऐसे बने जरायम की दुनिया के बेताज बादशाह

साल 1988 में मंडी परिषद की ठेकेदारी को लेकर मुख्‍तार अंसारी ने सचिदानंद राय की हत्या कर दी. इसके बाद मुख़्तार का नाम बड़े क्राइम में पुलिस फाइल में दर्ज कर लिया गया. इस दौरान त्रिभुवन सिंह के कांस्टेबल भाई राजेंद्र सिंह की हत्या वाराणसी में कर दी गई, इसमें मुख़्तार का नाम एक बार फिर सामने आया. साल 1991 में चंदौली में मुख़्तार अंसारी को गिरफ्तार किया गया, लेकिन रास्ते में दो पुलिसवालों को गोली मार फरार हो गए. रेलवे के ठेके, शराब के ठेके, कोयले के काले कारोबार को शहर से बाहर रहकर संचालित करना शुरू कर दिया. साल 1996 में मुख़्तार का नाम एक बार फिर सुर्ख़ियों में आया, जब एएसपी उदय शंकर पर जानलेवा हमला हुआ. साल 1997 में पूर्वांचल के सबसे बड़े कोयला व्यापारी रुंगटा के अपहरण के बाद मुख़्तार अंसारी का नाम जरायम की दुनिया में गहरे काले अक्षरों में दर्ज हो गया. उस वक्त तक माफिया डॉन बृजेश सिंह का उदय हो चुका था.

मुख्तार vs बृजेश: यूपी का सबसे बड़ा गैंगवार

आपने अनुराग कश्यप की फिल्म गैंग्स ऑफ वासेपुर तो देखी ही होगी. उसमें जिस तरह का गैंगवार दिखाया गया है, उसी तरह खतरनाक तरीके से काम करने वाले गैंग्स बनारस, मऊ, गाजीपुर और जौनपुर में 2010 तक पूरी राजनीति पर हावी थे. इसके दो ध्रुव थे. एक के केंद्र में मुख्तार अंसारी थे, तो दूसरे के केंद्र में बृजेश सिंह. फिरौती, रंगदारी, किडनैपिंग और करोड़ों की ठेकेदारी को लेकर मुख़्तार और बृजेश सिंह के गैंग के बीच अक्सर भिड़त होती रहती थी. अपराध की दुनिया पर फतह हासिल करने के बाद मुख्तार जिस गति से राजनीति में आगे बढ़ रहे थे, उसी गति से बृजेश जरायम की दुनिया का बेताज बादशाह बनने के लिए बावले थे. साल 2002 में बृजेश सिंह और मुख़्तार अंसारी के बीच हुए गैंगवार में मुख़्तार के तीन लोग मारे गए. बृजेश सिंह भी जख़्मी हो गए. उनके मरने की खबर आई, लेकिन कई महीनों तक किसी को कानोंकान खबर नहीं हुई कि बृजेश सिंह जिन्दा हैं.

विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के बाद दंगे

माफिया डॉन बृजेश सिंह की गैरहाजिरी में बाहुबली मुख़्तार अंसारी का वर्चस्व बढ़ता गया. मुख़्तार अंसारी और बृजेश सिंह के बीच गैंगवार की कहानी देखनी हो, तो ओटीटी प्लेटफॉर्म MX Player पर क्रांति प्रकाश झा की वेब सीरीज 'रक्तांचल' देख सकते हैं. इसका दूसरा सीजन भी जल्द रिलीज होने वाला है. इधर, आपराधिक छवि मजबूत होने के साथ ही अंसारी परिवार की राजनीतिक छवि कमजोर होने लगी. इसका नतीजा यह हुआ कि साल 2002 में हुए विधानसभा चुनाव में कृष्णानंद राय से मुख्तार के भाई अफजल अंसारी हार गए. इसमें कृष्णानंद राय को बृजेश सिंह का भी समर्थन मिला था. इस चुनाव के बाद गाजीपुर और मऊ में हिन्दू-मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण होने लगा. आए दिन सांप्रदायिक झगड़े और दंगे होने लगे. इसी बीच मुख्तार अंसारी ने शार्प शूटर मुन्ना बजरंगी की मदद से विधायक कृष्णानंद राय की उनके पांच साथियों के साथ हत्‍या करा दी. इसके बाद हर तरफ दंगे भड़क उठे.

योगी और मुख्तार की 16 साल पुरानी अदावत

साल 2005 में जब मऊ में दंगे हुए, तो मुख्तार अंसारी खुली जीप में घूम रहे थे. आरोप है कि धर्म विशेष के लोगों के खिलाफ जमकर अत्याचार किया गया था. कहा गया कि दंगा भड़काने का काम मुख्तार अंसारी ने ही किया. इन दंगों के बाद साल 2006 में यूपी के वर्तमान सीएम और तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ ने मुख्तार अंसारी को खुली चुनौती दी कि मऊ आकर पीड़ितों को इंसाफ दिलाएंगे, लेकिन उन्हें मऊ में दोहरीघाट में रोक दिया गया था. इसके तीन साल बाद 2008 में योगी आदित्यनाथ आजमगढ़ जा रहे थे, तब उनके काफिले पर हमला कर दिया गया. उनकी गाड़ी में तोड़फोड़ हुई थी. उपद्रवियों ने आगजनी की भी कोशिश की थी. उस वक्त योगी आदित्यनाथ बाल-बाल बचे थे. हमले से बचने के बाद योगी ने खुले शब्दों में मुख्तार अंसारी को चेतावनी दी थी. इसके बाद जब से योगी सूबे के सीएम बने हैं, तभी से उन्होंने यूपी में अपराधियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है.

योगी के आते ही बाहुबलियों के बुरे दिन शुरू

यूपी में योगी आदित्यनाथ के सत्ता में आने के बाद मुख्तार अंसारी जैसे अपराधियों के बुरे दिन शुरू हो गए. मुख्तार के खिलाफ लगातार पुलिस कार्रवाई की जा रही है. उसके अवैध निर्माण ध्वस्त कर दिए गए. कई बेनामी संपत्तियां जब्त कर ली गईं. परिवार के लोगों पर भी कानूनी शिकंजा कसा जाने लगा. मुख्तार को पंजाब से यूपी लाने की भी लगातार कोशिश की जा रही है. बताया जा रहा है कि बीते 2 सालों में यूपी पुलिस की टीम 8 बार मुख्तार को लेने पंजाब आ चुकी है. लेकिन हर बार सेहत, सुरक्षा और कोरोना का कारण बताकर पंजाब पुलिस ने उसे सौंपने से इनकार कर दिया. वैसे असली बात ये है कि कानपुर के विकास दुबे एनकाउंटर के बाद ही मुख्तार अंसारी डरे हुए हैं. यहां तक कि पंजाब सरकार को पत्र लिखकर आशंका जताई है कि जैसे विकास दुबे की जीप पलट गई और जान चली गई, ऐसे मेरी भी जा सकती है. अभी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी मुख्तार की पैंतरेबाजी जारी है.

2 साल से पंजाब की जेल में बंद है मुख्तार

8 जनवरी 2019 को पंजाब के मोहाली के एक बड़े बिल्डर की शिकायत पर पंजाब पुलिस ने 10 करोड़ की फिरौती मांगने का केस मुख्तार अंसारी के खिलाफ दर्ज किया. 12 जनवरी को प्रोडक्शन वारंट हासिल करने के लिए पुलिस कोर्ट पहुंची. 21 जनवरी 2019 को पुलिस मुख्तार को प्रोडक्शन वारंट पर यूपी से मोहाली ले आई. 22 जनवरी 2019 को अंसारी को मोहाली कोर्ट में पेश किया. एक दिन का रिमांड मिला. 24 जनवरी को न्यायिक हिरासत में अंसारी को रोपड़ जेल भेज दिया गया. तबसे वो इसी जेल में बंद है. यूपी पुलिस की लाख कोशिशों के बावजूद उसे पंजाब पुलिस लाने नहीं दे रही है. यहां तक सुप्रीम कोर्ट ने भी अभी हालही में आदेश दिया है कि मुख्तार जल्द से जल्द यूपी वापस भेजा जाए, लेकिन सियासत और सरकार के फेर में फंसे कानून की उतनी बिसात कहां कि कोर्ट के आदेश का पालन हो पाए. अभी भी पंजाब सरकार और मुख्तार अंसारी इसी जुगत में हैं कि यूपी वापस न जा पाए.

मुख्तार के परिवार का गौरवशाली इतिहास

जरायम की दुनिया में मुख्तार अंसारी का नाम बदनाम है, लेकिन उनके परिवार का इतिहास उतना ही गौरवशाली बताया जाता है. खानदानी रसूख की जो तारीख इस घराने की है वैसी शायद ही पूर्वांचल के किसी खानदान की हो. बाहुबली मुख्तार अंसारी के दादा डॉ. मुख्तार अहमद अंसारी स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान 1926-27 में इंडियन नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष थे. उनकी याद में दिल्ली की एक रोड का नाम उनके नाम पर है. दादा की तरह नाना भी नामचीन हस्तियों में से एक थे. कम ही लोग जानते हैं कि महावीर चक्र विजेता ब्रिगेडियर उस्मान मुख्तार के नाना थे. उन्होंने 1947 की जंग में न सिर्फ भारतीय सेना की तरफ से नवशेरा की लड़ाई लड़ी बल्कि हिंदुस्तान को जीत भी दिलाई. हालांकि वो खुद इस जंग में हिंदुस्तान के लिए शहीद हो गए थे. मुख्तार के पिता सुब्हानउल्लाह अंसारी कम्यूनिस्ट नेता थे, इतना ही नहीं पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी मुख्तार के रिश्ते में चाचा लगते हैं.



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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