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बाबरी के भूत ने आडवाणी एंड कंपनी का रिटायरमेंट खराब कर दिया है !

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 25 मई, 2017 10:17 PM
  • 25 मई, 2017 10:17 PM
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मोदी सरकार तीन साल पूरे होने का जश्‍न मना रही है, लेकिन उसी का एक 'वरिष्‍ठ' धड़ा, एक कोने में बैठकर कोर्ट पेशी की तैयारी कर रहा है. बाबरी केस की.

किसी भी धर्म, राज्य अथवा जाति से जुड़ा भारतीय हो, उसकी पहली प्राथमिकता प्रतियोगी परीक्षाओं को क्रैक कर सरकारी नौकरी पाना ही होती है. आप लोगों से पूछिए तो जवाब होगा कि सरकारी नौकरी में जहाँ जॉब सिक्योरिटी है तो वहीं दूसरी तरफ रिटायरमेंट के बाद की भी सुविधाएँ शामिल होती हैं. ये सुख सुविधाएँ जीवन को मनोरम बनाती हैं. आप सिर्फ कल्पना कर के देखिये आपको महसूस होगा कि अपने जीवन का एक लम्बा समय नौकरी में बिताने के बाद आपको सिर्फ और सिर्फ आराम की कामना रहेगी. आप केवल यही चाहेंगे कि आपका बुढ़ापा सही से गुजरे और आगे आप शांति से रह सकें.

अब उपरोक्त इंगित बात को राजनीति के सन्दर्भ में पढ़िए. आपको मिलेगा कि सरकारी नौकरी से इतर राजनीति तक आते आते मामला थोड़ा अलग हो जाता है. जैसे जैसे नेताओं की उम्र बढ़ती है और वो सीनियर से सुपर सीनियर बनते हैं पार्टी में उनका कद पहले की अपेक्षा बढ़ता जाता है. एक समय ऐसा आता है जब पार्टी के सुपर सीनियर नेताओं को लगता है कि अब वो पार्टी से नहीं हैं बल्कि पार्टी उनसे है. साथ ही वो ये भी सोचते हैं कि पार्टी के नेताओं को उनका आशीष और मार्गदर्शन तब ही मिलेगा जब वो उनकी हां में हां मिलाएं.

अब इस बात को आप सत्ताधारी पार्टी भाजपा के चश्मे से देखिये. आपको मिलेगा कि भाजपा के मामले में ये बात पूर्णतः काल्पनिक है. हालिया दिनों में पार्टी के बड़े और अनुभवी नेताओं की कहीं कोई सुनवाई नहीं है. आये रोज़ इनकी हालत बद से बदतर होती जा रही है.

कोर्ट ने कहा कि अब अदालत में हाजिर हों मामले के दोषी

गौरतलब है कि मोदी सरकार को सत्ता में आए 3 साल पूरे हो चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह देश के लोगों को बीते इन 3 सालों में अपनी और अपनी सरकार की उपलब्धियां गिना रहे हैं. लोगों को इस बात का एहसास कराया जा रहा है कि...

किसी भी धर्म, राज्य अथवा जाति से जुड़ा भारतीय हो, उसकी पहली प्राथमिकता प्रतियोगी परीक्षाओं को क्रैक कर सरकारी नौकरी पाना ही होती है. आप लोगों से पूछिए तो जवाब होगा कि सरकारी नौकरी में जहाँ जॉब सिक्योरिटी है तो वहीं दूसरी तरफ रिटायरमेंट के बाद की भी सुविधाएँ शामिल होती हैं. ये सुख सुविधाएँ जीवन को मनोरम बनाती हैं. आप सिर्फ कल्पना कर के देखिये आपको महसूस होगा कि अपने जीवन का एक लम्बा समय नौकरी में बिताने के बाद आपको सिर्फ और सिर्फ आराम की कामना रहेगी. आप केवल यही चाहेंगे कि आपका बुढ़ापा सही से गुजरे और आगे आप शांति से रह सकें.

अब उपरोक्त इंगित बात को राजनीति के सन्दर्भ में पढ़िए. आपको मिलेगा कि सरकारी नौकरी से इतर राजनीति तक आते आते मामला थोड़ा अलग हो जाता है. जैसे जैसे नेताओं की उम्र बढ़ती है और वो सीनियर से सुपर सीनियर बनते हैं पार्टी में उनका कद पहले की अपेक्षा बढ़ता जाता है. एक समय ऐसा आता है जब पार्टी के सुपर सीनियर नेताओं को लगता है कि अब वो पार्टी से नहीं हैं बल्कि पार्टी उनसे है. साथ ही वो ये भी सोचते हैं कि पार्टी के नेताओं को उनका आशीष और मार्गदर्शन तब ही मिलेगा जब वो उनकी हां में हां मिलाएं.

अब इस बात को आप सत्ताधारी पार्टी भाजपा के चश्मे से देखिये. आपको मिलेगा कि भाजपा के मामले में ये बात पूर्णतः काल्पनिक है. हालिया दिनों में पार्टी के बड़े और अनुभवी नेताओं की कहीं कोई सुनवाई नहीं है. आये रोज़ इनकी हालत बद से बदतर होती जा रही है.

कोर्ट ने कहा कि अब अदालत में हाजिर हों मामले के दोषी

गौरतलब है कि मोदी सरकार को सत्ता में आए 3 साल पूरे हो चुके हैं. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह देश के लोगों को बीते इन 3 सालों में अपनी और अपनी सरकार की उपलब्धियां गिना रहे हैं. लोगों को इस बात का एहसास कराया जा रहा है कि बीते तीन सालों में इस देश में ऐसा बहुत कुछ हुआ जो गुजरे 60 सालों में कभी नहीं हुआ था. मोदी सरकार की कार्यप्रणाली से भले ही लोग खुश हों मगर पार्टी के सुपर सीनियर नेताओं को उनका रवैया संतोष जनक नहीं लग रहा है. आज पार्टी के सीनियर नेता आइडेंटिटी क्राइसिस का शिकार हो गए हैं. पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटिहार की हालत किसी से छुपी नहीं है.

कह सकते हैं कि ये दोनों नेता दूध के जले थे जो अब मट्ठा भी फूंक फूंक कर पी रहे हैं. हालिया दिनों में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की स्थिति कुछ ऐसी हो गयी है कि कुछ दिन तो ये सुकून से रहते हैं फिर कुछ ऐसा हो जाता है कि इनकी रातों की नींद और दिन का चैन उड़ जाता है. इस बार फिर कुछ ऐसा हुआ है जिसने इनके माथे पर चिंता के बल और पसीने की बूंदें ला दीं हैं. जी हाँ एक बार फिर से बाबरी के भूत ने इनको डराना शुरू कर दिया है.

बहरहाल खबर है कि अयोध्या के राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद मामले में सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने गुरुवार को मामले से जुड़े सभी आरोप‍ियों को 30 मई को कोर्ट में हाजिर होने का आदेश‍ द‍िया है. आरोप‍ी नेताओं के वकील केके मिश्रा की मानें तो केस की सुनवाई के दौरान जज सुरेंद्र कुमार यादव ने कहा कि अब इस मामले में कोई बहाना नहीं चलेगा. साथ ही सभी दोषियों को निश्चित तिथि पर अदालत में हाज़िर होना होगा.

ज्ञात हो कि आज इस मामले से जुड़े 5 आरोपियों श‍िवसेना नेता सतीश प्रधान, महंत नृत्य गोपाल दास, रामविलास वेदांती, चंपत राय, बैकुंठ लाल शर्मा की अदालत में पेशी होनी थी जिसमें केवल श‍िवसेना नेता सतीश प्रधान ने ही अदालत परिसर में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. इसके अलावा लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा और विष्णु हरि डालमिया को भी 30 मई को कोर्ट में हाजिर होने का आदेश द‍िया गया है. सवा महीना पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी पर आपराधिक षड्यंत्र करने का केस चलाने का आदेश दिया था. इस मौक पर इन सभी वरिष्‍ठ महानुभावों से मिलने मीडिया तो पहुंचा, बीजेपी का कोई नेता नहीं.

इन नेताओं पर 1992 में बाबरी मस्जिद को गिराने की साजिश में शामिल होने का आरोप है. आपको बताते चलें कि आरोपियों में शामिल सतीश प्रधान, रामविलास वेदांती, चंपत राय, बीएल शर्मा, महंत नृत्य गोपाल दास और धर्म दास 20-20 हजार के निजी बांड पर जमानत पर बाहर हैं.

खैर अब ये कहना हमारे लिए अतिश्योक्ति न होगी कि वक्त अपने को दोहराता है. आज फिर वक्त ने करवट बदली है. एक समय था जब वक्त के चलते ये सभी वरिष्ठ नेता फर्श से अर्श पर गए थे और ये वक़्त ही है जिसनें इन्हें वापस अर्श से फर्श पर पटक दिया है और इनका रिटायरमेंट तथा पेंशन खराब कर दी है. अंत में हम ईश्वर से यही कामना कर सकते हैं कि वो इन सभी नेताओं को सब्र और शांति दे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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