• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

महाराष्ट्र में अयोध्या पर फैसले का फायदा किसे मिलेगा - BJP या शिवसेना को?

    • आईचौक
    • Updated: 10 नवम्बर, 2019 07:00 PM
  • 10 नवम्बर, 2019 07:00 PM
offline
बीजेपी और शिवसेना दोनों ही एक ही लाइन की राजनीति करते हैं. ऐसे में जबकि महाराष्ट्र में एक बार फिर सरकार बनाने की कोशिशें तेज हो चली हैं, देखना दिलचस्प होगा कि अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ज्यादा फायदा किसे होता है?

देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में यथास्थिति बनी हुई थी. विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से करीब चार घंटे पहले महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने बीजेपी से पूछ लिया है कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते वो सरकार बनाने की इच्छुक है क्या?

राज्यपाल का पत्र मिलने के बाद बीजेपी आगे की रणनीति तैयार कर रही है. बीजेपी की ओर से अभी इतना ही बताया गया है कि कोर कमेटी की मीटिंग में राज्यपाल के बुलावे पर चर्चा होने के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा.

शिवसेना ने राज्यपाल की इस पहल का स्वागत किया है - लेकिन लगे हाथ सरकार बनाने का नया एक्शन प्लान भी पेश कर दिया है. अब तक एनसीपी नेताओं के संपर्क में रही शिवसेना अब कांग्रेस का भी खास तौर पर जिक्र करने लगी है.

विधायकों को लेकर शिवसेना और कांग्रेस का डर कम होने की बजाय लगता है बढ़ने ही लगा है. शिवसेना विधायकों के ख्याल रखने का जिम्मा तो खुद आदित्य ठाकरने ने अपने हाथ में ले रखा है.

अयोध्या पर फैसले के बाद महाराष्ट्र में राजनीतिक कवायद चालू

अयोध्या में राम मंदिर बनाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले वाले दिन ही आधी रात को महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल बचा था. तभी शाम को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सरकार बनाने की बची संभावनाएं टटोलते हुए बीजेपी से संपर्क किया. बताते हैं कि उससे पहले दिन में ही राज्य के एडवोकेट जनरल आशुतोष कुंभकोनी राजभवन में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिले भी थे.

बीजेपी नेता चंद्रकांत पाटिल ने राज्यपाल के पत्र मिलने की पुष्टि करते हुए बताया कि आगे की रणनीति कोर कमेटी के फैसले के बाद तय होगी. देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफा देने से पहले भी चंद्रकांत पाटिल की अगुवाई में बीजेपी नेताओं ने राज्यपाल से मुलाकात की थी.

बीजेपी के साथ जारी तनातनी के बीच शिवसेना नेता संजय राउत ने राज्यपाल के इस ऑफर को स्वागत योग्य कदम बताया. संजय राउत ने कहा कि राज्यपाल का फैसला निर्धारित प्रक्रिया के अनुरूप है. संजय...

देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में यथास्थिति बनी हुई थी. विधानसभा का कार्यकाल खत्म होने से करीब चार घंटे पहले महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने बीजेपी से पूछ लिया है कि सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते वो सरकार बनाने की इच्छुक है क्या?

राज्यपाल का पत्र मिलने के बाद बीजेपी आगे की रणनीति तैयार कर रही है. बीजेपी की ओर से अभी इतना ही बताया गया है कि कोर कमेटी की मीटिंग में राज्यपाल के बुलावे पर चर्चा होने के बाद ही कोई फैसला लिया जाएगा.

शिवसेना ने राज्यपाल की इस पहल का स्वागत किया है - लेकिन लगे हाथ सरकार बनाने का नया एक्शन प्लान भी पेश कर दिया है. अब तक एनसीपी नेताओं के संपर्क में रही शिवसेना अब कांग्रेस का भी खास तौर पर जिक्र करने लगी है.

विधायकों को लेकर शिवसेना और कांग्रेस का डर कम होने की बजाय लगता है बढ़ने ही लगा है. शिवसेना विधायकों के ख्याल रखने का जिम्मा तो खुद आदित्य ठाकरने ने अपने हाथ में ले रखा है.

अयोध्या पर फैसले के बाद महाराष्ट्र में राजनीतिक कवायद चालू

अयोध्या में राम मंदिर बनाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले वाले दिन ही आधी रात को महाराष्ट्र विधानसभा का कार्यकाल बचा था. तभी शाम को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने सरकार बनाने की बची संभावनाएं टटोलते हुए बीजेपी से संपर्क किया. बताते हैं कि उससे पहले दिन में ही राज्य के एडवोकेट जनरल आशुतोष कुंभकोनी राजभवन में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मिले भी थे.

बीजेपी नेता चंद्रकांत पाटिल ने राज्यपाल के पत्र मिलने की पुष्टि करते हुए बताया कि आगे की रणनीति कोर कमेटी के फैसले के बाद तय होगी. देवेंद्र फडणवीस के इस्तीफा देने से पहले भी चंद्रकांत पाटिल की अगुवाई में बीजेपी नेताओं ने राज्यपाल से मुलाकात की थी.

बीजेपी के साथ जारी तनातनी के बीच शिवसेना नेता संजय राउत ने राज्यपाल के इस ऑफर को स्वागत योग्य कदम बताया. संजय राउत ने कहा कि राज्यपाल का फैसला निर्धारित प्रक्रिया के अनुरूप है. संजय राउत ने ये भी माना कि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है और सबसे पहले सरकार बनाने की दावेदार भी. साथ में एक तंज भी - लेकिन बहुमत के लिए 145 विधायक चाहिये.

पहले मंदिर फिर सरकार - शिवसेना का ये पुराना स्लोगन है. आम चुनाव से पहले जब उद्धव ठाकरे अयोध्या दौरे पर थे, उस दौरान भी ये नारा गूंज रहा था. एक बार फिर वही नारा सुनाई देने लगा है - फर्क सिर्फ ये है कि तब केंद्र के लिए था और अभी महाराष्ट्र को लेकर है.

बीजेपी और शिवसेना दोनों ही एक ही हिंदुत्ववादी लाइन की राजनीति करते हैं. अयोध्या पर फैसले के बाद बीजेपी और शिवसेना की तरफ से राम मंदिर आंदोलन के लिए लालकृष्ण आडवाणी का नाम लिया जा रहा है. हालांकि, आडवाणी का नाम बीजेपी के हाशिये पर चले गये नेता और उद्धव ठाकरे ही ले रहे हैं. अयोध्या आंदोलन के तीन प्रमुख किरदार बीजेपी नेता आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती को तो मौजूदा नेतृत्व हाशिये की कौन कहे उससे भी कहीं बाहर कर चुका है.

शिवसेना विधायकों की इच्छा - उद्धव ठाकरे बनें मुख्यमंत्री!

वैसे भी 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराये जाने के परोक्ष रूप से ही सही श्रेय तो शिवसेना लेती ही रही है. बीजेपी को चूंकि राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति करनी रही और गठबंधन को साथ लेकर चलना था इसलिए खामोशी अख्तियार करती रही है - और अब तो 'सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास' के चलते ज्यादा ही सतर्कता बरतनी पड़ती है.

सवाल ये उठता है कि राम मंदिर आंदोलन की कामयाबी का श्रेय लेने के मामले में बीजेपी और शिवसेना में कौन ज्यादा फायदे में रहेगा?

राष्ट्रीय स्तर पर तो बेशक बीजेपी को अयोध्या का क्रे़डिट लेने से न कोई रोक सकता है और न ही आड़े आ सकता है. महाराष्ट्र की स्थिति थोड़ी अलग हो जाती है. एक तो बीजेपी और शिवसेना के बीच चुनावी गठबंधन है दूसरे विधायकों की संख्या भले कम हो लेकिन मंदिर को लेकर शिवसेना की स्थिति तो मजबूत है ही.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव जनता के सामने दो गठबंधन थे. जनता ने ऐसे वोट दिये कि बड़े संतुलित नतीजे आये. एक गठबंधन को पूर्ण बहुमत और दूसरे गठबंधन को एक मजबूत विपक्ष के तौर पर मैंडेट. ऐसा नतीजा तब देखने को मिला जबकि एक गठबंधन स्थानीय मुद्दों के सहारे चुनाव मैदान में रहा और दूसरा धारा 370 और पाकिस्तान जैसे मसलों के दम पर.

नतीजों से मालूम होता है कि जनता ने राष्ट्रवाद के मुद्दे को खारिज भले न किया हो लेकिन हाथोंहाथ तो नहीं ही लिया. अब देखना होगा कि अयोध्या के फैसले के बाद महाराष्ट्र के लोगों का क्या रुख रहता है? वैसे जनता के सामने नये सिरे से फैसला सुनाने की नौबत तो नहीं आयी है, लेकिन कब ऐसा मौका आ जाये पता भी किसे है?

देखना ये है कि अयोध्या पर फैसले के बाद बीजेपी, शिवसेना पर दबाव बढ़ाने में कामयाब हो पाती है या दांव उलटा पड़ जाता है?

बीजेपी और शिवसेना में चल क्या रहा है?

महाराष्ट्र में बीजेपी की लाइन RSS ने तय कर दी है - सरकार बनानी है तो शिवसेना के साथ बनाओ वरना विपक्ष में बैठो. बीजेपी उसी राह पर बनी हुई है, मंजिल का नहीं पता. वैसे भी जिस तरीके से शिवसेना नये सिरे से एक्टिव नजर आ रही है लगता नहीं कि बीजेपी कोई नया कदम उठाने वाली है. फिर भी राज्यपाल की चिट्ठी आयी है तो सोच विचार के बाद ही कोई फैसला लेना होगा. फैसला भी अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय आ जाने के बाद की उपजी परिस्थितियों के दरम्यान लेना है.

बीजेपी जहां खुद को बेफिक्र दिखाने की कोशिश करने लगी है, वहीं शिवसेना और कांग्रेस अपने विधायकों के छिटक कर चले जाने को लेकर परेशान हैं. कांग्रेस ने महाराष्ट्र से राजस्थान ले जाकर जयपुर और जोधपुर के रिजॉर्ट में ठहराया हुआ है.

शिवसेना विधायकों को नये होटल में शिफ्ट करने के बाद आदित्य ठाकरे खुद उनका ख्याल रख रहे हैं. दिन की कौन कहे, देख कर तो लगता है कि आदित्य ठाकरे विधायकों के बीच ही रात भी गुजार दे रहे हैं. बताते हैं आदित्य ठाकरे देर रात होटल पहुंचते हैं और उनके बीच रहने और बातचीत के साथ ही कई विधायकों के साथ तो तड़के 5 बजे तक बैठक करते रहते हैं.

सामना में सरकार बनाने का नया एक्शन प्लान पेश कर दिया गया है. संजय राउत ने लिखा है महाराष्ट्र की जो मौजूदा हालत है उसमें उद्धव ठाकरे को तय करना है कि मुख्यमंत्री कौन होगा? संजय राउत का दावा है कि शरद पवार की भी बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका होगी - और कांग्रेस के कई विधायक सोनिया गांधी से इस सिलसिले में मुलाकात भी कर चुके हैं. संजय राउत की मानें तो विधायकों ने सोनिया गांधी से कह दिया है कि वो महाराष्ट्र के बारे में फैसला राज्य के नेताओं पर भी छोड़ दें.

संजय राउत लिखते हैं, 'दिल्ली की हवा बिगड़ गई इसलिए महाराष्ट्र की हवा नहीं बिगड़नी चाहिये. दिल्ली में पुलिस ही सड़क पर उतर आई और उन्होंने कानून तोड़ा. ये अराजकता की चिंगारी है. महाराष्ट्र में राजनैतिक अराजकता निर्माण करने का प्रयास करने वालों के लिए यह सबक है.'

एक तरफ संजय राउत, शरद पवार के रोल की अहमियत बता रहे हैं दूसरी तरफ एनसीपी की ओर से भी अब बदले रूख के संकेत मिलने लगे हैं. एनसीपी नेता नवाब मलिक का बयान भी वही इशारे कर रहा है जिसकी चर्चा रही - एनसीपी चाहती है कि बीजेपी के साथ शिवसेना पूरी तरह नाता तोड़े तभी उसे कांग्रेस का भी साथ मिलेगा.

एनसीपी प्रवक्ता नवाब मलिक ने कहा है कि बहुमत साबित करने के दौरान शिवसेना अगर बीजेपी के खिलाफ वोट देती है और बीजेपी सरकार नहीं बना पाती तो एनसीपी वैकल्पिक सरकार देने पर विचार कर सकती है. एनसीपी के विधायकों की 12 नवंबर को मीटिंग भी बुलायी गयी है. इसी हफ्ते कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण कहा था कि अगर बीजेपी और शिवसेना महाराष्ट्र में सरकार नहीं बनातीं, तो उनकी पार्टी और एनसीपी संयुक्त रूप से आगे की रणनीति तय कर फैसला करेंगे.

शिवसेना विधायकों की मीटिंग से एक नयी आवाज उभरी है. अब तक यही संकेत मिल रहे थे कि शिवसेना आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री बनाये जाने के पक्ष में थी, लेकिन सुनने में आया है शिवसेना विधायक उद्धव ठाकरे को ही मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं - देखना है बेटे के जरिये एक पिता अपने सपने पूरा होते देखना चाहता है या फिर स्वयं कुर्सी पर बैठने का फैसला करता है?

इन्हें भी पढ़ें :

Ram Mandir verdict के साथ शिवसेना-बीजेपी गठबंधन का भी फैसला!

Devendra Fadnavis resigns: लेकिन 24 घंटे में बन सकती है महाराष्ट्र सरकार!

Maharashtra CM कौन बनेगा? इस कुर्सी के झगड़े का अपना इतिहास है



इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲