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आसाराम बापू को कौन बचाना चाहता है?

    • उदय माहुरकर
    • Updated: 14 जुलाई, 2015 11:14 AM
  • 14 जुलाई, 2015 11:14 AM
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दो साल पहले 2013 के सितंबर में रेप के केस में गिरफ्तार आसाराम बापू के खिलाफ अहम गवाह मुजफ्फरनगर के कृपाल सिंह की हत्या साबित करती है कि उनके अनुयायियों को कानून का कोई डर नहीं है.

दो साल पहले 2013 के सितंबर में रेप के केस में गिरफ्तार आसाराम बापू के खिलाफ अहम गवाह मुजफ्फरनगर के कृपाल सिंह की हत्या साबित करती है कि उनके अनुयायियों को कानून का कोई डर नहीं है. ज्यादातर राज्यों में उसके खिलाफ चल रहे केस की धीमी जांच और कानून की हो रही अवमानना बताती है कि विभिन्न पार्टियों में शामिल कुछ राजनेता आसाराम को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. इसे उन आरोपों के मद्देनजर भी देखा जाना चाहिए जिसके अनुसार देश भर में आसाराम के फैले 10,000 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति में कई शीर्ष राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों का शेयर है.

ऐसे स्थिति में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच ही देशभर में फैले इस रैकेट का पर्दाफाश करने में कामयाब होगी. पिछले दो दशकों में जिसने भी आसाराम को चुनौती दी है, वह आश्चर्यजनक तरीके से गायब होता रहा है. आसाराम के कुछ अनुयायी जो अब उसके खिलाफ हैं, वे भी ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहते. ऐसा इसलिए क्योंकि उन गैरकानूनी कार्यों में उनकी भी संलिप्तता रही है. अगर वे कुछ खुलासे करते हैं, तो उन्हें भी कानून का सामना करना पड़ सकता है. उदाहरण के तौर पर रेप के केस में अहमदाबाद के एक गवाह ने अब इस मामले में ज्यादा कुछ कहने से इंकार कर दिया है. कारण साफ है, वह खुद इसमें फंस सकता है.

ऐसा ही उदारहण अंबाला की एक लड़की का है. करीब एक दशक पहले हरियाणा में उसे उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा. वह अब शादीशुदा है और अहमदाबाद में रह रही है. जब यह घटना हुई थी तब लड़की के पिता पुलिस में शिकायत दर्ज कराना चाहते थे और मीडिया में इस बात को लेकर जाना चाहते थे. लेकिन किसी ने उनका साथ नहीं दिया. यहां तक कि पुलिस और मीडिया ने भी गंभीरता नहीं दिखाई. अब उस पिता का कहना है कि चूंकि उनकी बेटी की शादी हो गई है इसलिए वह इन मामलों से दूर रहना चाहते हैं.

शायद इसलिए, आसाराम से जुड़े सभी मामलों की सीबीआई जांच जरूरी है. इसमें पुराने मामलों को भी शामिल किया जाना चाहिए.

आसाराम की संपत्ति इस बात का इशारा करती है कि राजनेताओं और नौकरशाहों के...

दो साल पहले 2013 के सितंबर में रेप के केस में गिरफ्तार आसाराम बापू के खिलाफ अहम गवाह मुजफ्फरनगर के कृपाल सिंह की हत्या साबित करती है कि उनके अनुयायियों को कानून का कोई डर नहीं है. ज्यादातर राज्यों में उसके खिलाफ चल रहे केस की धीमी जांच और कानून की हो रही अवमानना बताती है कि विभिन्न पार्टियों में शामिल कुछ राजनेता आसाराम को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. इसे उन आरोपों के मद्देनजर भी देखा जाना चाहिए जिसके अनुसार देश भर में आसाराम के फैले 10,000 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति में कई शीर्ष राजनीतिज्ञों और नौकरशाहों का शेयर है.

ऐसे स्थिति में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में सीबीआई जांच ही देशभर में फैले इस रैकेट का पर्दाफाश करने में कामयाब होगी. पिछले दो दशकों में जिसने भी आसाराम को चुनौती दी है, वह आश्चर्यजनक तरीके से गायब होता रहा है. आसाराम के कुछ अनुयायी जो अब उसके खिलाफ हैं, वे भी ज्यादा कुछ कहना नहीं चाहते. ऐसा इसलिए क्योंकि उन गैरकानूनी कार्यों में उनकी भी संलिप्तता रही है. अगर वे कुछ खुलासे करते हैं, तो उन्हें भी कानून का सामना करना पड़ सकता है. उदाहरण के तौर पर रेप के केस में अहमदाबाद के एक गवाह ने अब इस मामले में ज्यादा कुछ कहने से इंकार कर दिया है. कारण साफ है, वह खुद इसमें फंस सकता है.

ऐसा ही उदारहण अंबाला की एक लड़की का है. करीब एक दशक पहले हरियाणा में उसे उत्पीड़न का शिकार होना पड़ा. वह अब शादीशुदा है और अहमदाबाद में रह रही है. जब यह घटना हुई थी तब लड़की के पिता पुलिस में शिकायत दर्ज कराना चाहते थे और मीडिया में इस बात को लेकर जाना चाहते थे. लेकिन किसी ने उनका साथ नहीं दिया. यहां तक कि पुलिस और मीडिया ने भी गंभीरता नहीं दिखाई. अब उस पिता का कहना है कि चूंकि उनकी बेटी की शादी हो गई है इसलिए वह इन मामलों से दूर रहना चाहते हैं.

शायद इसलिए, आसाराम से जुड़े सभी मामलों की सीबीआई जांच जरूरी है. इसमें पुराने मामलों को भी शामिल किया जाना चाहिए.

आसाराम की संपत्ति इस बात का इशारा करती है कि राजनेताओं और नौकरशाहों के बीच उसकी पैठ कितनी गहरी होगी. इसका खुलासा 2013 के आखिर में ही हो गया था जब सूरत पुलिस ने एक रेप केस के मामले में नारायण साई की धर-पकड़ के दौरान अहमदाबाद के एक घर में छापा मारा था. वहां पुलिस को 32 बड़े-बड़े बक्से मिले थे, जिसमें उसकी संपत्ति और इंवेस्टमेंट से जुड़े कई कागजात मिले. वे सभी कागजात आसाराम के लिए कितने जरूरी थे. यह भी तब प्रकाश में आया जब उसके दाएं हाथ समझे जाने वाले उदय संघानी ने दो पुलिस इंस्पेक्टरों के जरिए सुरत पुलिस को सात करोड़ रिश्वत देने की कोशिश की. इनमें से एक इंस्पेक्टर अब्दुल रहीम जाब्बा को दस्तावेज बदलने के लिए एक करोड़ रुपये की पेशकश की गई. रहीम ने हालांकि इसकी सूचना तत्काल अपने शीर्ष अधिकारियों को दे दी.

इसके बाद पुलिस ने जाल बिछाया और संघानी तथा दूसरे पुलिस इंस्पेक्टर सी कुंभानी को गिरफ्तार कर लिया. इससे आसाराम के सबूतों को नष्ट करने की कोशिशों का खुलासा हुआ. राकेश अस्थाना के नेतृत्व में सुरत पुलिस ने यह खुलासा भी किया कि आसाराम के पास पूरे भारत में 10,000 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति है.

सुरत पुलिस ने अपनी जांच के बाद दस्तावेजों के साथ अपनी रिपोर्ट प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और इनकम टैक्स विभाग को सौंप दी. लेकिन पिछले साल केंद्र में सत्ता में हुए बदलाव के बावजूद इस जांच में कुछ खास प्रगति नहीं हो सकी. ऐसे में यह शक पैदा होता है कि अब भी आसाराम की सत्ता के गलियारों में पहुंच है और वह खुद को बचाने की कोशिश कर रहा है.

यह भी दिलचस्प है कि 2008 में आसाराम के खिलाफ कुछ मामले सामने आने शुरू हुए. इंडिया टुडे पत्रिका ने तब उसके बारे में बड़ा खुलासा किया. उस समय आसाराम से दूरी बनाने वाले नरेंद्र मोदी पहले राजनेता रहे और गुजरात पुलिस को कड़े कदम उठाने का निर्देश भी दिया. इसे देखते हुए आसाराम ने तब सार्वजनिक तौर पर मोदी की आलोचना की थी. हालांकि, अन्य राज्यों ने ऐसा तब नहीं किया. इसके कारण भी हैं. पश्चिम सहित उत्तर तथा मध्य भारत के विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री और तमाम राजनैतिक पार्टियों के नेता आसाराम के कार्यक्रम में हिस्सा लेते रहे हैं. इसमें बीजेपी भी शामिल है.

ऐसे में जो आसाराम के बेहद करीबी हैं वे अब भी उसे बचाने के अभियान में शामिल होंगे. दूसरी ओर, आसाराम ब्रिगेड उन नेताओं को ब्लैकमेल करने में भी सक्षम है.

बहरहाल, नजरें अब सुप्रीम कोर्ट, मोदी सरकार और उन राज्यों पर हैं जहां आसाराम के सहयोगियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो सकी है. देखना होगा कि इस आसाराम से जुड़े मामलों पर कितनी तेजी से बात आगे बढ़ती है.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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