• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

केजरीवाल का 'धरना-मोड' अब जनता के धैर्य को धराशायी कर रहा है

    • वंदना सिंह
    • Updated: 14 जून, 2018 12:11 PM
  • 13 जून, 2018 09:04 PM
offline
आम आदमी पार्टी विरोध प्रदर्शनों की बदौलत ही सत्ता में आई थी. लेकिन उनका यही धरना मोड अंत में इन्हें सत्ता से बाहर उखाड़ फेंक सकता है.

राजधानी दिल्ली पानी की किल्लत से जूझ रही है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे चिंताजनक करार दे दिया है. अब कुछ ही दिनों में मानसून आ जाएगा और दिल्ली की सड़कें घुटनों तक पानी से भर जाएंगी. कोर्ट इस स्थिति से बचने के लिए कुछ न करने पर अधिकारियों को लताड़ लगाएगी.

हर साल यही होता है. इस साल भी यही होगा.

सरकार को धरना देने के लिए चुना है जनता ने!

और ऐसा इसलिए होगा क्योंकि अभी जब सरकार को इन मुद्दों पर ध्यान देने और काम करने में लगा होना चाहिए था तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित सरकार के शीर्ष कार्यकर्ता, लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बैजल के ऑफिस में "आराम" फरमा रहे हैं. राज निवास के अंदर इस धरने में केजरीवाल के साथ उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, गृह मंत्री सत्येंद्र जैन और ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल राय शामिल हैं. और राज निवास के बाहर कई अन्य आम आदमी पार्टी नेता उपराज्यपाल के खिलाफ विरोध कर रहे हैं.

आप नेता 11 जून को लगभग 5.30 बजे एलजी के निवास पर पहुंचे और रात भर वेटिंग रुम में रहे. चारों के सोफे पर लेटे और बैठी हुई तस्वीरें सोशल मीडिया पर लोगों के लिए मनोरंजन का एक साधन हो गई है.

चारों नेता ये चाहते थे कि बैजल दिल्ली के ब्योरोक्रेट्स से बात करें और उन्हें अपनी चार महीने की हड़ताल खत्म करने के लिए राजी करें. आम आदमी पार्टी का दावा है कि मुख्यमंत्री के आवास पर मुख्य सचिव अंशु प्रकाश पर कथित हमले के बाद से शहर के ब्योरोक्रेट हड़ताल पर हैं. यह...

राजधानी दिल्ली पानी की किल्लत से जूझ रही है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे चिंताजनक करार दे दिया है. अब कुछ ही दिनों में मानसून आ जाएगा और दिल्ली की सड़कें घुटनों तक पानी से भर जाएंगी. कोर्ट इस स्थिति से बचने के लिए कुछ न करने पर अधिकारियों को लताड़ लगाएगी.

हर साल यही होता है. इस साल भी यही होगा.

सरकार को धरना देने के लिए चुना है जनता ने!

और ऐसा इसलिए होगा क्योंकि अभी जब सरकार को इन मुद्दों पर ध्यान देने और काम करने में लगा होना चाहिए था तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सहित सरकार के शीर्ष कार्यकर्ता, लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बैजल के ऑफिस में "आराम" फरमा रहे हैं. राज निवास के अंदर इस धरने में केजरीवाल के साथ उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, गृह मंत्री सत्येंद्र जैन और ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल राय शामिल हैं. और राज निवास के बाहर कई अन्य आम आदमी पार्टी नेता उपराज्यपाल के खिलाफ विरोध कर रहे हैं.

आप नेता 11 जून को लगभग 5.30 बजे एलजी के निवास पर पहुंचे और रात भर वेटिंग रुम में रहे. चारों के सोफे पर लेटे और बैठी हुई तस्वीरें सोशल मीडिया पर लोगों के लिए मनोरंजन का एक साधन हो गई है.

चारों नेता ये चाहते थे कि बैजल दिल्ली के ब्योरोक्रेट्स से बात करें और उन्हें अपनी चार महीने की हड़ताल खत्म करने के लिए राजी करें. आम आदमी पार्टी का दावा है कि मुख्यमंत्री के आवास पर मुख्य सचिव अंशु प्रकाश पर कथित हमले के बाद से शहर के ब्योरोक्रेट हड़ताल पर हैं. यह हमला कथित रुप से 19 फरवरी को हुआ था, जब प्रकाश को दिल्ली में मौजूदा सरकार के तीन वर्षों के कार्यकाल को पूरा होने से संबंधित कुछ टीवी विज्ञापनों के दिखाने में कठिनाई होने के मुद्दे पर एक बैठक में बुलाया गया था.

उधर ब्योरोक्रेट संघ ने इन आरोपों से साफ इंकार कर दिया है कि वे काम नहीं कर रहे हैं और अप्रत्यक्ष हड़ताल पर हैं.

इसलिए ये विरोध उस विरोध में एलजी के हस्तक्षेप की मांग के लिए है जो विरोध तब शुरु हुआ जब केजरीवाल खुद उसमें मौजूद थे और विरोध कर रहे थे. दिल्ली में ऐसी ही विचित्र स्थिति है, जहां का मुख्यमंत्री साल के 365 दिन विरोध के ही मोड में ही रहते हैं. और बात बात पर विरोध प्रदर्शन करने पर आमादा रहते हैं. विरोध की ये राजनीति दिल्ली सरकार का प्रतीक रही है. लेकिन जनता अब इसी विरोध के तरीके को ठुकरा रही है. सभी को याद होगा कि 2011 में दिल्ली में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन हुए जिसका समर्थन पूरे देश ने किया था. आम आदमी पार्टी इसी विरोध से जन्मी हुई पार्टी है.

दूसरों पर उंगली ही उठाएंगे, काम कुछ भी नहीं करना

आम आदमी पार्टी इस वादे के साथ सत्ता का हिस्सा बनी थी कि वो इस सिस्टम का हिस्सा बनकर इसकी सफाई करेंगे. लेकिन विडंबना ये है कि पार्टी इस सिस्टम की खामियों से निपटने के लिए कोई प्रभावी रणनीति तो तैयार कर नहीं पाई लेकिन हर बात के लिए एलजी का घेराव करना इन्होंने जरुर सीख लिया. एलजी के साथ मतभेद इसलिए की वो केंद्र सरकार के नुमांइदें हैं और इसलिए पार्टी कोई भी काम न होने या कर पाने के लिए उन्हें दोष देना अपना धर्म समझती है.

इस पार्टी की दिक्कत यही है कि इन्होंने खुद को हद से ज्यादा पवित्र माना और राजनीति के व्यवहारिक दिक्कतों को भी सही तरीके से सुलझाने का प्रयास नहीं किया.

केजरीवाल के नेतृत्व में पार्टी ने सभी राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ आंख मूंदकर बेतुके आरोप (बिना किसी सबूत के) लगाए. फिर उन्हीं आरोपों को वापस लिया और सभी से बारी बारी माफी मांगने का दौर शुरु हुआ. 2014 में मुख्यमंत्री रहते हुए केजरीवाल ने गणतंत्र दिवस समारोहों को बाधित करने की धमकी दी थी. ये एक ऐसा कदम था जिसके लिए न सिर्फ पार्टी नेता बल्कि पार्टी को भी लोगों की आलोचना का शिकार होना पड़ा.

लेकिन फिर भी आप के राष्ट्रीय संयोजक ने इससे कोई सबक नहीं लिया. माफ़ी मांगने की शुरुआत भी तब हुई जब पार्टी को पता चला कि उसके खजाने सूख रहे हैं और उनपर किए गए मानहानि के मुकदमे महंगे पड़ने रहे थे. सिर्फ राजनीतिक रूप से नहीं, बल्कि आर्थिक रूप से भी. हो सकता है कि लंबे समय तक विरोध प्रदर्शन के कारण प्रशासन पर समझौता करा उन्हें राजनीतिक रुप से कितना महंगा पड़ेगा इसका उन्हें एहसास नहीं होगा.

एलजी और दिल्ली के मुख्यमंत्री के ट्विटर टाइमलाइन को देखने पर दो अलग ही दृश्य सामने आते हैं. एक तरफ जहां एलजी परियोजनाओं के उद्घाटन और कार्यवाही की तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ केजरीवाल की टाइमलाइन देखें तो वो सिर्फ एलजी पर प्रत्यक्ष हमलों से भरा है.

हमारे देश को आजाद हुए 70 साल से अधिक हो गए हैं और लोग बदलाव चाहते हैं. बदलाव की यही उम्मीद है जिसके बदले केजरीवाल ने लोगों के वोट बटोरे थे.

जिस काम के लिए दिल्ली की जनता ने इन्हें चुना था वो छोड़कर हर काम ये कर रहे हैं

हालांकि यह समझ में आता है कि उनके राजनीतिक विरोधी उनके कामों में अड़ंगा लगा रहे होंगे. लेकिन बातचीत के सभी रास्तों को बंद करने के लिए केजरीवाल को खुद को ही दोष देना होगा. अधिकांश राज्य सरकारें, केंद्र में जिनकी सरकार नहीं है, वो इस बात की शिकायत करती ही रहती हैं कि केंद्र सरकार उन्हें काम नहीं करने दे रही. उनके काम में बाधा पहुंचा रही है. या फिर उन्हें सुविधाएं मुहैया नहीं करा रही हैं. आदि आदि. लेकिन आम आदमी पार्टी का मामला अपनेआप में अनूठा है. बिल्कुल अलग. अलहदा. क्योंकि पार्टी काम के नाम पर सिर्फ और सिर्फ विरोध कर रही है. ऐसा लग रहा है जैसे विरोध करना ही इनका काम है.

ब्योरोक्रेट ने इस बात से इंकार किया है कि उन्होंने हड़ताल कर रखी है. हो सकता है कि ये सच हो. हो सकता है कि सच न भी हो.

लेकिन कोई भी सरकार धरने पर बैठने के लिए नहीं चुनी जाती है.

जहां पर भी ये कर सकते हैं वहां इन्हें अपने अधिकारों का प्रयोग करना चाहिए. और जहां ये अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं कर पाते वहां इन्हें अपने विरोधियों का सहारा लेना चाहिए.

आम आदमी पार्टी विरोध प्रदर्शनों की बदौलत ही सत्ता में आई थी. लेकिन उनका यही धरना मोड अंत में इन्हें सत्ता से बाहर उखाड़ फेंक सकता है.

ये भी पढ़ें-

दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा क्यों मिलना चाहिए?

मोदी के बहाने केजरीवाल ने टारगेट तो राहुल गांधी को ही किया है

कांग्रेस केजरीवाल की प्रेम कहानी, ये हकीकत है या अफसाना


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲