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Arvind Kejriwal oath ceremony में विपक्ष को न बुलाने का मकसद साफ है

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 17 फरवरी, 2020 07:06 PM
  • 16 फरवरी, 2020 02:53 PM
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रामलीला मैदान (Ramlila Maidan) में अरविंद केजरीवाल के शपथ ग्रहण कार्यक्रम (Arvind Kejriwal oath ceremony) के मंच पर विपक्ष का कोई भी नेता नहीं मौजूद था. केजरीवाल समझ गए हैं कि यदि उन्हें भविष्य में मोदी (Narendra Modi ) को चुनौती देनी है तो अकेले ही फ्रंट फुट पर खेलना होगा.

दिल्ली विधानसभा चुनावों (Delhi Assembly Election) में 70 में से 62 सीटों पर जीत दर्ज करने वाले अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री की शपथ (Arvind kejriwal oath) ली है. एक ऐसे समय में जब दिल्ली (Delhi) का चुनाव केजरीवाल (Kejriwal) बनाम सम्पूर्ण भाजपा (BJP) रहा हो, उनकी जीत कई मायनों में खास है. अपने शपथ ग्रहण (Arvind Kejriwal Swearing in ceremony) के फ़ौरन बाद दिए गए भाषण में केजरीवाल ने कई बातें की हैं और दिल्ली की जनता को बताया है कि, ये आम आदमी की सरकार है ,जिसका मूल ही आम आदमी की सेवा करना है. केजरीवाल ने विपक्ष (Opposition) के उन तमाम सवालों के भी जवाब दिए हैं जिनमें उनपर आरोप था कि वो चीजें मुफ्त कर के तुष्टिकरण कर रहे हैं. इसके जवाब में केजरीवाल ने कहा है कि मां के लिए बच्चे का प्यार फ्री होता है. ऐसे सीएम पर लानत है जो स्कूल की फीस बच्चों से ले, मुफ्त इलाज न दे सके. उन्होंने कहा कि दिल्ली मॉडल अब पूरे देश में दिख रहा है. एक दिन भारत का डंका पूरे विश्व में बजेगा.

अपने शपथ ग्रहण में विपक्ष के नेताओं को न बुलाकर केजरीवाल ने सभी को हैरत में डाल दिया है

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने शपथ ग्रहण के अपने भाषण में पीएम मोदी का भी जिक्र. केजरीवाल ने कहा कि उन्होंने शपथ ग्रहण कार्यक्रम में आने के लिए पीएम मोदी को भी न्योता भेजा. मगर व्यस्त होने के कारण वो कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करा सके. दिल्ली के सीएम ने कहा कि देश में दिल्ली से नई राजनीति की शुरुआत हुई है. दिल्ली के विकास के लिए प्रधानमंत्री का आशीर्वाद चाहता हूं. मैं सबके साथ मिलकर काम करना चाहता हूं.

भले ही केजरीवाल ने पीएम मोदी को अपने शपथ ग्रहण कार्यक्रम में बुलाया हो लेकिन पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का एक वर्ग वो...

दिल्ली विधानसभा चुनावों (Delhi Assembly Election) में 70 में से 62 सीटों पर जीत दर्ज करने वाले अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री की शपथ (Arvind kejriwal oath) ली है. एक ऐसे समय में जब दिल्ली (Delhi) का चुनाव केजरीवाल (Kejriwal) बनाम सम्पूर्ण भाजपा (BJP) रहा हो, उनकी जीत कई मायनों में खास है. अपने शपथ ग्रहण (Arvind Kejriwal Swearing in ceremony) के फ़ौरन बाद दिए गए भाषण में केजरीवाल ने कई बातें की हैं और दिल्ली की जनता को बताया है कि, ये आम आदमी की सरकार है ,जिसका मूल ही आम आदमी की सेवा करना है. केजरीवाल ने विपक्ष (Opposition) के उन तमाम सवालों के भी जवाब दिए हैं जिनमें उनपर आरोप था कि वो चीजें मुफ्त कर के तुष्टिकरण कर रहे हैं. इसके जवाब में केजरीवाल ने कहा है कि मां के लिए बच्चे का प्यार फ्री होता है. ऐसे सीएम पर लानत है जो स्कूल की फीस बच्चों से ले, मुफ्त इलाज न दे सके. उन्होंने कहा कि दिल्ली मॉडल अब पूरे देश में दिख रहा है. एक दिन भारत का डंका पूरे विश्व में बजेगा.

अपने शपथ ग्रहण में विपक्ष के नेताओं को न बुलाकर केजरीवाल ने सभी को हैरत में डाल दिया है

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने शपथ ग्रहण के अपने भाषण में पीएम मोदी का भी जिक्र. केजरीवाल ने कहा कि उन्होंने शपथ ग्रहण कार्यक्रम में आने के लिए पीएम मोदी को भी न्योता भेजा. मगर व्यस्त होने के कारण वो कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं करा सके. दिल्ली के सीएम ने कहा कि देश में दिल्ली से नई राजनीति की शुरुआत हुई है. दिल्ली के विकास के लिए प्रधानमंत्री का आशीर्वाद चाहता हूं. मैं सबके साथ मिलकर काम करना चाहता हूं.

भले ही केजरीवाल ने पीएम मोदी को अपने शपथ ग्रहण कार्यक्रम में बुलाया हो लेकिन पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का एक वर्ग वो है जिसका मानना है कि हालिया वक़्त में केजरीवाल में ही वो सामर्थ्य है कि वो मोदी (Narendra Modi) को सीधी चुनौती दे सकते हैं. शपथ ग्रहण कार्यक्रम के दौरान जो प्लानिंग केजरीवाल की रही, वाकई वो कमाल की है. अपने शपथ ग्रहण में उन्होंने भविष्य की राजनीति के लिए अपने इरादे भी जाहिर कर दिए हैं.

ध्यान रहे कि रामलीला मैदान में होने वाले शपथ ग्रहण समारोह में केजरीवाल ने न्योता सिर्फ दिल्ली वालों को ही भेजा था. बाहर का, या ये कहें कि विपक्ष का कोई भी नेता केजरीवाल के मंच पर उपस्थित नहीं था. बहुत दिन के बाद ऐसा हुआ है जब किसी राजनीतिक मंच से मोदी विरोध के नाम पर 'एकता' की तस्वीर नहीं आई. रामलीला मैदान का मंच एक ऐसा मंच था जिसमें सिर्फ केजरीवाल थे. उनका शपथ ग्रहण था. उनके लोग थे. उनकी बातें थी. उनका विजन था.

केजरीवाल ने अख़बारों में ये विज्ञापन भी दिया कि दिल्ली वाले अपने मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण में जरूर आएं

इसे शायद राजनीतिक परिपक्वता ही कहा जाएगा कि, तीसरी बार मुख्यमंत्री की शपथ लेने वाले केजरीवाल तमाम अहम बातों को समझ चुके हैं. केजरीवाल जानते हैं कि उनके बुलावे पर अन्य दलों के नेता आ भी गए तो, जैसे इस वक़्त देश के राजनीतिक हालत हैं अगर भविष्य में उन्हें पीएम मोदी से मोर्चा लेना हुआ तो ये काम उन्हें खुद ही करना होगा. विपक्ष के किसी अन्य नेता को न बुलाकर मोदी ने लाइम लाइट और प्रेस के कैमरे खुद की तरफ मोड़ते हुए तमाम व्यर्थ की बहसों को विराम दिया है.

अब जबकि केजरीवाल ने ये अनूठा निर्णय लिया है तो हमारे लिए भी उन कारणों पर चर्चा करना जरूरी हो जाता है जो हमें ये बताएंगे कि अपने शपथ ग्रहण से विपक्ष के बाकी नेताओं को दूर रखने की ये प्लानिंग यूं ही नहीं हुई है. तमाम राज हैं जो केजरीवाल की इस प्लानिंग के पीछे हैं. आइये नजर डालते हैं उन कारणों पर और केजरीवाल की राजनीति समझने का प्रयास करते हैं.

विपक्षी एकता का दिखावा निरर्थक साबित हुआ है

इसे समझने के लिए हम लोकसभा चुनावों के पहले और बाद की परिस्थितियों का अवलोकन कर सकते हैं. 2014 में मोदी की आंधी से देश बड़े बड़े खेमे ध्वस्त होते देख चुका था. क्योंकि विपक्ष का एजेंडा हमेशा ही मोदी विरोध और उन्हें शिकस्त देना था इसलिए 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ही पीएम मोदी को घेरने की प्लानिंग विपक्ष की तरफ से शुरू हो गई.

हमने कई ऐसी तस्वीरें देखीं जिनमें पूरा विपक्ष हमें भाजपा विशेषकर पीएम मोदी के खिलाफ एकजुट दिखा. चुनाव हुए तो जो नतीजा आया वो हैरान करने वाला था. 14 के मुकाबले 19 में मोदी जनता की पहली पसंद बनकर प्रचंड बहुमत के साथ दोबारा सत्ता में आए और उन्हें टक्का देने की जो प्लानिंग अलग अलग दलों ने की थी वो पूरी की पूरी ध्वस्त हो गई.

केजरीवाल ने इससे सबक लिया है और इसे सरकार के खिलाफ एक फेल प्रयोग माना है. 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में इतिहास रचने वाले केजरीवाल इस बात को भली प्रकार समझ चुके हैं कि ऐसे दावे प्रायः निरर्थक ही साबित होते हैं और जो करना है उन्हें स्वयं ही करना है.

केजरीवाल को पता है कि उन्‍हें विपक्ष के नेता के तौर पर सहज स्‍वीकार नहीं किया जाएगा

राजनीति मौके का खेल है. एक कुशल राजनेता वही है जो इस बात को समझता है और इसे अमल में लाता है. केजरीवाल को ये बात बहुत अच्छी तरह से पता है कि अगर कभी मौका मिला या कभी विपक्ष की तरफ से किसी ऐसे मंच का निर्माण हुआ जिसका उद्देश्य पीएम मोदी को सीधी टक्कर देना हो तो उसके नेतृत्व का मौका कभी भी उन्हें नहीं मिलेगा.

शायद ही कभी उनके नाम पर सहमती बने. कल्पना करिए एक मंच कीजो पीएम मोदी को टक्कर देने के लिए लाया जा रहा हो और उसमें उद्धव ठाकरे, ममता बनर्जी, शरद पवार, अखिलेश यादव, राहुल गांधी, कनिमोझी, प्रियंका गांधी, ओवैसी जैसे नेता हों साथ ही यहां केजरीवाल भी हों तो क्या केजरीवाल को मौका दिया जाएगा? जवाब है नहीं.

ऐसे मंच पर उपस्थित सभी नेताओं का यही प्रयास रहेगा कि वो ऐसा क्या करें जिसके दम पर वो दूसरे लोकप्रिय नेता की टांग खींचने में कामयाब हो जाएं. साफ़ है कि केजरीवाल भी विपक्ष के नेता के तौर पर इतने सहज तरीके के साथ शायद ही कभी स्वीकार किये जाएं.

केजरीवाल अब अपनी लाइन बड़ी करना चाहते हैं, बिना किसी की मदद के

केजरीवाल से जुड़े इस बिंदु को समझने के लिए हमें 2014 के पहले के उस दौर का अवलोकन करना पड़ेगा जब मोदी गुजरात तक सीमित थे और केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. उस दौर में भाजपा के केंद्र में लाल कृष्ण अडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह जैसे लोग थे. भाजपा में उन्हीं की चलती थी.

मोदी इस बात से परिचित थे कि इन स्थितियों में कभी भी सत्ता के शीर्ष पर नहीं आया जा सकता. वहां तक पहुंचने के लिए मोदी ने अपने लोगों की एक टोली बनाई. यानी मोदी ने खुद की मदद की और अपने लिए एक बड़ी लाइन खींची. आज उन बातों को बीते हुए एक लंबा वक़्त गुजर चुका है.

अब जब हम केजरीवाल का रुख करते हैं तो बिलकुल इसी तरह की रणनीति केजरीवाल की भी है. केजरीवाल काम पर फोकस तो हैं ही साथ ही वो अपने लोगों का एक ग्रुप जिसमें मनीष सिसोदिया, गोपाल राय, संजय सिंह, आतिशी, राघव चड्ढा जैसे लोग हैं का निर्माण कर रहे हैं. याने पीएम मोदी की ही तरह अरविंद केजरीवाल ने भी अपनी लाइन बड़ी कर दी है.

केजरीवाल अपने लिए जनता की नजर में डिमांड क्रिएट करवाना चाहते हैं.

दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा ने अपने चुनाव प्रचार में केजरीवाल को क्या नहीं कहा. तमाम तरह के आरोप लगे मगर उन आरोपों के बावजूद केजरीवाल ने वापसी की औरत धमाकेदार वापसी की. केजरीवाल ने जनता से साफ़ कहा कि अगर उन्हें लगता है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने काम किया है तो ही वोट दें.

जनता ने भाजपा के आरोपों प्रत्यारोपों को अनसुना किया और केजरीवाल की इस बात को सुना. नतीजा 62 सीटों के रूप में हमारे सामने है. अब इन तमाम बातों का अवलोकन करें तो मिलता है कि केजरीवाल ने अपने लिए जनता की नजर में डिमांड क्रिएट कराई.

केजरीवाल का ये करना कुछ वैसा ही है जैसा हमने 2014 लोकसभा चुनावों से पहले नरेंद्र मोदी के मामले में देखा. मोदी ने गुजरात में किये गए काम को दिखाया और जनता से मौका देने को कहा. जनता ने नरेंद्र मोदी को मौका दिया और उसका परिणाम ये हुआ कि मोदी ने 14 का चुनाव तो जीता ही साथ ही 19 में चुनाव जीतकर ये बता दिया कि डिमांड क्रिएट कराकर ही बेहतर तरीके से सत्ता सुख भोगा जा सकता है.

मोदी के गुजरात मॉडल की तरह केजरीवाल के दिल्‍ली मॉडल की मार्केटिंग

मोदी क्यों देश के प्रधानमंत्री बनने में कामयाब हुए? एक बड़ा कारण उनका गुजरात मॉडल है. 14 के लोकसभा चुनावों से पहले मोदी ने स्कूल कॉलेजों से लेकर अपनी रैलियों तक हर जगह अपने गुजरात मॉडल को दर्शाया उसकी जबरदस्त मार्केटिंग की. 14 का जब चुनाव हुआ तो जिस तरह मोदी आंधी चली और जैसे कांग्रेस रूपी विशाल बरगद गिरा साफ़ हो गया कि मोदी की रणनीति काम आई.

फिर यही चीज 19 में भी दोहराई गई 19 में मोदी की तरफ से गुजरात के अलावा 14 में किये गए कामों को दर्शाया गया. अब अगर केजरीवाल का जिक्र करें तो उनका भी मामला इससे मिलता जुलता है केजरीवाल ने भी गुजरात की तरह दिल्ली मॉडल बनाया और उस मॉडल के अंतर्गत स्कूल, स्वास्थ्य, शिक्षा का जमकर प्रचार किया और इस प्रचार का फायदा केजरीवाल को दिल्ली विधानसभा चुनावों में मिला.

अब क्योंकि केजरीवाल एक बहुत महत्वकांशी व्यक्ति है तो निश्चित है कि भविष्य में मोदी और उनके गुजरात मॉडल को टक्कर देने के लिए वो दिल्ली मॉडल को एक बड़े हथियार की तरह इस्तेमाल करेंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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