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केजरीवाल की प्रधानमंत्री मोदी से दो दूक राज्यों की बदहाली का नमूना है

    • मृगांक शेखर
    • Updated: 25 अप्रिल, 2021 04:14 PM
  • 25 अप्रिल, 2021 04:14 PM
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ऐसा लग रहा है कि केंद्र सरकार के पास कोरोना महामारी और ऑक्सीजन वगैरह की कमी से जूझ रहे राज्यों को राहत देने का कोई प्लान ही नहीं है. प्रधानमंत्री कोरोना से जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों के प्रति संवेदना जाहिर करते हैं. लेकिन, गंभीर स्थितियों के लिए संवेदनहीन नजर आते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना महामारी के मौजूदा हालातों को देखते हुए कोविड-19 संक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित 10 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ मीटिंग की. इस दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पीएम मोदी को राज्यों में बिगड़ चुके हालातों का आईना दिखा दिया. देश में कोरोना महामारी की बेकाबू हो चुकी दूसरी लहर से राज्यों में स्थितियां भयावह होती जा रही हैं. अखबार से लेकर सोशल मीडिया तक चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की खबरों से पटा पड़ा है. हालंकि, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के मुंह से यह 'कटु सत्य' निकल पाने की उम्मीद रखना बेमानी ही होगा, लेकिन केजरीवाल ने जनता के दर्द को नरेंद्र मोदी के सामने दो टूक शब्दों में रखते हुए राज्यों में फैल चुकी बदहाली को उजागर कर दिया.

लोगों के मरने की नौबत हो, तो केंद्र सरकार में किसे करें फोन?

ऐसे समय में जब राज्यों में मरीजों को बेड, ऑक्सीजन और जीवनरक्षक दवाइयां उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं. श्मशानों में लकड़ियां खत्म हो गई हैं और शवों को जलाने के लिए परिजन कई घंटों तक इंतजार करने को मजबूर हो रहे हैं. ऑक्सीजन सिलेंडर और रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए तीमारदार दर-दर भटक रहे हैं. अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील कर राज्यों में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं और केंद्र सरकार के कथित सहयोग की कलई खोल कर रख दी. केजरीवाल ने इस बैठक में मोदी से स्पष्ट शब्दों में पूछा कि सर, हमारे यहां ऑक्सीजन खत्म होने वाली हो और लोगों के मरने की नौबत आ जाए, तो मैं केंद्र सरकार में किससे बात करूं? हमारे ऑक्सीजन के ट्रक रोके जाएं, तो हम किससे बात करें? परीक्षा के दौरान कठिन सवालों को पहले हल करने की सीख देने वाले नरेंद्र मोदी के पास इस कठिन सवाल का कोई जवाब नहीं था. आखिर कोरोना महामारी से जूझते हुए एक साल बीत जाने के बाद भी केंद्र सरकार ने आपात स्थितियों से निपटने के लिए अब तक कोई ठोस व्यवस्था क्यों नहीं की है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना महामारी के मौजूदा हालातों को देखते हुए कोविड-19 संक्रमण से सबसे ज्यादा प्रभावित 10 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ मीटिंग की. इस दौरान दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पीएम मोदी को राज्यों में बिगड़ चुके हालातों का आईना दिखा दिया. देश में कोरोना महामारी की बेकाबू हो चुकी दूसरी लहर से राज्यों में स्थितियां भयावह होती जा रही हैं. अखबार से लेकर सोशल मीडिया तक चरमराती स्वास्थ्य व्यवस्थाओं की खबरों से पटा पड़ा है. हालंकि, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों के मुंह से यह 'कटु सत्य' निकल पाने की उम्मीद रखना बेमानी ही होगा, लेकिन केजरीवाल ने जनता के दर्द को नरेंद्र मोदी के सामने दो टूक शब्दों में रखते हुए राज्यों में फैल चुकी बदहाली को उजागर कर दिया.

लोगों के मरने की नौबत हो, तो केंद्र सरकार में किसे करें फोन?

ऐसे समय में जब राज्यों में मरीजों को बेड, ऑक्सीजन और जीवनरक्षक दवाइयां उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं. श्मशानों में लकड़ियां खत्म हो गई हैं और शवों को जलाने के लिए परिजन कई घंटों तक इंतजार करने को मजबूर हो रहे हैं. ऑक्सीजन सिलेंडर और रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए तीमारदार दर-दर भटक रहे हैं. अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील कर राज्यों में स्वास्थ्य व्यवस्थाओं और केंद्र सरकार के कथित सहयोग की कलई खोल कर रख दी. केजरीवाल ने इस बैठक में मोदी से स्पष्ट शब्दों में पूछा कि सर, हमारे यहां ऑक्सीजन खत्म होने वाली हो और लोगों के मरने की नौबत आ जाए, तो मैं केंद्र सरकार में किससे बात करूं? हमारे ऑक्सीजन के ट्रक रोके जाएं, तो हम किससे बात करें? परीक्षा के दौरान कठिन सवालों को पहले हल करने की सीख देने वाले नरेंद्र मोदी के पास इस कठिन सवाल का कोई जवाब नहीं था. आखिर कोरोना महामारी से जूझते हुए एक साल बीत जाने के बाद भी केंद्र सरकार ने आपात स्थितियों से निपटने के लिए अब तक कोई ठोस व्यवस्था क्यों नहीं की है?

ऑक्सीजन की कमी से मरीज मर रहे हैं, लेकिन केंद्र सरकार के कान पर जूं रेंगती नहीं दिख रही है.

ऑक्सीजन कोटे से भी कम सप्लाई कर रही है केंद्र सरकार

दिल्ली के साथ देश के कई राज्यों में ऑक्सीजन की किल्लत की खबरें लगातार सामने आ रही हैं. ऑक्सीजन की कमी से मरीज मर रहे हैं, लेकिन केंद्र सरकार के कान पर जूं रेंगती नहीं दिख रही है. केजरीवाल ने मोदी को बताया कि दिल्ली को 700 टन ऑक्सीजन की जरूरत है. उन्होंने पीएम मोदी को याद दिलाया कि केंद्र ने दिल्ली का कोटा बढ़ाकर 480 टन कर दिया है, लेकिन बढ़े हुए कोटे की ऑक्सीजन अभी तक राज्य में पहुंच नहीं पाई है. केजरीवाल ने मोदी से ऑक्सीजन सप्लाई को दुरुस्त करने के लिए सख्त कदम उठाने की बात कही. ऐसा लग रहा है कि केंद्र सरकार के पास कोरोना महामारी और ऑक्सीजन वगैरह की कमी से जूझ रहे राज्यों को राहत देने का कोई प्लान ही नहीं है. प्रधानमंत्री कोरोना से जान गंवाने वाले लोगों के परिवारों के प्रति संवेदना जाहिर करते हैं. लेकिन, गंभीर स्थितियों के लिए संवेदनहीन नजर आते हैं. उद्योग-धंधों से ज्यादा जरूरी लोगों की जान है. मोदी ने खुद ही 'जान है, तो जहान है' का मंत्र दिया था, लेकिन ऐसा लग रहा है कि वह इसे भूलकर बहुत आगे बढ़ गए है.

अदालत की सख्त टिप्पणियों से भी नहीं जाग रही मोदी सरकार

लॉकडाउन से लेकर वैक्सीन तक की जिम्मेदारी केंद्र सरकार ने राज्यों पर डाल दी है. ऑक्सीजन के लिए लोगों और अस्पतालों को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है. राज्यों में हालात ये हो गए हैं कि अस्पताल गंभीर मरीजों को भर्ती करने से ही इनकार कर दे रहे हैं. स्थितियां ऐसी बन चुकी हैं कि दिल्ली हाईकोर्ट को बोलना पड़ा कि ऑक्सीजन सप्लाई रोकने वालों को हम फांसी चढ़ा देंगे, फिर चाहे वह कोई भी हो. बीते कई महीनों से लगातार कहा जा रहा था कि देश को कोरोना की दूसरी लहर का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन केंद्र सरकार चुनावों में व्यस्त रही. कुंभ जैसे बड़े धार्मिक आयोजन को खुद सरकार ने बढ़ावा दिया. केंद्र सरकार की राज्यों की इस बदहाली पर उदासीनता गले नहीं उतर रही है. कानपुर में एक अखबार को जिलाधिकारी ने नोटिस जारी किया है कि उसने श्मशान में शवों को जलाने की एक भ्रामक खबर फैलाई है और इस पर तुरंत स्पष्टीकरण देकर सही आंकड़ा छापें. भाजपा शासित प्रदेश की राज्य सरकारें आंकड़ों को छुपाने के लिए प्रशासनिक दबाव डालने पर उतर आई हैं और अपनी जिम्मेदारी से मुंह चुरा रही हैं.

दिल्ली के साथ केंद्र सरकार अपना रही है दोहरा रवैया

अरविंद केजरीवाल ने वैक्सीन के दामों को पूरे देश में एक जैसा रखने की मांग भी की. केंद्र सरकार को वैक्सीन के दामों पर हस्तक्षेप करने का पूरा हक है, तो वह ऐसा करने से क्यों पीछे हट रही है. पीएम केयर्स फंड के नाम पर जो पैसा इकट्ठा किया गया है, उसका इस्तेमाल लोगों को सही दाम पर वैक्सीन उपलब्ध कराने के लिए क्यों नहीं किया जा रहा है. भाजपा शासित राज्य 18+ के लोगों को मुफ्त वैक्सीन की घोषणा कर रहे हैं. इसके लिए पैसों की जरूरत होगी, तो केंद्र सरकार आसानी से उपलब्ध करा देगी. लेकिन, दिल्ली जैसे राज्य को केंद्र सरकार अपनी चुनावी प्रयोगशाला बनाने पर तुली है. उत्तर प्रदेश के लखनऊ में ऑक्सीजन एक्सप्रेस आती है, लेकिन दिल्ली में ये सुविधा शुरू नहीं हो सकी है. कहना गलत नहीं होगा कि इस स्थिति में भी केंद्र सरकार राजनीतिक नफा-नुकसान को ध्यान में रखते हुए आगे बढ़ रही है. केजरीवाल पर मोदी के साथ हुई इस बैठक को लाइव करने पर प्रोटोकॉल के उल्लंघन का आरोप लगा, लेकिन यह किसी भी हाल में गलत नहीं ठहराया जा सकता है. आखिर लोगों को भी जानने का हक है कि उनकी बदहाली की चीखों पर केंद्र सरकार किस कदर कान में उंगली डालकर बैठी है. केजरीवाल ने मोदी की बैठक में जो कहा, वो राज्यों की बदहाल स्थिति का एक नमूना भर है. जमीन पर हालात और भी ज्यादा खराब हैं.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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