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जम्मू-कश्मीर का आर्टिकल 35A भी असम के NRC की राह पर...

    • अनुज मौर्या
    • Updated: 06 अगस्त, 2018 01:21 PM
  • 06 अगस्त, 2018 01:21 PM
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जिस तरह असम से बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर निकालने और भारतीय नागरिकों की पहचान करने के लिए NRC draft बनाया गया है, ठीक उसी राह पर अनुच्छेद 35A का मामला भी चलता हुआ नजर आ रहा है.

पिछले दिनों असम में NRC यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन को लेकर बवाल मचा हुआ था. अभी वो घमासान शांत भी नहीं हुआ कि एक और विरोध शुरू हो गया है. यहां बात हो रही है जम्मू-कश्मीर के अनुच्छेद 35A की, जो जम्मू-कश्मीर के लोगों को कुछ विशेष अधिकार देता है. इसे लेकर आए दिन जम्मू-कश्मीर में प्रदर्शन हो रहे हैं. रविवार को अलगाववादियों ने दो दिन के बंद का आह्वान किया था और आज भी वहां सब कुछ बंद है. इसी बीच जब 35A का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने इस सुनवाई को 27 अगस्त तक के लिए टाल दिया है.

इसे हटाने के पीछे सरकार की क्या है दलील?

सरकार की मांग है कि अनुच्छेद 35A को हटा दिया जाना चाहिए, जिसे 64 साल पहले कश्मीर के लिए लाया गया था. सरकार की सबसे बड़ी दलील ये है कि इसे संसद के जरिए लागू नहीं किया गया, बल्कि राष्ट्रपति आदेश के जरिए जबरन थोपा गया. 35A को हटाने की मांग भाजपा का राजनीतिक एजेंडा रहा है. यही कारण है कि भाजपा के नेता खुलकर इसका विरोध भी करते हैं. वहीं कांग्रेस इससे बचती नजर आती है.

सरकार की दूसरी बड़ी दलील ये है कि बंटवारे के दौरान बहुत से लोग पाकिस्तान से भारत आए थे, जिनमें लाखों लोग जम्मू-कश्मीर में ही बस गए, लेकिन अनुच्छेद 35A की वजह से उनसे स्थाई निवासी होने का हक छीन लिया गया. पाकिस्तान से भारत आए लाखों लोगों में अधिकतर लोग हिंदू और सिख समुदाय के हैं.

कौन-कौन कर रहा है विरोध?

जिस तरह NRC पर सरकार उस ड्राफ्ट के साथ थी और विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर खिलाफ थीं, ठीक उसी तरह अब जम्मू-कश्मीर में भी हो रहा है. एक दूसरे के राजनीतिक विरोधी उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती तक की पार्टियां विरोध के स्वर बुलंद करते हुए जैसे एकजुट हो कर सड़क पर उतर आई हैं. कांग्रेस भी 35A को हटाए जाने का विरोध कर रही है, लेकिन साफ-साफ कुछ नहीं कह पा रही है....

पिछले दिनों असम में NRC यानी नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन को लेकर बवाल मचा हुआ था. अभी वो घमासान शांत भी नहीं हुआ कि एक और विरोध शुरू हो गया है. यहां बात हो रही है जम्मू-कश्मीर के अनुच्छेद 35A की, जो जम्मू-कश्मीर के लोगों को कुछ विशेष अधिकार देता है. इसे लेकर आए दिन जम्मू-कश्मीर में प्रदर्शन हो रहे हैं. रविवार को अलगाववादियों ने दो दिन के बंद का आह्वान किया था और आज भी वहां सब कुछ बंद है. इसी बीच जब 35A का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने इस सुनवाई को 27 अगस्त तक के लिए टाल दिया है.

इसे हटाने के पीछे सरकार की क्या है दलील?

सरकार की मांग है कि अनुच्छेद 35A को हटा दिया जाना चाहिए, जिसे 64 साल पहले कश्मीर के लिए लाया गया था. सरकार की सबसे बड़ी दलील ये है कि इसे संसद के जरिए लागू नहीं किया गया, बल्कि राष्ट्रपति आदेश के जरिए जबरन थोपा गया. 35A को हटाने की मांग भाजपा का राजनीतिक एजेंडा रहा है. यही कारण है कि भाजपा के नेता खुलकर इसका विरोध भी करते हैं. वहीं कांग्रेस इससे बचती नजर आती है.

सरकार की दूसरी बड़ी दलील ये है कि बंटवारे के दौरान बहुत से लोग पाकिस्तान से भारत आए थे, जिनमें लाखों लोग जम्मू-कश्मीर में ही बस गए, लेकिन अनुच्छेद 35A की वजह से उनसे स्थाई निवासी होने का हक छीन लिया गया. पाकिस्तान से भारत आए लाखों लोगों में अधिकतर लोग हिंदू और सिख समुदाय के हैं.

कौन-कौन कर रहा है विरोध?

जिस तरह NRC पर सरकार उस ड्राफ्ट के साथ थी और विपक्षी पार्टियां एकजुट होकर खिलाफ थीं, ठीक उसी तरह अब जम्मू-कश्मीर में भी हो रहा है. एक दूसरे के राजनीतिक विरोधी उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती तक की पार्टियां विरोध के स्वर बुलंद करते हुए जैसे एकजुट हो कर सड़क पर उतर आई हैं. कांग्रेस भी 35A को हटाए जाने का विरोध कर रही है, लेकिन साफ-साफ कुछ नहीं कह पा रही है. कांग्रेस बस इतना ही कहकर मामले को टालती सी नजर आ रही है कि धारा 370 और 35A अब वैसे नहीं रहे.

इस मामले का सबसे अधिक विरोध अलगाववादी कर रहे हैं, जिन्होंने जम्मू-कश्मीर में एक डर का माहौल तक बना दिया है. रविवार और सोमवार को अलगाववादियों ने जम्मू-कश्मीर को बंद भी रखा. इस बंद के चलते सरकार ने अमरनाथ यात्रा पर भी विराम लगा दिया है. हुर्रियत नेता बिलाल वार कहते हैं कि 35A की वजह से ही कश्मीर एक है, अगर इसे हटाया तो जंग छिड़ जाएगी. इस बौखलाहट से ये तो साफ है कि अगर 35A को हटा दिया जाता है तो सबसे अधिक दिक्कत हुर्रियत को ही होने वाली है.

शाह फैसल भी हैं इसके खिलाफ

जम्मू-कश्मीर के पहले आईएएस अधिकारी शाह फैसल भी सरकार के खिलाफ खड़े दिख रहे हैं. उन्होंने सर्विस रूल्स तोड़ते हुए बयान दिया है कि कि अगर 35A को खत्म किया गया तो जम्मू-कश्मीर का संबंध देश के बाकी हिस्से से खत्म हो जाएगा. फिलहाल अमेरिका में मास्टर प्रोग्राम की पढ़ाई कर रहे फैसल ने ट्वीट किया है- 'मैं अनुच्छेद 35A की तुलना विवाह करार/निकाहनामा से करना चाहूंगा. अगर आपने इसे तोड़ा तो रिश्ता खत्म. इसके बाद बातचीत करने की कोई भी गुंजाइश नहीं बचेगी.' सरकार पहले से ही फैसल के एक ट्वीट को लेकर उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई कर रही है और अब ये ट्वीट तो सरकार को आग बबूला ही कर देगा.

आखिर है क्या 35A?

इस पूरे घमासान के बीच सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर 35A है क्या? क्यों इसे लेकर इतना बवाल मचा हुआ है कि कानून-व्यवस्था तक बिगड़ने की आशंका जताई जा रही है? यहां आपको बता दें कि 35A अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर के लोगों को कुछ विशेष अधिकार मिले हैं. इस अनुच्छेद को तत्कालीन राष्ट्रपति के एक आदेश पर संविधान में जोड़ा गया था. यह आदेश तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की कैबिनेट की सलाह पर जारी हुआ था. आइए जानते हैं इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर के लोगों को क्या-क्या विशेष अधिकार मिले हुए हैं-

- अनुच्छेद 35A से जम्मू कश्मीर को ये अधिकार मिला है कि वह किसे अपना स्थाई निवासी माने और किसे नहीं. जम्मू कश्मीर की सरकार उन्हें स्थाई निवासी मानती है जो 14 मई 1954 के पहले कश्मीर में बसे थे.

- ऐसे स्थाई निवासियों को जमीन खरीदने, रोजगार पाने और सरकारी योजनाओं में भी विशेष अधिकार मिले हुए हैं.

- देश के किसी दूसरे राज्य का निवासी जम्मू-कश्मीर में जाकर स्थाई निवासी की तरह नहीं बस सकता है.

- दूसरे राज्यों के निवासी ना तो कश्मीर में जमीन खरीद सकते हैं, ना ही राज्य सरकार उन्हें नौकरी देगी.

- अगर जम्मू-कश्मीर की किसी महिला ने भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से शादी कर ली तो उसके अधिकार छीन लिए जाते हैं. खुद उमर अब्दुल्ला की बहन सारा अब्दुल्ला ने राज्य के बाहर के व्यक्ति से शादी की, इसलिए उन्हें संपत्ति के अधिकार से वंचित कर दिया गया. हालांकि, उमर अब्दुल्ला की शादी भी राज्य से बाहर की महिला से हुई है, लेकिन उनके बच्चों को राज्य के सारे अधिकार मिले हुए हैं.

जिस तरह असम से बांग्लादेशी घुसपैठियों को बाहर निकालने और भारतीय नागरिकों की पहचान करने के लिए NRC ड्राफ्ट बनाया गया है, ठीक उसी राह पर अनुच्छेद 35A का मामला भी चलता हुआ नजर आ रहा है. इसके तहत भी सरकार चाहती है कि जम्मू-कश्मीर में बसे उन हिंदू और सिख नागरिकों को भी स्थाई निवासी होने का अधिकार मिले, जो बंटवारे के दौरान हिंदुस्तान आए थे और जम्मू-कश्मीर में बस गए. 35A की वजह से उन्हें जम्मू-कश्मीर में स्थाई नागरिकता नहीं मिल रही है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि सरकार अनुच्छेद 35A को खत्म करवा पाती है या नहीं? अगर इसे खत्म करवा भी दिया गया तो उसके बाद स्थिति कैसे होगी, इसका तो अभी अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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