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आंध्र प्रदेश में नौकरियों में स्थानीय लोगों को आरक्षण क्या कारगर साबित होगा?

    • आलोक रंजन
    • Updated: 24 जुलाई, 2019 07:45 PM
  • 24 जुलाई, 2019 07:45 PM
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आंध्र प्रदेश में ये एक्ट तो पास हो गया है, लेकिन अब आम नागरिक, उद्योगपति, व्यवसायी, सबके लिए यह चर्चा का विषय भी बन गया है. सवाल उठने लगे हैं कि स्थानीय लोगों को 75 फीसदी आरक्षण देने का यह फैसला कितना कारगर साबित हो पायेगा?

आंध्र प्रदेश में सत्ता में आते ही और मुख्यमंत्री बनने के बाद जगनमोहन रेड्डी ने बहुत ही बड़ा दांव चला है. जगन सरकार ने 22 जुलाई को विधानसभा में आंध्र प्रदेश एंप्लॉयमेंट ऑफ़ लोकल कैंडिडेट इन इंडस्ट्रीज़/फ़ैक्ट्रीज़ एक्ट 2019 को पारित कर दिया. इस एक्ट के पारित होने का मतलब है कि अब राज्य में 75 फीसदी नौकरियां स्थानीय लोगों को मिलेंगी. इस एक्ट के तहत आंध्र प्रदेश में अब लगने वाली सभी प्रकार की इंडस्ट्रियल यूनिट्स, फैक्ट्रीज, संयुक्त उद्यम समेत पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप में चल रहे सभी प्रोजेक्ट्स में 75 फीसदी नौकरियां स्थानीय लोगों को देने का रास्ता साफ हो गया है. इसके साथ ही स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में 75 फीसदी आरक्षण देने वाला आंध्र प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है.

ये एक्ट तो पास हो गया है, लेकिन अब आम नागरिक, उद्योगपति, व्यवसायी, सबके लिए यह चर्चा का विषय भी बन गया है. समाज के सभी वर्गों के लोगों के मन में अब सवाल उठने लगे हैं कि स्थानीय लोगों को 75 फीसदी आरक्षण देने का यह फैसला कितना कारगर साबित हो पायेगा? इसकी व्यवहारिकता को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं. क्या प्रदेश के उद्योगपति और व्यवसायी वहां के स्थानीय लोगों को नौकरियां प्रदान करेंगे? उस तरह के जॉब वे पैदा कर पाएंगे जो स्थानीय लोगों को ध्यान में रखकर बनाए गए हों? बिना उनके स्किल डेवलपमेंट (कौशल विकास) के उनको नौकरियां प्रदान करने से वहां के उद्योग को फायदा पहुंचेगा? कुछ उद्योगपतियों का तो यहां तक मानना है कि इस कदम से जरूर स्थानीय लोगो को नौकरियां मिल पाएंगी लेकिन इसके चलते प्रदेश में निवेश की कमी आ सकती है. कुछ का तो ये भी मानना है कि बजाय आरक्षण देने के यहां के युवाओं को ट्रेनिंग देकर उनको इन नौकरियों के अनुकूल बनाया जा सकता है.

स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में 75 फीसदी आरक्षण देने वाला...

आंध्र प्रदेश में सत्ता में आते ही और मुख्यमंत्री बनने के बाद जगनमोहन रेड्डी ने बहुत ही बड़ा दांव चला है. जगन सरकार ने 22 जुलाई को विधानसभा में आंध्र प्रदेश एंप्लॉयमेंट ऑफ़ लोकल कैंडिडेट इन इंडस्ट्रीज़/फ़ैक्ट्रीज़ एक्ट 2019 को पारित कर दिया. इस एक्ट के पारित होने का मतलब है कि अब राज्य में 75 फीसदी नौकरियां स्थानीय लोगों को मिलेंगी. इस एक्ट के तहत आंध्र प्रदेश में अब लगने वाली सभी प्रकार की इंडस्ट्रियल यूनिट्स, फैक्ट्रीज, संयुक्त उद्यम समेत पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप में चल रहे सभी प्रोजेक्ट्स में 75 फीसदी नौकरियां स्थानीय लोगों को देने का रास्ता साफ हो गया है. इसके साथ ही स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में 75 फीसदी आरक्षण देने वाला आंध्र प्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है.

ये एक्ट तो पास हो गया है, लेकिन अब आम नागरिक, उद्योगपति, व्यवसायी, सबके लिए यह चर्चा का विषय भी बन गया है. समाज के सभी वर्गों के लोगों के मन में अब सवाल उठने लगे हैं कि स्थानीय लोगों को 75 फीसदी आरक्षण देने का यह फैसला कितना कारगर साबित हो पायेगा? इसकी व्यवहारिकता को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं. क्या प्रदेश के उद्योगपति और व्यवसायी वहां के स्थानीय लोगों को नौकरियां प्रदान करेंगे? उस तरह के जॉब वे पैदा कर पाएंगे जो स्थानीय लोगों को ध्यान में रखकर बनाए गए हों? बिना उनके स्किल डेवलपमेंट (कौशल विकास) के उनको नौकरियां प्रदान करने से वहां के उद्योग को फायदा पहुंचेगा? कुछ उद्योगपतियों का तो यहां तक मानना है कि इस कदम से जरूर स्थानीय लोगो को नौकरियां मिल पाएंगी लेकिन इसके चलते प्रदेश में निवेश की कमी आ सकती है. कुछ का तो ये भी मानना है कि बजाय आरक्षण देने के यहां के युवाओं को ट्रेनिंग देकर उनको इन नौकरियों के अनुकूल बनाया जा सकता है.

स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में 75 फीसदी आरक्षण देने वाला आंध्र प्रदेश, देश का पहला राज्य बन गया है

कुछ अन्य समीक्षकों और उद्योगपतियों का कहना है कि यह बिलकुल सही कदम उठाया गया है. इससे नौकरी पाने के लिए दूसरे राज्यों में जाने से युवाओं पर रोक लग सकती है यानी माइग्रेशन पर लगाम लगेगी. पर सबसे बड़ा सवाल ये भी है कि क्या हाई स्किल वाले जॉब जिसमें हाई टेक्नोलॉजी जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन जानने वाले लोगों की जरुरत है उसमें स्थानीय लोग बिना ट्रेनिंग के कैसे सक्षम हो पाते हैं.

कुछ समीक्षक तो इसकी संवैधानिकता पर सवाल उठाने लगे हैं. क्या इस तरह का कानून बनाया जा सकता है, जिससे कोई राज्य अपने नागरिकों के हितों की रक्षा के लिए इस तरह का आरक्षण दे सकता है. अगर देश के सभी राज्य ऐसी ही व्यवस्था प्रदान करने लगे तो भारत जैसे फ़ेडरल स्टेट में इसका परिणाम क्या हो सकता है, सोचने लायक है. सबसे बड़ा सवाल ये भी है कि इस तरह के नियम को इंडस्ट्रीज़ और फैक्ट्री मालिकों में थोपना कितना जायज है. दरअसल ये एक राजनीतिक मसला है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगनमोहन रेड्डी ने विधानसभा चुनाव के पूर्व लोगों से वादा किया था कि राज्य की कंपनियों की नौकरियों में स्थानीय नागरिकों को आरक्षण दिया जाएगा.

इससे पहले किन राज्यों ने इस तरह के प्रयास किये?

मध्य प्रदेश

9 जुलाई, 2019 को मध्य प्रदेश के सीएम कमलनाथ ने घोषणा की थी और कहा था कि निजी नौकरियों में स्थानीय लोगों को 70 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने के लिए एक कानून लाया जायेगा.

गुजरात

सितंबर 2018 में गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने कहा था कि उनकी सरकार विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के उद्यमियों को नौकरियों में राज्य से 80 प्रतिशत लोगों को रखने के लिए और इसे अनिवार्य बनाने के लिए एक कानून लाएगी. इससे पहले राज्य में 1995 में स्थानीय लोगों के लिए 85 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान रखा गया था. इस नीति को हालांकि कभी भी निजी या सार्वजनिक क्षेत्रों में लागू नहीं किया गया था. चीनी मिट्टी निर्माण, कपड़ा, हीरा और सेवा क्षेत्र में प्रमुख रूप से श्रमिक बिहार, यूपी, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और अन्य जगहों से आते हैं.

महाराष्ट्र

महाराष्ट्र ने नवंबर 2008 में स्थानीय लोगों के लिए 80 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया था उन उद्योगों के लिए जो टैक्स सब्सिडी और इंसेंटिव चाहते हैं. लेकिन ये पालिसी कभी अमल में लाया ही नहीं जा सका.

कर्नाटक

कर्नाटक में सरकार ने दिसंबर 2016 में इन्फोटेक और बायोटेक को छोड़कर निजी क्षेत्र के उद्योगों में मुख्यत ब्लू-कॉलर नौकरियों में कन्नड़ भाषी लोगों को 100 प्रतिशत आरक्षण देने की योजना बनाई थी. लेकिन 2018 के बाद से ये मामला कभी उठा ही नहीं.

तमिलनाडु

एक और उच्च औद्योगिक राज्य तमिलनाडु के उद्योग मंत्री ने जनवरी 2019 में कहा था की उनकी सरकार, राज्य के निवासियों के लिए नौकरियों में कम से कम 50% आरक्षण सुनिश्चित करने का प्रयास करेगी.

सिक्किम

मई 2018 में सिक्किम ने राज्य के निजी उद्योगों में स्थानीय लोगों के लिए 90 प्रतिशत कोटा प्रदान करने का प्लान रखा था. 2010 में इस तरह का एक कानून भी पारित किया था लेकिन इसे राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया था.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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