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मेरी कश्ती वहां डूबी जहां चीनी नहीं, पानी कम था

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 21 अप्रिल, 2016 02:30 PM
  • 21 अप्रिल, 2016 02:30 PM
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पहले बोफोर्स, फिर एबीसीएल और अब पनामा पेपर्स- क्यों इन आर्थिक खेलों में फंस जाता है ये सुपर स्टार. जबकि इस महानायक की जिंदगी में रुतबे की चीनी कभी कम नहीं रही.

अमिताभ बच्चन, सिर्फ नाम ही काफी है. फिल्म हो या बॉलीवुड में रसूख या फिर राजनीति में पहुंच- जंजीर के किरदार इंस्पेक्टर विजय खन्ना से मिला एंग्री यंग मैन का तमगा या सरकार में राज ठाकरे के किरदार में गॉडफादर की झलक सबकुछ अमिताभ बच्चन की पब्लिक लाइफ के सामने फीका है, या कह लें चीनी कम है.

पब्लिक लाइफ में अमिताभ के दामन पर कई दाग लगे. ज्यादातर दाग ऐसे वक्त पर लगे जब वह अपनी शख्सियत को लेकर शीर्ष पर रहे. पनामा पेपर्स सबसे नया मामला है. उनपर आरोप टैक्स हैवन देश में फर्जी शेल कंपनी बनाकर पैसा इधर से उधर करने का और देश में टैक्स चोरी करने का है. यह आरोप भी बच्चन पर ऐसे वक्त में लग रहा है जब वह देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बेहद करीबी माने जाते हैं और बीजेपी को केन्द्र की सत्ता में स्थापित करने के लिए रेडियो और टेलिवीजन प्रचार की अहम कड़ी बन चुके हैं. इतना ही नहीं, वह दुनियाभर में केन्द्र की बीजेपी सरकार की छवि बनाने के लिए इक्रेडिबेल इंडिया प्रोग्राम के ब्रांड एंमबेस्डर भी हैं.

इस शीर्ष पर उनका रसूख इससे पहले 1984 में पहुंचा था जब गांधी परिवार की नजदीकी के चलते उन्होंने लोकसभा चुनाव में राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी एच एल बहुगुणा को कांग्रेस का टिकट लेकर पटखनी दी थी. इन चुनावों ने राजीव गांधी को बतौर अब तक के सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री के रूप में स्थापित कर दिया था और अमिताभ उनके बेहद करीबी बनकर उनके साथ खड़े हो गए. इस दौर में फिल्मी करियर फीका पड़ रहा था और रसूख बरकरार रखने के लिए यह छलांग उनके लिए बेहद जरूरी थी. लेकिन इस शीर्ष पर भी अमिताभ ज्यादा दिन नहीं टिके. 1987 में उन पर स्वीडिश कंपनी बोफोर्स का रक्षा मंत्रालय के साथ तोप खरीदने के सौदे में दलाली लेने का आरोप लगा. अमिताभ बच्चन ने बोफोर्स मामले में दलाली करने के सभी आरोपों का खंडन करते हुए लोकसभा की सदस्यता को छोड़ दिया. इन आरोपों ने अगले 25 साल तक बच्चन को दागदार कर दिया. इससे भी अहम यह कि गांधी परिवार और अमिताभ के बीच इन आरोपों ने बड़ी दीवार खींच दी जिसे आजतक नहीं तोड़ा जा सका.

अमिताभ बच्चन, सिर्फ नाम ही काफी है. फिल्म हो या बॉलीवुड में रसूख या फिर राजनीति में पहुंच- जंजीर के किरदार इंस्पेक्टर विजय खन्ना से मिला एंग्री यंग मैन का तमगा या सरकार में राज ठाकरे के किरदार में गॉडफादर की झलक सबकुछ अमिताभ बच्चन की पब्लिक लाइफ के सामने फीका है, या कह लें चीनी कम है.

पब्लिक लाइफ में अमिताभ के दामन पर कई दाग लगे. ज्यादातर दाग ऐसे वक्त पर लगे जब वह अपनी शख्सियत को लेकर शीर्ष पर रहे. पनामा पेपर्स सबसे नया मामला है. उनपर आरोप टैक्स हैवन देश में फर्जी शेल कंपनी बनाकर पैसा इधर से उधर करने का और देश में टैक्स चोरी करने का है. यह आरोप भी बच्चन पर ऐसे वक्त में लग रहा है जब वह देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बेहद करीबी माने जाते हैं और बीजेपी को केन्द्र की सत्ता में स्थापित करने के लिए रेडियो और टेलिवीजन प्रचार की अहम कड़ी बन चुके हैं. इतना ही नहीं, वह दुनियाभर में केन्द्र की बीजेपी सरकार की छवि बनाने के लिए इक्रेडिबेल इंडिया प्रोग्राम के ब्रांड एंमबेस्डर भी हैं.

इस शीर्ष पर उनका रसूख इससे पहले 1984 में पहुंचा था जब गांधी परिवार की नजदीकी के चलते उन्होंने लोकसभा चुनाव में राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी एच एल बहुगुणा को कांग्रेस का टिकट लेकर पटखनी दी थी. इन चुनावों ने राजीव गांधी को बतौर अब तक के सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री के रूप में स्थापित कर दिया था और अमिताभ उनके बेहद करीबी बनकर उनके साथ खड़े हो गए. इस दौर में फिल्मी करियर फीका पड़ रहा था और रसूख बरकरार रखने के लिए यह छलांग उनके लिए बेहद जरूरी थी. लेकिन इस शीर्ष पर भी अमिताभ ज्यादा दिन नहीं टिके. 1987 में उन पर स्वीडिश कंपनी बोफोर्स का रक्षा मंत्रालय के साथ तोप खरीदने के सौदे में दलाली लेने का आरोप लगा. अमिताभ बच्चन ने बोफोर्स मामले में दलाली करने के सभी आरोपों का खंडन करते हुए लोकसभा की सदस्यता को छोड़ दिया. इन आरोपों ने अगले 25 साल तक बच्चन को दागदार कर दिया. इससे भी अहम यह कि गांधी परिवार और अमिताभ के बीच इन आरोपों ने बड़ी दीवार खींच दी जिसे आजतक नहीं तोड़ा जा सका.

फिल्म चीनी कम के एक शॉट में अमिताभ बच्चन

एंग्री यंग मैन से गॉडफादर तक के सफर में विवादों ने अमिताभ पर हमला बस इन्हीं दो मौकों पर ही नहीं किया. इनके अलावा भी जब कभी वह अपने रसूख के शीर्ष पर पहुंचे तो कोई न कोई विवाद उनके लिए खड़ा हो गया. गौरतलब है कि बोफोर्स कांड के बाद बॉलीवुड में वापसी पर अमिताभ की फिल्मों ने कुछ खास प्रदर्शन नहीं किया. लिहाजा, उन्होंने 1996 में अमिताभ बच्चन कॉरपोरेशन लिमिटेड (एबीसीएल) नाम से कंपनी लांच की और 2000 तक वह देश की सबसे बड़ी फिल्म प्रोडक्शन कंपनी के लक्ष्य पर चल दिए. एक बार फिर किस्मत ने साथ नहीं दिया और एक के बाद एक फ्लॉप फिल्मों पर सवार उनके कर्ज से नौबत यहां तक आ गई कि मुंबई में उनका आलिशान बंगला प्रतीक्षा नीलामी की कगार पर पहुंच गया.

शुक्र है अमर सिंह का, जो मौके पर उनके साथ हो गए और उत्तर प्रदेश के कारोबारी सुब्रत राय सहारा की मदद से उनका घर नीलाम होने से बच गया. साथ ही रिलायंस समूह ने डूबते कारोबार को सहारा दे दिया. ऐसे में उनकी नजदीकी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह से बढ़ गई. राजनीति में एक बार फिर अमिताभ का रसूख तैयार होने लगा. जो काम वह कभी कांग्रेस के लिए कर रहे थे और अभी बजेपी के लिए कर रहे हैं, वह काम उन्हें प्रदेश में समाजवादी पार्टी के लिए करने के लिए दावा करना पड़ा कि यूपी में क्राइम कम है. इस रसूख से पत्नी जया बच्चन समाजवादी पार्टी से राज्यसभा सांसद हो गई. लेकिन यहां भी शीर्ष पर पहुंचे रसूख को ज्यादा दिन नहीं बीते कि उन पर किसान होने का आरोप लग गया. दरअसल मुंबई को पॉश इलाके लोनावाला में पवाना डैम के सामने उन्होंने जमीन का एक बड़ा हिस्सा खरीदा जिसे महाराष्ट्र सरकार ने केवल किसानों को बेचने के लिए आवंटित किया था. अब किसान बनने के लिए अमिताभ ने उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में अपने रसूख के चलते एग्रीकल्चरल लैंड खरीद लिया और इसी आधार पर लोनावाला की जमीन खरीदने की कवायद करने लगे. पूरा मामला उत्तर प्रदेश में छपी खबर से उजागर हो गया और एक बार फिर उन्हें सामने आकर कहना पड़ा कि वह किसान नहीं हैं.

लिहाजा, इन सभी मामलों को देखकर एक बात साफ तौर पर कही जा सकती है. अमिताभ बच्चन और विवाद एक साथ उठते हैं. जब-जब वह अपने रसूख के शीर्ष पर पहुंचे, कोई न कोई विवाद उनके साथ उठ खड़ा हुआ. खासबात यह भी है कि उनपर उठे सारे विवाद ऐसे समय पर उठे हैं जहां उनकी जगह कोई और होता तो रसूख के इस्तेमाल से उन्हें धता कर देता. लेकिन अमिताभ के साथ ऐसा नहीं हुआ और वह विवादों में हमेशा तब पड़े जब उनसे बचने की क्षमता उनके पास सबसे अधिक थी. लिहाजा कह सकते हैं कि अमिताभ की कश्ती वहीं डूबी जहां चीनी नहीं, पानी कम था.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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