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कांग्रेस-JDS को ठिकाने लगाने वाला ये था अमित शाह का प्‍लान

    • खुशदीप सहगल
    • Updated: 15 मई, 2018 03:35 PM
  • 15 मई, 2018 01:07 PM
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2019 आम चुनाव को अब एक साल ही बचा है. उससे पहले इस साल के आखिर में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में कर्नाटक का जनादेश अगले 12 महीने के लिए नैरेटिव तैयार करने वाला है.

सरकार किसी की भी बने, कर्नाटक में बीजेपी की शानदार जीत बहुत मायने रखती है. अमित शाह ने बहुत सूझबूझ से इस दक्षिणी राज्य की बिसात पर पत्ते चले और वो कारगर साबित रहे. अभी पूरे नतीजे आना बाकी है लेकिन लग रहा है कि बीजेपी अपने दम पर ही पूर्ण बहुमत के साथ कर्नाटक में सरकार बना लेगी. कांग्रेस के साथ-साथ देवेगौड़ा-कुमारस्वामी की पिता-पुत्र की जोड़ी का भी खेल खत्म हो गया लगता है.

अमित शाह की चुनाव पूर्व जेडीएस के साथ सीक्रेट पैक्ट की रणनीति कारगर रही

जेडीएस और कांग्रेस दोनों को ही इस स्थिति में लाने के लिए अमित शाह के रणनीतिक कौशल को ही श्रेय दिया जाना चाहिए. शाह ने जिस तरह ओल्ड मैसूर में कमजोर उम्मीदवार खड़े कर जेडीएस को जितवाया, उसने कांग्रेस का बंटाधार करने में मुख्य भूमिका निभाई. ओल्ड मैसूर में जेडीएस के सामने कांग्रेस पिछड़ गई और उसकी सारी रणनीति धरी रह गई. ओल्ड मैसूर में बीजेपी मजबूत उम्मीदवार खड़े करती तो वहां जेडीएस की जगह कांग्रेस का पलड़ा भारी हो जाता. अमित शाह की चुनाव पूर्व जेडीएस के साथ सीक्रेट पैक्ट की रणनीति कारगर रही.

कर्नाटक का जो जनादेश आ रहा है वो इस बात में अच्छा है कि गठबंधन राजनीति को उसने मौका नहीं दिया, वरना ये अस्थिरता को दावत देता.

माइनिंग किंग रेड्डी ब्रदर्स और उनके सहयोगियों के अच्छे प्रदर्शन से एक बार फिर कर्नाटक बीजेपी में उनकी तूती बोलने के आसार हैं. धनबल, भ्रष्टाचार पर कैसे नकेल कसनी है, ये बीजेपी को तय करना होगा. पिछली बार बीजेपी की कर्नाटक में लुटिया येदियुरप्पा और रेड्डी ब्रदर्स के दामन पर लगे दागों ने ही डुबोई थी.

ये जनादेश कांग्रेस के लिए भी करारा सबक है. ग्रैंड ओल्ड पार्टी को समझना चाहिए कि जब तक वो ग्रासरूट लेवल पर, बूथ लेवल पर मजबूत कार्यकर्ता अपने साथ नहीं जोड़ेगी यूंही...

सरकार किसी की भी बने, कर्नाटक में बीजेपी की शानदार जीत बहुत मायने रखती है. अमित शाह ने बहुत सूझबूझ से इस दक्षिणी राज्य की बिसात पर पत्ते चले और वो कारगर साबित रहे. अभी पूरे नतीजे आना बाकी है लेकिन लग रहा है कि बीजेपी अपने दम पर ही पूर्ण बहुमत के साथ कर्नाटक में सरकार बना लेगी. कांग्रेस के साथ-साथ देवेगौड़ा-कुमारस्वामी की पिता-पुत्र की जोड़ी का भी खेल खत्म हो गया लगता है.

अमित शाह की चुनाव पूर्व जेडीएस के साथ सीक्रेट पैक्ट की रणनीति कारगर रही

जेडीएस और कांग्रेस दोनों को ही इस स्थिति में लाने के लिए अमित शाह के रणनीतिक कौशल को ही श्रेय दिया जाना चाहिए. शाह ने जिस तरह ओल्ड मैसूर में कमजोर उम्मीदवार खड़े कर जेडीएस को जितवाया, उसने कांग्रेस का बंटाधार करने में मुख्य भूमिका निभाई. ओल्ड मैसूर में जेडीएस के सामने कांग्रेस पिछड़ गई और उसकी सारी रणनीति धरी रह गई. ओल्ड मैसूर में बीजेपी मजबूत उम्मीदवार खड़े करती तो वहां जेडीएस की जगह कांग्रेस का पलड़ा भारी हो जाता. अमित शाह की चुनाव पूर्व जेडीएस के साथ सीक्रेट पैक्ट की रणनीति कारगर रही.

कर्नाटक का जो जनादेश आ रहा है वो इस बात में अच्छा है कि गठबंधन राजनीति को उसने मौका नहीं दिया, वरना ये अस्थिरता को दावत देता.

माइनिंग किंग रेड्डी ब्रदर्स और उनके सहयोगियों के अच्छे प्रदर्शन से एक बार फिर कर्नाटक बीजेपी में उनकी तूती बोलने के आसार हैं. धनबल, भ्रष्टाचार पर कैसे नकेल कसनी है, ये बीजेपी को तय करना होगा. पिछली बार बीजेपी की कर्नाटक में लुटिया येदियुरप्पा और रेड्डी ब्रदर्स के दामन पर लगे दागों ने ही डुबोई थी.

ये जनादेश कांग्रेस के लिए भी करारा सबक है. ग्रैंड ओल्ड पार्टी को समझना चाहिए कि जब तक वो ग्रासरूट लेवल पर, बूथ लेवल पर मजबूत कार्यकर्ता अपने साथ नहीं जोड़ेगी यूंही मोदी-शाह की जोड़ी के सामने पिटती रहेगी. कांग्रेस को इस दिशा में क्रांतिकारी बदलाव करने होंगे नहीं तो 2019 आम चुनाव में उसके लिए कोई गुंजाइश नहीं रहेगी. साथ ही पार्टी को ये भी सोचना होगा कि एक अमरिंदर या एक सिद्धारमैया राज्यों में पार्टी की नैया पार नहीं लगा सकते. इसके लिए ऊपर से नीचे तक टीमवर्क और एकजुटता की जरूरत होती है. यहां कांग्रेस को बहुत मेहनत करने की जरूरत है.

कांग्रेस को करनी होगी कड़ी मेहनत

कांग्रेस को ये भी सोचना होगा कि ओल्ड मैसूर में बीजेपी विरोधी वोट उसके खाते में आने की जगह जेडीएस के खाते में क्यों गए. क्या यहां राहुल का सॉफ्ट हिन्दुत्व की लाइन पर चलना उलटा पड़ा. कांग्रेस को संविधान के मूल सिद्धांत यानी धर्मनिरपेक्षता से समझौता नहीं करते आना चाहिए. गरीब, मजदूर, किसान, निम्न आय वर्ग, कम पढ़े लिखे लोग, अल्पसंख्यक कांग्रेस का मजबूत वोट बैंक रहे हैं. लेकिन यही दरकेगा तो कांग्रेस की स्थिति ‘ना घर के, ना घाट के’ वाली होती जाएगी.

2019 आम चुनाव को अब एक साल ही बचा है. उससे पहले इस साल के आखिर में मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में कर्नाटक का जनादेश अगले 12 महीने के लिए नैरेटिव तैयार करने वाला है. मोदी सरकार को केंद्र में चार साल पूरे करने का जश्न शानदार ढंग से मनाने के लिए कर्नाटक के जनादेश ने मौका दे दिया है. वहीं अब बीजेपी और संघ का कैडर इस साल के आखिर में चार राज्यों के चुनाव और अगले साल आम चुनाव में दुगने जोश के साथ उतरेगा.

ऐसे में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के लिए पूरे देश में संदेश साफ है कि या तो 24x7 फील्ड में रह कर कड़ी मेहनत करो अन्यथा कर्नाटक जैसे ही नतीजे सब जगह आते देखने के लिए तैयार रहो.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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