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Amit Shah Rally चुनावी नहीं थी लेकिन दावा यही हुआ कि नीतीश दो-तिहाई बहुमत से जीतेंगे!

    • आईचौक
    • Updated: 08 जून, 2020 10:55 AM
  • 08 जून, 2020 10:55 AM
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अमित शाह (Amit Shah) ने दावा किया है कि बिहार में नीतीश कुमार दो-तिहाई बहुमत से चुनाव जीतेंगे. लगे हाथ राहुल गांधी और तेजस्वी यादव पर हमले के साथ ही शाह ने ये भी दावा किया कि बिहार में जन संवाद (Bihar Virtual Rally) कर रहे हैं - कोई चुनावी रैली नहीं!

अमित शाह (Amit Shah) का बिहार जन संवाद कार्यक्रम (Bihar Virtual Rally) में पूरा जोर ये बताने पर रहा कि वो कोई चुनावी रैली नहीं कर रहे हैं, बल्कि बिहार के लोगों से संवाद कर रहे हैं. अमित शाह ने दिल्ली से बिहार के बूथ लेवल तक बीजेपी कार्यकर्ताओं से बात की - और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार (Narendra Modi govt) की सारी उपलब्धियां भी एक एक कर बता डाली.

भले ही अमित शाह अपनी रैली के गैर चुनावी होने का दावा करें और भले ही बिहार में अभी चुनावी माहौल न हो - लेकिन मोर्चे पर दूसरी तरफ विपक्ष पूरी तरह मुस्तैद नजर आया. बिहार में विपक्षी पार्टी आरजेडी के नेताओं ने तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी के नेतृत्व में थाली बजाकर अमित शाह की रैली के प्रति विरोध भी जताया.

फिर अमित शाह मुद्दे की बात पर आये और बताया कि बिहार में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व में दो-तिहाई बहुमत से NDA की सरकार बनेगी और दोहराया, 'ये चुनावी सभा नहीं है, हमारा उद्देश्य देश के लोगों को जोड़ना है और कोरोना के खिलाफ एक जुटकर होकर लड़ना है.'

एक गैर चुनावी रैली में भाषण कैसा हो?

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को मालूम था कि लोगों के मन में क्या चल रहा होगा. तभी तो कोरोना वायरस के खिलाफ एक जुट होकर लड़ाई के मकसद के आयोजित बिहार जनसंवाद रैली को लेकर हर तरह के भ्रम दूर करने की कोशिश सबसे पहले की - 'कुछ लोग कह रहे हैं कि ये चुनावी रैली है, लेकिन मैं लोगों से बता देना चाहता हूं कि इसका आयोजन सिर्फ और सिर्फ कार्यकर्ताओं से जनसंवाद के लिए किया गया है - हम अपनी जनसंवाद के पंरपरा को छोड़ नहीं सकते.'

सवाल है कि किसी चुनावी रैली और गैर चुनावी रैली में कितना फर्क होता है?

चुनावी और गैर चुनावी रैलियों में फर्क किन बातों के आधार पर किया जा सकता है? मौके के हिसाब से - मतलब, चुनाव की घोषणा हो चुकी है या नहीं या कोई और बात? भाषण के कंटेंट के हिसाब से - मसलन, जनसंवाद में किन मुद्दों पर बात होती है? या फिर किसी रैली में हिस्सेदारी किसकी है - उदाहरण के लिए,...

अमित शाह (Amit Shah) का बिहार जन संवाद कार्यक्रम (Bihar Virtual Rally) में पूरा जोर ये बताने पर रहा कि वो कोई चुनावी रैली नहीं कर रहे हैं, बल्कि बिहार के लोगों से संवाद कर रहे हैं. अमित शाह ने दिल्ली से बिहार के बूथ लेवल तक बीजेपी कार्यकर्ताओं से बात की - और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार (Narendra Modi govt) की सारी उपलब्धियां भी एक एक कर बता डाली.

भले ही अमित शाह अपनी रैली के गैर चुनावी होने का दावा करें और भले ही बिहार में अभी चुनावी माहौल न हो - लेकिन मोर्चे पर दूसरी तरफ विपक्ष पूरी तरह मुस्तैद नजर आया. बिहार में विपक्षी पार्टी आरजेडी के नेताओं ने तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी के नेतृत्व में थाली बजाकर अमित शाह की रैली के प्रति विरोध भी जताया.

फिर अमित शाह मुद्दे की बात पर आये और बताया कि बिहार में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व में दो-तिहाई बहुमत से NDA की सरकार बनेगी और दोहराया, 'ये चुनावी सभा नहीं है, हमारा उद्देश्य देश के लोगों को जोड़ना है और कोरोना के खिलाफ एक जुटकर होकर लड़ना है.'

एक गैर चुनावी रैली में भाषण कैसा हो?

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को मालूम था कि लोगों के मन में क्या चल रहा होगा. तभी तो कोरोना वायरस के खिलाफ एक जुट होकर लड़ाई के मकसद के आयोजित बिहार जनसंवाद रैली को लेकर हर तरह के भ्रम दूर करने की कोशिश सबसे पहले की - 'कुछ लोग कह रहे हैं कि ये चुनावी रैली है, लेकिन मैं लोगों से बता देना चाहता हूं कि इसका आयोजन सिर्फ और सिर्फ कार्यकर्ताओं से जनसंवाद के लिए किया गया है - हम अपनी जनसंवाद के पंरपरा को छोड़ नहीं सकते.'

सवाल है कि किसी चुनावी रैली और गैर चुनावी रैली में कितना फर्क होता है?

चुनावी और गैर चुनावी रैलियों में फर्क किन बातों के आधार पर किया जा सकता है? मौके के हिसाब से - मतलब, चुनाव की घोषणा हो चुकी है या नहीं या कोई और बात? भाषण के कंटेंट के हिसाब से - मसलन, जनसंवाद में किन मुद्दों पर बात होती है? या फिर किसी रैली में हिस्सेदारी किसकी है - उदाहरण के लिए, सिर्फ किसी राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं की या आम अवाम की?

वैसे भी अगर कोई नेता या मंत्री अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं से संवाद करेगा तो क्या बात करेगा? और वही नेता या मंत्री या दोनों लोगों के साथ सीधा संवाद करेगा तो क्या बात करेगा? देखने को तो अक्सर यही मिलता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद संसद में भाषण दे रहे होते हैं और लगता है आने वाले चुनाव पर फोकस होकर वही बातें, उन्हीं मुद्दों का जिक्र कर रहे हैं जो चुनावी रैलियों में होनी हैं - लेकिन अब संसद के भाषण को कोई चुनावी रैली तो बोल भी नहीं सकता.

अव्वल तो अमित शाह को रैली के चुनावी होने या न होने को लेकर कोई डिस्क्लेमर पेश करने की जरूरत ही नहीं थी - लेकिन अगर ऐसा बोल कर मकसद लोगों के मन में कौतूहल पैदा करना ही रहा हो, फिर तो बात ही दीगर है.

अमित शाह के कार्यकर्ताओं से जनसंवाद के इस कार्यक्रम में पहले से ही ये सुनिश्चित करने की कोशिश रही कि बिहार के 243 विधानसभा क्षेत्रों के 72 हजार बूथों तक पूर्व बीजेपी अध्यक्ष सीधे कनेक्ट हों. लोगों से कनेक्ट होते ही अमित शाह ने धारा 370 खत्म करने से लेकर तीन तलाक और फिर अयोध्या में भव्य राम मंदिर निर्माण तक, हर बात का जोर देकर जिक्र किया. ये सब बातें झारखंड और दिल्ली चुनाव के बाद कार्यकर्ताओं को अमित शाह के मुंह से सुनने को पहली बार मिल रही थीं.

मोदी सरकार की उपलब्धियों के साथ साथ अमित शाह ने विपक्ष को भी आड़े हाथों लिया - निशाने पर तेजस्वी यादव से लेकर राहुल गांधी तक आये. बोले, 'राहुल गांधी हमेशा कहते थे कांग्रेस की सरकार ने साढ़े तीन करोड़ किसानों को दस साल में 60 हजार करोड़ दिया, जबकि नरेंद्र मोदी की सरकार साढ़े 9 करोड़ किसानों के खाते में हर साल 72 हजार करोड़ रुपये दे रही है.'

तेजस्वी यादव ने तो अमित शाह की रैली के विरोध में पहले ही ऐलान कर रखा था कि गरीब अधिकार दिवस मनाएंगे. जब अमित शाह का भाषण शुरू हुआ तो पूरा लालू परिवार और आरजेडी नेता थाली बजाकर विरोध जता रहे थे. ध्यान देने वाली बात ये रही कि सोशल डिस्टेंसिंग बनाये रखने के लिए पहले से ही जमीन पर गोले बना दिये गये थे. अगली कतार में मास्क लगाये राबड़ी देवी खड़ी थीं और उनके अगल बगल दोनों बेटे - तेजस्वी यादव और तेज प्रताप.

अमित शाह की वर्चुअल बिहार रैली के विरोध में लालू परिवार की अगुवाई में आरजेडी नेताओं ने थाली बजाकर विरोध प्रदर्शन किया

अमित शाह ने विपक्ष के विरोध प्रदर्शन का भी नोटिस लिया और अपने तरीके से उसकी व्याख्या भी पेश की - 'आज जब मैं वर्चुअल रैली के माध्यम से आपसे संवाद कर रहा हूं तब कुछ लोगों ने अभी थाली बजाकर इस रैली का स्वागत किया है. मुझे अच्छा लगा कि देर-सवेर प्रधानमंत्री मोदी की अपील को उन्होंने माना.'

आगे बोले, 'ये रैली कोई चुनावी रैली नहीं है. ये वर्चुअल रैली कोरोना के खिलाफ देश की जनता को जोड़ने के लिए है - वक्रदृष्टा लोग इस पर भी सवाल उठा रहे हैं.'

आरजेडी के चुनाव निशान के जरिये भी अमित शाह ने पार्टी को लेकर कटाक्ष किया -स ये लालटेन का नहीं बल्कि बिजली से रौशन नये भारत का जमाना है. एलईडी का जमाना है.

मोदी सरकार की ही तरह अमित शाह ने नीतीश कु्मार सरकार की भी उपलब्धियां गिनाईं. तरीका ये रहा कि नीतीश सरकार की उपलब्धियां लालू परिवार राज की तुलना करते हुए पेश की गयीं.

अमित शाह ने कहा - 'हम 'लूट एंड मर्डर' से बिहार को 'लॉ एंड ऑर्डर' तक लेकर आये... हम बिहार को चारा घोटाले से DBT तक लेकर आये... हम बिहार को 'जंगलराज' से 'जनताराज' तक लेकर आए... आप सभी को पहली वर्चुअल रैली के लिए बधाई और शुभकामनाएं!'

नये वोट बैंक की चिंता भी सताने लगी है

ये तो पहले ही साफ हो चुका है कि आने वाले चुनावों में प्रवासी मजूदर भी अलग से एक वोट बैंक बनने जा रहे हैं. यही वजह रही कि अमित शाह के भाषण में भी प्रवासी मजदूरों का जिक्र आया. प्रवासी मजदूरों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कभी राष्ट्र के नाम संदेश तो कभी मन की बात में जिक्र करते हुए दुख जताते रहे हैं - और अमित शाह ने भी ऐसा ही किया.

अमित शाह ने कहा, 'प्रवासी मजदूर हमारे देश की नींव हैं... जो लोग हमारे मजदूरों को अपमानित करते हैं उन्हें ये पता नहीं है कि प्रवासी मजदूरों के लिए प्रधानमंत्री मोदी ने कितना काम किया है - हमें गर्व है कि विकसित राज्यों के विकास में बिहार के मजदूर भाइयों के पसीने की महक आती है.'

अमित शाह श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने को भी उपलब्धि के तौर पर पेश किया, लेकिन न तो उसमें किराये को लेकर विवादों का जिक्र आया न ही सफर के दौरान हुई 80 मौतों का ही. ये जरूर बताया कि प्रवासी मजदूरों को 1100 रुपये दिये गये और उनके रोजगार का इंतजाम भी किया जा रहा है?

बीच बीच में विपक्ष भी निशाने पर आ जाता रहा. ऐसे ही तेजस्वी यादव पर तंज कसा, 'हमने प्रवासी मजदूरों के लिए सबकुछ किया। आपने दिल्ली में बैठ कर बोलते रहने के अलावा और क्या किया?'

अमित शाह के ऐसा करने की असल वजह ये है कि तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार और बीजेपी पर प्रवासी मजदूरों को अपमानित करने का आरोप लगा रहे हैं. हाल ही में बिहार पुलिस मुख्यालय से जिलों के पुलिस कप्तानों को एक पत्र भेजा गया था जिसमें प्रवासी मजदूरों को लेकर सतर्क रहने और जरूरत के हिसाब से तैयारी करने की सलाह दी गयी थी. पत्र में आशंका जतायी गयी थी कि प्रवासी मजदूर अनैतिक और आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं. जब इस पत्र को लेकर बवाल मचा और नीतीश कुमार निशाने पर आ गये तो बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे की तरफ से 'एरर ऑफ जजमेंट' बताते हुए जानकारी दी गयी कि पत्र वापस ले लिया गया है.

अमित शाह की कोशिश उसी नैरेटिव को नीतीश कुमार और बीजेपी के पक्ष में पलटने की लगती है. अमित शाह ने कहा कि बहुत से लोग गुमराह कर रहे हैं, लेकिन बिहार की जनता और प्रवासी मजदूर ऐसी बातों से अपने को अलग रखें. बोले, 'पूरा देश आपका सम्मान करता है... मैं आज इस मंच से कहना चाहता हूं कि देश का कोई भी हिस्सा चाहे मुंबई, दिल्ली, हरियाणा, गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु हो - जो विकसित है इसकी नींव में जाएंगे तो मेरे बिहार के प्रवासी मजदूर के पसीने की महक आती है... जो लोग अपमानित करते हैं उनको मालूम नहीं है कि बिहार के मजदूरों का जज्बा क्या है... वे नहीं जानते हैं कि मोदी जी ने उन्हें सुरक्षित रखने के लिए कितना काम किया... जब से कोरोना की बीमारी आई तो प्रधानमंत्री ने सभी मुख्यमंत्रियों से कहा कि जहां भी प्रवासी मजदूर हैं उनके लिए व्यवस्था की जाये - केंद्र सरकार ने इसके लिए तुरंत 11 हजार करोड़ रुपये दिये.'

बताते हैं कि अमित शाह बिहार के बाद 9 जून को पश्चिम बंगाल में भी ऐसी ही एक वर्चुअल रैली करेंगे - और फिर ओडिशा, महाराष्ट्र और गुजरात में भी इसी तरह की रैलियां होंगी. अन्य रैलियों को बीजेपी के सीनियर नेता संबोधित करेंगे - ऐसी ही एक सूचना रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी अपने ट्विटर अकाउंट से शेयर किया है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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