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अमेठी की जंग: प्रियंका गांधी यदि आपा खो रही हैं, तो उसकी वजह भी है...

    • प्रभाष कुमार दत्ता
    • Updated: 05 मई, 2019 03:13 PM
  • 05 मई, 2019 03:13 PM
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अमेठी हमेशा से ही कांग्रेस का गढ़ माना गया है और गांधी परिवार की यहां बहुत गहरी छाप है, लेकिन 2014 के चुनावों से ही ये साफ हो गया कि ये छाप मिट रही है. और अब प्रियंका गांधी के चुनाव प्रचार में भी अमेठी खोने का डर दिख रहा है.

प्रियंका गांधी और स्मृति ईरानी के बीच शब्दों की जो जंग जारी है. प्रियंका गांधी जो कि पूर्वांचल उत्तर प्रदेश की कांग्रेस जनरल सेक्रेटरी हैं और स्मृति ईरानी जो यूनियन मिनिस्टर होने के साथ साथ अमेठी से लोकसभा प्रत्याशी भी हैं, ये दोनों ही उस सीट के शब्दों की लड़ाई लड़ रही हैं जहां राहुल गांधी पिछले तीन बार से सांसद हैं.

जहां एक ओर स्मृति ईरानी राहुल गांधी को निशाना बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं और हर बार यही आरोप लगाती हैं कि राहुल गांधी अमेठी के 'गायब' सांसद हैं जो यहां के लोगों पर ध्यान नहीं देते. दूसरी ओर प्रियंका गांधी और भी तीखा प्रहार कर रही हैं और कहती हैं कि स्मृति ईरानी ने अमेठी के लोगों को जूते बांटकर उनका अपमान किया है.

अमेठी हमेशा से ही कांग्रेस का गढ़ माना गया है और गांधी परिवार की यहां बहुत गहरी छाप है. आजाद भारत के इतिहास में यहां से कांग्रेस सिर्फ दो बार हारी है. पहली बार 1977 में संजय गांधी के चुनावी सफर की शुरुआत यहां से ही हुई थी और उसमें वो हार गए थे. इसका सीधा कारण था इंदिरा गांधी के प्रति गुस्सा और इमर्जेंसी के बाद लोगों का अविश्वास. इसके अलावा, 1998 में भी कांग्रेस के कैंडिडेट कैप्टन सतीश शर्मा अमेठी से हार गए थे जब भाजपा के संजय सिंह ने चुनाव लड़ा था.

अमेठी में प्रियंका गांधी और स्मृति ईरानी का युद्ध असल में कांग्रेस की स्थिति साफ कर रहा है.

क्या कांग्रेस अमेठी को लेकर चिंतित है?

राहुल गांधी ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत ही 2004 में अमेठी से की थी जब सोनिया गांधी राय बरेली से चुनाव लड़ने का फैसला कर चुकी थीं. राय बरेली से पहले इंदिरा गांधी चुनाव लड़ा करती थीं. प्रियंका गांधी ने 2004 से इन दोनों ही संसद क्षेत्रों में काम किया है.

इस बार प्रियंका गांधी अमेठी को लेकर...

प्रियंका गांधी और स्मृति ईरानी के बीच शब्दों की जो जंग जारी है. प्रियंका गांधी जो कि पूर्वांचल उत्तर प्रदेश की कांग्रेस जनरल सेक्रेटरी हैं और स्मृति ईरानी जो यूनियन मिनिस्टर होने के साथ साथ अमेठी से लोकसभा प्रत्याशी भी हैं, ये दोनों ही उस सीट के शब्दों की लड़ाई लड़ रही हैं जहां राहुल गांधी पिछले तीन बार से सांसद हैं.

जहां एक ओर स्मृति ईरानी राहुल गांधी को निशाना बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं और हर बार यही आरोप लगाती हैं कि राहुल गांधी अमेठी के 'गायब' सांसद हैं जो यहां के लोगों पर ध्यान नहीं देते. दूसरी ओर प्रियंका गांधी और भी तीखा प्रहार कर रही हैं और कहती हैं कि स्मृति ईरानी ने अमेठी के लोगों को जूते बांटकर उनका अपमान किया है.

अमेठी हमेशा से ही कांग्रेस का गढ़ माना गया है और गांधी परिवार की यहां बहुत गहरी छाप है. आजाद भारत के इतिहास में यहां से कांग्रेस सिर्फ दो बार हारी है. पहली बार 1977 में संजय गांधी के चुनावी सफर की शुरुआत यहां से ही हुई थी और उसमें वो हार गए थे. इसका सीधा कारण था इंदिरा गांधी के प्रति गुस्सा और इमर्जेंसी के बाद लोगों का अविश्वास. इसके अलावा, 1998 में भी कांग्रेस के कैंडिडेट कैप्टन सतीश शर्मा अमेठी से हार गए थे जब भाजपा के संजय सिंह ने चुनाव लड़ा था.

अमेठी में प्रियंका गांधी और स्मृति ईरानी का युद्ध असल में कांग्रेस की स्थिति साफ कर रहा है.

क्या कांग्रेस अमेठी को लेकर चिंतित है?

राहुल गांधी ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत ही 2004 में अमेठी से की थी जब सोनिया गांधी राय बरेली से चुनाव लड़ने का फैसला कर चुकी थीं. राय बरेली से पहले इंदिरा गांधी चुनाव लड़ा करती थीं. प्रियंका गांधी ने 2004 से इन दोनों ही संसद क्षेत्रों में काम किया है.

इस बार प्रियंका गांधी अमेठी को लेकर ज्यादा चिंतित लग रही हैं. जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आ रही है वैसे-वैसे ये घमासान बढ़ता जा रहा है. अमेठी में 6 मई को वोट पड़ेंगे. प्रियंका गांधी के अमेठी दौरे बढ़ गए हैं. ये चौंकाने वाली बात इसलिए है क्योंकि प्रियंका गांधी अपने काम के बावजूद अमेठी बार-बार जा रही हैं. प्रियंका को उत्तर प्रदेश की 73 लोकसभा सीटों में से 41 का दारोमदार मिला है, लेकिन अमेठी प्रेम कुछ और ही कहानी कह रहा है.

राहुल गांधी ने 2004 में अमेठी में 66 प्रतिशत से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की थी. 2009 में ये आंकड़ा 72 प्रतिशत हो गया था, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में ये आंकड़ा काफी कम हो गया और राहुल गांधी की जीत का रिकॉर्ड थोड़ा खराब हो गया. राहुल जीते तो, लेकिन काफी कम वोटों के अंतर से.

उनका वोट शेयर 2014 में 46.71 प्रतिशत रहा था जो गांधी परिवार के किसी भी कांग्रेस कैंडिडेट के लिए काफी कम था. राहुल गांधी और स्मृति ईरानी के बीच वोट का अंतर 1 लाख रह गया था जब्कि 2009 में राहुल गांधी 2.70 लाख वोटों से जीते थे.

2014 के बाद के चुनाव और कांग्रेस-

एक साल बाद यूपी में पंचायत चुनाव हुए और अमेठी ने ये दिखा दिया कि वहां भाजपा समर्थक बढ़ रहे हैं. ये कांग्रेस के लिए चिंता की बात थी. अमेठी में दो मुनसिपल कार्पोरेशन थीं एक गौरीगंज और दूसरी जायस.

गौरीगंज की सीट समाजवादी पार्टी ने जीती थी और जायस भाजपा के खाते में गई थी. इसके बाद भाजपा ने ही 2015 में अमेठी नगर पंचायत की सीट भी जीती. 2017 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो भी कांग्रेस एक सीट भी अमेठी से नहीं जीत पाई. लोकसभा सीट के अंतरगत अमेठी में 5 विधानसभा सीटें थीं.

भाजपा ने ही अमेठी, तिलोई, जगदीशपुर, सलोन सीटें जीतीं जहां एक बार फिर से सपा ने गौरीगंज की सीट जीती. कांग्रेस ने यहां खाता नहीं खोला और ये वो जगह है जहां तीन बार से सांसद खुद कांग्रेस के अध्यक्ष हैं.

इस पूरी प्रक्रिया के बाद भी कांग्रेस अध्यक्ष ने अमेठी के अलावा दूसरी सीट से भी चुनाव लड़ने के बारे में सोचा है. वायनाड, केरल की सीट पर भी राजनीति शुरू हो चुकी है. राहुल गांधी का वायनाड सीट से लड़ना राजनीति स्तर पर भाजपा के चुनाव प्रचार का हिस्सा बन गया अब भाजपा ये दावे कर रही है कि वायनाड एक सुरक्षित सीट है और इसलिए राहुल गांधी वहां से चुनाव लड़ रहे हैं क्योंकि अमेठी अब सुरक्षित नहीं रही. कांग्रेस ने अब अपना पूरा सामर्थ्य अमेठी की सीट बचाने में लगा दिया है. राहुल गांधी ने नामांकन भरने के दौरान भी रोड शो किया और कांग्रेस ने अपनी ताकत दिखाई. कांग्रेस के कई बड़े नेता अमेठी में राहुल गांधी के लिए वोट मांग रहे हैं. साथ ही, जनसभा और रैलियों का सिलसिला तो शुरू है ही.

दूसरी ओर भाजपा ने कांग्रेस पर तीखे प्रहार करना एक दिन के लिए भी नहीं छोड़ा. स्मृति ईरानी अमेठी में हर तरह से प्रचार कर ही रही हैं. भाजपा के बड़े नेताओं यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अमेठी में चुनाव प्रचार किया और गांधी परिवार पर अमेठी को गरीब बनाए रखने का आरोप लगाया.

अमेठी में अब वोटिंग सोमवार को होनी है और इस फेज में कुल 51 लोकसभा संसद क्षेत्रों में वोटिंग होगी. उत्तर प्रदेश में ही 14 लोकसभा सीटों में वोटिंग होगी. इसके बाद 12 और 19 मई को वोटिंग होगी और 23 मई को चुनाव के नतीजे आएंगे.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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