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एएमयू की अल्पसंख्यक मान्यता बनेगा बीजेपी का बड़ा सियासी एजेंडा!

    • राकेश उपाध्याय
    • Updated: 28 जून, 2016 02:47 PM
  • 28 जून, 2016 02:47 PM
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बीजेपी ने आरएसएस के दिग्गज नेताओं के मार्गदर्शन में एएमयू के अल्पसंख्यक चरित्र और राष्ट्रीय आरक्षण नीति से जुड़े हर सवाल पर पार्टी के धारदार स्टैंड पर आर-पार की बहस की रणनीति भी तैयार कर ली है.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की अल्पसंख्यक मान्यता का मुद्दा यूपी की सियासत में बीजेपी का बड़ा एजेंडा बनने जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी कैराना और मथुरा कांड के बाद एएमयू के मुद्दे पर आर-पार के मूड में आ चुकी है. पार्टी एचआरडी मंत्रालय की ओर से एएमयू मसले पर सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत होने वाले हलफनामे की तारीख के इंतजार में है, माना जा रहा है कि जुलाई के पहले हफ्ते में हलफनामा सर्वोच्च अदालत में प्रस्तुत कर दिया जाएगा. और इसी के साथ शुरु हो जाएगी एएमयू के वजूद से जुड़ी वो राजनीतिक जंग जो बीते 100 साल से सेक्युलर सियासत का बड़ा एजेंडा बनती रही है.

भारतीय जनता पार्टी ने पूरे मामले को लेकर अपनी रणनीतिक तैयारी पूरी कर ली है. पार्टी ने यूपी से जुड़े हर विधायक और सांसद को एएमयू के मामले के हर पहलू को ठीक से पढ़ने और समझने की सलाह दी है क्योंकि पार्टी का अनुमान है कि सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत होने जा रहे केंद्र के हलफनामे के बाद एएमयू के सवाल पर यूपी में राजनीतिक घमासान तेज हो जाएगा. हलफनामे के जरिए जहां एएमयू के अल्पसंख्यक चरित्र पर हमेशा के लिए ताला लगना तय है. वहीं एएमयू में अब तक ओबीसी-दलित आरक्षण लागू नहीं किए जाने के सवाल पर कांग्रेस-एसपी-बीएसपी की राजनीति को बेनकाब करने में भी बीजेपी के रणनीतिकार जुट गए हैं.

अगले महीने 18 जुलाई से संसद का मॉनसून सत्र भी शुरू हो रहा है लिहाजा बीजेपी ने आरएसएस के दिग्गज नेताओं के मार्गदर्शन में एएमयू के अल्पसंख्यक चरित्र और राष्ट्रीय आरक्षण नीति से जुड़े हर सवाल पर पार्टी के धारदार स्टैंड पर आर-पार की बहस की रणनीति भी तैयार कर ली है. गौरतलब है कि आज तक और मेल टुडे ने इस महीने के शुरू में ही बताया था कि केंद्र की ओर से एएमयू की अल्पसंख्यक मान्यता रद्द करने का हलफनामा तैयार हो चुका है. एचआरडी मंत्रालय की ओर से मिले संकेत के मुताबिक, इसी महीने के आखिरी सप्ताह में अथवा जुलाई महीने के शुरुआती सप्ताह में एमयू पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा प्रस्तुत कर दिया जाएगा.

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की अल्पसंख्यक मान्यता का मुद्दा यूपी की सियासत में बीजेपी का बड़ा एजेंडा बनने जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी कैराना और मथुरा कांड के बाद एएमयू के मुद्दे पर आर-पार के मूड में आ चुकी है. पार्टी एचआरडी मंत्रालय की ओर से एएमयू मसले पर सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत होने वाले हलफनामे की तारीख के इंतजार में है, माना जा रहा है कि जुलाई के पहले हफ्ते में हलफनामा सर्वोच्च अदालत में प्रस्तुत कर दिया जाएगा. और इसी के साथ शुरु हो जाएगी एएमयू के वजूद से जुड़ी वो राजनीतिक जंग जो बीते 100 साल से सेक्युलर सियासत का बड़ा एजेंडा बनती रही है.

भारतीय जनता पार्टी ने पूरे मामले को लेकर अपनी रणनीतिक तैयारी पूरी कर ली है. पार्टी ने यूपी से जुड़े हर विधायक और सांसद को एएमयू के मामले के हर पहलू को ठीक से पढ़ने और समझने की सलाह दी है क्योंकि पार्टी का अनुमान है कि सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत होने जा रहे केंद्र के हलफनामे के बाद एएमयू के सवाल पर यूपी में राजनीतिक घमासान तेज हो जाएगा. हलफनामे के जरिए जहां एएमयू के अल्पसंख्यक चरित्र पर हमेशा के लिए ताला लगना तय है. वहीं एएमयू में अब तक ओबीसी-दलित आरक्षण लागू नहीं किए जाने के सवाल पर कांग्रेस-एसपी-बीएसपी की राजनीति को बेनकाब करने में भी बीजेपी के रणनीतिकार जुट गए हैं.

अगले महीने 18 जुलाई से संसद का मॉनसून सत्र भी शुरू हो रहा है लिहाजा बीजेपी ने आरएसएस के दिग्गज नेताओं के मार्गदर्शन में एएमयू के अल्पसंख्यक चरित्र और राष्ट्रीय आरक्षण नीति से जुड़े हर सवाल पर पार्टी के धारदार स्टैंड पर आर-पार की बहस की रणनीति भी तैयार कर ली है. गौरतलब है कि आज तक और मेल टुडे ने इस महीने के शुरू में ही बताया था कि केंद्र की ओर से एएमयू की अल्पसंख्यक मान्यता रद्द करने का हलफनामा तैयार हो चुका है. एचआरडी मंत्रालय की ओर से मिले संकेत के मुताबिक, इसी महीने के आखिरी सप्ताह में अथवा जुलाई महीने के शुरुआती सप्ताह में एमयू पर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा प्रस्तुत कर दिया जाएगा.

केंद्र की ओर से अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की अल्पसंख्यक मान्यता रद्द करने का हलफनामा तैयार हो चुका है

बीजेपी ने यूपी के अपने सभी विधायकों और सांसदों को इस बारे में गहराई से प्रशिक्षण देने का काम भी पहले ही शुरू कर दिया है. इस लिहाज से आरएसएस के दिग्गज नेताओं की मौजूदगी में दिल्ली यूनिवर्सिटी नॉर्थ कैंपस के पास पटेल चेस्ट के सभागार में बीते 18 जून को एएमयू और राष्ट्रीय आरक्षण नीति को लेकर दिन भर की सेमिनार कम वर्कशॉप भी आयोजित की चुकी है. इस वर्कशॉप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल के साथ जहां संघ के दिग्गज चिंतकों ने दिन भर बीजेपी नेताओं, ओबीसी और दलित वर्ग से जुड़े रिटायर्ड अफसरों, वरिष्ठ कानूनविदों, प्राध्यापकों और शिक्षाविदों के साथ विचार मंथन किया वहीं यूपी बीजेपी से जुड़े 100 के करीब विधायकों और सांसदों ने विशेषज्ञों के साथ पूरे मामले पर दिन भर विचार-विमर्श किया.

बीजेपी की ओर से संगठन महामंत्री रामलाल, महासचिव भूपेंद्र यादव, यूपी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी, वरिष्ठ सांसद अर्जुन मेघवाल, बलबीर पुंज, बीजेपी प्रवक्ता विजय सोनकर शास्त्री, संबित पात्रा, यूपी से सांसद नीलम सोनकर, सांसद कमलेश पासवान, सांसद सच्चिदानंद हरि साक्षी, कल्याण सिंह के बेटे सांसद राजवीर सिंह, बलिया के सांसद भरत सिंह, सांसद जगदंबिकापाल, सांसद ब्रजभूषण शरण सिंह, सांसद शिवप्रताप शुक्ल, सांसद अजय मिश्रा समेत, विधायक लक्ष्मण आचार्य, विधायक योगेंद्र उपाध्याय समेत यूपी विधानसभा और विधानपरिषद से जुड़े करीब 50 विधायकों और यूपी से जुड़े करीब 50 से ज्यादा बीजेपी सांसदों ने हिस्सा लिया. पार्टी ने सेमिनार में खासतौर पर यूपी के सभी पिछड़े और दलित वर्ग के सांसदों को मौजूद रहने के निर्देश दिए थे.

एएमयू की अल्पसंख्यक मान्यता के मुद्दे पर आरएसएस के साथ आयोजित वर्कशॉप में यूपी बीजेपी अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य भी शामिल हुए

चार सत्रों में दिन भर चली इस सेमिनार का आयोजन सोसायटी अगेंस्ट कॉन्फ्लिक्ट एंड हेट के बैनर पर किया गया था. सेमिनार में साफ किया गया कि कांग्रेस और सेक्युलर दलों की वजह से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में आज तक ओबीसी और एससी-एसटी आरक्षण लागू नहीं किया जा सका. और तो और 1920 में स्थापना से लेकर 1980 तक विश्वविद्यालय कभी अल्पसंख्यक था ही नहीं, उसे कांग्रेस और तथाकथित सेक्युलर दलों ने गैर कानूनी तरीके से अल्पसंख्यक मान्यता के दायरे में लाकर देश के दलित और पिछड़े वर्ग समेत सामान्य वर्ग के छात्रों के लिए एएमयू के दरवाजे बंद करने की कोशिश की गई.

आरएसएस के सहसरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल ने सेमिनार के समापन सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि ‘एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे पर हमारा रुख वही है जो देश के पूर्व शिक्षा मंत्रियों मौलाना अबुल कलाम आजाद, मोहम्मद करीम छागला और नुरुल हसन का था. ये तीनों मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी सरकार के दौर में शिक्षा मंत्रालय संभाल रहे थे.

इनकी ओर से तय नीति के आधार पर ही सुप्रीम कोर्ट ने 1968 का ऐतिहासिक फैसला देकर साफ किया कि अलीगढ़ न तो अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित है और ना ही ये अल्पसंख्यकों द्वारा संचालित है. लेकिन दुर्भाग्यवश अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के लिए 1981 में और उसके बाद साल 2005 में कांग्रेस सरकारों ने एएमयू को राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के दर्जे से हटाकर अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय बनाने की गैरसंवैधानिक कोशिश की. हमें खुशी है कि वर्तमान केंद्र सरकार ने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के फैसले को रद्द कर सत्य को फिर से सर्वोच्च अदालत के सम्मुख स्थापित करने का फैसला लिया है.’ वरिष्ठ बीजेपी सांसद अर्जुन मेघवाल ने 2004 में यूपीए सरकार बनने के बाद मनमोहन सिंह की इस घोषणा पर सवाल उठाए कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है. मेघवाल ने कहा कि मनमोहन सिंह के इसी बयान के बाद अर्जुन सिंह ने बतौर एचआरडी मंत्री एएमयू में 50 फीसदी मुस्लिम आरक्षण के गैरकानूनी आदेश को मंजूरी दी और सुप्रीम कोर्ट में गलत हलफनामा तक पेश कर दिया.’

बीजेपी के यूपी के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि संसद के मॉनसून सत्र में एएमयू का मुद्दा उठेगा. उन्होंने कहा कि ‘अतीत में हुई गलती को सुधारने का वक्त आ गया है. बीजेपी सांसद मॉनसून सत्र में मांग पेश करेंगे कि एएमयू में फौरन राष्ट्रीय आरक्षण नीति के साथ देश के सभी 46 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में लागू नियम-कायदों का पालन सुनिश्चित किया जाए.’

सेमिनार के ज्यादातर सत्रों में एएमयू मामले से जुड़े रहे प्रोफेसरों, वकीलों और शिक्षाविदों ने बीजेपी सांसदों और विधायकों के सवालों के जवाब दिए. इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील और भारत सरकार के एडिशनल सॉलिसीटर जनरल अशोक मेहता, वरिष्ठ वकील जेजे मुनीर और दिल्ली हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील मोनिका अरोड़ा और संजय दूबे ने मामले के कानूनी पहलुओं के बारे में बीजेपी सांसदों और विधायकों को बारीकी से जानकारी दी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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