• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

अल कायदा ने ली है तालिबान से वफादारी निभाने की 'कसम', पाकिस्तान की चिंता बढ़ने वाली है

    • प्रभाष कुमार दत्ता
    • Updated: 12 सितम्बर, 2021 03:43 PM
  • 12 सितम्बर, 2021 03:42 PM
offline
यह पाकिस्तान के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है. क्योंकि, अल कायदा एकमात्र आतंकवादी समूह नहीं है, जिसने तालिबान के प्रति निष्ठा रखने का वादा करने वाली 'बयाह' शपथ ली है. अफगानी तालिबान से अलग कहे जाने वाले तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने भी मुल्ला उमर के आतंकी संगठन के लिए यही शपथ ली है.

संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादी संगठन तालिबान (Taliban) ने अफगानिस्तान पर कब्जे करने के दौरान अमेरिका के साथ अपने शांति समझौते में इस बात पर सहमति जताई थी कि वो अल कायदा (Al-Queda) जैसे आतंकी समूहों को देश की जमीन का इस्तेमाल नहीं करने देंगे. हालांकि, काबुल पर कब्जा करने के कुछ दिनों बाद ही तालिबान ने अल कायदा को क्लीन चिट दे दी.

तालिबान ने अल कायदा की तरफदारी करते हुए कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि अमेरिका पर 9/11 के आतंकी हमलों में अल कायदा शामिल था. 2001 में अमेरिका के अफगानिस्तान आने की वजह अल कायदा का दुनिया के सबसे बड़े सुपरपावर देश को चुनौती देना था. अमेरिकी जमीन पर अल कायदा ने करीब 3,000 लोगों को मारा, जिसके बाद उसे सजा देने के एकमात्र उद्देश्य के साथ अमेरिका ने अफगानिस्तान में कदम रखा था.

अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद से ही अल कायदा और अन्य आतंकी संगठनों के साथ उसके संबंधों पर एक बड़ी बहस छिड़ी हुई है. सोवियत संघ के खिलाफ लड़ाई के दौरान बने तालिबान और अल कायदा दोनों की जड़ें अफगानिस्तान से ही जुड़ी हुई हैं. ये दोनों ही आतंकी संगठनों का जन्म अफगानिस्तान में मुजाहिदीन संघर्ष के दौरान हुआ था.

इस शपथ की वजह से ही अल कायदा को तालिबान ने अमेरिकी आतंकी हमलों के बाद पनाह और सुरक्षा दी.

बयाह: लादेन की तालिबान के लिए निष्ठा की शपथ

सोवियत संघ के अफगानिस्तान छोड़कर निकलने के बाद अल कायदा के संस्थापक और प्रमुख ओसामा बिन लादेन ने तालिबान के साथ 'ओहदे' के मामले पर शपथ ली. 90 के दशक में ही लादेन ने तालिबान और उसके संस्थापक मुल्ला मोहम्मद उमर के प्रति हमेशा निष्ठा रखने के लिए 'बयाह' नाम की शपथ ली.

अल कायदा के नेताओं ने उस समय से लेकर अभी तक तालिबान नेतृत्व के साथ कई बार इस...

संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादी संगठन तालिबान (Taliban) ने अफगानिस्तान पर कब्जे करने के दौरान अमेरिका के साथ अपने शांति समझौते में इस बात पर सहमति जताई थी कि वो अल कायदा (Al-Queda) जैसे आतंकी समूहों को देश की जमीन का इस्तेमाल नहीं करने देंगे. हालांकि, काबुल पर कब्जा करने के कुछ दिनों बाद ही तालिबान ने अल कायदा को क्लीन चिट दे दी.

तालिबान ने अल कायदा की तरफदारी करते हुए कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि अमेरिका पर 9/11 के आतंकी हमलों में अल कायदा शामिल था. 2001 में अमेरिका के अफगानिस्तान आने की वजह अल कायदा का दुनिया के सबसे बड़े सुपरपावर देश को चुनौती देना था. अमेरिकी जमीन पर अल कायदा ने करीब 3,000 लोगों को मारा, जिसके बाद उसे सजा देने के एकमात्र उद्देश्य के साथ अमेरिका ने अफगानिस्तान में कदम रखा था.

अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद से ही अल कायदा और अन्य आतंकी संगठनों के साथ उसके संबंधों पर एक बड़ी बहस छिड़ी हुई है. सोवियत संघ के खिलाफ लड़ाई के दौरान बने तालिबान और अल कायदा दोनों की जड़ें अफगानिस्तान से ही जुड़ी हुई हैं. ये दोनों ही आतंकी संगठनों का जन्म अफगानिस्तान में मुजाहिदीन संघर्ष के दौरान हुआ था.

इस शपथ की वजह से ही अल कायदा को तालिबान ने अमेरिकी आतंकी हमलों के बाद पनाह और सुरक्षा दी.

बयाह: लादेन की तालिबान के लिए निष्ठा की शपथ

सोवियत संघ के अफगानिस्तान छोड़कर निकलने के बाद अल कायदा के संस्थापक और प्रमुख ओसामा बिन लादेन ने तालिबान के साथ 'ओहदे' के मामले पर शपथ ली. 90 के दशक में ही लादेन ने तालिबान और उसके संस्थापक मुल्ला मोहम्मद उमर के प्रति हमेशा निष्ठा रखने के लिए 'बयाह' नाम की शपथ ली.

अल कायदा के नेताओं ने उस समय से लेकर अभी तक तालिबान नेतृत्व के साथ कई बार इस शपथ को आगे बढ़ाया है. इस शपथ की वजह से ही अल कायदा को तालिबान ने अमेरिकी आतंकी हमलों के बाद पनाह और सुरक्षा दी. इसके बाद बयाह को दुनिया भर में इस्लामी और जिहादी ताकतों के बीच विश्वसनीयता मिली है.

इंडिया टुडे में लिखे गए एक लेख में वरिष्ठ पाकिस्तानी पत्रकार हामिद मीर ने उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा है कि कैसे तालिबान ने 9/11 से पहले और बाद ओसामा बिन लादेन को अमेरिका को सौंपने से इनकार कर दिया था. जबकि, दो पाकिस्तानी नेताओं- नवाज शरीफ और परवेज मुशर्रफ ने इसके लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी थी.

बयाह ने दिलाया तालिबान को सबसे अव्वल होने का दर्जा

'बयाह' एक अरबी शब्द है. जिसका अर्थ है एक मुस्लिम नेता के प्रति वफादारी की प्रतिज्ञा. यह शपथ अलग-अलग जिहादी समूहों के अपने सर्वोच्च संगठन के प्रति अडिग निष्ठा या समर्पण का आधार रही है. एक ही जिहाद के नाम पर दो आतंकी गुटों के बीच लड़ाई का कारण भी यही शपथ रही है.

यह शपथ दोनों पक्षों को हर आदेश मानने और सुरक्षा की कसम के साथ बांधती है. इसी शपथ के तहत अल कायदा ने तालिबान के प्रमुख को 'वफादारों के कमांडर' के रूप में स्वीकार कर अपनी निष्ठा की घोषणा की है.

'बयाह' की प्रतिज्ञा को तोड़ना शरिया, इस्लामी कानून के तहत एक गंभीर अपराध माना जाता है. यही कारण है कि जब इराक में अबू मुसाब अल-जरकावी के नेतृत्व में अल कायदा ने तालिबान को मान्यता देने और उन्हें अपनी केंद्रीय कमान मानने से इनकार कर दिया, तो अल कायदा ने अपने इराकी सहयोगी की निंदा की.

अबू मुसाब अल-जरकावी ने अपने खुद के संगठन इस्लामिक स्टेट (IS) की स्थापना की, जिसे मूल रूप से इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड लेवेंट (ISIL) कहा जाता था. इस्लामिक स्टेट के प्रमुखों ने खुद को खलीफा कहा और वैश्विक इस्लामी खिलाफत स्थापित करने का लक्ष्य रखा है. आईएस तालिबान से लड़ता है और इसीलिए इस्लामिक स्टेट और अल कायदा कट्टर प्रतिद्वंद्वी बने हुए हैं.

यह पाकिस्तान के लिए चिंता का विषय क्यों है?

पाकिस्तान को तालिबान का सबसे बड़ा सपोर्ट सिस्टम माना जाता है. इस हफ्ते की शुरुआत में घोषित हुई तालिबान की अंतरिम सरकार में हक्कानी नेटवर्क और क्वेटा स्थित रहबारी शूरा के आतंकियों को शामिल किए जाने से साफ हो गया कि पाकिस्तान की तालिबान पर मजबूत पकड़ है.

हालांकि, यह पाकिस्तान के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है. क्योंकि, अल कायदा एकमात्र आतंकवादी समूह नहीं है, जिसने तालिबान के प्रति निष्ठा रखने का वादा करने वाली 'बयाह' शपथ ली है. अफगानी तालिबान से अलग कहे जाने वाले तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने भी मुल्ला उमर के आतंकी संगठन के लिए यही शपथ ली है.

पाकिस्तानी तालिबान ने सुरक्षा बलों पर लगातार आतंकी हमले कर पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ लड़ाई छेड़ रखी है. दरअसल, अफगानिस्तान में तालिबान के काबुल पर कब्जा करने के बाद से पाकिस्तानी तालिबान के पाकिस्तानी सेना पर किए जा रहे हमलों में तेजी आई है. पाकिस्तानी तालिबान ने पाकिस्तान के पत्रकारों को उनके लिए 'आतंकवादी' शब्द का इस्तेमाल करने के लिए चेतावनी भी जारी की है.

पाकिस्तानी तालिबान ने एक बयान में कहा कि हमने देखा है कि हमारे नाम के साथ 'आतंकवादी' और 'चरमपंथी' जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जो मीडिया के सोची-समझी रणनीति के तहत बने पूर्वाग्रह को दर्शाता है. हम चेतावनी और आदेश देते हैं कि टीटीपी को केवल टीटीपी के तौर पर ही दिखाया जाए. उन शब्दों का इस्तेमाल न किया जाए, जो हमें हमारे दुश्मनों ने दिए हैं. इसी बयान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान ने ये भी कहा कि अगर पाकिस्तानी मीडिया इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करना जारी रखता है तो, इसकी वजह से उनके (मीडिया और पाकिस्तान) दुश्मन और बढ़ जाएंगे.

पाकिस्तानी तालिबान का लक्ष्य पाकिस्तान में एक इस्लामिक अमीरात स्थापित करना है. ठीक उसी तरह जैसा तालिबान ने अफगानिस्तान में स्थापित किया है. इस बात से पाकिस्तान को चिंता होनी चाहिए.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲