• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

अखिलेश-प्रियंका की फ्लाइट लैंड होने के बाद एक नए सफर की शुरुआत समझिए...

    • आईचौक
    • Updated: 24 अक्टूबर, 2021 04:43 PM
  • 24 अक्टूबर, 2021 04:43 PM
offline
अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) की मुलाकात हो ही गयी. आगे देखना है क्या ये गठबंधन (SP Congress Alliance) का शक्ल भी ले पाती है या नहीं - और अगर ऐसा संभव हुआ तो वो कितना असरदार साबित हो सकता है?

अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) की यूपी चुनाव से पहले मुलाकात की संभावना तो थी ही, लेकिन ये अचानक से किसी फ्लाइट में हो जाएगी ऐसा भी कभी नहीं लगा था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2020 के दिल्ली विधान सभा चुनावों में एक खास जुमले का इस्तेमाल किया था - संयोग और प्रयोग. प्रधानमंत्री मोदी अपने चुनावी भाषणों में तब कुछ घटनाओं का जिक्र कर अक्सर पूछा करते थे कि ये महज एक संयोग है या कोई प्रयोग?

अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी वाड्रा की दिल्ली-लखनऊ फ्लाइट में हुई मुलाकात भी संयोग और प्रयोग के बीच झूलती नजर आ रही है - और सहज तौर पर ये सवाल उभर कर आ जाता है कि ये हाई प्रोफाइल मुलाकात महज एक संयोग है या कोई प्रयोग? और ये सवाल तब तक कायम रहेगा जब तक कि दोनों तरफ से या कम से कम एक ओर से भी इनकार या इकरार का इशारा न हो जाये.

सोशल मीडिया पर वायरल हो रही मुलाकात की तस्वीर उस आग के धुएं जैसी ही है जो यूपी की राजनीति में किसी कोने में लगी हुई है. अगर ये महज संयोग होता और किसी तरह के प्रयोग की कोई संभावना नहीं रहती तो शायद ही ये तस्वीर बाहर आ पाती. ये तस्वीर आने के बाद चर्चा का टॉपिक तो एक ही रहना है - क्या पांच साल बाद एक बार फिर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मिल कर चुनाव लड़ने वाले हैं?

अखिलेश यादव साफ तौर पर कह चुके हैं कि वो किसी भी बड़े राजनीतिक दल के साथ कोई गठबंधन नहीं करेंगे. छोटे दलों के साथ गठबंधन से समाजवादी नेता ने इनकार नहीं किया था - और...

अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) और प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) की यूपी चुनाव से पहले मुलाकात की संभावना तो थी ही, लेकिन ये अचानक से किसी फ्लाइट में हो जाएगी ऐसा भी कभी नहीं लगा था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2020 के दिल्ली विधान सभा चुनावों में एक खास जुमले का इस्तेमाल किया था - संयोग और प्रयोग. प्रधानमंत्री मोदी अपने चुनावी भाषणों में तब कुछ घटनाओं का जिक्र कर अक्सर पूछा करते थे कि ये महज एक संयोग है या कोई प्रयोग?

अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी वाड्रा की दिल्ली-लखनऊ फ्लाइट में हुई मुलाकात भी संयोग और प्रयोग के बीच झूलती नजर आ रही है - और सहज तौर पर ये सवाल उभर कर आ जाता है कि ये हाई प्रोफाइल मुलाकात महज एक संयोग है या कोई प्रयोग? और ये सवाल तब तक कायम रहेगा जब तक कि दोनों तरफ से या कम से कम एक ओर से भी इनकार या इकरार का इशारा न हो जाये.

सोशल मीडिया पर वायरल हो रही मुलाकात की तस्वीर उस आग के धुएं जैसी ही है जो यूपी की राजनीति में किसी कोने में लगी हुई है. अगर ये महज संयोग होता और किसी तरह के प्रयोग की कोई संभावना नहीं रहती तो शायद ही ये तस्वीर बाहर आ पाती. ये तस्वीर आने के बाद चर्चा का टॉपिक तो एक ही रहना है - क्या पांच साल बाद एक बार फिर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मिल कर चुनाव लड़ने वाले हैं?

अखिलेश यादव साफ तौर पर कह चुके हैं कि वो किसी भी बड़े राजनीतिक दल के साथ कोई गठबंधन नहीं करेंगे. छोटे दलों के साथ गठबंधन से समाजवादी नेता ने इनकार नहीं किया था - और हाल में ओम प्रकाश राजभर से अखिलेश यादव की हुई मुलाकात को उसी नजरिये से देखा जा रहा है.

अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी वाड्रा के बीच हुई ये एक्सीडेंटल फ्लाइट मुलाकात कई तरह की संभावनाओं के संकेत दे रही है - ये बात अलग है कि उसका असर भी वैसा ही देखने को मिलने वाला है या नहीं?

बताते हैं कि दिल्ली से लखनऊ जा रही फ्लाइट में अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी वाड्रा का आमना-सामना हुआ - और दोनों ने शिष्टाचारवश अभिवादन के साथ एक दूसरे के हालचाल पूछे. दोनों नेताओं के बीच कुछ देर तक बातचीत भी हुई बतायी जाती है.

चुनाव नतीजे आने के बाद की शिष्टाचार मुलाकातें तो सरकारें बनवा दिया करती हैं, लेकिन चुनाव से पहले की एक एक्सीडेंटल मुलाकात को क्या समझा जाना चाहिये - क्या एक बार फिर कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बीच 2017 की तरह चुनावी समझौता (SP Congress Alliance) हो सकता है?

गठबंधन का संकेत समझा जाये या नहीं?

कवि रहीम कह गये हैं कि दो पक्षों के बीच बंधा कोई धागा टूट जाये तो जुड़ता नहीं है. अगर कभी जुड़ता भी है तो उसमें गांठ पड़ जाती है. बाकी जगह भले ही गांठ खटकने वाली चीज होती हो, लेकिन राजनीति में ऐसा नहीं होता. राजनीति में ऐसी गांठें रिश्तों को मजबूत ही करती हुई ही लगती हैं - और अक्सर ऐसी गांठें चुनावी गठबंधन के तौर पर ही सामने आती हैं.

पांच साल पहले 2017 में भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने हाथ मिलाया था - और अखिलेश यादव को इसे लेकर काफी उत्साहित देखा गया था. हालांकि, तब खबरें आ रही थीं कि मुलायम सिंह यादव ऐसे गठबंधन के पक्ष में नहीं थे, लेकिन ये तब की बात है जब मुलायम के परिवार और पार्टी दोनों जगह खूब झगड़े चल रहे थे. असल में वो समाजवादी पार्टी पर कब्जे की लड़ाई थी जिसमें राजनीतिक चालों की बदौलत और काफी हद तक पिता के आशीर्वाद से अखिलेश यादव ने अपने चाचा शिवपाल यादव को शिकस्त दे दी थी.

अखिलेश-प्रियंका मिले: ये मुलाकात एक बहाना है...

2017 में समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस के साथ 105 सीटें शेयर की थी और खुद 298 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. नतीजे आये तो अखिलेश यादव सत्ता से हाथ धो बैठे थे क्योंकि समाजवादी पार्टी को महज 49 सीटों पर ही जीत हासिल हो सकी थी. तीन सौ से ज्यादा सीटें जीत कर बीजेपी ने सरकार बनायी और योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने.

चुनावों के कुछ दिनों बाद ही वो गठबंधन भी वैसे ही टूट गया था जैसे 2019 के चुनाव नतीजे आने के बाद सपा-बसपा गठबंधन. सपा-बसपा गठबंधन तोड़ने की घोषणा तो बाकायदा मायावती की तरफ से की गयी थी, लेकिन सपा और कांग्रेस के बीच खटपट को लेकर चर्चा रही कि चूंकि राहुल गांधी ने अखिलेश यादव के फोन पिक करने बंद कर दिये, इसलिए रिश्तों में खटास आ गयी और फिर तो गठबंधन टूटना ही था. हालांकि, एक बार प्रसंग आने पर अखिलेश यादव ने इस बात से साफ तौर पर इनकार भी किया था.

संयोग से हुई प्रियंका गांधी से मुलाकात से पहले अखिलेश यादव कह चुके हैं कि वो सारे प्रयोग कर चुके हैं और अब गठबंधन का कोई मतलब नहीं रह गया है, लेकिन जिस तरीके से मुलाकात हुई है - ऐसा लगने लगा है कि अखिलेश यादव अपने फैसले पर फिर से विचार करने के लिए तैयार हो सकते हैं.

अब देखना ये होगा कि दोनों दलों में नये सिरे से गठबंधन की कोई सूरत बनती है तो - 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव पर उसका क्या असर हो सकता है?

1. विपक्ष की तरफ से बीजेपी को कड़ी टक्कर मिल सकती है: छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कांग्रेस की बनारस रैली में बयान के बाद और अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी वाड्रा की मुलाकात से पहले यूपी के कांग्रेस नेता इमरान मसूद का नजरिया भी मीडिया में आ चुका है. एक इंटरव्यू में इमरान मसूद का कहना रहा कि कांग्रेस को पहले अस्तित्व की लड़ाई लड़नी है और ऐसे में प्रियंका गांधी वाड्रा के मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनने की बात ठीक नहीं होगी.

ये इमरान मसूद ही हैं जो कह चुके हैं कि यूपी में कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दलों को स्वीकार कर लेना चाहिये कि बीजेपी को टक्कर देने के लिए अगर कोई मजबूत स्थिति में है तो वो समाजवादी पार्टी ही है - और मुख्यमंत्री पद के लिए भी अधिकार उसी का बनता है.

अभी तक तो यही देखने को मिला है कि बीजेपी ये समझाने की कोशिश करती है कि लड़ाई में तो कांग्रेस है और समाजवादी पार्टी का तो कहीं कोई आधार ही नहीं बनता. अब अगर अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी की मुलाकात से बात आगे बढ़ने पर कोई चुनावी समझौता होता है तो बीजेपी का ये दांव फेल हो जाएगा.

ये तो तय है कि समाजवादी पार्टी की साइकिल पर इस बार अगर कांग्रेस का हाथ लग जाये तो स्पीड तेज हो सकती है. दरअसल, 2017 में चुनावी गठबंधन होने से पहले अखिलेश यादव ऐसे ही समझाया करते थे.

2. कांग्रेस थोड़ी बेहतर पोजीशन हासिल कर सकती है: तब की बात और थी. तब मोर्चे पर राहुल गांधी हुआ करते थे और चुनावी रणनीति तैयार करने के लिए प्रशांत किशोर को हायर किये हुए थे, फिर भी कोई फायदा नहीं हुआ.

लेकिन अब बात और है. आम चुनाव का अनुभव भले ही प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए बहुत बुरा रहा हो, लेकिन तब से लेकर अब तक उनकी सक्रियता में कोई कमी नहीं आयी है. बीजेपी की योगी आदित्यनाथ सरकार के खिलाफ कोई भी बड़ा या छोटा मुद्दा प्रियंका गांधी यूं ही नहीं जाने देतीं.

सिर्फ नागरिकता संशोधन कानून का मामला या महिलाओं के खिलाफ आपराधिक घटनाएं, प्रियंका गांधी ने लॉकडाउन के दौरान मजदूरों के घर लौटने के लिए भी दिल्ली की सीमाओं पर बसें भेज दी थी - मजदूरों को भले ही कोई फायदा न हुआ हो, लेकिन यूपी बीजेपी सरकार के खिलाफ प्रियंका गांधी ने कांग्रेस की राजनीति को खूब चमका दिया था.

3. सपा-बसपा गठबंधन जैसा फायदेमंद तो नहीं होने वाला: सपा-बसपा गठबंधन चाहे जिन परिस्थितियों में टूटा हो, लेकिन अखिलेश यादव के मुकाबले मायावती के लिए ज्यादा ही फायदेमंद रहा. गठबंधन की 15 सीटों में से 10 जीत कर मायावती फायदे में रहीं, हालांकि, अखिलेश यादव के लिए बुरा अनुभव ये रहा कि उनकी पत्नी डिंपल यादव ही चुनाव हार गयीं.

अगर अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी नये सिरे से गठबंधन का प्रयोग करते हैं तो ये आगे के लिए फायदेमंद हो सकता है - अगर 2022 में गठबंधन हुआ और आगे 2024 में भी कायम रहा तो बीजेपी के लिए चुनौती बढ़ सकती है.

वैसे ममता बनर्जी की भी यही सलाह रही है कि जिस राज्य में जो पार्टी मजबूत हो, उसी के नेतृत्व में कोई भी चुनाव लड़ा जाये ताकि बीजेपी को एकजुट होकर चैलेंज किया जा सके और उसका एक खास नतीजा हासिल हो.

सब कुछ के बावजूद मुश्किल ये है कि कांग्रेस और सपा के करीब आने पर भी अगर मायावती अलग रह जाती हैं तो बीजेपी को कड़ी चुनौती देना मुश्किल हो सकता है - ऐसे में ये नहीं माना जा सकता कि 2022 में गठबंधन का कोई बहुत ज्यादा फायदा हो सकता है. स्थिति बेहतर जरूर होगी उसमें कोई शक शुबहे वाली बात नहीं है.

फ्लाइट में हुई मुलाकातें रंग जरूर लाती हैं

ये भी संयोग ही है कि 2017 में भी अखिलेश यादव के साथ कांग्रेस की डील प्रियंका गांधी ने ही पक्की करायी थी - और उसमें डिंपल यादव की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही.

हाल फिलहाल एक बात देखने को जरूर मिली है कि लखीमपुर हिंसा के बाद प्रियंका गांधी और अखिलेश यादव में कड़ी नोक झोंक देखने को मिली है. प्रियंका गांधी ने ये कहते हुए अखिलेश यादव को टारगेट किया था कि उनकी समाजवादी पार्टी बीजेपी के खिलाफ सड़कों पर नहीं उतरती. अखिलेश यादव ने कोई आक्रामक रुख तो नहीं अपनाया था, लेकिन सफाई वाले अंदाज में ये जरूर कहा था कि वो घर पर रह कर दूसरों का संघर्ष नहीं देख सकतीं. वैसे लॉकडाउन से लेकर हाल तक अखिलेश यादव और मायावती दोनों ही पर वर्क फ्रॉम होम पॉलिटिक्स करने का इल्जाम भी लगता रहा है.

ये भी संयोग ही है कि अखिलेश यादव और मायावती की मुलाकात भी फ्लाइट में ही हुई थी. अखिलेश और डिंपल यादव तब साथ सफर कर रहे थे, लेकिन अभिवादन करने पर मायावती पहचान नहीं पायीं. बाद में जब मायावती के सिक्योरिटी अफसर पद्म सिंह ने बताया कि दोनों मुलायम सिंह यादव के बहू-बेटे थे तो वो काफी नाराज हुई थीं कि वो ठीक से उनसे नहीं मिल पायीं और बच्चे क्या सोचेंगे - कहते हैं कि उसी मुलाकात के बाद अखिलेश यादव ने बीएसपी के साथ गठबंधन की कोशिश शुरु कर दी थी, लेकिन मामला एक बार फिर एक फ्लाइट की मुलाकात के बाद ही आगे बढ़ा.

2017 में अखिलेश यादव के सत्ता से बेदखल हो जाने के बाद एक बार फ्लाइट में सपा के राज्य सभा सांसद संजय सेठ और बीएसपी महासचिव सतीश चंद्र मिश्र की मुलाकात हुई - और सफर के आखिर में दोनों ने तय किया कि क्यों न 2018 के दो उपचुनाव दोनों दल मिल कर लड़ें. दोनों ने एयरपोर्ट पर ही तय किया कि वे अपने अपने नेताओं को समझाएंगे - और दोनों ही सफल भी हुए.

उसी मुलाकात का नतीजा रहा कि 2018 में सपा और बसपा मिल कर गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव लड़े और आगे चल कर 2019 के आम चुनाव में गठबंधन का फैसला किया - देखना है 2021 की फ्लाइट में हुई अखिलेश यादव और प्रियंका गांधी वाड्रा की ये एक्सीडेंटल मुलाकात आगे क्या असर दिखाती है?

इन्हें भी पढ़ें :

यूपी चुनाव में योगी आदित्यनाथ घिरते जा रहे हैं महिला ब्रिगेड से!

प्रियंका गांधी वाड्रा के प्लान में मुख्यमंत्री का कोई महिला चेहरा है क्या ?

प्रियंका गांधी के कारण बीजेपी उतनी ही परेशान है, जितना राहुल से आराम था


इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲