• होम
  • सियासत
  • समाज
  • स्पोर्ट्स
  • सिनेमा
  • सोशल मीडिया
  • इकोनॉमी
  • ह्यूमर
  • टेक्नोलॉजी
  • वीडियो
होम
सियासत

यूपी को कहां ले जाएगी ‘उम्मीद की पंचर साइकिल’ ?

    • बिलाल एम जाफ़री
    • Updated: 11 जनवरी, 2017 06:42 PM
  • 11 जनवरी, 2017 06:42 PM
offline
लखनऊ में मेट्रो देखकर मुझे महसूस होता है कि भले ही प्रदेश के युवाओं को रोजगार मिले न मिले, महिलाओं को सुरक्षा मिले न मिले, बच्चे को अच्छी एजुकेशन मिले न मिले मगर शहर को मेट्रो मिलनी चाहिए.

उत्तर प्रदेश चुनावों के चौराहे पर खड़ा है. 5 कालिदास मार्ग से लेकर दारुलशफा और गोखले मार्ग से लेकर माल एवेन्यू तक कैशलेस के इस दौर में, हर जगह अखिलेश ही अखिलेश हैं. अखिलेश के इस युग में मुलायम एक गुज़रा हुआ सा कल बन गए हैं. चाचाओं ने पार्टी को फफूंदी लगा पराठा कर दिया है. अंकल कभी इस पाले, कभी उस पाले डोल रहे हैं. कार्यकर्ता खफ़ा हैं, वर्तमान हालात और पार्टी में मचे घमासान के मद्देनजर पार्टी के पुराने नेता अपने को आडवाणी रूपी समाजवादी मान बैठे हैं. इतना होने के बावजूद भी पार्टी और पंचर हुई उम्मीद की साइकिल चल रही है, चले जा रही है.

 उम्मीद की साइकिल चल रही है

प्रदेश में चुनाव होने में थोड़ा वक्त है, चुनाव से पहले लखनऊ में मेट्रो आ चुकी है. अब मेट्रो आ चुकी है तो जाहिर है बुलेट ट्रेन भी आ ही जाएगी. मेट्रो देख के मुझे महसूस होता है कि भले ही प्रदेश के युवाओं को रोजगार मिले न मिले, महिलाओं को सुरक्षा मिले न मिले, बच्चे को अच्छी एजुकेशन मिले न मिले मगर शहर को मेट्रो मिलनी चाहिए. कह सकते हैं कि मेट्रो ही विकास है. विकास कागजों पर होता है शायद मेट्रो भी कागजों पर चले.

ये भी पढ़ें- भावनाओं की जंग जीतने में जुटे मुलायम

बैंगलोर के कॉरपोरेट कल्चर में काम करते हुए जनवरी के इस जुल्मी महीने में जब मैं उत्तर प्रदेश की राजनीति को समझने की कोशिश करता हूं, तो मुझे एक पुराना पीपल का पेड़ दिखता...

उत्तर प्रदेश चुनावों के चौराहे पर खड़ा है. 5 कालिदास मार्ग से लेकर दारुलशफा और गोखले मार्ग से लेकर माल एवेन्यू तक कैशलेस के इस दौर में, हर जगह अखिलेश ही अखिलेश हैं. अखिलेश के इस युग में मुलायम एक गुज़रा हुआ सा कल बन गए हैं. चाचाओं ने पार्टी को फफूंदी लगा पराठा कर दिया है. अंकल कभी इस पाले, कभी उस पाले डोल रहे हैं. कार्यकर्ता खफ़ा हैं, वर्तमान हालात और पार्टी में मचे घमासान के मद्देनजर पार्टी के पुराने नेता अपने को आडवाणी रूपी समाजवादी मान बैठे हैं. इतना होने के बावजूद भी पार्टी और पंचर हुई उम्मीद की साइकिल चल रही है, चले जा रही है.

 उम्मीद की साइकिल चल रही है

प्रदेश में चुनाव होने में थोड़ा वक्त है, चुनाव से पहले लखनऊ में मेट्रो आ चुकी है. अब मेट्रो आ चुकी है तो जाहिर है बुलेट ट्रेन भी आ ही जाएगी. मेट्रो देख के मुझे महसूस होता है कि भले ही प्रदेश के युवाओं को रोजगार मिले न मिले, महिलाओं को सुरक्षा मिले न मिले, बच्चे को अच्छी एजुकेशन मिले न मिले मगर शहर को मेट्रो मिलनी चाहिए. कह सकते हैं कि मेट्रो ही विकास है. विकास कागजों पर होता है शायद मेट्रो भी कागजों पर चले.

ये भी पढ़ें- भावनाओं की जंग जीतने में जुटे मुलायम

बैंगलोर के कॉरपोरेट कल्चर में काम करते हुए जनवरी के इस जुल्मी महीने में जब मैं उत्तर प्रदेश की राजनीति को समझने की कोशिश करता हूं, तो मुझे एक पुराना पीपल का पेड़ दिखता है. साथ ही, उस पीपल के पेड़ के नीचे लोहिया, जनेश्वर मिश्रा, हेमवती नंदन बहुगुणा, पंडित दीन दयाल उपाध्याय, रफ़ी अहमद क़िदवई, राजकुमारी अमृत कौर, कमलापति त्रिपाठी जैसी शख्सियतें चाय पर चर्चा करते हुए दिखते हैं. ये सभी पिता पुत्र के बीच पनपे मतभेद से खासे परेशान हैं और इस मतभेद पर सबके अपने मत हैं.

 चुनाव से पहले लखनऊ में मेट्रो आ चुकी है

बहरहाल, प्रख्यात समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया जब ज़िंदा थे तो अक्सर ही वो कहा करते थे कि जिन्दा कौमें 5 साल तक इंतजार नहीं करती हैं. मैं जब भी इस कथन पर गौर कर इसकी रौशनी में सोचने की कोशिश करता हूं तो मिलता है कि भारत के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में समाजवादी सरकार के मुखिया अखिलेश यादव 5 साल के बाद भी प्रदेश की जनता को बस इंतजार ही करवा रहे हैं. वो प्रदेश में परिवर्तन लाना चाह रहे हैं मगर जाड़े और कोहरे के चलते परिवर्तन आउटर पर खड़ा सिग्नल हरा होने का इंतजार कर रहा है. आउटर पर खड़ा परिवर्तन साफ-साफ देख रहा है कि स्टेशन मास्टर चाचा और अंकल हैं जो उसकी राह का रोड़ा हैं, जिसे अखिलेश लाना चाहते हैं मगर चाचा, बाबा अंकल उसे आने नहीं दे रहे.

ये भी पढ़ें- ये यूपी है भईया, यहां कैसे कोड ऑफ कंडक्ट?

होर्डिंगों, पोस्टरों, रैलियों और पैम्पलेट के माध्यम से प्रदेश की जनता हो बताया जा रहा है कि प्रदेश का भला अगर कोई कर सकता है तो वो अखिलेश मार्का "समाजवादी सरकार" ही कर सकती है. अगर गौर से देखें तो उत्तर प्रदेश में 2017 के चुनाव का मुद्दा विकास न होकर के परिवर्तन है. अखिलेश भी परिवर्तन की बात कर रहे हैं, बीजेपी और कांग्रेस का भी फोकस परिवर्तन ही है. मोदी की जीत के बाद बीजेपी परिवर्तन लाने के लिए इतना आतुर हो गई कि इस बार उसने उत्तर प्रदेश चुनाव को ध्यान में रखकर नारा ही दे दिया "परिवर्तन लाएंगे, कमल खिलाएंगे". उत्तर प्रदेश का अतीत देखें तो मिलता है कि समाजवादी सरकार से पहले वाली बहुजन समाजवादी पार्टी पर परिवर्तन इस कदर हावी हो गया कि उन्होंने पूरे सूबे खासतौर से राजधानी लखनऊ और नॉएडा को पत्थरों और हाथियों से पाट दिया. गुजरी सरकार में ऐसी सोशल इंजीनियरिंग हुई कि राज्य के सारे ठेकेदार और इंजीनियर चंद ही वर्षों में रोड पति से करोड़पति हो गए.

खैर उत्तर प्रदेश का भविष्य क्या होता है ये आने वाला वक़्त बताएगा मगर जो आज के हालात हैं उसको देखकर एक बात तय है कि, विकास और परिवर्तन की बात करने वाले अखिलेश यादव भले ही विपक्ष से लड़ लें मगर घर के लोगों से बैर करके वो अकेले, उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण सूबे में लंबी पारी तो हरगिज़ न खेल पाएंगे. ऐसी अवस्था में उन्हें मोदी और भाजपा से सीखना चाहिए. बात तब है जब सबका साथ हो और सबके साथ से विकास हो.  

ये भी पढ़ें- क्या डिंपल-प्रियंका उत्तर प्रदेश में बांध पाएंगी गठबंधन का डोर?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

ये भी पढ़ें

Read more!

संबंधि‍त ख़बरें

  • offline
    अब चीन से मिलने वाली मदद से भी महरूम न हो जाए पाकिस्तान?
  • offline
    भारत की आर्थिक छलांग के लिए उत्तर प्रदेश महत्वपूर्ण क्यों है?
  • offline
    अखिलेश यादव के PDA में क्षत्रियों का क्या काम है?
  • offline
    मिशन 2023 में भाजपा का गढ़ ग्वालियर - चम्बल ही भाजपा के लिए बना मुसीबत!
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.

Read :

  • Facebook
  • Twitter

what is Ichowk :

  • About
  • Team
  • Contact
Copyright © 2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today.
▲