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गुजरात में अकेले रघु शर्मा कर भी क्या सकते थे?

    • Niranjan Parihar
    • Updated: 13 दिसम्बर, 2022 07:04 PM
  • 13 दिसम्बर, 2022 07:01 PM
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Gujarat Assembly Election Results : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के होम ग्राउंड में कांग्रेस प्रभारी रघु शर्मा गुजरात में पार्टी को जिता देते, यह उम्मीद करना ही एक तरह से उनके साथ अन्याय होगा.

गुजरात में कांग्रेस बुरी तरह से हार गई है और कांग्रेस के दिल्ली में बैठे आलाकमान कहे जानेवाले किसी भी नेता ने इस हार की जिम्मेदारी नहीं ली है. वैसे, राजनीति और राजनेताओं में नैतिकता कितनी बची है, यह सभी जानते हैं. फिर भी हार की नैतिक जिम्मेदारी का कफन अपने माथे पर बांधते हुए रघु शर्मा ने इस्तीफा दे दिया है, और जैसा कि कांग्रेस में होता है उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया है. आखिर नौ महीने से ज्यादा वक्त बीत गया, मगर पंजाब में करारी हार के बाद भी हरीश चौधरी आखिर प्रभारी बने हुए हैं ही न. ताकतवर तेवर, तीखे अंदाज और गजब की हिम्मत रघु शर्मा की राजनीतिक पूंजी है, लेकिन गुजरात में मोदी व शाह की जोड़ी तथा केजरीवाल की तरह से चुनावी हल्ला बनाने व माहौल रचने जितना पैसा खर्च करने की उनकी क्षमता नहीं थी और न ही उनकी पार्टी के पास क्षमतावान कार्यकर्ता बचे थे. लगभग लुंज – पुंज सी लगने वाली बेदम पार्टी के प्रभारी के रूप में गुजरात में कांग्रेस को चुनाव जिताना रघु शर्मा के लिए जीवन का अब तक का बेहद मुश्किल मुकाम था.

जैसी परिस्थितियां थीं रघु शर्मा के लिए गुजरात का किला फ़तेह करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था

फिर भी, रघु शर्मा ने गुजरात में गजब का शौर्य दिखाया. मगर जो हालात रहे, उनमें राहुल गांधी होते, तो भी नतीजे वही रहते, जो रहे, यह हर व्यक्ति जान रहा है. अब तक के राजनीतिक जीवन में हर बार लड़ लड़ कर जीते, और जीत जीत कर आगे बढ़े रघु शर्मा गुजरात कांग्रेस के प्रभारी के रूप में अपने जीवन की सबसे मुश्किल राजनीतिक चुनौती झेलते दिख रहे थे. हालांकि, गुजरात में हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए प्रभारी पद से इस्तीफा देकर आजादी मांग ली हैं.

लेकिन गुजरात में उनके सामने संसार की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी थी, देश के सर्वशक्तिमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले गृह मंत्री अमित शाह थे, तो इधर कांग्रेस के रणनीतिकार के रूप में अकेले रघु शर्मा. फिर संसार में सबसे मुश्किल होता है सर्वाधिक मजबूत नेताओं की मांद में जाकर उनसे भिड़ना.

राहुल गांधी केवल दो सभाएं करके गुजरात से निकल लिए, एक सभा में तो आधे घंटे के भाषण के बावजूद वोट मांगना और कांग्रेस को जिताने की अपील करना तक भूल गए. शायद उनका मन अपनी फोटो इवेंट बन चुकी भारत जोड़ो यात्रा में लगा रहा होगा. सोनिया गांधी व प्रियंका ने गुजरात की तरफ देखा तक नहीं.

नए नवेले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे आए भी, तो नरेंद्र मोदी को सौ मुंह वाला रावण बताकर चले गए, और इससे फैले रायते को समेटना भी कांग्रेस को भारी पड़ा. अशोक गहलोत जरूर कई बार आए, लेकिन पीछे सचिन पायलट की पैदा की गई परेशानियों के कारण गुजरात में उनका कितना मन लगा होगा, इसका अंदाज लगाया जा सकता है.

एक तरफ, सर्वाधिक साधन संपन्न पार्टी बीजेपी और उसके दमदार पदों पर बैठे अनगिनत नेता, तो दूसरी ओर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के भगवंत मान सहित उनकी आम आदमी पार्टी का व्यापक जन चर्चा से जुड़ा संगठन और धन बल भी रघु शर्मा के सामने था, तो दूसरी तरफ कांग्रेस को वोट कटुआ मशीन के रूप में देश में कुख्यात होने की हद तक विख्यात हैदराबाद वाले असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के ताकतवर उम्मीदवार भी मैदान में थे.

मतलब कांग्रेस के लिए हर तरफ संकट का सैलाब था, पर मदद के हाथ बढ़ाने वाला कोई नहीं था. न आलाकमान और न ही दिग्गज नेता. हालांकि, छात्र राजनीति की उपज रघु शर्मा का इतिहास रहा है कि वे हर काम में अपनी पूरी ताकत झोंकते हैं और छोटे से छोटा चुनाव भी करो या मरो के अंदाज में लड़ते रहे हैं. मगर, गुजरात में, न तो पार्टी का संगठन मजबूत, न ही नेता ताकतवर और साधन – संसाधन तो कम ही रहे पहले से भी.

फिर, राहुल गांधी की अप्रत्याशित उदासीनता, पार्टी छोड़कर जाते नेताओं की लगातार लंबी होती कतार और बीते 27 साल से गुजरात में कांग्रेस की सरकार का न होना भी कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी कही जा सकती है. माना कि हर वक्त गजब के उत्साह से लबरेज रहनेवाले रघु शर्मा एक फायर ब्रांड नेता है, लेकिन बेहद लचर संगठन के भरोसे नरेंद्र मोदी और अमित शाह से दो दो हाथ करके वे गुजरात में कांग्रेस जिता देते, यह उम्मीद करना ही एक तरह से उनके साथ अन्याय होगा.

फिर भी राजनीतिक जीवन में यश और अपयश के जो झोंके किसी राजनेता के जीवन में आते हैं, उसी का एक हिस्सा दिल्ली दरबार की कमजोरियों की वजह से जो रघु शर्मा के जीवन में भी आया है, उससे वे तो पार पा लेंगे, क्योंकि हिम्मत उनमें जगदब की है. लेकिन कांग्रेस को इस तरह की दुर्गतियों से कब निजात मिलेगी, यह अगर आप जानते हो तो बताना.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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