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राज्यों में अपनी कुनबा बचाने में नाकाम होती कांग्रेस

    • अरविंद मिश्रा
    • Updated: 14 जुलाई, 2019 06:50 PM
  • 14 जुलाई, 2019 06:50 PM
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कर्नाटक और गोवा में जैसे कांग्रेस के नेता कांग्रेस का दामन छोड़ रहे हैं बात साफ है उन्हें भी अंदाजा है कि आने वाले वक़्त में पार्टी कुछ बड़ा नहीं कर पाएगी और इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा जिसका राजनीतिक पारा आने वाले वक़्त में लागातर बढ़ेगा.

लोकसभा चुनावों में मात्र 52 सीटें जीतने वाली कांग्रेस लगातार संकट से जूझ रही है. चाहे वो राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को लेकर असमंजस की स्थिति हो, राज्यों में आपसी कलह हो या फिर अपने विधायकों का भाजपा में पलायन रोकने में नाकामी का मामला हो, हर जगह कांग्रेस को विफलता का ही सामना करना पड़ रहा है. सबसे पहले कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में करारी हार का सामना पड़ा. यहां तक की इसका 17 राज्यों में खाता भी नहीं खुल पाया और अब अनेक राज्यों में पार्टी धीमी-गति से अपनी पकड़ खोती जा रही है. कर्नाटक में सियासी नाटक का अभी पटाक्षेप होना बाकी ही है. जहां कांग्रेस के 13 विधायक इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल होना चाहते हैं. इसी बीच ताज़ा मामला गोवा का आ गया. गोवा में कांग्रेस पार्टी के 15 विधायकों में से 10 ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थाम लिया. इसमें अहम बात ये है कि गोवा विधानसभा में विपक्ष के नेता बाबू केवलेकर भी शामिल हैं. सबसे मज़ेदार बात यह है कि यहां 2 तिहाई से ज्यादा संख्या होने की वजह से इन विधायकों पर दल-बदल कानून भी नहीं लागू होगा.

कांग्रेस की स्थिति कितनी बदतर है इसका अंदाजा हम कर्नाटक और गोवा को देखकर लगा सकते हैं

दलबदल कानून के मुताबिक अगर किसी विधानसभा या संसद में किसी पार्टी के दो तिहाई विधायक या सांसद किसी दूसरी पार्टी में विलय करते हैं, तो उनके खिलाफ दलबदल कानून के तरह कोई कार्रवाई नहीं होती है. साफ़ हो गया कि अब 40 विधानसभा सीटों वाली गोवा में भाजपा के 27 विधायक हो गए जो बहुमत के आंकड़े से 6 ज़्यादा हैं. अभी तक यहां भाजपा अन्य दलों के सहयोग से सरकार चला रही है.

कर्नाटक और गोवा की समानताएं:

जब गोवा में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम आये थे तब कांग्रेस को 17 और भाजपा को 13 सीटों पर जीत...

लोकसभा चुनावों में मात्र 52 सीटें जीतने वाली कांग्रेस लगातार संकट से जूझ रही है. चाहे वो राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव को लेकर असमंजस की स्थिति हो, राज्यों में आपसी कलह हो या फिर अपने विधायकों का भाजपा में पलायन रोकने में नाकामी का मामला हो, हर जगह कांग्रेस को विफलता का ही सामना करना पड़ रहा है. सबसे पहले कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में करारी हार का सामना पड़ा. यहां तक की इसका 17 राज्यों में खाता भी नहीं खुल पाया और अब अनेक राज्यों में पार्टी धीमी-गति से अपनी पकड़ खोती जा रही है. कर्नाटक में सियासी नाटक का अभी पटाक्षेप होना बाकी ही है. जहां कांग्रेस के 13 विधायक इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल होना चाहते हैं. इसी बीच ताज़ा मामला गोवा का आ गया. गोवा में कांग्रेस पार्टी के 15 विधायकों में से 10 ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थाम लिया. इसमें अहम बात ये है कि गोवा विधानसभा में विपक्ष के नेता बाबू केवलेकर भी शामिल हैं. सबसे मज़ेदार बात यह है कि यहां 2 तिहाई से ज्यादा संख्या होने की वजह से इन विधायकों पर दल-बदल कानून भी नहीं लागू होगा.

कांग्रेस की स्थिति कितनी बदतर है इसका अंदाजा हम कर्नाटक और गोवा को देखकर लगा सकते हैं

दलबदल कानून के मुताबिक अगर किसी विधानसभा या संसद में किसी पार्टी के दो तिहाई विधायक या सांसद किसी दूसरी पार्टी में विलय करते हैं, तो उनके खिलाफ दलबदल कानून के तरह कोई कार्रवाई नहीं होती है. साफ़ हो गया कि अब 40 विधानसभा सीटों वाली गोवा में भाजपा के 27 विधायक हो गए जो बहुमत के आंकड़े से 6 ज़्यादा हैं. अभी तक यहां भाजपा अन्य दलों के सहयोग से सरकार चला रही है.

कर्नाटक और गोवा की समानताएं:

जब गोवा में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के परिणाम आये थे तब कांग्रेस को 17 और भाजपा को 13 सीटों पर जीत हासिल हुई थी लेकिन भाजपा ने दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर सरकार बनाने में कामयाबी हासिल कर ली थी और बेचारी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बावजूद मुंह  ताकते रह गयी थी. लेकिन कांग्रेस ने इसका बदला 2018 के कर्नाटक चुनाव में ले लिया जब भाजपा 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी तो बनी लेकिन सत्ता हासिल नहीं कर पायी. कांग्रेस जो संख्या बल में दूसरे पायदान पर थी जनता दल (सेक्युलर) को समर्थन देकर सरकार में शामिल हो गई थी. लेकिन अब भाजपा इसमें सेंध लगाने में कामयाब होती दिख रही है. भाजपा ने इस गठबंधन की गांठ को तोड़कर एक दर्जन से ज़्यादा विधायकों को अपने पाले में ला खड़ा कर दिया है.

गोवा और कर्नाटक में कांग्रेस विधायकों का भाजपा में पलायन का यह पहला मौका नहीं है. इससे पहले तेलंगाना में पिछले महीने ही कांग्रेस पार्टी के 18 में से 12 विधायकों ने सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) शामिल हुए थे. यहां भी इन पर दल - बदल का कानून लागू नहीं हो पाया था क्योंकि इनकी संख्या दो तिहाई थी. यही नहीं पिछले साल दिसम्बर में ही 4 कांग्रेस एमएलसी में से तीन एमएलसी ने टीआरएस का दामन थाम लिया था. जब पिछले साल दिसम्बर में यहां विधानसभा चुनाव हुए थे तब टीआरएस को 119 में से 88 सीटें प्राप्त हुई थी और इसकी सरकार बनी थी.

लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को यहां 17 में से मात्र 3 सीटें ही मिल पायी थी. अब बात गुजरात की. अभी- अभी सम्पन्न हुए राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस के दो विधायक अल्‍पेश ठाकोर व धवल सिंह झाला विधानसभा की सदस्‍यता से इस्‍तीफा देकर भाजपा में शामिल होने की कगार पर हैं. इस चुनाव में उन्होंने क्रॉस-वोटिंग की और पार्टी से इस्तीफा दे दिया था.

लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही कांग्रेस पार्टी में बेचैनी की स्थिति बनी हुयी है. शायद राज्यों में लंबे वक्त से सत्ता न हासिल होने और निकट भविष्य में इसके आसार नहीं दिखने एवं भाजपा का राजनीतिक पारा लगातार बढ़ने से इन विधायकों का भाजपा में पलायन पार्टी छोड़ने का एक मुख्य कारण माना जा सकता है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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