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जनता के वोटों की खरीद, ये ऐसे ही है जैसे ईवीएम में गड़बड़ी!

    • अनिल कुमार
    • Updated: 19 मई, 2018 09:12 PM
  • 19 मई, 2018 09:12 PM
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आज जिस तरह विधायकों की खरीद फरोख्त जारी है वो ये बता देती है कि लोकतंत्र खतरे के निशान से कहीं ऊपर चला गया है जिसे यदि वक़्त रहते संभाला नहीं गया तो स्थिति बेहद चिंताजनक होने वाली है.

भारतीय राजनीति में ये कोई नई बात नहीं है कि जब भी विधानसभा चुनाव हुए हैं, मतदान के रिजल्ट आते ही विधायकों की खरीद फरोख्त के मामले सामने आते हैं, कई बार ये मामले उजागर हो ते हैं तो कई बार इनकी सुर्खियां बनती हैं. कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 के रिजल्ट आते ही सबसे बड़ी पार्टी बनने की होड़ ने जिस तरह विधायकों को खरीदने और बिकने का मुद्दा मई की गर्मी में गर्मा दिया है, उससे साफ है कि ये विधायकों की खरीद नहीं बल्कि जनता के वोटों की खरीद है. ठीक उसी तरह जैसे ईवीएम में गड़बड़ कर किसी वोटर का वोट किसी और के नाम ट्रांसफर हो सकता है. यानी मतदान अगर कांग्रेस के खाते में है, ज्यादा विधायक कांग्रेस के जीते हैं तो हो सकता है कोई अन्य पार्टी जीते हुए विधायकों को खरीदे और अपनी पार्टी से जुड़वाए.

कर्नाटक के सियासी नाटक ने लोकतंत्र की पोल खोल दी

हाल ही, कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन के विधायकों को हैदराबाद के एक होटल में रातों रात पहुंचा दिया. बताया ये जा रहा है कि इसके पीछे उनको लालच देकर भाजपा की ओर से खरीदे जाने अटकलें थीं. ऐसे कई मामले हैं

1- इससे पहले गुजरात में विधानसभा चुनाव हुए थे. जहां कांग्रेस को 79 सीटें मिलीं थीं। गुजरात में कांग्रेस की ये ऐतिहासिक सीटों की जीत थी जबकि इससे पहले कांग्रेस के 60 का आंकड़ा भी पार नहीं कर पा रही थी. जैसे ही जोड़ तोड़ से सरकार बनाने की खबरें उडीं तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव आयोग के समक्ष इस बारें में अपनी शिकायत दर्ज कराई थी.

2- वर्ष 2012 में उत्तराखंड के पूर्व मुख्य मंत्री विजय बहुगुणा पर भी विधायकों की खरीद फरोख्त के आरोप लगने में भूचाल आया था.

3- छत्तीसगढ़ के 2003 के विधायक खरीद फरोख्त के एक मामले में वर्ष 2017 को छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत...

भारतीय राजनीति में ये कोई नई बात नहीं है कि जब भी विधानसभा चुनाव हुए हैं, मतदान के रिजल्ट आते ही विधायकों की खरीद फरोख्त के मामले सामने आते हैं, कई बार ये मामले उजागर हो ते हैं तो कई बार इनकी सुर्खियां बनती हैं. कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 के रिजल्ट आते ही सबसे बड़ी पार्टी बनने की होड़ ने जिस तरह विधायकों को खरीदने और बिकने का मुद्दा मई की गर्मी में गर्मा दिया है, उससे साफ है कि ये विधायकों की खरीद नहीं बल्कि जनता के वोटों की खरीद है. ठीक उसी तरह जैसे ईवीएम में गड़बड़ कर किसी वोटर का वोट किसी और के नाम ट्रांसफर हो सकता है. यानी मतदान अगर कांग्रेस के खाते में है, ज्यादा विधायक कांग्रेस के जीते हैं तो हो सकता है कोई अन्य पार्टी जीते हुए विधायकों को खरीदे और अपनी पार्टी से जुड़वाए.

कर्नाटक के सियासी नाटक ने लोकतंत्र की पोल खोल दी

हाल ही, कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन के विधायकों को हैदराबाद के एक होटल में रातों रात पहुंचा दिया. बताया ये जा रहा है कि इसके पीछे उनको लालच देकर भाजपा की ओर से खरीदे जाने अटकलें थीं. ऐसे कई मामले हैं

1- इससे पहले गुजरात में विधानसभा चुनाव हुए थे. जहां कांग्रेस को 79 सीटें मिलीं थीं। गुजरात में कांग्रेस की ये ऐतिहासिक सीटों की जीत थी जबकि इससे पहले कांग्रेस के 60 का आंकड़ा भी पार नहीं कर पा रही थी. जैसे ही जोड़ तोड़ से सरकार बनाने की खबरें उडीं तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने चुनाव आयोग के समक्ष इस बारें में अपनी शिकायत दर्ज कराई थी.

2- वर्ष 2012 में उत्तराखंड के पूर्व मुख्य मंत्री विजय बहुगुणा पर भी विधायकों की खरीद फरोख्त के आरोप लगने में भूचाल आया था.

3- छत्तीसगढ़ के 2003 के विधायक खरीद फरोख्त के एक मामले में वर्ष 2017 को छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को सीबीआई कोर्ट से क्लीन चिट मिली थी.

4- वर्ष 2017 के गोवा विधानसभा चुनाव में भी भाजपा पर ऐसे ही आरोप लग चुके हैं. कांग्रेस बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. जिसके बाद भाजपा ने छोटी पार्टियों से सहयोग कर सरकार गठित कर ली थी.

भाजपा नेता ने क्यों बताया इसे डर्टी ट्रिक्स

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम आते ही कांग्रेस और जेडीएस के गठबंधन की सरकार बनना तय माना जा रहा था लेकिन कर्नाटक के राज्यपाल की ओर से भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर दिया. इसके खिलाफ कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट गई जिसके बाद इस पर विवाद और बढ़ गया है. हद तो तब हो गई जब कांग्रेस को अपने विधायकों को हैदराबाद भेजना पड़ा. इस संबंध में एक ऑडियो क्लिप भी आउट की गई जिसमें विधायकों की खरीद फरोख्त का खुलासा हुआ. हालांकि इस पर भाजपा के वरिष्ठ नेता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि ये कांग्रेस की डर्टी ट्रिक्स है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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