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मोदी की पाक नीति पर उठे इन 6 सवालों का जवाब क्या है ?

    • राहुल मिश्र
    • Updated: 04 अक्टूबर, 2016 09:33 PM
  • 04 अक्टूबर, 2016 09:33 PM
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देश में राजनीतिक विपक्ष भले भारतीय सेना के सर्जिकल स्ट्राइक का स्वागत कर चुकी हो लेकिन अब उसे अपना अस्तित्व बचाने के लिए जरूरी है सरकार की नीतियों का विरोध करने की. लेकिन क्या ऐसे विरोध के बाद उनके पास कोई हल भी है?

पिछले महीने 18 सितंबर को पाकिस्तान से सरहद पार कर आए आतंकवादियों ने उरी स्थित सेना के बेस पर हमला बोलते हुए 18 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया. इस हमले की भर्त्सना करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुनहगारों को सजा देने का वादा किया और इसके लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार मानते हुए उसे इसका खामियाजा भुगतने की बात कही.

इसकी शुरुआत मोदी सरकार ने यह फैसला लेते हुए की कि प्रधानमंत्री मोदी इस्लामाबाद में होने वाले सार्क सम्मेलन में शरीक नहीं होंगे. इसके बाद एक-एक कर भारत-पाकिस्तान रिश्तों से तारों को उधेड़ना शुरू किया जाने लगा. मोदी सरकार ने सिंधू नदी पर हुए दशकों पुराने समझौते की समीक्षा करने से लेकर पाकिस्तान को दिए गए मोस्ट फेवर्ड नेशन के स्टैटस पर सवालिया निशान लगा दिया. इसके साथ ही सरकार ने यह भी तय कर लिया कि वह अंतरराष्ट्रीय फोरम पर संयुक्त राष्ट्र की मदद से पाकिस्तान को एक आतंकवादी देश घोषित कराने की कवायद करेगी. इसी कड़ी में भारत और पाकिस्तान के बीच अबतक स्थापित हुए सांस्कृतिक संबंधों पर भी आंच आई. दोनों देशों के बीच कलाकारों और फिल्मी आदाकारों को काम करने की आजादी पर सवाल उठने लगा.

इन सब के बीच मोदी सरकार को विपक्ष के विरोध का सामना भी करना पड़ा. कुछ विरोधी इसे पाकिस्तान नीति में मोदी सरकार की विफलता बताने लगे तो कुछ इसे उत्तर प्रदेश और पंजाब के आगामी चुनावों को देखते हुए सरकार का बीजेपी सरकार की हताशा या मास्टर स्ट्रोक तक की संज्ञा देने लगे.

इसे भी पढ़ें: मैं प्रधानमंत्री को सैल्यूट करता हूं - केजरीवाल भी बोले आखिरकार !

लेकिन पिछले हफ्ते जब भारतीय सेना ने उरी हमले के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर मौजूद आतंकी कैंपों पर सर्जिकल स्ट्राइक की, तो सबका सुर बदल गया. बड़े तो बड़े, छोटे विपक्षी दलों ने...

पिछले महीने 18 सितंबर को पाकिस्तान से सरहद पार कर आए आतंकवादियों ने उरी स्थित सेना के बेस पर हमला बोलते हुए 18 सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया. इस हमले की भर्त्सना करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुनहगारों को सजा देने का वादा किया और इसके लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार मानते हुए उसे इसका खामियाजा भुगतने की बात कही.

इसकी शुरुआत मोदी सरकार ने यह फैसला लेते हुए की कि प्रधानमंत्री मोदी इस्लामाबाद में होने वाले सार्क सम्मेलन में शरीक नहीं होंगे. इसके बाद एक-एक कर भारत-पाकिस्तान रिश्तों से तारों को उधेड़ना शुरू किया जाने लगा. मोदी सरकार ने सिंधू नदी पर हुए दशकों पुराने समझौते की समीक्षा करने से लेकर पाकिस्तान को दिए गए मोस्ट फेवर्ड नेशन के स्टैटस पर सवालिया निशान लगा दिया. इसके साथ ही सरकार ने यह भी तय कर लिया कि वह अंतरराष्ट्रीय फोरम पर संयुक्त राष्ट्र की मदद से पाकिस्तान को एक आतंकवादी देश घोषित कराने की कवायद करेगी. इसी कड़ी में भारत और पाकिस्तान के बीच अबतक स्थापित हुए सांस्कृतिक संबंधों पर भी आंच आई. दोनों देशों के बीच कलाकारों और फिल्मी आदाकारों को काम करने की आजादी पर सवाल उठने लगा.

इन सब के बीच मोदी सरकार को विपक्ष के विरोध का सामना भी करना पड़ा. कुछ विरोधी इसे पाकिस्तान नीति में मोदी सरकार की विफलता बताने लगे तो कुछ इसे उत्तर प्रदेश और पंजाब के आगामी चुनावों को देखते हुए सरकार का बीजेपी सरकार की हताशा या मास्टर स्ट्रोक तक की संज्ञा देने लगे.

इसे भी पढ़ें: मैं प्रधानमंत्री को सैल्यूट करता हूं - केजरीवाल भी बोले आखिरकार !

लेकिन पिछले हफ्ते जब भारतीय सेना ने उरी हमले के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर मौजूद आतंकी कैंपों पर सर्जिकल स्ट्राइक की, तो सबका सुर बदल गया. बड़े तो बड़े, छोटे विपक्षी दलों ने फौरन सामने आकर सेना की कार्रवाई का समर्थन किया. विपक्ष में बैठी कांग्रेस ने तो एक पल के लिए यह भी नहीं सोचा कि अबतक उसके शासन काल में हुए कई दर्जन ऐसे आतंकी हमलों के बाद आखिर क्यों उसकी अपनी सरकार ने ऐसा कदम उठाने की हिम्मत नहीं दिखाई. दरअसल यह विपक्षी दल जान रहा था कि यह खबर देश में आग की तरह फैलेगी और इसके साथ ही राष्ट्रवाद सहित कई मुद्दे उन्माद पैदा करेंगे. लिहाजा, ऐसे मौके पर सरकार के साथ खड़ा होना ही पोलिटिकल करेक्टनेस कहलाएगी.

हुआ भी यूं ही. सर्जिकल स्ट्राइक ने एक बार फिर पूरे देश को पाकिस्तान के खिलाफ एक सूत में पिरो दिया. लेकिन यही वक्त था जब विपक्षी राजनीतिक दल, उनके समर्थक राष्ट्रभक्त, उनकी विचारधारा के साथ खड़े पत्रकार और इन सबसे सहमत बुद्धिजीवी वर्ग को अपने लिए पृथक जमीन भी तलाशनी थी. क्योंकि हमले के तुरंत बाद सेना को दिया गया उनका समर्थन उन्हें किसी तरह का कोई फायदा नहीं पहुंचाती और सिर्फ उनके सत्तारूढ़ प्रतिद्वंदी को और मजबूत करती. लिहाजा, हमले के बाद जैसे ही उल्लास थोड़ा ठंडा पड़ा इन सभी ताकतों ने मिलकर सरकार के एक-एक कदम को तार-तार करना शुरू किया. ऐसा करने में उनकी कोशिश वही कि इस राष्ट्रीय उल्लास के बाद कैसे अपनी-अपनी राजनीतिक जमीन को बचाकर रखा जाए.

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

आइए देखते हैं कि उरी पर हमले के बाद और सर्जिकल स्ट्राइक से होते हुए अभीतक ऐसे क्या-क्या मुद्दे सामने आ चुके हैं जहां मोदी सरकार अपना रुख स्पष्ट कर चुकी है लेकिन उसे अब विपक्ष के प्रहारों का दंश झेलना पड़ रहा है.

1. सार्क समिट में हिस्सा न लेना

उरी हमले के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी को इस्लामाबाद में सार्क देशों के अधिवेशन में शामिल होना था. लेकिन पाकिस्तान की तरफ से प्रायोजित आतंकवाद को मुद्दा बनाते हुए मोदी ने इसमें शिरकत करने से मना कर दिया. इस फैसले से सरकार का उद्देश्य पूरे दक्षिण एशिया में पाकिस्तान को अलग-थलग करने का था. हालांकि सार्क के संविधान के मुताबिक किसी भी एक सदस्य देश के शामिल न होने पर कोई अधिवेशन आयोजित नहीं किया जा सकता, लिहाजा मोदी के मना करने के बाद इस सम्मेलन का स्थगित होना तय था. इसके बावजूद सार्क के सभी सदस्य देशों ने स्वत: भारत के रुख का समर्थन करते हुए इस सम्मेलन में शामिल होने से मना कर दिया.

2. सिंधु नदी समझौते की पुनर्समीक्षा करना

उरी पर पाक प्रायोजित आतंकी हमले के बाद विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा कि दोनों देशों के बीच आजादी के तुरंत बाद हुआ सिंधू नदी समझौते का आधार पारस्परिक दोस्ती है. लेकिन पाकिस्तान की ऐसी हरकत के बाद दोनों देशों के बीच दोस्ती या सामान्य रिश्तों जैसा कुछ नहीं है, लिहाजा, भारत इस समझौते को नकारते हुए पाकिस्तान के साथ नदियों के बंटवारे को नए सिरे से शुरू करने का मत रखता है.

3. पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित कराना

उरी हमले के बाद जहां संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान इसे कश्मीर से जोड़ने की कोशिश करता रहा, भारत ने विश्व समुदाय के सामने दो टूक शब्दों में कहा कि पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है. उसने अंतरराष्ट्रीय संगठन से अपील की कि वह पाकिस्तान को एक आतंकवादी देश घोषित करने की पहल करे. गौरतलब है कि दुनिया की सभी बड़ी ताकतों ने खुलकर नियत्रंण रेखा पर भारतीय सेना के ऑपरेशन को सही बताया और रूस ने यहां तक दावा किया कि भारत को अपनी सरहदों को सुरक्षित करने का पूरा अधिकार है.

4. पाकिस्तान से आयात-निर्यात पर प्रतिबंध लगाना

वैसे तो आजादी के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच कोई बहुत बड़ा कारोबार नहीं रह गया. लेकिन आजादी के पहले तक पाकिस्तान का मौजूदा क्षेत्र हिंदू अर्थव्यवस्था का बहुत बड़ा केन्द्र था. आजादी के वक्त पाकिस्तान के हिस्से में हो रहे कुल कारोबार का लगभग 80 फीसदी कारोबार हिंदू समुदाय के पास था लेकिन बंटवारे में वह पूरा कारोबार छोड़कर भारत आने के लिए मजबूर हो गए. फिलहाल दोनों देशों के इस एतिहासिक कारोबार के चलते जरूरी सामानों का आदान प्रदान होता है. यह व्यापार आमतौर पर सरहद के जरिए होता रहा. वहीं जब टकराव की स्थिति बनती थी तो किसी तीसरे देश के माध्यम से दोनों देशों के बीच यह कारोबार किया जाता था. अब सरकार ने आपसी कारोबार पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने का रुख एख्तियार कर लिया है. इसी कड़ी में भारत ने पाकिस्तान को व्यापार के लिए दिए गए मोस्ट फेवर्ड नेशन के ओहदे से भी अलग करने का फैसला कर लिया है.

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5. पाकिस्तानी कलाकारों को प्रतिबंधित करना

पाकिस्तान के कलाकारों को भारत में और भारत के कलाकारों को पाकिस्तान में मनोरंजन का बड़ा साधन माना गया. कम से कम कला और संस्कृति के क्षेत्र में दोनों देशों के बीच टकराव की स्थिति कम रही है. हालांकि खराब होते रिश्तों की छींटे जरूर पड़ती रही. दोनों देशों के बीच क्रिकेट का खेल किसी युद्ध से कम नहीं माना जाता. जो फिल्में भारत में सुपरहिट होती हैं उनका पाकिस्तान में भी सुपरहिट होने की पूरी गारंटी रहती है. और जब फिल्म भारत-पाकिस्तान की थीम पर बनी हो तो दोनों देशों में उसे देखने की एक जैसी चाह रहती है. यह एक बार फिर साबित करता है कि कैसे राजनीति के इतर दोनों देशों में सांस्कृतिक समानता है. लेकिन जब किसी एक देश की राजनीति आतंकवाद का सहारा लेने लगे तो फिर क्या ऐसी स्थिति में सांस्कृति और कला को जारी रखने का कोई तुक है. स्वाभाविक डर है कि आतंकवाद इन्हीं की आड़ में अपना आतंक एक्पोर्ट करने लगे.

6. बलूचिस्तान मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाना

इतिहास इस बात का गवाह है कि आजादी के बाद किस तरह पाकिस्तान की नई हुकूमत और उसकी नीतियों ने बांग्लादेश का बीज बोया था. ठीक उसी तरह यह भी इतिहास में दर्ज है कि कैसे आजाद पाकिस्तान ने अंग्रेजों द्वारा स्वतंत्र किए गए बलूचिस्तान को धोखे से अपने कब्जे में कर लिया था. इसके बाद से पाकिस्तानी सेना ने सिर्फ बर्बरता का सहारा लेते हुए बलूचिस्तान को अपने कब्जे में कर रखा है. आजाद बलूचिस्तान का आंदोलन समय-समय पर अमेरिका और यूरोप में आवाज उठाता रहा है. भारत-पाकिस्तान के रिश्तों में अगर युद्ध की स्थिति बन रहा है तो भला यह कैसे गलत है कि वह पूरी कोशिश करे कि पाकिस्तान को बांग्लादेश जैसी स्थिति का एक बार फिर सामना करना पड़े. क्या मौजूदा सरकार का यह कहना गलत है कि बलूचिस्तान को अपने अधीन कर पाकिस्तानी सेना वहां मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रही है?

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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